प्रेमचंद के साहित्य में तीव्रता से आते हैं किसानों के सवाल !

प्रेमचंद के सम्पूर्ण साहित्य पर यदि नज़र डालें तो, उनका साहित्य उत्तर भारत के गांव और संघर्षशील किसानों का दर्पण है। उनके कथा संसार में गांव इतनी जीवंतता और प्रमाणिकता के साथ उभर कर सामने आया है कि उन्हें ग्राम्य जीवन का चितेरा

यहाँ क्लिक करें

चीन पर करम और किसानों पर सितम, रहने दे थोड़ा सा भ्रम

लोकसभा से :

नाबे चेयरमैन साहब, आपका बहुत शुक्रिया। मैं सदरे जम्हूरिया के खुद के मोशन के खिलाफ बोलने के लिए खड़ा हुआ हूँ मैं अपनी बात का आगाज़ उस मुल्क का नाम ले कर करना चाहता हूँ, जिसका नाम लेने से

यहाँ क्लिक करें

दंभ और गुरूर का नाम ‘लोकतंत्र’ नही होता!

राज्यसभा से :

सभापति महोदय, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि अपने मुझे महामहिम के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलने का मौका दिया। दिक्कत यह है कि उनसे, जिनसे होती है इंसां को हमेशा तकलीफ, वे समझते हैं कि वे असल अक्ल वाले

यहाँ क्लिक करें

कृषि कानून पर ‘क्रोनोलॉजी’ का आरोप क्यों हो रहा हैं?

रकार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि यह समस्याओं की उस वक्त तक अनदेखी करती है जब तक कि भारी तादाद में भारतीय इससे प्रभावित न हो जाएं और वह राष्ट्रीय संकट न बन जाए।

ठीक एक साल पहले, गृहमंत्री अमित

यहाँ क्लिक करें