‘मलिक अंबर’ के बाद डॉ. ज़कारिया हैं औरंगाबाद के शिल्पकार

विचारक, शिक्षाविद् और राजनेता डॉ. रफिक ज़कारिया का आज 5 अप्रेल को 100 वा जन्मदिन हैं इस जन्मशताब्दी के अवसर पर लोकमत समूह के एडिटर इन चीफ श्री. राजेंद्र दर्डा ने उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की हैं। 

जिसे हम लोकमत समूह के सौजन्य से डेक्कन क्वेस्ट पाठको के लिए दे रहे हैं। डॉ. ज़कारिया ने 15 साल तक राज्य के विधानसभा में औरंगाबाद शहर का प्रतिनिधित्व किया थाउसके बाद वे लोकसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। उनके इस सफर पर श्री. दर्डा ने विस्तृत में प्रकाश डाला हैं 

‘हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा’

अल्लामा इकबाल का शेर औरंगाबाद के शिल्पकार पूर्व मंत्री, इस्लामिक स्कॉलर और एक महान शख्सियत डॉ रफिक ज़कारिया (5 April 1920 – 9 July 2005) पर आज खरा उतरता है, जो आज यानी पांच अप्रैल 2020 को हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमारे बीच उनकी सौवीं सालगिरह पर ढेर सारी यादें हैं। 

औरंगाबाद शहर के विकास के जनक को रुप में पहचाने जाने वाले रफिक ज़कारिया (Dr. Rafiq Zakaria) कि आज जन्मशताब्दी है। 5 अप्रैल 1979 को उनका जन्मदिन है।

आज जब देश कोरोना वायरस से फैली महामारी के कठिन दौर से गुजर रहा है, तब एक विकास योद्धा की याद हमारे बीच आना लाजिमी है। उनके व्यक्तित्व और काम करने के तौर-तरीकों की याद करना हमारी आज की जरूरत है।

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औरंगाबाद कि चिकलथाना इंड्स्ट्रीयल इस्टेट, औरंगाबाद जायकवाड़ी जलापूर्ति परियोजना, सिडको-हडको जैसी योजनाएं ज़कारिया की वह महान उपलब्धियां है जो औरंगाबाद शहर के लिए एक देन हैं।

तेजी से बदलते औरंगाबाद शहर के विकास को दिशा देने में डॉ. ज़कारिया की काफी बडी हिस्सेदारी है। डॉ. ज़कारिया ने औरंगाबाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

औरंगाबाद शहर के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेज, एअरपोर्ट, आकाशवाणी, पैठण की जायकवाडी जल परियोजना से औरंगाबाद शहर को बंद नलों द्वारा पानी की आपूर्ती, सिडको और हडको जैसी हाऊसिंग प्राधिकरण कि स्थापना, पाँच सितारा हॉटेल्स, चिकलथाना इंडस्ट्रीयल इस्टेट से औरंगाबाद शहर का अद्भूत विकास हुआ, जो डॉ. ज़कारिया के वजह से मुमकीन हो सका।

एक प्रमुख मुस्लिम विचारक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्षम नेता और विदेश नीति के जानकार के रूप में भी उनको पहचाना जाता था। डॉ. ज़कारिया इस्लाम और कुरआन का एक गंभीर अभ्यासक थें। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भी वे संघर्ष करते रहे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने बेजोड काम का प्रदर्शन किया है, जो काँग्रेस की धर्मनिरपेक्ष सोच का प्रतीक है।

जकारिया को काँग्रेस के ‘थिंक टैंक’ के रूप में जाना जाता था। सामाजिक सुधार के एक गहन चिकित्सक और दार्शनिक के रूप में उनकी छवि अन्त तक बनी रही। डॉ. जकारिया ने मुंबई विश्वविद्यालय से एम. ए. कि परीक्षा में कुलपति के स्वर्ण पदक का सम्मान प्राप्त किया था। उसके बाद उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की डिग्री भी प्राप्त की।

डॉ. ज़कारिया ने महात्मा गांधी द्वारा ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में भाग लिया। शिक्षा, पत्रकारिता, राजनीति, इस्लामिक दर्शन इत्यादि विषय पर गहन चिंतन करने वाले ज़कारिया ने विभिन्न विषयों पर विस्तार से लिखा है। इस्लाम के स्कॉलर के रुप में उन्होंने वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त कर ली थी।

1961 में पृथक महाराष्ट्र के निर्माण के बाद, डॉ. यशवंतराव चव्हाण के प्रेरित होकर ज़कारिया सक्रिय राजनीति में आ गए। 1962 में औरंगाबाद से उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और लगातार तीन बार निर्वाचित हुए।

वह राज्य के कॅबिनेट में 15 साल तक मंत्री भी रहे। उनके कार्यकाल का मुख्य आकर्षण सिडको, औरंगाबाद का औद्योगिकीकरण और राज्य की नगर पालिकाओं को कारगर बनाने का उनका प्रयास रहा हैं।

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15 सालों तक विधान सभा का प्रतिनिधित्व करने के बाद, 1978 में डॉ. ज़कारिया लोकसभा के लिए चुने गए। वहां उन्हें इंदिरा गांधी के साथ काम करने का अवसर मिला। 1984 में, भारत सरकार के विशेष दूत के रूप में, मुस्लिम देशों का दौरा किया। मुस्लिम देशों में भारत की छवि को निखारने के इस जिम्मेदारी को सफलता के साथ पूरा किया।

शिमला समझौते के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के संयुक्त राष्ट्र में हुए भाषण के बाद भारत की भूमिका उतनी ही प्रखरता के साथ रखने की जिम्मेदारी डॉक्टर साहब पर डाली गई थी। डॉक्टर साहब ने अपने देश का पक्ष पूरी क्षमता के साथ रखा। 1965, 1990 और 1996 तक उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में देश का प्रतिनिधित्व किया।

डॉ. ज़कारिया कहते थे, ‘मुसलमान और हिन्दू मानवता की भूमि पर लगे दो फूल हैं, उनमें वैमनस्य कैसे होगा? भाईचारा उनके बीच प्राकृतिक, ईश्वर प्रदत्त स्वाभाविक गुण हैं।’

उनकी नजर में संस्कृति के संघर्ष के लिए कोई स्थान नहीं था, मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं होता है कि मेरे परिवार में बंधुभाव के संस्कार डॉ जकारिया के सहयोग से और मजबूत एवं प्रभावशाली मलिक अंबर के बाद औरंगाबाद शहर के वास्तविक शिल्पकार के रूप में सारे विरोधी भी डॉ. रफिक जकारिया का उल्लेख नि:संकोच करते हैं, यही उनके कार्य का सबूत है।

सामाजिक सुधार, राजनीति के साथ साथ शिक्षा के क्षेत्र में उनका प्रदर्शन काफी महत्वपूर्ण था। डॉक्टर साहब ने अपने जीवन के निर्णय न केवल उचित समय पर लिये, बल्कि अपनी पूरी ताकत से मूर्त रूप में बदल कर दिखाया।

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मौलाना आजाद एजुकेशन सोसाइटी (Maulana Azad Education Campus) में सभी धर्मावलंबियों का प्रवेश इसका उदाहरण है। 

लड़कियों की शिक्षा पर उनका विशेष जोर था। वह अलीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी थे। मुस्लिम समुदाय को मुख्यधारा में रखने की कोशिश करने के लिए वे अन्त तक प्रयासरत थे।

उन्होंने अपने जीवन के अन्त तक जमीनी सतह पर वंचित लोगों के लिए शिक्षा के अवसरों को प्रदान करने का प्रयास किया। मौलाना आजाद एजकेशन ट्रस्ट का वटवृक्ष आज फैल गया है, इसके पीछे डॉक्टर साहब का अथक परिश्रम जुड़ा हुआ है।

यूं तो युवावस्था में ही डॉ. जकारिया से परिचय का सौभाग्य मुझे मिला। मैं 1981 में औरंगाबाद शहर आया था। मेरे पिता और तत्कालीन उद्योग मंत्री जवाहरलालजी दर्डा मुझे पहली बार डॉ. जकारिया के पास ले गये। तब से, उनके साथ पितातुल्य का संबंध जारी रहा।

लोकमत परिवार और डॉ. जकारिया का मनोभावी रिश्ता रहा हैं। वह दृढ़ता से मेरे पीछे खड़े थे, उनका कहना था, ‘राजन, अच्छे लोग राजनीति में नहीं आएंगे तो साला चलेंगा।’ डॉक्टर साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सौवीं सालगिरह पर यादें हमेशा की तरह तरोताजा है। 

देश जब मंदी के दौर में है और एक महामारी ने उसे जकड़ लिया है, ऐसे समय में डॉ. जकारिया जैसे ऊंची सोच और अलग नजरिया रखने वाले नेताओं की याद आना स्वाभाविक है। उनके काम हमेशा उनको हमारे बीच जिन्दा रखेंगे। एक पितातुल्य व्यक्तित्व का विनम्र अभिवादन !

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