राज्यसभा से :
सभापति महोदय, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि अपने मुझे महामहिम के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलने का मौका दिया। दिक्कत यह है कि उनसे, जिनसे होती है इंसां को हमेशा तकलीफ, वे समझते हैं कि वे असल अक्ल वाले हैं।
पंचतंत्र में एक कहानी है, जिसमें चित्ररथ नाम के एक राजा हुआ करते थे। उनके पास एक विशाल सरोवर था और उस सरोवर में बहुत सारे छोटे – छोटे खूबसूरत हस थे। वे 6 महीने में एक पंख गिराते थे और पंख राजा को दे देते थे। बीच में सोने के तथाकथित पंख वाला एक बहुत बड़ा पक्षी आया और उसने कहा कि मैं इस सरोवर में रहूँगा।
छोटे पक्षियों ने कहा कि महाराज, हम 6 महीने में राजा को पंख देते हैं, इसलिए आपके लिए यहाँ गुंजाइश नहीं है। वह सोने के तथाकथित पंख वाला पक्षी राजा के पास पहुंच गया। उसके सिपहसालारों को कहा कि देखो, ये तो तुम्हारी बात नहीं मान रहे हैं और सरोवर पर कब्जा करके बैठे हुए हैं। राजा ने अपने सिपाही भिजवा दिए। उसने सारे हंस मार दिए और वह जो सोने के तथाकथित पंख वाला बड़ा विशाल पक्षी था, वह भी उड़ गया।
मैं इसका संदर्भ अपनी सरकार पर, सत्ता प्रतिष्ठान पर छोड़ता हूँ। मैं अपने इस कथन को चन्द खंडों में रखूगा। पहला खड होगा कि महामहिम के अभिभाषण का संदर्भ, उसका ऐतिहासिक महत्व क्या है। दूसरा, लोकतंत्र में आंदोलन की क्या भूमिका होती है। तीसरा, पीसफुल असेंबली के साथ कोई भी लोकतांत्रिक मुल्क कैसे डील करे। चौथा, आंदोलनों और लॉ मेकिंग के बीच में क्या ताल्लुक है और पाँचवाँ, repression की कहाँ इंतहा होती है।
लोकतंत्र के तीन स्तंभों के बारे में हम सब जानते हैं, चौथे स्तंभ के बारे में तो मैं बोलूँगा भी नहीं। अगर आपके वैसे दोस्त हों जिस चौथे स्तंभ पर, एक बड़ी धारा पर आप निर्भर हैं, आपको दुश्मन की ज़रूरत नहीं है, वे दोस्त ही आपका काम तमाम कर देंगे।
वे क्या करते हैं? दिन भर कुछ भी मामला हो, लोग दुख में हों, लोग संकट में हों, लोगों की मौत हो रही हो, लेकिन शाम को चलाएंगे – खलिस्तानी एंगल ऑफ किसान आंदोलन.. सर, मैं कॉलेज का विद्यार्थी था। हमने देखा है कि पंजाब और पूरे मुल्क ने क्या भुगता है, यह हम सबने देखा है। आप तो सक्रिय राजनीति में थे। सक्रिय राजनीति में आपने देखा कि पूरे देश ने क्या भुगता।
हमने सिर्फ प्रधान मंत्री ही नहीं खोया, हमने हज़ारों – लाखों जानें गवाई। कुछ तो सीखें इतिहास से! इतिहास दोहराता नहीं है, लेकिन इतिहास प्रेरणा देता है, इतिहास निर्देश देता है, लेकिन हम उन निर्देशों को सुनना नहीं चाहते। शाम ढलते ही चलाया जाता है कि खालिस्तानी जमा हो गए, पाकिस्तानी जमा हो गए, टुकड़े-टुकड़े गैंग जमा हो गए, नक्सली जमा हो गए, माओवादी जमा हो गए।
सर, सबसे बड़ा टुकड़े-टुकड़े गैंग वह है, जो अपनी भारत माता की संतान की पीड़ा को करुणा से न समझे, बल्कि दंभ से देखे, गुरूर से देखे। दंभ और गुरूर लोकतंत्र की जुबान नहीं है। माननीय सभापति महोदय, बहुत लोग तो नहीं, लेकिन इनके कुछ मंत्रीगण 303 आंकड़े के बारे में कहते हैं।
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सत्ता प्रतिष्ठान में संयम ज़रूरी
मैं कहना चाहता हूँ कि इस सदन ने इतिहास में इससे बड़े आंकड़े देखे हैं, कहाँ बिला गए, कहाँ गुम हो गए, किसी को पता नहीं है। आंकड़े इतिहास नहीं तय करते हैं, आंकड़ों के पीछे की संजीदगी और संवेदना इतिहास तय करती है। आपका हाई प्वाइंट क्या है, आपका लो प्वाइंट क्या है, आप उसमें फेल हो रहे हैं।
मैं हलके रुप से (lighter ven) में कहना चाहता हूँ कि 303, थ्री नॉट थी नाम की एक रायफल हुआ करती थी, उसकी सर्विस समाप्त हो गई है।… उसकी सर्विस समाप्त हो गई है। मैं एक बात और कहकर मूल बिंदु पर आऊंगा। हम मॅकबेथ से बहुत बातें सीखते हैं। शेक्सपियर ने अदभुत चीज़ लिख दी है।
सत्ता प्रतिष्ठान में संयम बहुत ज़रूरी है। कद तब बढ़ता है, जब आप पद गरिमा समझते हैं। “Boundless intemperance in nature is a tyranny. It hath been The untmely emptying of the happy throne And fall of many kings.” अगर आपके स्वभाव में असंयमीता आ जाए, तो इसने कितने ही सिंहासन खाली करवा दिए, कितने ही राजाओं की घर वापसी करवा दी, यह थोड़ा सनद रहे, थोड़ा ध्यान रहे।
मैं हल्के स्वर में एक बात कहना चाहता हूँ। जयराम रमेश जी सेंट्रल हॉल का ज़िक्र कर रहे थे। मैं जब वहाँ बैठता हूँ, तो लोग दल से ऊपर सोचते हैं। हमारे भाजपा के कई मित्रों ने पूछा कि इस आंदोलन का स्वरूप क्या है, कैसे खत्म होगा? दिक्कत यह है कि आप सेंट्रल हॉल में तो पूछ लेते हैं, लेकिन सदन में ज़ुबान नहीं खोलना चाहते हैं।
जब यह बिल आया था, तब मैंने कहा था कि दलों के दायरे और उस व्हिप से ऊपर निकलकर देखिए, क्योंकि किसान देख रहा है, उसने व्हिप जारी कर दिया है और अगर आप उसके व्हिप को नहीं सुन रहे हैं, तो पता नहीं लोकतंत्र में तो हम सुनते थे कि सुनना और सुनाना, दोनों लोकतंत्र की अदभुत कला होनी चाहिए।
आप सुनाने में यकीन करने लगे हैं, सुनना भूल गए हैं, खासकर इस टर्म में तो बिल्कुल ही भूल गए हैं। खैर, राष्ट्रपति जी के अभिभाषण का एक ऐतिहासिक संदर्भ होता है। हम सब जानते हैं कि सरकार स्क्रिप्ट तैयार करती है। बीते 29 जनवरी को जब महामहिम का अभिभाषण हुआ था, उसमें हममें से 19 दलों ने शिरकत नहीं की थी, यह मैं माफी के साथ कहता हूँ।
हमें कष्ट भी हुआ था, क्योंकि वह एक बहुत महत्वपूर्ण समारोह होता है। लेकिन जब माननीय राष्ट्रपति जी का अभिभाषण समकालीन यथार्थ से, दुख और दर्द से, रंज-ओ-ग़म से मीलों दूर खड़ा हो, तो कैसे शामिल हो जाएं? बड़ी मुश्किल होती है। सिंघु बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर, गाज़ीपुर, ये छोटे-छोटे हलकों में तीन महत्वपूर्ण केन्द्र हैं।
अभी बिहार में नेता प्रतिपक्ष, तेजस्वी जी और कम्युनिस्ट पार्टी तथा कांग्रेस पार्टी के सभी साथियों ने मिलकर मानव श्रृंखला बनाई। तो पूरे देश में कहीं न कहीं मंथन हो रही है और इसके पीछे का साक्ष्य क्या है?
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देशभक्ती कि मशीन
महामहिम के अभिभाषण को पढ़ने के बाद पहला ख्याल आया कि कही पर कहूँ या अनकही पर बोलूँ। जो कही गई बात है, उसके बारे में अब मैं यह पहली चीज़ कहता हूँ। “My Government holds in high esteem the values of democracy and sanctity of the constitution.” अगर मेरी याददाश्त सही काम कर रही है, तो यह संभवतः पेज 7 का पैरा 25 होना चाहिए।
अब इसको व्यापक संदर्भ में देखना होगा कि “My Government holds in high esteem the values of democracy and sanctity of the constitution.” हमने हाल के दिनों में जो भी देखा है, वह संविधान से इतर देखा है। लोकतंत्र का मूल्य (value of democracy) सिर्फ एक आलंकारिक मूल्य (rhetorical value) नहीं है।
मैं आपको कोट करना चाहता था। मैंने उसे आगे रखा था, लेकिन वह अभी मेरे ज़हन में आ गया। हाल ही में आपने (वेैकंय्या नायडू) कहा था, “nationalism and patriotism is not simply sloganeering ‘भारत माता की जय’, ‘जय हिन्द’ or ‘जन-गण-मन’. No, Sir, The greatest act of patriotism is to speak about the well – being of the nation, and that does not mean that should stand in the orchestra party of the Government forever and always.
You have never done it when you were in the Opposition and we shall not do it when we are in the Opposition. We would support you. हम समालोचना करेंगे, लेकिन आप यह उम्मीद नहीं करेंगे कि आपके खिलाफ का हर एक शब्द, हर एक लफ्ज़ देशद्रोही है!
मैंने सदन में पहले भी कहा था कि एक मशीन बनावाइए। कोरोना की वैक्सीन तैयार हुई है, अब एक मशीन बनवाइए कि किसके अंदर देशभक्ति का पारा कितना है। सर, हो सकता है, आपको झटका लग जाए। देशभक्ति उपरी (sleeve) तौर पर नहीं चलती है, यहाँ दिल में रहती है, उसका सीने से कम ताल्लुक है।
सर, एक और रोचक चीज़ यह है कि अभी बंगाल में चुनाव हैं, तो पेज नम्बर 26 के पैरा 91 में गुरुदेव के बड़े भाई, ज्योतिरीन्द्रनाथ टैगोर जी का ज़िक्र हुआ, “चॉल रे चॉल शॉवे. भारोत शन्तान।” बहुत अच्छा लगा, लेकिन इसके बाद गुरुदेव की अपनी लाइन where the mind is without fear and the head is held high जोड़ दीजिए। कहाँ है? दोनों को जोड़कर देखिए। डेमोक्रेसी में cherry-picking (उठाइगिरी) नहीं चलती है। आप chery-picking के उस्ताद हो गए हैं।
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लोकतंत्र बहुत मजबूत
आंदोलन लोकतंत्र की जीवंतता का उदाहरण होता है। ज़िन्दा लोकतंत्र और स्वस्थ लोकतंत्र आंदोलन के साथ सदैव, निरंतर संवाद की कोशिश करता है। मैं यहाँ एक आशय रखना चाहता हूँ। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के जिस विभाग में पढ़ाता हूँ, वहाँ मेरा एक विषय मूवमेंट भी है। मैंने बहुत सालों से आंदोलन पढ़ाया है।
आंदोलन की तीन महत्वपूर्ण चीजें होती हैं- alenation, attraction, conversion. यानी कि अलगाव की चीज़ कहीं आई, उसके बाद आपका किसी विचारधारा से आकर्षण हुआ, उसके बाद आप सड़कों पर आए। सर, हमने आंदोलनों को न जाने किस नज़रिये से देखना शुरू किया है?
माननीय सभापति महोदय, आपने भी देखा होगा- वह सरिया, वह कील, वह खाई! मैं सरहद पर कभी गया नहीं हूं, लेकिन सरहद की जो तस्वीरें देखी हैं, वे भी ऐसी नहीं देखी हैं। आप किससे लड़ रहे हैं? आप अपने किसानों से लड़ रहे हैं और वे क्या कह रहे हैं? वे आपसे चाँद नहीं माँग रहे हैं, वे अपना हकूक माँग रहे हैं।
चाहे सत्ता पक्ष हो या प्रतिपक्ष, हममें से किसी को यह मुग़ालता न रहे कि किसान और खेतिहर समाज की बेहतरी आप किसानों से बेहतर समझते हैं। नहीं, वे अपनी बेहतरी बेहतर समझते हैं। आप उनको समझाने चले हैं कि तुम्हारे लिए हम कानून ला रहे हैं, बहुत बढ़िया कानून है! क्यों समझाने की जरूरत पड़ रही है?
क्यों ‘खालिस्तान’, ‘पाकिस्तान’, ‘टुकड़े – टुकड़े’ एंगल लाने की ज़रूरत पड़ रही है? हमारा लोकतंत्र बहुत मजबूत है, किसी के एक ट्वीट से कमज़ोर नहीं होगा। आपने विमर्श को कमज़ोर कर दिया है। हमारा लोकतंत्र बहुत मज़बूत है।
मैं कभी – कभी सोचता हूं कि अगर आपके दौर में जयप्रकाश जी का आंदोलन हुआ होता इस सदन में अभी कई लोग हैं, जो जयप्रकाश जी के आंदोलन से निकले हुए हैं, including सभापति महोदय। आप जेपी के आंदोलन की कल्पना कीजिए। अगर जेपी को इन खाई, बाड़ों, कंटीले तारों आदि को देखना पड़ता तो क्या होता?
हमारे कई मित्र बिहार से भी हैं, जो जेपी आंदोलन से निकले हैं। एक बार दलीय दायरों को छोड़कर सोचें कि आंदोलन को डील करने का क्या यह नज़रिया उचित है? आप कहेंगे ‘नहीं।‘
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जवानों को किसानों के खिलाफ खड़ा किया
महोदय, मैं पहले भी इस सदन में कह चुका हूं, आप कहते हैं कि 11 दौर की बातचीत हुई है, दिक्कत यह है कि किसी भी सत्ता प्रतिष्ठान में एकालाप और वार्तालाप का फ़र्क समझना चाहिए। There is a difference between monologue and dialogue. आपके साथ दिक्कत है कि आप monologue (एकालाप) को dialogue (संवाद) का कपड़ा पहनाते हैं।
मैंने माननीय मंत्री महोदय को सुना जो वार्ता में थे, उन्होंने कहा कि हमने यह दिया, वह दिया। लोकतंत्र में खैरात की जुबान नहीं होती है। आप देने वाले कौन होते हैं? हम देने वाले कौन होते हैं? वे दे रहे हैं, उन्होंने ही आपको 303 का आंकड़ा दिया। और आगे के तीन और शून्य कब उड़ जायें, यह भी वही तय कर देंगे, इसलिए यह ज़ुबान बंद कीजिए, एकालाप और वार्तालाप के बीच की दूरी को खत्म कीजिए।
महोदय, मैं पहले भी इस सदन में कह चुका हूं कि देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं है। देश सिर्फ सेना, पुलिस के जवान, जन-गण-मन और वंदे मातरम् नहीं है। देश रिश्तों से बनता है और आपने रिश्तों को रिसा दिया है। जब तक आप इस बात को नहीं समझेंगे कि मुल्क रिश्तों से बनता है- आपने कितने रिश्ते खत्म कर दिए?
सरकारें पुल बनाने के लिए लायी जाती हैं, चाहे वे नदियों पर पुल हों या रिश्तों का पुल हो। आपने तो पुल के बदले कंटीली दीवारें खड़ी कर दीं। महोदय, सीएए का आंदोलन हुआ, जिसमें नागरिक को नागरिक के खिलाफ खड़ा कर दिया, आप तो कमाल हैं!
मैं तो आपके समाजशास्त्र के ज्ञान से भी चकित हूं कि जिस दिल्ली पुलिस के जवान को आप किसान के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं, आप उस दिल्ली पुलिस का सोशल प्रोफाइल देख लीजिए। जिन इलाकों में यह आंदोलन ज्यादा प्रबल है, उन इलाकों का एक बच्चा सरहद पर रहता है, एक बच्चा पुलिस में रहता है और एक बच्चा खेत में रहता है। वे बच्चे जायदाद के लिए नहीं लड़ रहे हैं। आपने उन्हें भी भिड़ा दिया।
आप कहीं तो सोचिए, विराम दीजिए। इसलिए मैं अवतार सिंह पाश की एक कविता को कहता हूं, “यदि देश की सुरक्षा यही होती है कि बिना ज़मीर होना जिन्दगी के लिए शर्त बन जाए, आंख की पुतली में हां के सिवा कोई शब्द न हो।”
आपको आंख की पुतली में सिर्फ ‘हां’ चाहिए, चाहे वह कितना भी अश्लील हो। यह पाश कहते हैं, मैं नहीं कह रहा हूं। “और मन बदकार पलों के समझ हमेशा झुका रहे, तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है।” देश को अपनी सुरक्षा से खतरा नहीं है, यह फर्क आपको समझना होगा।
आपने किसान को लेकर जितनी बातें कहीं, उन बिलों के बारे में मैं पिछले सत्र में बोल चुका हूं। मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि बिहार में एमएसपी वर्ष 2006 में खत्म किया गया। बिहार के किसान की आय के बारे में मैं आपको आंकड़ा दूं तो यह उचित नहीं होगा। आपके पास आंकड़ों का भण्डार है, आप आंकड़े तैयार कर लेते हैं, बल्कि कभी – कभी प्रेशर कुकर में पका भी लेते हैं।
मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि आप बिहार के मॉडल को मैं सिर्फ आपकी सरकार को दोष नहीं दे रहा हूं, बीती कई सरकारों ने बिहार को लेबर सप्लाई का स्टेट बनाकर रख दिया है। हमारा काम पूरे देश में मज़दूर भेजना है। हमने कोरोना के काल में वह सब देखा है।
हम तो सोच रहे थे कि हमारे बिहार का किसान- हालांकि वह किसान नहीं रहा, बल्कि खेतिहर मज़दूर हो गया है हम सोच रहे थे कि उसे भी पंजाब और हरियाणा की तरह बनाया जाए। आप वह मॉडल चाह रहे हैं कि पंजाब और हरियाणा में बिहार की तरह हालात हो जाएं।
मुझे कभी-कभी इस बात का अंदेशा होता है कि संसद का भी वर्ग-चरित्र बदल गया है। अभी संसद में अगर किसान और किसानी समाज से आने वाले लोग होते, तो आप इतनी आसानी से तबाह नहीं कर पाते। मेरे स्वयं के नेता लालू प्रसाद जी के सामने कई ऐसे मसले आए, उन्होंने यह तय किया और आपके लोग भी थे, आप उन्हें भूल चुके हैं, जिन्होंने खड़े होकर यह कहा कि हम यह नहीं होने देंगे।
अभी भी आपकी रीढ़ किसान और किसानी ही है। यह जो थ्री नॉट थ्री का आंकड़ा आ रहा है, यह किसी के कोल्ड स्टोरेज से नहीं आ रहा है, किसी के गोडाउन से नहीं आ रहा है। सर, मैं अंत में जय हिन्द कहूं, इससे पहले मैं आपके माध्यम से सरकार से हाथ जोड़कर आग्रह करूंगा कि इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं, जब आप दुविधा में होते हैं। माफ कर दे, मैं आपके माध्यम से हाथ जोड़कर बिनती कर रहा हूं कि आप किसानों का दर्द समझिए।
पूस की सर्द रातों में, माघ की सर्द रातों में सड़क पर रहना आसान नहीं होता है। किसानों का पानी बंद कर दिया, शौचालय बंद कर दिए। इस तरह की हालात, इस तरह का आक्रामक मुद्रा हमने तो अपने कुछ पड़ोसी मुल्कों के लिए भी नहीं सुना, जो अंदर तक आ गए।
लाल आंखें वहां होनी चाहिए और हम कहां आंखें लाल कर रहे हैं। ये किसान आपके हैं, ये किसान मेरे हैं। अगर इन्होंने एक दिन भी हड़ताल कर दी, एक दिन तय कर लिया कि कुछ नहीं होगा, तो संसद बंद हो जाएगी, सरकारें बंद हो जाएंगी और क्या-क्या होगा कुछ पता नहीं।
मैं “जय जवान, जय किसान” और “जय हिन्द” कहूं। कई लोग इसमें हेरॉल्ड लास्की कथन कोट करते हैं। उन्होंने स्वतंत्रता के मसले पर कहा था कि “You need to find the Government accountable time and again. That is the test of the democracy.” पर आप फेल साबित हुए हैं।
हमने किसानों को ही फेल नहीं किया है। यदि इजाज़त हो, तो तरन्नुम में, नहीं तो यूं ही,
मैं भी खाइफ़ नहीं,
तख्ता-ए-दार से, मैं भी मसूर हूं,
कह दो अग्यार से,
क्यों डराते हो जिंदाँ की दीवार से, (जिंदा अर्थात् जेल)
जुल्म की बात को जहल की रात को,
मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता।
धन्यवाद। जय जवान, जय किसान।
जाते जाते :
* ‘लव जिहाद’ किसके दिगाम कि उपज हैं?
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* टीआरपी का झगड़ा मीडिया के लिए आत्मघाती क्यों हैं?
लेखक राजद सांसद और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन करते हैं।