‘ताज ऑफ साऊथ’ कहा जाने वाला ‘बीबी का मक़बरा’ दकन कि ऐसी सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे हर महाराष्ट्रीयन को फख्र महसूस होता हैं। औरंगाबाद स्थित यह इमारत मुग़ल सल्तनत कि एक अहम विरासत है।
यह मक़बरा मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब (1658-1707) की पत्नी ‘रबिया-उल-दौरानी’ उर्फ ‘दिलरास बानो बेगम’ का एक सुंदर मक़बरा है।
माना जाता है कि इस मकबरे का निर्माण राजकुमार आजमशाह ने अपनी माँ की याद में सन 1651 से 1661 के दौरान करवाया।
प्रवेश द्वार के बाहरी और मौजूद अभिलेख में यह जिक्र है कि यह मक़बरा अताउल्ला नामक एक वास्तुकार और हंसपत राय नामक एक अभियंता द्वारा निर्मित किया गया। इस मकबरे का प्रेरणा स्रोत आगरा का विश्व प्रसिद्ध ताजमहल था। यही वजह है कि इसे ‘दकन के ताज’ के नाम से जाना जाता है।
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अदभूत डिझाइन
दकन के इतिहासकार मानते हैं कि उत्तर के ताजमहल की कल्पना भी दकन की हि देन हैं। बिजापूर स्थित इब्राहिम रोजा जो कि इब्राहिम आदिलशाह के सल्तनत मे बना है, इसकी तर्ज पर ताजमहल बनवाया गया हैं। इब्राहिम रोजा को अगर गौर से देखे तो काले पत्थर में बनी यह इमारत हूबहू ताजमहल कि तरह ही दिखती हैं।
यह मक़बरा दकन के कुछ अहम और भव्य मुग़ल स्मारकों में से एक है। औरंगज़ेब यहां काफ़ी लंबे समय तक सूबेदार के रूप में रहा था। जो बाद मे सम्राट बनने के बाद भी कई सालों तक मराठों से टक्कर लेने के लिए यही रुका रहा। इसके कार्यकाल में यहां कई इमारते बनी हैं।
औरंगाबाद स्थित बीबी का मक़बरा एक विशाल अहाते बना हैं। जिसका निर्माण 1651 से 1661 ईसवीं के बीच करवाया गया था। मुख्य प्रवेश द्वार से अंदाजन 100 मिटर पर एक बडी कमान है, जो प्रवेशद्वार कहा जाता हैं। अंदरुनी प्रवेश द्वार पर बाहर की ओर से पीतल की प्लेट पर बेल-बूटे के उत्कृष्ट डिज़ाइन हैं।
अंदर जाते हैं मुख्य द्वार कि दोनो दिशा में एक लकड़ी के बड़े दरवाजे हैं। जो उस कमान के उपर ले जाते हैं। एक और सरकारी ऑफिस है, जहां पुरातन विभाग के अफसर बैंठते हैं।
अंदरुनी प्रवेश द्वार से गुजरने के बाद एक छोटा-सा कुण्ड और साधारण आवरण दीवार है, जो मुख्य संरचना की ओर जाती है। सामने ही एक बड़ा सा तख्त हैं, जिसपर बैठकर पर्यटक अपनी यादों को सुंदर करने के लिए फोटो निकालते हैं।
जिसके ठिक पिछे स्मारक कि ओर जाने वाले रास्ते फव्वारों की एक श्रंखला है, जो इस शांत वातावरण का सौंदर्य और अधिक बढ़ा देती हैं। इसमें पानी लगातार बहता हैं। कहते है, इसका पानी नहरी अंबरी तथा दूसरी नहरों के लिए पहाडों से लाये गए झरनों से यहां आया हैं।
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जालीदार खिड़किया खासियत
मकबरे के इर्द-गिर्द सुंदर बागान हैं। अभी जिसके कुछ पेड़ और आम के दरख्त बचे हैं। इस बगीचे को ‘चार-बाग’ शैली में डिज़ाइन किया गया है, जिसे ज्यादातर मुगल उद्यानों में अपनाया गया है।
इन बागिचो में चार हिस्सों वाला एक प्लॉट होता है जिसमें चार अलग-अलग बागों वाला एक बड़ा घेरा होता है। परिसर में कई सुंदर फव्वारे, छोटे तालाब, पानी के नहर, चौड़े मार्ग और अनेक मंडप मौजूद हैं। जो कमबरे के खिबसुरती में चार चांद लगाती हैं और उसकी भव्यता और सौंदर्य को बढ़ाती हैं।
गार्डन की दीवारें भी ऊंची बनाई गई हैं ताकि बाहर का व्यक्ति अंदर न देख सके। इसके तीनों साइड में खुली जगह है। जालिदार खिड़कियां और कमाने इसकी खास विशेषताएं हैं। मकबरे के समीप दो-डाई फिट कि ये जालिदार दिवारें पत्थरों में बनी हुई हैं। जिसके कई हिस्से आज टुटे हैं।
अंदाजा हैं की मक़बरा उत्तर-दक्षिण में 458 मीटर और पूर्व-पश्चिम में 275 मीटर है। स्मारक में लगभग 72 फिट ऊंची चार मीनारें हैं और इनकी उठी हुई चौखटें सफेद संगमरमर की एक जालीदार खिड़कियों से घिरी है। इनका मक़बरा भी संगमरमर की एक जालीदार आठ कोनों वाली खिड़कियों से घिरा है।
मक़बरा एक ऊंचे-वर्गाकार चबूतरे पर बना है और इसके चारों कोनों में चार मीनारें हैं। इसमें तीन ओर से सीढियों दवारा पहुंचा जा सकता है। मुख्य संरचना के पश्चिम में एक मस्जिद है। जिसमे कमान और नक्काशी की कलाकारी अनुठे ढंग से की गयी हैं। इसके उपरी और चार छोटे मिनारे हैं, जो इसकी मस्जिद के रूप में पहचान कराते हैं।
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फूलों की नक्काशी
संकरी सिढियों से स्मारक पर जाया जा सकता हैं। यही की दूसरी खासियत बेल-बूटे की सजावट कि हुई जालिदार खिडकिया तथा दिवारें हैं, जिससे रौशनी छनकर मकबरे के अंदर आती हैं। अंदर एक मजार हैं जोकि दिलरस बानों कि कबर मानी जाती हैं। कहते हैं, मूल कबर निचे हैं उपरी ओर उसका टोप हैं। इस मजार पर पर्यटको द्वारा फेंकी गयी चवन्नी-अठन्नी तथा नोटो के बंडल नजर आहे हैं।
मक़बरे के शिखर पर एक गुम्बद है, जिसे जाली से मढ़ा गया है। इसके साथ वाले पैनलों की पुष्प डिज़ाइनों से सजावट की गई है। ये इतनी ही बारीकी और सफाई से की गई है, जितनी कि आगरा के ताजमहल की।
मजार कि चारों और कमल, गुलाब और कई अन्य फूलों की नक्काशी वाली संगमरमर की तख्तें और दीवारें हैं जो मकबरे की सुंदरता को और बढ़ाती हैं। इसी तरह मकबरे के बाहरी और चारो तरफ इटों से बने पदपथ हैं, जो टहलने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते थे।
पदपथ पर आज भी डिझाइन की हुई इटें नजर आती हैं, जो कई जगह घिस गई तो काफी जगह टुटी हुई। कुछ का तो नामोंनिशान ही मिट चुका हैं।
अहाते की ऊंची दीवार नुकीले चापाकार आलों से डिझाइन बनाई गई है और इसे आकर्षक बनाने के लिए खास अंतर पर बुर्ज बनाए गए हैं। इस मकबरे में डेडो स्तर तक संगमरमर लगा हुआ है। डेडो स्तर से ऊपर गुम्बद के आधार तक यह बेसाल्टी ट्रैप से बना है और गुम्बद भी संगमरमर से बना है।
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संगमवर जो बेसॉल्ट से बना
ताजमहल को शुद्ध सफेद संगमरमर से बनवाया गया था, वहीं बीबी का मक़बरा का गुम्बद संगमरमर से बनवाया गया था। मक़बरा का बाकी हिस्सा बेसॉल्ट प्लास्टर से तैयार किया गया है, ताकि वह दिखने में संगमरमर जैसा हो। इस मक़बरा का मुख्य मुम्बद ताजमहल के मुख्य डोम से छोटा है।
गुम्बद के मरम्मत का काम कई सालों से जारी हैं। जिसकी उपरी परत तथा प्लास्टर को बडे हिसाब से संजोने का काम हो रहा हैं। इसे पॉलिश से चमकाया जा रहा है।
एक बात बता दे की पिछले दस सालों से यह काम जारी है, पर अभी मुकम्मल नही हुआ हैं, जो सालों साल चल रहे मरम्मत के वजह से उसी जर्जर हालात में नजर आता हैं।
बाहरी ओर खडे किये गए अभिलेख से पता चलता हैं की, इसके निर्माण की लागत लगभग 665,283 रुपये आयी थी। जबकि ताजमहल बनवाने का खर्च उस समय 3.20 करोड़ रुपये आया था।
इतिहास के कितीबों दर्ज जानकारी के अनुसार इस स्मारक के लगे संगमवर को लाने के लिए 150 गाडियों का इस्तेमाल किया गाय ता, जो सुरत से गोलकुण्डा से औरंगाबाद आयी थी।
ये मक़बरा देख ऐसा लगता है की हम आगरा के ताजमहल में खडे हैं। कही से भी इससे अलग इसका निर्माण नही हैं। जिसे देखकर कोई भी पहली बार में धोखा खा सकता है। यही वजह है की बीबी का मक़बरा पर्यटन का मुख्य आकर्षण का केंद्र है।
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