बीते कुछ महीनों से भारत-चीन सीमा विवाद पर अनबन चल रही हैं। चीन ने भारत के भूमी पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है, इस बात को स्वीकारते हुए केंद्र सरकार ने लोकसभा में 15 सितम्बर 2020 कोअपना पक्ष रखा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन को जवाब देते हुए कहा, भारत के संप्रभुता और अखंडता के साथ देश कोई समझौता नही कर सकता। लोकसभा टीवी के सौजन्य से केंद्रीय संरक्षण मंत्री का पूरा भाषण हम आपके लिए दे रहे हैं।
अध्यक्ष महोदय, आज इस गरिमामयी सदन में में अपने सभी सम्मानित सदस्यों को लद्दाख की पूर्वी सीमाओं पर हाल में हुई गतिविधियों से अवगत कराने के लिए उपस्थित हुआ हूं।
जैसा कि आपको ज्ञात है, हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री. नरेंद्र मोदी जी ने हाल ही में लद्दाख का दौरा कर हमारे बहादुर जवानों से मुलाकात की थी एवं उन्हें यह संदेश भी दिया था कि समस्त देशवासी अपने वीर जवानों के साथ खड़े हैं।
मैंने भी लद्दाख जाकर अपने शूरवीरों के साथ कुछ समय बिताया है और मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि मैंने उनके अदम्य साहस शौर्य और पराक्रम को महसूस भी किया है। आप जानते हैं कि कर्नल संतोष बाबू और उनके 19 वीर साथियों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। अध्यक्ष महोदय, कल ही इस सदन ने दो मिनट मौन रखकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
सबसे पहले मैं संक्षेप में चाइना के साथ हमारे बाउंड्री इश्यूज के बारे में बताना चाहता हूं। जैसा कि सदन इस बात से अवगत है कि भारत चीन की सीमा का प्रश्न अभी तक अनरिजॉल्ड है। भारत और चाइना की बाउंड्री का कस्टमरी और ट्रेडिशनल एलाइनमेंट चाइना नहीं मानता है।
हम यह मानते हैं कि यह एलाइनमेंट वेल एस्टैबलिस्ड भौगोलिक सिद्धांतों पर आधारित है, जिसकी पुष्टि न केवल ट्रीटी और एग्रीमेंट द्वारा बल्कि हिस्टोरिक यूसेज के प्रेक्टिसेज द्वारा भी हुई है। इससे दोनों देश सदियों से अवगत है। जबकि चाइना यह मानता है कि बाउंड्री अभी भी औपचारिक रूप से निर्धारित नहीं है।
साथ ही चाइना यह भी मानता है कि हिस्टोरिकल जुरिस्डिक्शन के आधार पर जो ट्रेडिशनल कस्टमरी लाइन है, उसके बारे में दोनों देशों की एक अलग-अलग व्याख्या है। दोनों देश 1950 एवं 1960 के दशक में इस पर बातचीत कर रहे थे, परंतु इस पर म्युचुअली एक्सेप्टेबल समाधान नहीं निकल पाया।
जैसा कि यह सदन अच्छी तरह अवगत है कि चाइना भारत की लगभग 38000 स्क्वॉयर किलो मीटर भूमि का अनधिकृत कब्जा लद्दाख में किए हुए है। इसके अलावा, 1963 में एक तथाकथित बाउंड्री एग्रीमेंट के तहत पाकिस्तान ने पीओके की 5180 स्क्वॉयर किलो मीटर भारतीय जमीन अवैध रूप से चाइना को सौंप दी है। चाइना अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे हुए लगभग 90,000 स्क्वॉयर किलो मीटर भारतीय क्षेत्र को भी अपना बताता है।
भारत तथा चाइना, दोनों ने औपचारिक तौर पर यह माना है कि सीमा का प्रश्न एक जटिल मुद्दा है, जिसके समाधान के लिए पेशेंस की आवश्यकता है तथा इस इश्यू का फेयर, रीजनेबल और म्युचुअली एक्सेप्टेबल समाधान शांतिपूर्ण बातचीत के द्वारा निकाला जाना चाहिए। अंतरिम रूप से दोनों पक्षों ने यह मान लिया है कि सीमा पर पीस और ट्रॅक्विलिटी बहाल रखना बाइलेटरल रिलेशन्स को बढ़ाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है।
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मैं यह भी बताना चाहता हूं कि अभी तक इंडिया-चाइना के बॉर्डर एरियाज में Commonly Delineated Line of Actual Control (LAC) नहीं है और एलएसी को लेकर दोनों का परसेप्शन अलग-अलग है। इसलिए पीस और टैक्विालिटी बहाल रखने के लिए दोनों देशों के बीच कई तरह के एग्रीमेंट्स और प्रोटोकॉल्स भी हैं।
इन समझौतों के तहत दोनों देशों ने यह माना है कि एलएसी पर पीस और ट्रेक्विालिटी बहाल रखी जाएगी, जिस पर एलएसी की अपनी-अपनी ‘रेस्मेक्टिव पोजिशन्स’ और ‘बाउंडी क्वेशन’ का कोई असर नहीं माना जाएगा। इस आधार पर वर्ष 1988 के बाद से दोनों देशों के बाइलैटरल रिलेशन्स में काफी विकास हुआ था।
भारत का मानना है कि बाइलैटरल रिलेशन्स को विकसित किया जा सकता है, तथा साथ ही साथ बाउंड़ी मुद्दे के समाधान के बारे में भी शां की जा सकती है। परंतु एलएसी पर पीस और टैक्विालिटी में किसी भी प्रकार की गंभीर स्थिति का बाइलैटरल रिलेशन्स पर निक्षित रूप से असर पड़ेगा।
अध्यक्ष महोदय, वर्ष 1993 एवं 1996 के समझौते में इस बात का जिक्र है कि एलएसी के पास दोनों देश अपनी सेनाओं की संख्या कम से कम रखेंगे। समझौते में यह भी है कि जब तक बाउंडी इश्यूज का पूर्ण समाधान नहीं होता है, तब तक एलएसी को स्ट्रिक्टली रिस्पेक्ट और अधेर किया जाएगा और उसका उल्लंघन किसी भी सूरत में नहीं किया जाएगा।
इन समझौतों में भारत व चाइना एलएसी के क्लेरीफिकेशन द्वारा एक कॉमन अण्डस्टैंडिंग पर पहुंचने के लिए भी कमिटेड हुए थे। इसके आधार पर वर्ष 1990 से 2003 तक दोनों देशों द्वारा एलएसी पर एक कॉमन अण्डरस्टैंडिंग बनाने की कोशिश की गई लेकिन इसके बाद चाइना ने इस कार्यवाही को आगे बढ़ाने पर सहमति नहीं जताई।
इसके कारण कई जगहों पर चाइना तथा भारत के बीच एलएसी पर्सेप्शन में ओवरलेप है। इन क्षेत्रों में तथा बॉर्डर के कुछ अन्य इलाकों में दूसरे समझौतों के आधार पर दोनों की सेनाएं फेस ऑफ आदि की स्थिति का समाधान निकालती है, जिससे कि शांति कायम रहे।
इससे पहले कि मैं सदन को वर्तमान स्थिति के बारे में बताऊँ, मैं यह बताना चाहता हूं कि सरकार की विभिन्न इंटलिजेंस एजेंसीज के बीच कोऑर्डिनेशन का एक इलेबोरेट और टाइम टेस्टेड मैकेनिज्म है, जिसमें सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज और तीनों आर्म्ड फोर्सेज की इंटेलिजेंस एजेंसीज शामिल हैं। टेक्नीकल और ह्यूमन इंटेलिजेंस को लगातार कोऑर्डिनेट तरीके से इकठ्ठा किया जाता है तथा आम्ड फोर्सेज से उनके डिसीजन मेकिंग के लिए भी शेयर किया जाता है।
अध्यक्ष महोदय, अब मैं सदन को इस साल उत्पन्न परिस्थितियों से अवगत करना चाहता हूं अप्रैल माह से ईस्टर्न लद्दाख की सीमा पर चाइना की सेनाओं की संख्या तथा उनके आर्मामेंट्स में काफी वृद्धि देखी गई है। मई महीने के प्रारंभ में चाइना ने गलवान घाटी क्षेत्र में हमारी टूप्स के नॉर्मल ट्रेडिशनल पेट्रोलिंग पेटर्न में व्यवधान शुरू किया, जिसके कारण फेस ऑफ की स्थिति उत्पन्न हुई।
ग्राउंड क्रमांजर्स द्वारा इस समस्या को सुलझाने के लिए विभिन्न समझौतों तशा प्रोटोकॉल के तहत वार्ता की जा रही थी कि इसी बीच मई महीने के मध्य में चाइना द्वारा वेस्टर्न सेक्टर में कई स्थानों पर एलएसी पर अतिक्रमण करने की कोशिश की गई। इनमें कोगकाला, गोगरा और पैंगोग लेक का नॉर्थ बैंक शामिल है। इन कोशिशों को हमारी सेनाओं ने समय पर देख लिया तथा उसके लिए आवश्यक जवाबी कार्रवाई भी की है।
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अध्यक्ष महोदय, हमने चाइना को डिप्लोमेटिक तथा मिलिट्री चैनल्स के माध्यम से यह अवगत करा दिया कि इस प्रकार की गतिविधियाँ, स्टेटस (status) को यूनिलैटरली बदलने का प्रयास है। यह भी साफ कर दिया गया कि ये प्रयास हमें किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है।
अध्यक्ष महोदय, एलएसी के ऊपर फिक्शन बढ़ता हुआ देख कर दोनों तरफ के सैन्य कमाडरों ने 6 जून, 2020 को मीटिंग की तशा इस बात पर सहमति बनी कि रेसिप्रोकल एक्शन्स के द्वारा डिसअग्रीमेंट किया जाए।
दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए कि एलएसी को माना जाएगा तथा कोई ऐसी कार्रवाई नहीं की जाएगी, जिससे स्टेटस को बदले। किन्तु इस सहमति के वाइलशन में चीन द्वारा एक वाइलेंट फेस ऑफ की स्थिति 15 जून को गलवान में क्रिएट की गई।
हमारे बहादुर सिपाहियों ने अपनी जान का बलिदान दिया और साथ ही चीनी पक्ष को भी भारी क्षति पहुंचाई है और अपनी सीमा की सुरक्षा में कामयाब रहे। इस पूरी अवधि के दौरान हमारे बहादुर जवानों ने जहां संयम की जरूरत थी वहां संयम रखा तथा जहां शौर्य की जरूरत थी, वहां शौर्य प्रदर्शित किया।
अध्यक्ष महोदय, मैं सदन से यह अनुरोध करता हूं कि हमारे दिलेर जवानों को वीरता एवं बहादुरी की भूरि-भूरि प्रशंसा कि जानी चाहीए। हमारे बहादुर जवान अत्यंत मुश्किल परिस्थितियों में अपने अथक प्रयास से समस्त देशवासियों को सुरक्षित रख रहे हैं। एक ओर किसी को भी हमारी सीमा की सुरक्षा के प्रति हमारे डिटरमिनेशन के बारे में संदेह नहीं होना चाहिए। वहीं भारत यह भी मानता है कि पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण संबंधों के लिए आपसी सम्मान और आपसी सेंसिटिविटी भी आवश्यक है।
चूंकि हम मौजूदा स्थिति का डायलॉग के जरिए समाधान चाहते हैं। हमने चाइनीज साइड के साथ डिप्लोमैटिक और मिलिटरी इंगेजमेंट बनाए रखा है। इन डिसकशन्स में तीन की – प्रिंसिपल्स हमारी एप्रोच को तय करते हैं – एक, दोनों पक्षों को एलएसी का सम्मान और कड़ाई से पालन करना चापीए।दो, किसी भी पक्ष को अपनी तरफ से यथास्थिति का उल्लंघन करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। तीसरा, दोनों पक्षों के बीच सभी समझौतों और अंडरस्टैडिग्स का पूर्णतया पालन होना चाहिए।
चाइनीज साइड की यह पोजीशन है कि स्थिति को एक जिम्मेदार ढंग से हैंडल्ड किया जाना चाहिए और द्वि-पक्षीय समझौतों एवं प्रोटोकॉल के अनुसार शांति एवं सद्भाव सुनिश्चित किया जाना चाहिए। वे भी यही कहते हैं।
जबकि ये डिसकशन्स चल ही रहे थे, चीन की तरफ से 29 और 30 अगस्त की रात को प्रबोकेटिव सैनिक कार्रवाई की गई। जो पैंगोंग लेक के साउथ ईक एरिया में स्टेटस को को बदलने का प्रयास था। लेकिन एक बार फिर हमारी आर्म्ड फोर्सेज द्वारा टाइमली और फौरन एक्शन्स के कारण उनके ये प्रयास विफल कर दिए गए।
अध्यक्ष महोदय, जैसा कि उपर्युक्त घटनाक्रम से स्पष्ट है, चीन की कार्रवाई से हमारे विभिन्न द्वि-पक्षीय समझौतों के प्रति उसका डिसरिगार्ड दिखता है। चीन द्वारा डूप्स की भारी मात्रा में तैनाती किया जाना 1993 और 1996 के समझौतों का उल्लंघन है। एलएसी का सम्मान करना और उसका कड़ाई से पालन किया जाना, सीमा क्षेत्रों में शांति और सद्भाव का आधार है और इसे 1993 एवं 1996 के समझौतों में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है।
जबकि हमारी आर्म्ड फोर्सेज इसका पूरी तरह पालन करती हैं, चाइनीज साइड की तरफ से ऐसा नहीं हुआ है। उनकी कार्रवाई के कारण एलएसी के आस-पास समय-समय पर फेस ऑन्स और फ्रेक्शन्स भी पैदा हुए हैं। जैसा कि मैंने पहले भी उल्लेख किया, इन समझौतों में फेस ऑफ की स्थिति से निपटने के लिए विस्तृत प्रोसीजर्स और नॉर्स निर्धारित है। तथापि, इस वर्ष हाल की घटनाओं में चाइनीज फोर्सेज का वायलेंट कंडक्ट सभी म्युचुअली एग्रीड नॉर्स का पूरी तरह से उल्लंघन है।
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अभी की स्थिति के अनुसार, चाइनीज साइड ने एलएसी और अंदरूनी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सैनिक टुकड़ियां और गोला-बारूद मोबिलाइज़ किया हुआ है। पूर्वी लद्दाख और गोगरा, कोगकाला और पैंगोंग लेक के नॉर्थ और साउथ पर कई फ्रेक्शन एरियाज है। चीन की कार्रवाई के जवाब में हमारी आर्म्ड फोर्सेज ने भी इन क्षेत्रों में उपयुक्त काउंटर डिप्लॉयमेंट्स किए हैं। ताकि भारत के सिक्योरिटी इंटरेस्ट पूरी तरह सुरक्षित रहें।
अध्यक्ष महोदय, सदन को आश्वस्त रहना चाहिए कि हमारी आर्म्ड फोर्सेज इस चुनौती का सफलता से सामना करेंगी। साथ ही साथ उनके द्वारा आज भी जिस प्रकार की कार्रवाई की जा रही है, सीमा की रक्षा की जा रही है। हम सबको अपनी आई फोर्सेज के पर हमें गौरव की अनुभूति होती है।
अभी जो स्थिति बनी हुई है, उसमें सेंसिटिव ऑपरेशनल इश्यूज शामिल हैं। इसलिए, मैं इस बारे में ज्यादा मौरों का खुलासा यदि करना चाहूंगा तब भी नहीं कर सकता हूं। यह हमारी एक सीमा हूँ और मैं आश्वस्त हूं कि यह सदन इस सेंसिटिविटी को भी समझेगा।
अध्यक्ष महोदय, कोविड-19 के चैलेंजिंग समय में हमारी आई फोर्सेज और आईटीबीपी की तेजी से डिप्लायमेंट हुई है। उनके प्रयासों को एप्रिशिएट किए जाने की जरूरत है। यह इसलिए भी संभव हुआ है, सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को काफी अहमियत दी है। सदन को जानकारी है कि पिछले कई दशकों में चीन ने बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर एक्टिविटी शुरू की है। जिनसे बॉर्डर एरियाज में उनकी डिप्लायमेंट क्षमता बढ़ी है।
इसके जवाब में हमारी सरकार ने भी बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए अपना बजट काफी बढ़ाया है। जो पहले से लगभग दोगुने से भी अधिक है। इसके फलस्वरूप बॉर्डर एरियाज में काफी रोड्स और ब्रिजेज बने हैं। इससे न केवल लोकल पापुलेशन को जरूरी कनेक्टिविटी मिली है, बल्कि हमारी आर्म्ड फोर्सेज को बेहतर लॉजिस्टिकल सपोर्ट भी मिला है। इसके कारण वे बॉर्डर एरिया में अधिक एलर्ट रह सकते हैं।
अध्यक्ष जी, इसके कारण वे बार्डर एरियाज में अधिक अलर्ट रह सकते हैं और जरूरत पड़ने पर बेहतर जवाबी कार्रवाई भी कर सकते हैं। आने वाले समय में भी सरकार इस उद्देश के प्रति कमिटेड रहेगी, यह मैं सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मैं इस बात पर बल देना चाहूंगा कि भारत हमारे बार्डर एरियाज में मौजूदा मुद्दों का इल, शांतिपूर्ण बातचीत और कंसल्टेशन के जरिए किए जाने के प्रति कमिटेड है। इस उद्देश को पाने के लिए मैं अपने चाइनीज काउंटरपार्ट से 4 सितम्बर को मास्को में मिला और उनसे हमारी इन – डेफ्थ डिस्कशन भी हुई।
मैंने स्पष्ट तरीके से हमारी चिंताओं को चीनी पक्ष के समक्ष रखा, जो उनकी बड़ी संख्या में ट्रप्स की तैनाती एग्रेसिव बिहेवियर और यूनिलेटरली स्टेटस (Unilaterally status quo) को बदलने की कोशिश से रिलेटेड था।
मैंने यह भी स्पष्ट किया कि हम इस मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल करना चाहते है और हम चाहते हैं कि चीनी पक्ष हमारे साथ मिलकर काम करें। वहीं हमने यह भी स्पष्ट कर दिया कि हम भारत की संप्रभुता (Sovereignty) और क्षेत्रीय अखंडता (Territorial integrity) की रक्षा के लिए पूरी तरह से डिटरमाइंड हैं।
इसके बाद मेरे कुलीग विदेश मंत्री श्री. जयशंकर जी भी 10 सितम्बर को मास्को में चाइनीज विदेश मंत्री से मिले। दोनों एक एग्रीमेंट पर पहुंचे कि यदि चाइनीज साइड द्वारा सिन्सियरली और फेथफुली एग्रीमेंट को इम्प्लीमेंट किया जाता है तो कम्प्लीट डिसइंगोजमेंट प्राप्त किया जा सकता है और बार्डर एरियाज में शांति स्थापित हो सकती है।
जैसा कि सभी सदस्यों को जानकारी है। बीते समय में भी चीन के साथ हमारे बार्डर एरियाज में लम्बे स्टैंड ऑफ (stand-off) की स्थिति कई बार बनी है। जिसका शांतिपूर्ण तरीके से समाधान किया गया था। हालांकि, इस वर्ष की स्थिति, चाहे वो ड्रुप्स की स्केल ऑफ इनवॉलवमेंट हो या फ्रेक्शन पाइंट्स की संख्या हो, वह पहले से बहुत अलग है। फिर भी हम मौजूदा स्थिति के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पूरी तरह से कमिटेड है। इसके साथ-साथ मैं सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हम सभी परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार हैं।
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अध्यक्ष महोदय, इस सदन की एक गौरवशाली परम्परा रही है। मैं दोहराना चाहता हूं कि सदन को गौरवशाली परम्परा रही है कि जब भी देश के समक्ष कोई बड़ी चुनौती आई है, तो इस सदन ने भारतीय सेनाओं को दृढता और संकल्प के प्रति अपनी पूरी एकता और भरोसा दिलाया है। साथ ही सीमा क्षेत्र में तैनात अपने बहादुर सेना के जवानों के शौर्य, पराक्रम और सीमा की सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर इस सदन ने पूरा विश्वास व्यक्त किया है।
मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हमारे आर्म्ड फोर्सेज के जवानों का जोश एवं हौसला बुलंद है। इस पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। माननीय प्रधान मंत्री जी के बहादुर जवानों के बीच जाने के बाद हमारे कमांडर तथा जवानों में यह संदेश गया है कि देश के 130 करोड़ देशवासी जवानों के साथ हैं। उनके लिए बर्फीली ऊँचाइयों के अनुरूप विशेष प्रकार के गरम कपड़े, उनके रहने का स्पेशलाइज टेंट तथा उनके सभी अस्त्र-शस्त्र एवं गोला बारूद की पर्याप्त व्यवस्था की गई है।
हमारे जवानों का यह संकल्प सराहनीय है कि दुर्गम ऊँचाइयों पर, जहां ऑक्सिजन की कमी है। तथा तापमान शून्य से नीचे है। उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आती है और वे सियाचीन, कारगिल आदि ऊंचाइयों पर अपना कर्तव्य इतने वर्षों से लगातार निभाते आ रहे है।
मुझे इस गौरवमयी सदन के साथ यह साझा करने में कतई संकोच नहीं है कि लद्दाख में हम एक चुनौती के दौर से गुजर रहे हैं। और मैं इस सदन से यह आग्रह करना चाहता हूं कि हमें एक रेजोल्यूशन पारित करना चाहिए कि हम अपने वीर जवानों के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़े हैं।
पुरा सदन वीर जवानों के साथ कदम से कदम मिला कर खड़ा है, जो कि अपनी जान की, अपनी जिन्दगी की बगैर परवाह किए हुए देश की चोटियों की ऊंचाइयों पर विषम परिस्थितियों के बावजूद हमारी भारत माता की वे रक्षा करते हैं।
यह समय है, जब यह सदन सशस्त्र सेनाओं के साहस और वीरता पर पूर्ण विश्वास जताते हुए उनको यह संदेश भेजे कि यह सदन और सारा देश सशस्त्र सेनाओं के साथ है, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा में लगातार जुटे हुए हैं।
अध्यक्ष महोदय, मैं इन्हीं शब्दों के साथ अपना निवेदन समाप्त करता हूं।
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