तीन दशक पुरानी उस विमान दुर्घटना को याद करते हुए आज भी औरंगाबाद वासीयों के रोंगटे खडे हो जाते हैं, जब एक मामूली सी घटना 55 लोगो कि जान लेने का सबब बनी। उस समय इंडियन एअरलाइन्स के उस विमान में कुल 118 वीआईपी लोग सफर कर रहे थें। जिसमे महज 63 लोग ही बच पाये।
26 अप्रेल 1993 कि वह दोहपर जब दिल्ली-मुंबई बोईंग 737 आईसी 419 प्रवासी जहाज औरंगाबाद एअर पोर्ट पर अपने नियमित समय को लँडिंग हुआ। जहाज जयपूर-उदयपूर होते हुए आया था, जिन लोगो को औरंगाबाद उतरना था वह बाहर निकलकर चेक पॉइंट पर चले गये।
दूसरी ओर विमान में मौजूद क्रू मेम्बर अपने-अपने काम पुरे करने बाहर निकले। कुछ लोग जहाज में इंधन भर रहे थे, तो कुछ फ्रेश होने के लिए मेन बिल्डिंग की तरफ रवाना हुए। यह जहाज अब मुंबई कि ओर जानेवाला था। जिसके लिए औरंगाबाद शहर के नामी उद्योगपति और विधायक विमान में चढने वाले थे, उनके स्वागत के लिए कुछ एअऱ होस्टेस जहाज के सिढीयों के पास जाकर खडी हुई।
बहरहाल, विमान ने ठीक 1 बजकर 20 मिनट पर चिकलथाना हवाई अड्डे से मुंबई के लिए अपनी उडान भरी। जिसमें जयपूर के 24, उदयपूर के 37 और औरंगाबाद के कुल 51 यात्री मुंबई जाने के लिए बैठे थे।
कहते हैं, उस समय चिकलथाना हवाई अड्डे के आस-पास छोटी-छोटी रिहायशी बस्तीया थी। पास से लगकर एक राजमार्ग था, जो बीड शहर कि ओर जाता था। जब हवाई अड्डे पर विमानों का अवागमन होता तब उस रास्ते का ट्रॅफीक रोका जाता था, पर उस दिन ट्रॅफिक रोका नही गया था।
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कपास कि गांठे बनी रोडा
इधर जहाज हवा में मुकम्मल उडान भरने के फिराक में था। विमान को उडान के लिए आवश्यक उंचाई नही मिली। जिससें उसके टायर हवाई पट्टी के समीप राजमार्ग पर खडे एक उंचे ट्रक से स्पर्श करते हुए निकल गए। चालक ने उडते हुए विमान को देखने के लिए ट्रक रोका था। उस ट्रेक में कपास कि गांठे ओव्हरलोडेड थी।
ट्रक से झुलसने से विमान का एक टायर निकलकर निचे की ओर गिर गया। जिससे जहाज धक्के के साथ जोर लडखडाया, अन्दर मौजूद दोनों पायलटों उसे नियंत्रित करने की पुरी कोशिश की परंतु वह असफल रहे। लडखडाता हुआ यह जहाज बिजली के हाई वोल्टेज तारों में झुलस गया और विस्फोट के साथ उसके टुकडे होकर जहाज में आग लग गई।
लोकमत के प्रधान संपादक राजेंद्र दर्डा इस घटना को याद करते हैं, “लोकमत के कार्यालय के सामने से दो फाय़र ब्रिगेड कि गाडीयाँ सायरन बजाती हुई निकली। मुझे टेलिफोन ऑपरेटर से एक यात्री जहाज दुर्घटनाग्रस्त होने की जानकारी मिली।
उन दिनों मेरे पास लाल रंग कि मारुति-800 कार थी, जिसे तुरंत निकालकर और दो-तीन लोग जालना रोड पर निकले। चिकलथाना गांव पहुँचने पर वहां ग्रामीण जालना रोड कि ओर भागते हुए दिखे, आज जहां कैम्ब्रीज स्कूल हैं।
वहीं थोडी दूरी पर बायीं ओर सडक पर थोडी दूर पर दुर्घटनाग्रस्त विमान के टुकडे जलते हुए दिखाई दिए। दृष्य देखकर विश्वास नही हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता हैं।”
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जलती हुई लाशे
जहाज हवाई अड्डे से तीन किलोमीटर दूरी पर वरूड काझी गांव में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसा होते ही जहाज के सामने वाले हिस्से के यात्रीयों ने बाहर कुदना शुरु किया। जो लोग बाह कूदे वह बच गए। परंतु पिछले हिस्से के लोग बाहर निकल नही सके। कुछ लोग जलने से तो कुछ लोग दम घुटने से मारे गये।
प्रत्यदर्शी रंजन हौजवाला इस दुर्घटना को याद करते हैं, “दुर्घटना कि ओर जाने वाला रास्ता ठिक नही था, जैसे तैसे फायर ब्रिगेड कि गाडीयाँ वहं पहुँची। यात्री छिन्न विछिन्न अवस्था में खेत में जहाज के टुटे हुए टुकडो के साथ जल रहे थे।
जो लोग जहाज से जान बचाने के लिए बाहर कुदे थे, उन्होंने अन्दर के लोगों को बचाने कि कोशिश शुरु की। चिकलथाना के ग्रामीण अपने तरीके से मदद कर रहे थे। जब शहर के लोगों को यह खबर मिला तब वह घटनास्थल पर आने लगे। घटना का विदारक दृष्य देख कर लोग चक्कर आकर गिरने लगे।”
इस जहाज में शहर के प्रसिद्ध उद्योगपति भी थे, जिसमें वीडिओकॉन समूह के नन्दलाल धूत, अरुण जोशी, पी.यू. जैन-ठोले, होटल गुरू के जवाहरानी, राजेंद्र मोटर्स के दीपक मुनोत, वी.ए. जाधव – जो मौत के मुँह में समां गये।
जबकि विधायक रामप्रसाद बोर्डीकर, गरवारे समूह के अनिल भालेराव, अरुण मुगदिया, अनिल माछर तत्कालीन पुलिस अधिकारी अयंगार, पायलट कॅप्टन एस. एन. सिंग और महिला को-पायलट मनीषा मोहन के साथ कुल 63 लोग बाल-बाल बच गए।
राजेंद्र दर्डा घटना को याद करते हुए बताते हैं, “विमान से जान बचाने के लिए कूदे भाग-दौड, अलग-अलग जगह पडे जले हुए मृत शरीर, विमान में फंसी हुई कई मृत शरीर निकालने कि कोशिश, प्रशासन व वरीष्ठ अधिकारीयों की कसरत के बीच यात्रीयों की मदद के लिए उठे नागरिकों के हाथ का मिला-जुला दृष्य मन को द्रवित कर रहा था।”
जिन्दा बचे गरवारे समूह के अनिल भालेराव याद करते हैं, “जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद किसी तरह मैं बाहर निकला। धुएँ से कुछ साफ दिखाई नही दे रहा था। जब तक मदद के लिए कुछ गाडीयाँ आयी, जिसमें बैठकर मैं हवाई अड्डे तक आ गया। वहां से कंपनी कि गाडी बुलवाई और डॉ. हेगडेवार अस्पताल में जाँच के लिए दाखिल हो गया। इस दुर्घटना में मैंने अपने दोस्त अरुण जोशी को खो दिया।”
घायलो को तुरुन्त विभिन्न अस्पतालों मे भरती कराया गया। गंभीर रूप से घाययों को इलाज क लिए विशेष विमान से मुंबई भेजा गया।
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लोकसभा में गुंजा मामला
महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार तत्काल घटनास्थल पर पहुँचे। शाम तक नागरी उड्डयन मंत्री गुलाम नबी आजाद भी घटनास्थल पर पहुँचे। देर रात तक मदद के लिए भाग-दौड चलती रही। दूसरे दिन 27 अप्रेल को गुलाम नबी आजाद विशेष विमान स दिल्ली पहुँचे। लोकसभा में मामला गुँजा, उन्होंने घटना कि जानकारी सदन को दी।
आजाद नें लोकसभा में कहा, “इस अवसर पर हमें जो दुख होता है, उसे शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। दुर्घटना में जानमाल की क्षतिपूर्ति का भुगतान वयस्कों के लिए साढ़े पांच लाख रुपये और बच्चों के लिए ढाई लाख रुपये मृतको के परिजनों को दिया जाएगा।
उपलब्ध जानकारी और प्राइमा फेसिबल स्थिति किसी भी साजिश का संकेत नहीं देती है। हालांकि, सरकार ने एक न्यायिक जांच का गठन करने का फैसला किया है, जो दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों को प्रकट करेगा। DGCA ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है।”
जाँच के बाद दोनो पायलटों को जहाज नियंत्रित करने में दोषी पाया गया, एअरपोर्ट एथॉरिटी पायलटो को तत्काल प्रभाव से हटाया। दुर्घटनाग्रस्त विमान शुरुआती बेडे का जहाज था, जिसने सेवा के 19 साल पूरे किये थे। उसने अपने सेवा काल में कूल 43 हजार 886 घंटो कि उडान मुकम्मल कर ली।
दो साल पहले राजेंद्र दर्डा नें एक स्मृतिलेख में जाँच को लेकर कुछ सवाल खडे किये थे। जिसमें वह कहते हैं, “दुर्घटना क 25 साल बाद भी इंडियन एअरलाइन्स की ओर से दोनों पायलटों को हटाने के अलावा प्रशासन ने उनपर कोई कडी कार्रवाई की हो ऐसा कोई मामला सामने नही आया।
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घटना के बाद कई बदलाव
आज इस दुर्घटना को 27 साल पुरे हो चुके हैं। इस घटना के बाद उड्डय़न मंत्रालय ने हवाई अड्डे पर इन्स्ट्रुमेन्ट लँडिंग सिस्टिम, ग्लाईड स्लोप मशिन, डोप्लर ओम्री रेंज, डिस्टन्स मेजरिंग इत्यादी टेक ऑफ और लँडिंग के दृष्टि से कई अत्याधुनिक यंत्रणाए कार्यान्वीत कर दी हैं। सीसीटीवी के माध्यम से संपूर्ण हवाई अड्डे पर पैनी नजर रखी जाती हैं। टेक्निकल तौर पर सक्षम एअर पोर्ट के इमारतों मे ऑटोमॅटिक इंटेलिजंट फायर अलार्म लगाया गया हैं।
बीड शहर कि ओर जानेवाला जो रास्ता दुर्घटना का सबब बना, उसे एक बडी सी दीवार बनाकर हमेशा के लिए बन्द कर दिया गया हैं। एथॉरिटी ने एक मील दूरी पर पर्यायी रास्ता बनवाया हैं, जिसपर अब राजमार्ग का अवागमन होता हैं। चिकलथाना परिसर में बडी और उंची इमारते बनाने कि परमीशन हमेशा के लिए बन्द हो गई हैं।
इस घटना क बाद एक बडा बदलाव सारे देश में किया गया हैं। जिसमे हवाई अड्डा परिसर मे रिहायशी इमारते ज्यादा उंची बनाने के लिए परमीशन नही हैं। उसी तरह शहर कि उंची इमारतें और मोबाईल टावरों पर रात के समय लाल बत्ती लगाना और उसे चालू रखना अनिवार्य कर दिया हैं।
चकलथाना हवाई अड्डे पर 25 साल पहले इस हवाई अड्डे पर एक साथ तीन जहाज खडे नही हो सकते थे। उसी तरह नाइट लँडिंग कि कोई सुविधा यहां नही थी। आज इस हवाई अड्डे का विस्तार हो चुका हैं। एअर पोर्ट एथॉरिटी ने आसपास के गांव की बडी सी जमीन अधिगृहित कर ली हैं। 100 करोड खर्च कर हवाई अड्डे का विस्तारीकरण किया गया हैं।
इस घटना को तीन दशक पुरे होने जा रहे हैं, मगर आज भी शहरवासीयों यह दुर्घटना एक काला इतिहास मानते हैं, जिसे लोग आज तक नही भूले। इस घटना को लेकर लोगों मे तरह-तरह कि बाते आज भी होती हैं। कोई कहता हैं, जहाज हवाई अड्डे के कंपाऊंड से लगने के वजह से घटना घटी, तो कुछ लोगों का मानना हैं कि बीड रास्ते के वाहनों से दुर्घटना हुई. खैर बाते तो चलती रहेंगी. मगर एक बात जरूर हैं कि इस घटना ने महज औरंगाबाद शहर नही नही बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
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हिन्दी, उर्दू और मराठी भाषा में लिखते हैं। कई मेनस्ट्रीम वेबसाईट और पत्रिका मेंं राजनीति, राष्ट्रवाद, मुस्लिम समस्या और साहित्य पर नियमित लेखन। पत्र-पत्रिकाओ मेें मुस्लिम विषयों पर चिंतन प्रकाशित होते हैं।