एक बूढ़े आदमी ने मुझे बीजापूर शहर के एक विशाल कब्रस्तान में ले गया, जहां उसके परिजन दफन थे। यह जगह शहर का उपनगर है, जिसे फतहपूर कहते हैं, वहां स्थित हैं। नम आँखो से वह मुझे अपने उन परिजनों के बारे में बता रहा था, जो कभी इस सल्तनत का हिस्सा हुआ करते थे।
परिसर में फैली गंदगी और उसके दुर्गंध नें मुझे अंदर से झिंझोड दिया। हम अलग-अलग आकार की कब्रों के बीच टहलते रहे। उनमें से कुछ को सफेद रंग दिया गया था और कुछ पत्थरों के रंग के यानि काल और मटमैले थी। उनके आसपास फूलों की पंखुड़ियों चारों ओर बिखरे हुए थी। कुछ पर फुलों की मालाएँ थीं, तो कुछ पर घांस उग आई थी।
उनके आकार और बनावट से जैसे वे कुलीनों की कब्रे लग रही थीं। कुछ पुरुष और महिलाओं के कब्रों कि विशेषताएं दर्शा रही थी। इसके विपरीत, कुछ के पास एक समाधि भी नहीं थी। मैं उस व्यक्ति को कब्रो के बीच से चलने के लिए ना-नुकर करता रहा। कहीं मेरे इस हरकत के वजह से अंदर दफन व्यक्ति की पवित्रता को ठेस पहुंचे।
वह व्यक्ति मुझे दूर एक अलग कोने में ले गया, जहाँ एक पुराने नीम के पेड़ के घने पत्ते के नीचे एक सूफी हज़रत पीर मीठे की मजार थी। एक सुनहरे मखमली कपड़े में लिपटी यह कब्र कब्रिस्तान के अन्य सभी मकबरों से अलग मालूम होती है। उसने गुलाब की एक माला अर्पित की और बगल में अगरबत्ती जलाई।
ना गोरे सिंकदर, ना हैं कब्रे दरां
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बूढ़ा आदमी, शहर के उन लोगों में से है, जो अभी भी सौलहवीं सदी के आदिलशाही सल्तनत की शान में कसीदे पढ़ते हैं। वह बीजापुर के सुल्तानों की वीर गाथाओं को सुनाने में गर्व महसूस करते हैं। उसकी आँखें उम्र के साथ सुस्त हो गईं, अभी भी अतीत की छवियों को चित्रित करती हैं, कि वह अभी भी खुश है। उनके पास शहर और एक निजी मस्जिद के बीच में एक शानदार हवेली है।
आदिलशाही सल्तनत ने मस्जिदों, कारवां सराय, महलों, पानी के जलाशयों, झीलों और कुओं की ऐसी विशाल विरासत को पीछे छोड़ दिया है। और भी कई ऐसी आलिशान इमारते हैं जो अपनी भव्यता और शाही रख-रखाव के साथ शहर के माहौल में जान भर देती हैं।
समय के साथ, यह सब एक कैनवस पर खींची गई पेंटिंग मालूम होती है, जो कि नीरस और बेजान हो गई है। ये प्रतिष्ठित विरासत अचल संपत्ति के रूप में खडी हैं, जो किसी भू माफिया के दानव का निवाला बनने के कोशिश से डरी-सहमीं हैं। फिर भी वह अपनी उपस्थिति को दर्शाती इतने सालों से ऐसी खडी हैं, जिसके बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
मैं शहर के मध्य में ऐतिसाहिक विरासत के प्रति उत्साही लोगों के साथ इस ‘अदालत महल’ नामक एक संरचना में भटक रहा था। मैं उन्हें महल के अंदर मौजूद विभिन्न स्थानों-कमरों के दौरे पर ले गया।
मैंने उन्हें शाही दरबार दिखाया, जहाँ सुलतान ने सभाएं और परिषदों को आयोजन किया था, सुलतान के निजी महलों और वह जगह भी जहाँ रईस रहते थे। मैंने उन्हें वह जगह (आसार महल) भी बताई जहां, पैगम्बर मुहंमद (स) के विरासत को आज तक सहेजकर रखा गया हैं। कहते हैं, यहां उनके सर का बाल हैं।
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उस जगह एक कम उम्र जोडा वहां कोने में दुबककर बैठा था, हमारे अचानक वहां आ जाने से वह स्पष्ट रूप से नाराज दिख रहे थे। उस लड़के ने लड़की से कहा, “इन खंडहरों का हमारे लिए क्या उपयोग है, अगर लोग इन्हें बार-बार देखने के लिए आते हैं।” निश्चित रूप से, इस तरह के सैकड़ों स्थान प्रेमी जोडो के लिए स्पॉट बन गए हैं। उसी तरह शराबी और जुआ, ताश खिलाड़ियों के लिए आरामगाह।
शहर के भीतर कई ऐसी प्राचीन इमारते हैं, जहां सूअर की झुंड, आवारा कुत्ते और चूहों के झुंड महलों के अंदर रहते हैं, जहां कभी सुलतान और कुलीन लोग रहते थे। वे कुलीन घर आज कचरे डंप-यार्ड बन गए हैं। लोग अगर वहां जाते भी हैं, तो सुबह मल त्यागने के अपनी जरुरत के लिए।
जब उन लोगों को उनके दृष्कृत्यों के बारे में कहा जाता है, तो वे स्पष्ट रूप बेदखल करते हैं। उनसे पर कोई हेरिटेज प्रेमी ऐसा न करने के लिए कहता कहता, तो प्रबंधन कमेटी और शहर नगर निगम की ओर अपनी उंगलियां दिखाते हैं।
शहर के निवासियों का एक वर्ग है जो झुग्गी-बस्तीयों में रहता हैं। वे लोग उस भूमि पर अतिक्रमण करते हैं, जो कानूनी रूप से उनकी नहीं हैं। टिन की शेड से सजे उनके छोटे मकान, संभवतः एक शौचालय को समायोजित नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे उन पुरानी इमारतों जैसे खुले स्थानों में शौच करने के लिए मजबूर हैं, जहां लोग शायद ही जाते हैं।
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पर्यटन का विकास हो सकता हैं
एक शक्तिशाली राजनीतिक लॉबी भी है, जो कीमती वोट बैंक के लिए उन्हें अलग नहीं करना चाहती है। जनप्रतिनिधियों के पास झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों और उन लोगों को स्थानांतरित करने का अधिकार है, जो गरीब लोगों को बेहतर सुविधाएं प्रदान कर सकती है। साथ ही वे उन्हें अच्छे घर बनाकर बेहतर जगह पर रख सकती हैं, जो वे अतिक्रमित भूमि से अच्छी और सुरक्षित हो सकती हैं।
इस तरह से पर्यटन विकास और शहर को एक साफ सुथरा रूप देने के लिए ऐतिहासिक स्थानों के आसपास के क्षेत्र को खाली किया जा सकता है। इसके अलावा, शहर को बागलकोट के तर्ज पर विकसित किया जा सकता है, जहां पुराने शहर को छोड़कर नए नगर की स्थापना की गई है।
अचल संपत्ति के भूत सफलतापूर्वक बंद किया जा सकता है, जहां ऐतिहासिक स्मारक और स्थलों की विकास और सौंदर्यीकरण में कोई भी संकट नहीं होगा।
शहर के डीसी कार्यालय, डीसी निवास, धोबी महल, फ़राख महल और सरकार के कब्जे वाले ऐसे स्मारक को खाली किया जाना चाहिए, बहाल किया जाना चाहिए और पर्यटन विभाग को सौंप दिया जाना चाहिए।
पर्यटन, जिसमें एक मजबूत क्षमता है, जिसे बीजापुरियों के अच्छे के लिए विकसित किया जा सकता है। मेरे जैसे पुरानी इमारतों के चाहनेवालों दोस्तों के लिए, दोनों दुनिया में कोई हल नहीं है, जब तक कि खोए हुए विरासत को फिर से संवारा नहीं जाता है।
जमीन ए चमन गुल खिलाती है क्या क्या
बदलता है रंग आसमां कैसे कैसे..
जाते जाते :
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इतिहास को लेकर आप लापरवाह नहीं हो सकते!
लेखक बीजापूर स्थित पर्यटन प्रमी हैं। पुरानी ऐतिहासिक इमारतें और हेरिटेज संवर्धन के लिए कार्य करते हैं।