मलिक अम्बर ने दी थी मराठों को ‘गुरिल्ला’ युद्ध प्रणाली

लिक अम्बर को निज़ामशाही शासन में आगम खान के नेतृत्व में सरदार नियुक्त किया गया था। उसने मुगल आक्रमणकारियों को परेशान किया। शत्रु के शिविरों पर छापा मारकर वह रसद लूट लेता था और उसके प्रदेश में घुस पड़ता था।

इस प्रकार धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ने लगी। परंतु जब अहमदनगर पर मुग़लों का अधिकार हो गया और निज़ामशाही राज्य अपनी अंतिम साँसें ले रहा था तब मलिक अम्बर को अपने अदम्य साहस, शक्ति एवं गुणों का परिचय देने का अवसर मिला।

लौटाया निज़ामशाही का वैभव

मराठों की सहायता से निर्मित सेना का निर्माण करके निज़ामशाही परिवार के अली नाम के व्यक्ति को गद्दी पर बिठाकर परंडा में नवीन राजधानी स्थापित की। डूब रहे राज्य का पुन: संगठन कर और सुख शांति के वातावरण का प्रतिपादन करके उसने एक नवीन जाग्रति पैदा कर दी।

निज़ामशाही राज्य पुन: प्रभुता तथा ऐश्वर्य की ओर उन्मुख हो गया। मलिक अम्बर इस निज़ामशाही का सेनापति बनाया गया। परिस्थिति उसके अनुकूल थी। राजकुमार सलीम के अकस्मात् विद्रोह के कारण मुग़ल सेना का दक्षिण से हटना अनिवार्य हो गया था।

फलत: मलिक अम्बर ने मुगलों द्वारा जिते हुए प्रदेशों पर अपना अधिकार करना प्रारंभ कर दिया और अहमदनगर, प्राय: समस्त दक्षिण भाग, हस्तगत कर लिया। इसके बावजूद ईसवीं 1605 तक मलिक अम्बर की परिस्थिति मजबूत ही होती गई।

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गुरिल्ला युद्ध तंत्र

मलिक अम्बर जब सहारा रेगिस्तान में था, तब अफ्रीका के एक सैन्य मिशन में उसने हिस्सा लिया था और यह मिशन छापामार था। जिसे ‘गनिमी कावा’ यानी गुरिल्ला युद्ध कहा जाता है। अफ्रीका में लड़ते हुए मलिक अम्बर ने इस तंत्र को अवगत किया था और खुद ही इसमें महारत हासिल कर ली थी।

शिवकालीन महाराष्ट्र में प्रसिद्ध ‘गनिमी कावा’ याने गुरिल्ला युद्धप्रणाली मलिक अम्बर नें ही विकसित की थी। उसने मराठा, आदिवासी, देशीय मुस्लिम, पहाड़ी इलाकों की जमातें, किसान आदीं को लेकर 5000 की देसी फौज बनाई थी। यही बार्गी याने ‘बारगीर’ सेना कहलाई।

मराठों की बड़ी फौज मलिक अम्बर ने खड़ी की और उन्हें छापामार, गनिमी युद्ध मे तरबेज किया। इतिहास बताता है की एक समय ऐसा भी आया जब 40 हजार मराठा और 10 हजार हब्शी और इतने ही अन्य ‘बारगीर फौज’ मलिक अम्बर के पास थी। इन्हें मलिक अम्बर ने छापामार याने ‘गनीमी कावा’ का तंत्र और युद्ध सिखाया।

प्रसिद्ध इतिहासका​​र बी.जी. तामस्कर ‘वर्क ऑफ मलिक अम्बर’ में लिखते है, “मलिक अम्बर ने देशी मुसलमान, आदिवासी और मराठों को लेकर जो फौज बनाई थी, उसे गनिमी युद्ध, याने छापामार युद्ध मे प्रशिक्षित किया था।

यह महाराष्ट्र में छापामार युद्ध की शुरुआत थी जिसका पूरा श्रेय मलिक अम्बर को जाता है। इस युद्ध में मलिक अम्बर के मराठा सरदार और मित्र मालोजी भोसले और लखुजी जाधव और उनके अधीनस्थ फौज को प्रशिक्षित किया। आगे इस तंत्र को शहाजी ने और उनसे परंपरागत तरीके से शिवाजी ने आत्मसात किया।”

मलिक अम्बर ने राज्य के शूरवीर मराठा सरदारों को संघटित किया। इनमें मालोजी भोसले और लखुजी जाधव यह दो बड़े मराठा सरदार थे। यह केवल सरदार ही नहीं, उसके घनिष्ट मित्र भी थे। मराठाओं को शासन-प्रशासन के उच्च पदों पर स्थापित करने का और उनमें राजकीय सन्मान स्थापित करने का बड़ा श्रेय मलिक अम्बर को जाता है।

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शाही विवाह कि घोषणा

मलिक अम्बर की शासन प्रशासन और यंत्रणा बहुत समभावी और न्याय प्रिय थी। उसके शासन काल मे एक खास विभाग ऐसा था, जहाँ जनता अपनी शिकायत दर्ज करें तो सीधे मलिक अम्बर के पास पहुँचती थी।

संगमनेर की रयत (जनता) ने इसवीं 1618 में शिकायत दर्ज की तो मलिक अम्बर ने सीधे वहां के थानेदार दाऊद खान को जवाब के साथ हाजिर होने का हुक्म दिया और बहोत ही सटीक न्यायप्रिय इन्साफ शिकायतकर्ता हिन्दू प्रजा से किया, जिसके दस्तावेज उपलब्ध हुए है।

महाराष्ट्र के इतिहास में मलिक अम्बर का एक कार्य महान अक्षरों में लिखा गया है और वह है शहाजी और वीरमाता जिजाऊ के विवाह की घोषणा।

शिवराय के दादा मालोजी भोसले और राजमाता जिजाऊ के पिता लखुजी जाधव इन्हें नजदीक लाने में मलिक अम्बर का बहोत बड़ा योगदान है। और दोनों सरदार तो थे ही लेकिन मलिक अम्बर के घनिष्ठ मित्र भी थे।

इस दोस्ती को नया आयाम देते हुए मालोजी भोसले के सुपुत्र शहाजी और लखुजी जाधव की सुपुत्री जिजाऊ के विवाह की बात चलाई  और ईस विवाह की घोषणा सहमति के बाद मलीक अम्बर ने की।

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किसानों के दिलाया अधिकार

मलिक अम्बर ने सबसे पहले खेती कसनेवाले कुणबी, किसानों को जमीनों का मालिक बनाया। इसवीं 1607 से 1626 तक निज़ामशाही राज्य में कसी जा रही खेती जमीनों का सर्वे करवाया। उनकी किस्में, प्रतवारी निश्चिति की। जो जमीन, खेतियाँ कस रहें थे उन्हें मिरास पत्र प्रदान किये और उन्हें मालिकाना हक़ प्रदान किया।

खेती के उत्पादन से सरकारी जमा की रकम किसानों के स्थिति के हिसाब से निश्चित किया। और रोखी में इसे भरने के लिए कहा, ताकि अनाज किसानों के मालिकाना हक में रहे। रोख रकम में सारा भरने की पहली व्यवस्था मलिक अम्बर ने की।

किसानों और कसनेवाले खेतिहरों को जमीन के खरेदी-बिक्री के अधिकार दिए। वतने वंश परंपरागत करने के आदेश निकाले और मलिक अम्बर पहला शासनाधिकारी था जिन्होंने जंगल कि जमीन से वनराई और गायरान जमीनों को अलग कर उसे सार्वजनिक इस्तेमाल में लाया।

महसूल अन्नधान्य के रूप में ना लेते हुए रकम के स्वरूप में भरने की सहूलियत दी और लगान को पहले से आधा कर दिया। सबसे बड़ी बात इस लगान को कायम निश्चय ना करते हुए किसानों के उत्पादन के अनुसार कम ज्यादा करने का आदेश निकाला। इससे मलिक अम्बर किसान, मेहनतकश और आम जनता में काफी लोकप्रिय हुए।

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नगररचनाकार कि ख्याती

मलिक अम्बर स्थापत्य कला में बहोत माहिर था। वर्तमान का औरंगाबाद शहर मलिक अम्बर ने बसाया है। वह तंत्रज्ञान में भी बेहतरीन थे। औरंगाबाद शहर बसाते हुए जमीन के अंदर का पानी नहर के द्वारा लोगों को उपलब्ध कराने का नया तंत्र विकसित किया।

ये तंत्र गुरुत्वाकर्षण पर आधारित है, काल के अनुसार ये विश्व के लिए अचंभित करनेवाला तंत्र था। किसी भी बिजली कनेक्शन के कई मिल दूरी से शहर तक पानी लाने के लिए नहर को इस तरह से बनाया का पानी सिधे बहते हुए शहर तक आ जाता, जो आज जारी है। इसे ‘अंबरी नहर’ कहा जाता है। पनचक्की का तंत्रज्ञान भी मलिक की ही देन है, जो आज भी मौजूद है।

मलिक अम्बर साहित्य, कला, शस्त्रकला, विज्ञान और शिक्षा क्षेत्र में बेहद रुची रखनेवाला, इतिहास जिसका गौरव से उल्लेख करता है, ऐसा युग का द्रष्टा था। लेकिन उसे भी झूठे इतिहास रचकर हिन्दू-मुस्लिम रोटियां सेंकनेवालों ने कपोलकल्पित कथाएं घुसेड़कर बदनाम भी कर रखा है, क्योंकि वह मुस्लिम था।

देश के वर्णवादी सहित्यकारों को समतावादी इस्लाम, मुस्लिम से नफरत है, ठीक उसी तरह जैसे बौद्ध और ख्रिश्चनो से है, बहुजनवादी-समतावादी हिंदुओं से है और उन्होंने इन्हें बदनाम करने में कोई कसर ना छोड़ी। बुद्ध से लेकर शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज तक को बदनाम कर दिया।

लेकिन अम्बर केवल मुस्लिम नहीं था, एक बाजार में जिसकी बिक्री हुई थी, वो अतिशूद्र दास था। उसकी मुस्लिम बन जाने के बाद मिली स्वतंत्रता से पाई इतनी ऊंचाई इस देश के वर्णवादी इतिहास को कभी हजम नहीं होगी। लेकिन इतिहास को कब्र में भी दफन की दिया जाए तो भी उसका कफ़न उसकी सच्चाई बयान कर ही देता है।

वह हब्शी, नीग्रो गुलाम जिसने मुस्लिम बनकर प्रतिभा और संस्कार के ने क्षितिज की ऊंचाइयां पार करते हुए महाराष्ट्र के मानसन्मान छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता-माता के विवाह की घोषणा की और छापामार गनिमी युद्ध का उद्गाता था।

इस महान सेनापति, न्यायप्रिय सरदार और स्थापत्यकार की मृत्यु छत्रपती शिवाजी महाराज के जन्म के 5 साल पहले, उम्र के 80 साल में 13 मई 1626 को खुलताबाद में हुई। इस महान योद्धा, प्रशासक, संशोधक और नीतिनियम के शासक को विनम्र श्रद्धांजलि….

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