बेगुनाह मुसलमानों के दर्द भरी दास्तानों का दस्तावेज

किताबीयत : बाइज़्ज़त बरी

क्कीसवीं सदी की शुरुआत से ही देश के अंदर चरमपंथ की घटनाओं में अचानक इजाफ़ा हुआ और आरोपी के तौर पर लगातार मुसलमानों की गिरफ़्तारी हुई। जब भी देश के अंदर कहीं चरमपंथ की कोई घटना घटती, मुसलमानों को

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बच्चे पैदा करना मुसलमान और हिन्दू दोनों के लिए देशद्रोह !

किताबीयत : दि पॉपुलेशन मिथ 

पनी नवीनतम पुस्तक दि पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया में, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी व्यवस्थित रूप से इस मिथक को तोड़ते हैं कि मुस्लिम आबादी जल्द ही

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इंकलाबी खातून रशीद जहाँ का तफ़्सीली ख़ाका

किताबीयत : हमारी आज़ादी तथा अन्य लेख

डॉ. रशीद जहाँ अपनी सैंतालिस साल की छोटी सी ज़िंदगानी में एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय रहीं। उनकी कई पहचान थीं मसलन अफसाना निगार, ड्रामा निगार, जर्नलिस्ट, एडीटर, डॉक्टर, सियासी-समाजी एक्टिविस्ट और

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‘1857 विद्रोह’ के बर्बर घटनाओं का दस्तावेज हैं ‘गदर के फूल’

किताबीयत : गॅदरिंग दि अशेस

ह आक्षेप जितने आम हैं कि भारतीय भाषाभाषी लोग कतई राजनीति-इतिहास निरपेक्ष किस्म के जीव होते हैं, उतनी ही यह धारणा भी कि हमारे सही सटीक इतिहास पर शोध तथा उसका बोध तो कमोबेश मान्य योरोपीय इतिहासकारों की

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‘कशकोल’ : उर्दू अदब को चाहने वालों के लिए नायाब तोहफा

किताबीयत : कशकोल

बीते साल आई किताब दास्तान-ए-मुग़ल-ए-आज़मकी चर्चा अभी थमी नहीं है कि वरिष्ठ लेखक, पत्रकार और हिंदी सिनेमा के गहन अध्येता राजकुमार केसवानी की एक और शानदार किताब कशकोलआ गई है। किताब की टैगलाइन

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‘धर्मनिरपेक्षता’ की व्याख्या करती हैं हमीद अंसारी की किताब

किताबीयत : बाय मेनी ए हैप्पी एक्सीडेंट

भारत का उदय विविधता का सम्मान करने वाले बहुवादी प्रजातंत्र के रूप में हुआ था। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए हमारे संविधान में समुचित प्रावधान किये गए, जिनका खाका सरदार पटेल की अध्यक्षता वाली संविधान सभा की

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उड़ते नोट लपकने का सलीका देती है ‘मुंबई डायरी’

किताबीयत : मुंबई डायरी

मुंबई शहर न सिर्फ देश की आर्थिक राजधानी है बल्कि यह देश का सबसे बड़े रोजगार और व्यवसाय का केंद्र भी है। यहां प्रतिदिन लाखों लोग देश के अलग-अलग राज्यों से अपनी आकांक्षाएं और सपने लेकर आते हैं और फिर

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कैसी थी मलिका ‘बेगम समरू’ की रोमांचक जिन्दगी?

किताबीयत : बेगम समरू का सच

तिहास ज्यादातर लोगों के लिए बोरिंग विषय हैलेकिन जो उसमें डूबता हैयह उसे उतना ही मजा भी देता है। एक के बाद एक जिज्ञासा से नये-नये सूत्र मिलते हैं और उन सूत्रों से एक

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इतिहास को लेकर आप लापरवाह नहीं हो सकते !

किताबीयत : वाईस ऑफ डिसेंट 

सहमतियां कभी बग़ावत में नहीं बदल सकीं। जिस व्यवस्था के सामने खड़ी हुई हैं, आगे चल कर उसी का हिस्सा हो जाती हैं। हर सभ्यता में असहमति की अपनी परंपरा रही है। एक सीधी रेखा में चलने वाली

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औरंगजेब दौर की दो किताबें जो उसकी धार्मिक छवी दर्शाती हैं

जामिया मिल्लिया के निमंत्रण पर मुझे एक हफ्ते के लिए जामिया जाना पडा। इसी दौरान मैने इसके कुतुबखाने की सैर की। जामिया के ओहदेदार इस मुबारकबाद के काबील हैं की, इन्होंने आठ बरस की मुख्तसर मुद्दत में अपने दुसरे डिपार्टमेंट्स के साथ इस

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