एक बार मराठा सेनाए टिपू सुलतान पर आक्रमण करने श्रीरंगपट्टनम गई। दोनों में लड़ाई हुई। परंतु यह लड़ाई बिना हार जीत के फैसले के समाप्त हो गई। मतलब एक तरह से यह लड़ाई ‘टाई’ हो गई।
मराठा सेनाएं अपने प्रदेश कि ओर वापस लौट रही थी। सारे सैनिक बड़े गुस्से में थे, सोंचने लगे हम तो आए थे टिपू सुलतान को हराने पर हम उसे हरा नहीं पाए। इसी गुस्से में जाते जाते उन्होंने टिपू सुलतान के राज्य का, श्रीरंगपट्टनम का एक मंदिर तोड़ दिया।
इस बारे में इतिहास के यह तथ्य जानकर मै बडा परेशान हुआ कि टिपू सुलतान ने उस मंदिर की मरम्मत करवाई हैं। मराठा होने श्रीरंगपट्टनम का मंदिर क्यों तोड़ा होगा?
हिन्दू धर्म का अपमान करने के लिए? या टिपू सुलतान का अपमान करने के लिए? अर्थात मराठा सेनाओं को टिपू सुलतान का अपमान करना था। फिर टिपू सुलतान ने उस मंदिर का पुनर्निर्माण क्यों करवाया? हिन्दू धर्म का अपमान करने के लिए यह प्रजा के भावनाओं का आदर करने के लिए!
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गलत चित्रण
एक तरफ हिन्दू राजा और एक तरफ मुसलमान राजा; दोनो आपस में लड़ते रहे ऐसा हमें चित्रण किया जाता है। जो कि पुरी तरह गलत हैं।
पिछले दिनों में दिल्ली शहर में एक और रोड का नाम बदलने की कोशिश हो रही थी। वह था ‘अकबर रोड।’ अकबर मुस्लिम राजा और राणा प्रताप हिन्दू राजा। कुछ लोगो को लगा कि उस रास्ते को अपने इस बहादुर राजा का नाम देना चाहिए।
अकबर तो अपना नहीं है, वह तो विदेशी है। यह देशी और विदेशी की परिभाषा क्या होती है? मुझे आजतक समझ नही आयी।
यहां एक तरफ अकबर है और दूसरी और राणा प्रताप। इन दोनों की लड़ाई हुई थी हल्दीघाटी के मैदान में। वहां एक तरफ अकबर की फौज थी, तो दूसरी और राणा प्रताप की फौज। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि अकबर की फौज में अकबर खुद मौजूद नहीं थें। वहां बादशाह अकबर के बदले राजा मानसिंह मौजूद हैं।
राजा मानसिंह के साथ उनके सहायक शहजादा सलीम थें। राजा मानसिंह अकबर के प्रधान सेनापति थे और शहजादा सलीम उनके सहायक थें। मानसिंह अकबर की ओर थें।
दूसरी तरफ राणा प्रताप कि फौज में उसके जो सबसे बड़े विश्वस्त थे उनका नाम था, हकीम खान सूर। दोनों तरफ भी हिन्दू थें और दोनों तरफ मुसलमान भी थें। तो यह लडाई हिन्दू मुसलमान कि या सत्ता कि लडाई?
यह लडाई धर्म के लिए थी या सत्ता के लिए? लडाई तो सत्ता के लिए थी, फिर यह लड़ाई हिन्दू और मुसलमान की कैसे हुई? यह तो दो राजाओं की लड़ाई थी। यह लड़ाई धर्म के लिए हो थी नही। कोई हमारे प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी यह बता दीजिएगा। वह ऐसी उल्टी-सीधी फिलोसोफी कहां से लाते हैं? यह तो बड़ी सरल और सीधी चीजें हैं। यह लोग उसे बताने से इनकार कर रहे हैं।
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झुठा इतिहास
प्रधानमंत्री के बारे में बात निकली है तो एक और बात उनके बारे में बतात चलूँ। उनके बारे में और थोड़ी जानकारी हम प्राप्त करते हैं। 2014 के आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री एक दफा मुंबई आए। लोकसभा के लिए उन्हें वोट लेने थे इसलिए मराठी लोगों को खुश करने के लिए वह बहुत कुछ कह बैठे। पर उसमे बहुत सारा झुठ भरा पडा था।
महाराष्ट्र में एक राजा बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। मुंबई के एयरपोर्ट का नाम, रेलवे स्टेशन का नाम, शहर के सबसे बड़े पार्क का नाम, यहां तक कि वडापाव का नाम भी शिव वड़ापाव है।
जबसे उसका नाम बदला गया तब से वह और ज्यादा स्वादिष्ट हो गया हैं। आप कभी मुंबई आओ तो मैं आपको खिलाता हूं। मोदी ने वोट लेने के खातीर कहा कि “शिवाजी महाराज इतने बड़े राजा थे कि उन्होंने औरंगजेब का खजाना लूटने के लिए सूरत पर आक्रमण किया।”
यह सुनते ही मैं तो हैरान हो गया। मैं सोंचने लगा कि औरंगजेब का खजाना दिल्ली में था या सूरत में! सच तो यह है कि औरंगजेब का खजाना तो दिल्ली में था।
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सुरत कि बात निकली हैं तो इस तथ्य के बारे में एक और बात बताता चलूँ। यह बात इसलिए बता रहा हूँ कि हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी हमेशा उल्टा-सिधा बोलते रहते हैं। जब शिवाजी महाराज उनकी फौज के साथ सूरत पर आक्रमण करने जा रही थें। तब शिवाजी महाराज ने अपनी फौज को तीन निर्देश दिए थें। क्या थी यह निर्देश?
1) रास्ते में हजरत बाबा की दरगाह हैं। इस दरगाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। इसके उलट मेरी ओर से हजरत बाबा के दरगाह के लिए यह भेंटवस्तू दे देना।
2) इसी सूरत में फादर एंब्रोस पिंटो का एक आश्रम है। इस आश्रम को भी कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।
3) जब आप लूटमार कर रहे हो, तब अगर आपके हाथ में किसी दूसरे मजहब को मानने वाले पवित्र पुस्तक आ गई हो तो उसका अपमान मत करो। उसे पूरे आदर के साथ उस धर्म के मानने वाले के हाथ में सम्मानपूर्वक दे दीजिए।
यह वही शिवाजी महाराज हैं, जिनको आज हिन्दू धर्म के नाम पर उछाला जाता है। आपको बता दूँ कि शिवाजी महाराज के फौज में 12 सेनापति मुसलमान थें। शिवाजी महाराज मुसलमानों को लेकर क्या सोंचते थे इसे स्पष्ट करने के लिए मै आपको एक कहानी बताता हूँ।
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क्या यह कहानी पता हैं?
एक बार शिवाजी महाराज घोड़े पर बैठकर कहीं जा रहे थें। उनके जासूस और अंगरक्षक ने देखा कि उनके कमर पर उनकी तलवार नहीं है। उनका वह अंगरक्षक बड़ा विचलित हुआ।
उसने कहा, “महाराज आप कहां जा रहे हैं?”
शिवाजी ने कहा, “मैं अफजल खान से मिलने जा रहा हूं!”
अंगरक्षक बोला, “अच्छा आप अफजल खान को मिलने जा रहे हो, तो आपकी तलवार कहां है?”
इस पर शिवाजी कहते हैं, “भाई देखो अफजल खान और मेरे बीच में एक समझौता हुआ है, एक अण्डरस्टैंडिंग हुई है। जब हम मिलेंगे तो हमारे पास कोई हथियार नहीं होगा।”
यह सुनकर जासूस और ज्यादा डिस्टर्ब हुआ। उसने बोला, “महाराज जरा नीचे उतरीए।”
शिवाजी नीचे उतरे। अब वह जासूस महाराज से अजीबो-गरिब सवाल पूछने लगा। इस तरह के सवाल पूछने का भी एक मतलब होता है।
जासूस ने कहा, “महाराज जी यह बताइए, आपकी हाइट कितनी है?”
शिवाजी महाराज हैरान हो गए। उन्होंने सोंचा यह मुझे नौकरी पर रखने वाला है क्या? फिर वह तो उनका अंगरक्षक था। इसलिए उन्हे उसका जवाब देना पड़ा।
“मेरी हाइट 5 फुट 6 इंच हैं।”
उसने फिर पूछा, “अफजल खान की हाइट कितनी है?”
महाराज ने कहा, “अफजल खान तो पठान हैं। 6 फुट से भी लंबा होंगा।”
फिर उस अंगरक्षक ने पूछा, “आपके बॉडी की साइज क्या है?”
आज के दौर में बॉडी साइज बताना बहुत आसान है। शर्ट के आकार से मह मीडियम, लार्ज साइज बता देते हैं। तब शिवाजी महाराज ने ऐसे ही अपना साइज कुछ बता दिया। अंगरक्षक ने एक सवाल पूछा, “बोलो अफजल खान का साइज क्या है?”
महाराज ने कहां, “उसका साईज तो एक्स्ट्रा, एक्स्ट्रा लार्ज होगा।”
अंगरक्षक बोला, “तो महाराज जब वह आपको मिलेगा; तो वह आपका गला दबाकर आपका मर्डर कर सकता हैं क्या नहीं?”
शिवाजी ने कहा, “यह बात तो सही है।”
अंगरक्षक बोला, “इसीलिए महाराज भोले मत बनो। यह एक गुप्त हथियार है, जिसे बाघ-नख कहते हैं इसे अपने साथ लेकर जाईयें।” शिवाजी महाराज ने अंगूठियों के नीचे बाघ-नख को छिपा दिया। शिवाजी महाराज के इस जासूस और अंगरक्षक का नाम था रुस्तमें जमाल। शिवाजी महाराज के कुल 18 बॉडीगार्ड थें जिसमें से 12 मुसलमान थें।
शिवाजी महाराज घोड़े पर बैठकर अफजल खान के तंबू के पास पहुंचे। जैसे ही अफजल खान ने उन्हें देखा जोर से जंप लगा कर बाहर आया और शिवा शिवा चिल्लाया… उसने पास आकर सीधा शिवाजी महाराज के गले पर अपने हाथ जोर से रख दिए और वह दबाने लगा।
शिवाजी महाराज इस प्रसंग के लिए तैयार थें। उन्होंने बाघ-नख निकाले और अफजल खान के पेट में घुसेड दिए। जैसे ही बाघ-नख अंदर घुसे, अफजलखान मरने को आया। वह नीचे गिर गया।
तब अफजल खान के तरफ से उसके सचिव आए उन्होंने तलवार निकाली और शिवाजी को मारने की कोशिश की। उस सचिव का नाम भी बड़ा रोचक है।
उसका नाम था कृष्णाजी भास्कर कुलकर्णी! यह किसके साथ थें यह तो अफजल खान के साथ थें। रुस्तम ए जमाल किसके साथ थें। वह तो शिवाजी के साथ हैं। फिर यह मामला हिन्दू मुसलमानों का मामला था कि दो राजाओं का मामला था?
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लेखक आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे मानवी अधिकारों के विषयो पर लगातार लिखते आ रहे हैं। इतिहास, राजनीति तथा समसामाईक घटनाओंं पर वे अंग्रेजी, हिंदी, मराठी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा में लिखते हैं। सन् 2007 के उन्हे नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित किया जा चुका हैं।