मुहंमद इकबाल की नजर में राष्ट्रवाद की चुनौतीयां

1930 में अलाहाबाद में मुस्लिम लीग का राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न हुआ था। इसमें डॉ. मुहंमद इकबाल ने राष्ट्रवाद के नवविचार और इस्लामइस विषय पर तकरीर की थी। राजनीति से दुर रहकर दुनियावी चुनौतीयों से बेखबर इस्लामी दुनिया को इस तकरीर

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क्यों जरुरी हैं इतिहास लेखन और राष्ट्रवाद की पुनर्व्याख्या?

हुसंख्याक समाज कि संस्कृति और धर्म से प्रेरित शासनव्यवस्था, पूंजीपतीयों के हितरक्षा से प्रेरित अर्थव्यवस्था तथा धर्मवादी सोच को प्रमाणित कर रहे माध्यमों के इस दौर में राष्ट्रवाद की बेहद गलत व्याख्या को प्रस्तुत किया जा रहा है।

अब राष्ट्रवाद बस किसी धर्म

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मुग़लों कि सत्ता को चुनौती देनेवाला शेरशाह सूरी

ध्यकाल में राज्य के हर क्षेत्र में परिवर्तन कि बुनियाद रखनेवाले शासक के रुप में शेरशाह सूरी को याद किया जाता है। किसानों के प्रति उसकी सहानभूती अत्याधिक थी, जिसकी वजह से करप्रणाली की पूनर्रचना कि गयी थी।

प्रशासन में कई पदों

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हिन्दू पुजारी हमेशा करते थे टिपू सुलतान के जीत की कामना

हैदरअली के बाद टिपू सुलतान ने मैसूर के विकास को चरम पर पहुंचाया। किसानों, बुनकरों, व्यापारियों के लिए कई कानून बनाए गए। किसानों का उत्पाद विश्व के बाजार में पहुंचाने के लिए टिपू ने विशेष प्रयत्न किए।

राज्य में 1797 में दो

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हैदरअली ने बनाया था भारत का पहला जातिप्रथाविरोधी कानून

हैदरअली वह पहला भारतीय शासक है जिसने वर्णव्यवस्था को चुनौती देकर दलितों के लिए कानून बनाया। दलितों को शस्त्र का अधिकार देने के साथ कई असामाजिक, अमानवीय प्रथाओं पर उने रोक लगाई थी। सामाजिक सुधार और सौहार्द कि हैदरअली कि नीति भारत के

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अंग्रेजों के विरुद्ध हैदरअली और टिपू सुलतान का संघर्ष

हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालयमें 1314 अक्तूबर 2019 कोसाऊथ इंडिया हिस्ट्ररी कोलोक्युअमका आयोजन किया गया था। दक्षिण भारत के इतिहास पर हुई इस परिचर्चादक्षिण भारत के औपनिवेशिक (Colonial) विरोधी इतिहास की पुनर्व्याख्या

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औरंगजेब ने लिखी थीं ब्रह्मा-विष्णू-महेश पर कविताएं

रंगजेब के प्रति भारतीय इतिहास लेखन में आम धारणा जालीम, हिन्दुकुश, बुतशकीन बादशाह कि है। औरंगजेब कि कई नीतियों और सांस्कृतिक पुनरुज्जीवनवाद के प्रयासों से उसकी धार्मिक कट्टरता वाली छवी बनी हुई है। जिझिया को दुबारा लागू करना तथा सिखों और मराठों

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क्या सर सय्यद अलगाववाद के बानी और अशरफ मुसलमानों के नेता थें?

र सय्यद अहमद खान स्वतंत्रता पूर्व भारत में सामाजिक सुधार, धार्मिक चिंतन कि पुनर्व्याख्या और शिक्षा के प्रसार के लिए लडते रहे। उनका मानना था की,अंग्रेजो से मुकाबला करना अब संभव नहीं है और उनसे लडने कि क्षमता हम खो चुके हैं, अब उनसे

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क्या सच में ‘मुगल हरम’ वासना का केंद्र था?

मुगल हरम हमेशा साहित्य, संस्कृति और राजनीति का केंद्र रहा है मगर सांप्रदायिक इतिहास लेखन ने मुगल हरम को एक वासना केंद्र के रुप में पेश कर उसकी पवित्रता से खिलवाड किया है

हरम की कई बेगमात ने मध्यकालीन इतिहास में

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डॉ. इकबाल और सुलैमान नदवी – दो दार्शनिकों की दोस्ती

कबाल एक दार्शनिक कवि हैं, जिन्होंने मुस्लिम चिंतन को युरोपीय प्रेरणाओं और दर्शनशास्त्र की नई व्याख्याओं मे ढालने कि कोशिश की। दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय के एकीकरण का ख्वाब देखकर उसके लिए वह कोशिशें करते रहें।

इकबाल जिस दौर में अपने इस्लामी

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