सालों तक इतिहास के गुमनामी में कैद रहा नलदुर्ग किला

नलदुर्ग महाराष्ट्र सभी भुईकोट किलों मे सबसे बडा माना जाता हैं। उस्मानाबाद जिले में स्थित यह किला आदिलशाही, मुघल तथा आसिफजाही सल्तनतों के देखरेख में रहा हैं इस किले कि सीमा करीब 3 किलोमीटर में फैली हैं। किले में कुल 114 बुर्ज हैं। 

किला आज भी सुस्थिती में हैं, जिसे देखने आये दिन महाराष्ट्र के किलेप्रेमी पर्यटकों का हुजूम रहता हैं। किले में हिन्दू धर्म से संबंधित कई मंदिर भी पाये जाते हैं। किले के पास ही पानी का एक आकर्षक झरना भी हैं। जिसे आँखों मे भरने रोजाना हजारों सैलानी आते हैं। बशीरुद्दीन अहमद दहेलवी लिखते हैं, 

ध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक कई युद्धो की गवाही दे रहा नलदुर्ग (Naldurg Fourt) किला आज भी अपनी विशेषता के लिए जाना जाता है। हैदराबाद सोलापूर रोडपर स्थित यह नलदुर्ग शहर उस्मानाबाद जिले अहम माना जाता हैं। यहां एक नानीमाँ नामक मुस्लिम साध्वी की कब्र मौजूद है, जो एक तिर्थस्थान के रुप में आसपास के इलाके में प्रसिद्ध है।

इस किले को इर्दगिर्द से नलदुर्ग शहर के बढते बस्ती ने घेरा हैं। यह बस्ती भी काफी पुरानी होने का अनुमान लगाया जाता है। कहा जाता है की, यह किला नल राजा ने बनवाया होगा। मध्यकाल काफी समय तक किला आदिलशाही सुलतानों (Adil Shahi Sultan) के कब्जे में रहा। आदिलशाही सुलतानों ने इसका नाम शहादुर्ग रखा था। जबतक आदिलशाही सल्तनत बाकी थी यही नाम चलता रहा। आदिलशाही दोर के समाप्तची के बाद यह नाम का चलन भी बंद हुआ।

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इस किले के तीन हिस्से हैं, 1) रामदुर्ग या शहादुर्ग 2) रणमंडल 3) तिसरा हिस्सा आदिलशाही सुलतानों ने बनाया हुआ है, जो काफी छोटा है। इसके बिचो बीच पानी महल मौजूद है। जिसने बचे किले के हिस्से को एकदुसरे से जोडा हुआ है।

किले को कुल सात दरवाजे हैं, जिनमें हुरमुख दरवाजा सबसे बडा है। इसके उपरी हिस्से मे गर्दुश की दिवार है, जिसपर एक दर्जन से ज्यादा तोपें दिखाई पडती हैं। यह दरवाजा काफी मजबूत है और इसपर बचाव के लिए बडी बडी किले लगाई हुई हैं। इसी दरवाजे के करीब जमीन के निचे के कैदखाने मौजूद हैं, इस कैदखाने को उपर एक सुराग है, जिसके जरिए कैदीयों को खाना दिया जाता था।

कैदखाने के करीब बारदरी मकान भी है, जिसमें कर्नल मैडोज रहा करता था। कर्नल मैडोज टेलर मशहूर इतिहासकार हैं, जिन्होंने कई किताबें लिखी हुई हैं। कहा जाता हैं कि उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कन्फेशन्स ऑफ ठग उसने यही बैठकर लिखी हैं।

कर्नल मैडोज ने अपनी जिंदगी के कई साल दकन में गुजारे हैं। उसका रहन सहन का तरिका भी दकनी ही था। इसी वजह से आज भी मैडोज टेलर यहां के ग्रामीणों में मशहूर हैं। आज भी चक्कीयों के लोकगीतों में मेडोज टेलर का जिक्र मिलता है। मैडोज टेलर ने यहां एक बस्ती भी बसायी है, जो आज भी टेलर नगर के नाम सें जानी जाती है।

किले के बीच में उखली बुर्ज है, जिसपर दो तांबे की तोपें रखी हुई हैं। इसके अलावा और दो छोटे बुर्ज भी किले में मौजूद है, उसपर भी एकएक तोप रखी हुई है। उसीमें से एक बुर्ज का नाम परंडा बुर्ज है, इस बुर्ज के संबंधित कहा जाता है, की किले परंडा से झंडे के जरिए निशानदेही कर संदेश भेजे जाते थे। जिसे हेलोग्रीफतकनीक के नामसे जाना जाता है।

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पानी महल

बोरी नामक नदी को रोककर एक भारी बांध डाला गया है। और इसी बांध के बीचो बीच कई कमरें बना दिए गए हैं। जिनमें लकडी महल, बंदूक महल और इन दोनो इमारतों के बीच पानी महल है। इसी महल के बीच से नदी बहती हैं। यही नदी दुसरी तरफ काफी बुलंदी पर से दो हिस्सों में बटकर निचे की ओर गिरती है। इस महल पर एक शिलालेख है, जिसमें लिखा गया है,

अज हजरत शाह दीं पनाह मन्सूर               

शुद मीर मुहम्मद अमामोद्दीन मामुर

दर बस्तन ऐं बह तौफीक आला                      

सद्देशुदा चूं सद्द सिकंदर मशहूर

अज दिदन ऐं चश्म मोहब्बान रौशन                

मी गुर्द चश्म दुश्मना गिर्द कोर

हज आतिफ कर्द सवाल तारीखश गुफ्त

किं सद बलुत्फ शाह मानद मामुर

दर अमल अबुल मन्सूर मुजफ्फर सुलतान इब्राहिम आदिलशाही सानी बादशाह वालीए बिजापूर तामीरयाफ्त     

पानी महल पर लगे शिलालेख से अनुमान होता है के, दुसरे इब्राहिम आदिलशाह ने यह इमारत बनवाई होंगी।

पानी महल के अलावा कई अन्य इमारतें भी मौजूद हैं, जिसमें जामा मस्जिद, मस्जिद सुहैल खान यह मस्जिद आदिलशाही सरदार सुहैल खान ने बनवाई हैं। डाक बंगले के करीब नवाब अमीर नवाज खान का मकबरा है, इसके करीब उनके खानदान के कई कई बडेबडे लोग दफनाए गए हैं।

आदिलशाही के बाद यह किला मुगलों के कब्जे में चला गया, उसके बाद हैदराबा कि आसिफजाही सल्तनत स्थापन होते ही, इसपर आसिफीया राजवंश का कब्जा रहा। 1948 में भारत सरकारने की हुई पुलिस अक्शन की अहम कारवाईयां नलदुर्ग से जुडी हुई हैं।

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