कमाल ख़ान खबरों के दुनिया के चांद थे

नडीटीवी इंडिया के एक्झीक्युटिव एडिटर कमाल ख़ान का दिल का दौरा पड़ने से 13 जनवरी के रात निधन हो गया। इस खबर के बात देशभर में उनके चाहनेवालें दर्शकों में शोक की एक गमगीन लहर दौड़ गई। जिसके बाद सोशल मीडिया पर शोक संदेशो …

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महात्मा गांधी ने विनोबा को चुना था ‘पहला सत्याग्रही’

विनोबा भावे मशहूर भूदान आंदोलनके लिए जाने जाते हैं। इस आंदोलन से उनकी पहचान जनमानस में स्थापित हो गई। विनोबा महान जंग ए आज़ादी के सेनानी औऱ सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे गांधी के परम अनुयायी भी थे। साल 1940 में महात्मा

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पांडुलिपियां राष्ट्रीय धरोहर, कैसे हो उनका वैज्ञानिक संरक्षण ?

राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के अवशेष हमारे गौरवमयी ऐतिहासिक चिन्ह स्वरूप, पांडुलिपियों में मौजूद हैं। यह अमूल्य धरोहर हमारी सभ्यता, संस्कृति तथा समाज के उत्थान और उन्नति की प्रतीक हैं।

आदिकाल से जब मनुष्य ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए लिखना

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मौलाना वहीदुद्दीन खान : भारत के मकबूल इस्लामिक स्कॉलर

शहूर इस्लामिक विद्वान और गांधीवादी मौलाना के नाम से प्रसिद्ध वहिदुद्दीन ख़ान अब हमारे बीच नही हैं। खबरों के मुताबिक 21 अप्रेल की देर रात दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हुआ।

बता दे की 96 वर्षीय मौलाना कोविड से संक्रमित थे, इलाज

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कौन था मीर जुमला जिसने मुगलों के लिए खोला दकन का द्वार?

मीर जुमला (Mir Jumla) महज एक साधारण जनरल था। उसका पूरा नाम मीर जुमला मीर मुहंमद सईदथा। इतिहासकार जदूनाथ सरकार के अनुसार, “वह एक ईरानी व्यापारी था, जो शुरुआत में गोलकुण्डा में हीरे का कारोबार करता था।

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इलाही जमादार को कहा जाता था मराठी का ‘कोहिनूर-ए-ग़ज़ल’

विवार 31 जनवरी को सुबह मशहूर साहित्यिक, शायर और ग़ज़लकार इलाही जमादार का निधन हुआ। बीते कुछ दिनों से वह बिमार चल रहे थे। अपने पैतृक गांव स्थित रिहायशी मकान में 75 वर्षीय जमादार का इंतकाल हुआ हैं।

वरीष्ठ समाजसेवी और इलाही के दोस्त …

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दारा शिकोह इतिहास में दु:खद रूप में क्यों हैं चित्रित?

ब शहज़ादा दारा शिकोह सिर्फ सात साल के थे, तब उनके पिता शहज़ादा खुर्रम ने अपने दो बड़े भाइयों के होते हुए भी साम्राज्य का दावा करने के लिए सम्राट जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विद्रोह के सफल होने के अवसर बहुत

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चित्रकला की भारतीय परंपरा को मुग़लों ने किया था जिन्दा

चित्रकला के क्षेत्र में मुग़ल शासको का बहुत ही अहम योगदान रहा हैं। इनकी पेंटिंग पर हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन तथा इस्लाम का काफी प्रभाव था। उन्होंने दरबारों, जंग, समारोह, उत्सव, प्रेम, विरह, परिंदे, जानवर और शिकार का पीछा करने के दृश्यों समावेश

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दकनी सुलतानों को ‘गरीबों का दोस्त’ क्यों बुलाते थे?

ध्यकाल में दकन सांस्कृतिक केंद्र बन कर उभरा। जिसमें मुग़लों के साथ कई दकनी सल्तनतों ने इसके विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

गोलकुंडा कि कुतुबशाही और बीजापुर कि आदिलशाही तथा अहमदनगर की निजामशाही ने दकन में कई सांस्कृतिक मापदंड खडे किये। जिनमें

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कंगन बेचकर मिली रकम से बना था ‘बीबी का मक़बरा’

ताज ऑफ साऊथकहा जाने वाला बीबी का मक़बरा’ दकन कि ऐसी सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे हर महाराष्ट्रीयन को फख्र महसूस होता हैं। औरंगाबाद स्थित यह इमारत मुग़ल सल्तनत कि एक अहम विरासत है।

यह मक़बरा मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब (1658-1707)

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