राज्यसभा से :
माननीय वाइस चेयरमैन साहब, मैं आपके माध्यम से यह कहना चाहता हूँ कि प्रेमचंद के गोदान के जो गोबर और धनिया थे, अब वे उतने कमजोर नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि उनको समझ नहीं आ रहा है कि उनके साथ क्या हो रहा है। अभी अचानक से बिहार सभी की बड़ी चिंता में आ गया है। मैं इसकी वजह जानता हूँ।
माननीय प्रधान मंत्री जी ने बिहार में संबोधित करते हुए कहा कि गुमराह कर रहे हैं। साहब, आपने तो राहें गुम कर दीं, तो कोई क्या गुमराह करेगा? महोदय, आज मैं बिल पर बोलूँ, इससे पहले मैं तमाम दलों से अपील करता हूँ और यह हृदय विदारक अपील है कि दलों के दायरे से ऊपर बढ़िए। क्योंकि किसानों ने व्हिप जारी कर दिया है।
आपको यह तय करना है कि दल के इतिहास में रहना है या किसानों के दिल के इतिहास में रहना है? मैं आपको कह रहा हूँ कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, यह निर्बलीकरण का जरिया है। किसान की समझ आखिर क्या है? मुझे तो कई दफा लगता है, मैं माफी के साथ कहता हूँ; हमारे मंत्री महोदय संजीदा व्यक्ति हैं, लेकिन क्या किसानों की संकल्पना हॉलीवुड की फिल्मों से लेकर आ रहे हैं?
आप हिन्दुस्तान के छोटी-मंझली जोत के किसान को समझते हैं? मैं एक बिहार के परिवार से आता हूँ। कल्पना करिए कि बिहार में, उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके में चार कट्ठा, पाँच कट्ठा, छः कट्ठा, एक बीघा, खपत (consumption) से थोड़ा ऊपर, उसके उत्पाद की खरीद के लिए वहाँ शार्क आएगी?
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शांता कुमार कमिटी ने आपसे पहले कहा था, उसके कुछ सुझाव थे। शांता कुमार जी तो विपक्ष के नहीं थे, आपकी पार्टी के हैं; उनको सुन लेते। आप जमाखोरों, बिचौलियों को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन जब मैं आपके बिल का अध्ययन करता हूँ, तो आप रोहू, कतला (मछली कि प्रजाती) को हटाकर शार्क को ला रहे हैं।
कमाल कर रहे हैं साहब ! हमारा अनुभव यह भी बताता है कि काँट्रेक्ट फार्मिंग मूलत: नकदी फसलों (cash crops) के इर्द गिर्द घूमती है। वैसी फसलों का क्या होगा, खाद्य की फसलों क्या होगा, उस पर आपका क्या नज़रिया है? मैं बिहार को लेकर कह सकता हूँ कि आपकी मक्के के लिए कुछ एमएसपी निर्धारित है। सर, 700 रुपए नीचे खरीद होती है। क्योंकि किसान की संकल्पना करनी होगी; मेरे पास पाँच कट्ठा जमीन है, मैंने प्याज उपजाया है, प्याज को निपटाकर अगली फसल लगाऊँगा।
मैं आपके माध्यम से कहना चाहता हूँ कि किसान के बारे में, उसकी संपूर्णता में सोचिए कि वह किसान आपसे क्या चाह रहा है? मैं एक चीज़ और भी कहना चाहूँगा कि मैं बीते दिनों में आपके तमाम बिल्स और एक्ट्स देख रहा हूँ।
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आप रेडियो, टेलिविज़न पर सहकारी संघवाद कहते हो, लेकिन अहंकारी संघवाद के हिसाब से काम करते हो। राज्यों के दायरे में घुसते जा रहे हैं, तो मैं तो अपील करूँगा कि एक झटके में राज्यों को खत्म कर दीजिए। “न रहेगा बाँस, बजेगी बाँसुरी।”
महोदय, आखिरी टिप्पणी करने से पहले मैं आपके माध्यम से यह भी कहना चाहता हूँ कि आज भारत का किसान आपकी ओर देख रहा है, सदन की ओर देख रहा है। मैं बार-बार दोहराऊँगा कि भारत का किसान आज यह अपेक्षा कर रहा है कि आप क्या करने जा रहे हैं?
ऐसा न हो कि वह ईस्ट इंडिया कंपनी टाइप हालात हो जाएँ, वैसे भी हम धीरे-धीरे पूँजी की गिरफ्त में जा रहे हैं। मैं जानता हूँ कि पूँजी कुछ लोगों को बहुत आराम देती है। वह कुछ को तो आराम देती है, लेकिन बाकी की जिन्दगी में कोहराम मचा देती है। यह तय कीजिए और उसके बाद आगे बढ़िए।
आखिरी टिप्पणी करने से पहले मैं यह कहना चाहूँगा, वह यह कि जब आप मँझोले-छोटी जोत के किसान की बात करते हैं, तो आप कहते हैं कि आप उनकी इनकम डबल करेंगे। सर, कहाँ? क्या आप उसको कब्र में लिटाकर उसके ऊपर इनकम लगा देंगे? वह बचेगा ही नहीं! उसके खात्मे की इबारत आप लिख रहे हैं।
मैं कहना चाहता हूँ कि अगर यह सदन आज यह बिल पास करता है, तो आप इंडियन फार्मिंग कम्युनिटी की, भारतीय किसानों की मृत्युसंदेश (obituary) लिख रहे हैं। लेकिन हाँ, जैसा मैंने पहले कहा, किसानों ने व्हिप जारी कर दिया है। यह कहानी हरियाणा-पंजाब तक नहीं रहेगी, यह बिहार तक जाएगी, क्योंकि यह नहीं हो सकता।
मैं मानता हूँ कि भाजपा के भी हमारे मित्र, वे भी एक बार सोचें कि आप क्या करने जा रहे हैं। सर, आखिरी बात। सर, इकबाल कह गए थे,
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी,
उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो।
जय हिन्द, जय किसान।
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लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक और राजद के सांसद हैं।