पाकिस्तान का टूटना और बांग्लादेश का बनना भारत के लिए सबक़

चास साल पहले 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के 93000 सैनिकों के हथियार डाल देने के बाद नए राष्ट्र बांग्लादेश के निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया। इसके साथ ही मज़हबी नफ़रत और दो क़ौमी नज़रिये की बुनियाद पर बने पाकिस्तान के निर्माण का …

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जामा मस्जिद में आज़ाद का भाषण : ‘तब्दीलियों के साथ चलो’

अंग्रेजी सरकार द्वारा आज़ादी मिलने के बाद भारत में सांप्रदायिक शक्तीयों के कारनामे जोर पकड़ रहे थे। जिसके परिणामस्वरूप स्थानिक मुसलमान वहशत में आ गए थे। उन्हें अपने अस्तित्व के साथ अस्मिता का संकट सता रहा था। ऐसे में कई लोग अपना वतन छोड़कर पड़ोसी

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जब दारा शिकोह ने रची औरंगज़ेब के हत्या की साजिश !

तिहासकारों ने महमूद ग़ज़नवी के बाद सबसे अधिक पक्षपात मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब के साथ किया जिनका इस देश पर 50 साल का मज़बूत और एकछत्र शासन था। उन्होंने ही एक राष्ट्र के रूप में भारत की सीमा का सर्वाधिक विस्तार अफगानिस्तान से लेकर वर्मा
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मराठाओं को आरक्षण और मुसलमानों को मुँह में खजूर !

लोकसभा से :

मोहतरम जनाब चेयरमैन साहब, आपका बेहद शुक्रिया कि आपने मुझे एक अहम दस्तूर-ए-तरमीम ( संविधान संशोधन) बिल पर बोलने का मौका फ़राहम किया है। मोहतरम, मैं आपकी जानिब से बरसरे इक्तिदार जमात (सत्तापक्ष) को मुबारकबाद देना चाहता हूं कि

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सरकारी फ़ेलियर का जिन्दा दस्तावेज थी, गंगा में तैरती लाशें !

राज्यसभा से :

ह कोई भाषण की शक्ल में नहीं है, एक शोक संतप्त गणतंत्र का एक अदना नागरिक समझिये या एक जन प्रतिनिधि समझिये, उसकी ओर से कुछ बातें कही जा रही हैं। सबसे पहले माफीनामा उन तमाम लोगों को, …

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सिराज उद् दौला की वह माफी जिससे भारत दो सौ साल गुलाम बना

जू1756 की वह 20 तारीख थी, जब बंगाल के नवाब सिराज उद् दौला की विजयी सेना ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता साम्राज्य को तबाह कर दिया था। कलकत्ता कोठी के तमाम अंग्रेज कैद कर लिए गए थे। हर कोई जान बचाने के

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पांडुलिपियां राष्ट्रीय धरोहर, कैसे हो उनका वैज्ञानिक संरक्षण ?

राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के अवशेष हमारे गौरवमयी ऐतिहासिक चिन्ह स्वरूप, पांडुलिपियों में मौजूद हैं। यह अमूल्य धरोहर हमारी सभ्यता, संस्कृति तथा समाज के उत्थान और उन्नति की प्रतीक हैं।

आदिकाल से जब मनुष्य ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए लिखना

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क्या दुष्प्रचार का नतीजा थी सद्दाम हुसैन की फाँसी ?

ज से 14 साल पहले ईराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन को फाँसी की सज़ा देने में सफलता मिली थी। मगर क्या सद्दाम को फाँसी पर चढ़ाना ज़रूरी था? इस प्रक्रिया में इन्साफ हुआ या इन्साफ का खून हुआ? इस तरह के

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‘मलियाना नरसंहार’ की कहानी चश्मदीदों की जुबानी

लियाना के रहने वाले पत्रकार सलीम अख्तर सिद्दिकी बताते हैं, 23 मई 1987 को लगभग दोपहर बारह बजे से पुलिस और पीएसी ने मलियाना की मुस्लिम आबादी को चारों ओर से घेरना शुरु किया। यह घेरे बंदी लगभग ढाई बजे खत्म हुई। पूरे

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तीस साल गुजरे आखिर ‘मलियाना हत्याकांड’ में न्याय कब होगा?

पिछले 19 अप्रैल 2021 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है जिसमें कहा गया है कि 34 वर्ष पहले मेरठ के मलियाना गांव और मेरठ तथा फतेहगढ़ जेल में हुई उन हत्याओं की जाँच नए सिरे से एक

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