सफ़दर हाशमी ने नुक्कड़ नाटक को दी एक नई पहचान

रंगकर्मी सफ़दर हाशमी का नाम जे़हन में आते ही ऐसे रंगकर्मी का ख़याल आता है, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी नुक्कड़ नाटक के लिए कु़र्बान कर दी। उन्होंने बच्चों के लिए कई मानीखे़ज गीत लिखे, देश के ज्वलंत मुद्दों पर पोस्टर्स बनाए, फ़िल्म फे़स्टिवल्स आयोजित …

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अली सरदार जाफरी: सियासी बेदारी लाने वाले इन्कलाबी शायर

कोई ‘सरदार’ कब था इससे पहले तेरी महफिल में

बहुत अहल-ए-सुखन उट्ठे बहुत अहल-ए-कलाम आये।

अली सरदार जाफरी का यह शेर उनकी अज़्मत और उर्दू अदब में अहमियत बतलाने के लिए काफ़ी है। अली सरदार जाफरी एक अकेले शख्स का नाम नहीं, बल्कि एक पूरे

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बेगुनाह मुसलमानों के दर्द भरी दास्तानों का दस्तावेज

किताबीयत : बाइज़्ज़त बरी

क्कीसवीं सदी की शुरुआत से ही देश के अंदर चरमपंथ की घटनाओं में अचानक इजाफ़ा हुआ और आरोपी के तौर पर लगातार मुसलमानों की गिरफ़्तारी हुई। जब भी देश के अंदर कहीं चरमपंथ की कोई घटना घटती, मुसलमानों को

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राम मुहंमद आज़ाद उर्फ उधम सिंह के क्रांतिकारी कारनामे

पंजाब की सरजमी ने यूं तो कई वतनपरस्तों को पैदा किया है, जिनकी जांबाजी के किस्से आज भी मुल्क के चप्पे-चप्पे में दोहराए जाते हैं, पर मुहंमद सिंह आज़ाद उर्फ उधम सिंह की बात ही कुछ और है।

उधम सिंह

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प्रधानमंत्री नेहरू भी खड़े होते थे बेगम अख्तर के सम्मान में !

वे सरापा ग़ज़​​ल थीं। उन जैसे ग़ज़लसरा न पहले कोई था और न आगे होगा। ग़ज़ल से उनकी शिनाख्त है। ग़ज़ल के बिना बेगम अख्तर अधूरी हैं और बेगम अख्तर बगैर ग़ज़ल! देश-दुनिया में ग़ज़ल को जो बेइंतिहा मकबूलियत मिली, उसमें

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और चल निकली भारतीय रंगमंच में ‘हबीब तनवीर’ शैली

धुनिक रंगकर्म के अध्ययन के बाद अपने नाटकों में देशज रंग-पद्धति अपनाने वाले हबीब मानते थे, “पश्चिम से उधार लेकर उसकी नकल वाले शहरी थिएटर का स्वरूप अपूर्ण और अपर्याप्त है, साथ ही सामाजिक अपेक्षाएं पूरी करने, जीवन के ढंग

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प्रेमचंद के साहित्य में तीव्रता से आते हैं किसानों के सवाल !

प्रेमचंद के सम्पूर्ण साहित्य पर यदि नज़र डालें तो, उनका साहित्य उत्तर भारत के गांव और संघर्षशील किसानों का दर्पण है। उनके कथा संसार में गांव इतनी जीवंतता और प्रमाणिकता के साथ उभर कर सामने आया है कि उन्हें ग्राम्य जीवन का चितेरा

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आज़ाद भारत में राजद्रोह कानून की किसे जरूरत ?

देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से जवाब तलब करते हुए कहा है कि आज़ादी के 75 साल बाद क्या राजद्रोह के क़ानून की जरूरत है? अदालत ने कहा कि यह औपनिवेशिक कानून है और स्वतंत्रता सेनानियों के खि़लाफ़

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इंकलाबी खातून रशीद जहाँ का तफ़्सीली ख़ाका

किताबीयत : हमारी आज़ादी तथा अन्य लेख

डॉ. रशीद जहाँ अपनी सैंतालिस साल की छोटी सी ज़िंदगानी में एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय रहीं। उनकी कई पहचान थीं मसलन अफसाना निगार, ड्रामा निगार, जर्नलिस्ट, एडीटर, डॉक्टर, सियासी-समाजी एक्टिविस्ट और

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बेकसूरों के बार-बार जेल के पिछे क्या हैं साजिश?

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में दिल्ली दंगें (Delhi riots) मामले में देवंगाना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दे दी है। देवांगना चार मामलों जबकि नताशा तीन मामलों में मुकदमे का सामना कर रही हैं। उन्हें

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