किंगमेकर सैय्यद भाइयों और बादशाह मुहंमद फर्रुखसियर (Farrukhsiyar) के संबंध इतने खराब हो चुके थे कि उसका हटाया जाना तय हो गया था। माहौल खिलाफ देखते हुए बादशाह फर्रूखसियर ने सैय्यद भाइयों (Sayyid brothers) की तमाम शर्तें भी मंजूर कर लीं थी। जयसिंह को आमेर रवाना कर दिया गया। किले पर सैय्यद भाईयों के आदमी तैनात हो गए।
बादशाह के पास केवल एतिकाद ख़ान व मुशरीफ इमिलियान ख़ान रह गए। इसके अलावा कुछ नौकर और ख्वाजासरा थे। किले के चारों तरफ सैय्यद भाइयों व मराठों की फौज तैनात थी। सैय्यद बंधु राजा अजीतसिंह के साथ किले में पहुँचे। उन्होंने दीवान-ए-खास, ख्वाबगाह आदि की चाबियाँ अपने कब्जे में ले लीं। इसके बाद बादशाह के सामने अपनी शिकायतें रखते हुए सैय्यद हुसैन अली ने कहा,
“आपके प्रति हमारी वफादारी व सहयोग का बदला आपने हमें दुर्भावना, कपट तथा संदेह द्वारा दिया है। आप एक कृतघ्न बादशाह हैं। हमारे पास वह फरमान हैं जो आपने हमारे विरूद्ध दाऊद ख़ान तथा अन्य अमीरों को लिखे थे और उन्हें हमारे कत्ल का आदेश दिया था।”
इस खबर से क्षुब्ध बादशाह ने बहानेबाजी करते हुऐ तमाम बातें कहीं। उसने अपने कार्यों की जिम्मेदारी एतिकाद ख़ान के ऊपर डाल दी। सैय्यद अब्दुल्ला ख़ान ने एतिकाद ख़ान को गालियाँ देकर तत्काल किले से बाहर निकाल दिया। इस समय बादशाह अपने भविष्य के प्रति साशंकित हो गया था।
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सेना सहित आत्मसमर्पण
दिल्ली में सारी रात भय का माहौल बना रहा। मराठा सेना के मुस्तैद योद्धा रात भर घोड़ों पर सतर्क बने रहे। एतिकाद ख़ान व कुछ अन्य उमराव अपने जीवन की चिन्ता न कर सैय्यद भाइयों के विरोध पर रवाना होने वाले थे कि सामने मराठा फौज दिखाई दी और बिना देर किये मुग़ल फौज मराठा सेना पर टूट पड़ीं।
करीब डेढ़ हजार मराठा सैनिक मारे गए। यह देखकर अब्दुल्ला ख़ान ने भी अब कड़ाई से मोर्चा संभाला तो एतिकाद ख़ान ने हिम्मत खो दी। उसने सेना सहित आत्मसमर्पण करने की घोषणा कर दी।
28 फरवरी सन 1719 ईसवीं को इन्हीं गतिविधियों के मध्य अचानक नगाड़े बज उठे तथा घोषणा की जाने लगी कि मुग़ल सिंहासन पर फर्रूखसियर के स्थान पर अब्दुल बरकत रफी-उद-जात (Rafi ud-Darajat) आसीन हो गया है। इस बीच कुछ लोगों ने फर्रूखसियर को गुप्त रूप से भगाने की कोशिश भी की पर वे कामयाब न हो सके।
आखीर में कुछ अफगान सैनिक सैय्यद अब्दुल्ला ख़ान के एक छोटे भाई निज़ामुद्दीन अली ख़ान के साथ शाही हरम में घुस गए। रफ़ी-उद-दरजात को मुग़ल बादशाह बनाने की औपचारिकता पूरी करने के बाद फ़र्रुखसियर को ढूंढने की कवायद की गई।
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बादशाह को घसीटा गया
निजामुद्दीन अली ख़ान को चार सौ लोगों को भेज कर फ़र्रुखसियर को पेश करने का हुक्म हुआ। जिस हिस्से में यह पूर्ववर्ती मुग़ल बादशाह छिपा था, उसके दरवाजे को तोड़ डाला गया। अंततः उसे बाहर आना पडा। जब वह निकला, उसके हाथ में नंगी तलवार थी। उसकी माँ, पत्नी, बेटियों और नौकरानियों ने उसका कवच बनने की पूरी कोशिश की परं उन सब को आसानी से किनारे कर दिया गया।
बादशाह फर्रुखसियर को आराम से काबू में कर लिया गया और पूरी निर्दयता के साथ घसीट कर बाहर लाया गया। उसकी पगड़ी को जमीन पर गिरा दिया गया था और पूरे समय उसे भद्दी-भद्दी गालियाँ और व्यंग्य बाणों से नवाजा जा रहा था।
उस दौरान फर्रूखसियर की माँ, बेगमें व बहनें रोती-चिल्लाती रहीं। उसे एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया। चार-पाँच दिनों तक उसे आवश्यक कार्यों हेतु पानी तक नहीं दिया गया। उसके पास कमरे में केवल एक आफताबा (बर्तन) तथा एक पानी पीने का गिलास था।
इस प्रकार कुछ घंटों पहले तक मुल्क के बादशाह रहे, एक चर्चित तैमूर ख़ानदान के वंशज, जिनका दूर-दूर तक सिक्का चलता था, को फटे हुए अव्यवस्थित कपड़ों, बिना पगड़ी और नंगे पैर ले जाकर वजीर के सामने प्रस्तुत किया गया।
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सुई से किया अंधा
कहा जाता है कि अब्दुल्ला ख़ान ने अपना लिखने का डिब्बा खोला और एक सुई निकाली जिसे वह सुरमा लगाने में इस्तेमाल करता था। इस सुई को उसने एक आदमी को देते हुए इशारा किया। अगले ही पल उसे जमीन पर गिरा दिया गया था। कुछ ही क्षण में एक चिंघाड़ की आवाज गूंजी। उसे अंधा कर दिया गया था। शायद उसको मुकम्मिल सजा दे दी गई थी।
कहते हैं कि आँखों में सुई लगा कर उसे अंधा कर देने के बाद भी फर्रूखसियर की एक आँख में कुछ रोशनी बची थी। उसके कमरे के बाहर एक अफगान पहरेदार की तैनाती थी। इस हारे हुए बादशाह ने उससे मेल-जोल बढ़ाया। उसने पहरेदार को लालच दिया कि यदि उसे जयपुर के राजा जयसिंह के पास पहुँचाने का कोई उपाय हो जाए तो वह गद्दी पर बैठने के बाद उसे सात हजार का मनसब दे देगा।
पहरेदार ने भूतपूर्व बादशाह की आँख कि रोशनी बचने तथा उसके द्वारा कही बातों की सूचना ऊपर अधिकारियों को दे दी। अब सैय्यद भाइयों ने उसके जीवित बने रहने के खतरे को समझ कर उसके प्राण हरण को जरूरी समझा।
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गला घोंटकर मार डाला
हासिम अली ख़ान ने भी हुसैन अली ख़ान को सुझाया था कि बीमारी के दो इलाजों में एक ही कारगार होता है। या तो बर्दाश्त करो या रोगग्रस्त हिस्से को काट दो। हासिम अली ख़ान का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ एवं फर्रूखसियर को भोजन में हल्का-हल्का जहर दिया जाने लगा पर फर्रूखसियर पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
बाद में बंदीगृह में हत्यारों को भेजा गया कि वे गला घोंटकर उसे मार डालें। फर्रूखसियर ने हत्यारों का मुकाबला किया पर संख्या में ज्यादा होने पर उन्होंने अपने पूर्व बादशाह के गले में फन्दा डाल दिया, जिसे फर्रूखसियर ने हाथों से पकड़ लिया। इस कारण उसे कसा नहीं जा सका।
अब फर्रूखसियर के हाथों पर प्रहार किये गए। जब उसने रस्सी छोड़ दी तो उसका गला घोंट दिया। उसकी मृत्यु निश्चित करने के लिए उसके पेट में तलवार घुसेड़ दी गयी। इस प्रकार 27-28 अप्रैल 1719 की रात में उसकी मृत्यु हो गयी। मौत के समय उसकी उम्र केवल 33 बरस थी। उसे हुमायूँ मकबरे के एक तलघर में दफना दिया गया। इस प्रकार मुग़ल बादशाहत (Mughal empire) का एक अध्याय खत्म हो गया था।
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लेखक आगरा स्थित साहित्यिक हैं। भारत सरकार और उत्तर प्रदेश में उच्च पदों पर सेवारत। इतिहास लेखन में उन्हें विशेष रुचि है। कहानियाँ और फिक्शन लेखन तथा फोटोग्राफी में भी दखल।