महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित यह किला कई सालों से गुमनामी के अंधेरे मे छिपा हैं। किले के बारे में जानने के लिए जह हम यहां पहुँचे तो हमे कई हैरान करने वाली प्राचीन वस्तुओ का जखिरा मिला।
हम बात कर रहे हैं परंडा के किले की, जिसमे मराठा और मुगल सल्तनत कि बीच घटे कई युद्ध तथा लड़ाई प्रमाण मिलता हैं। 12 एकड़ के परिसर में फैले इस किले की सुरक्षा 26 तोपों से होती थी। जो आज भी अपनी स्थिती मे मौजूद हैं। किले में एक प्राचीन मस्जिद के साथ हिन्दू देवताओं की प्रतिमाएं भी देखने मिलती हैं।
दकन के इतिहास में जिन किलों की चर्चा हर बार होती है, उनमें परंडा का किला भी शामील है। वर्तमान समय में परंडा उस्मानाबाद जिले कि एक तहसील है। स्वतंत्रतापूर्व काल में परंडा आसिफजाही यानी निजाम के हैदराबाद राज्य का भाग हुआ करता था। परंडा आज मराठवाडा का एक महत्त्वपूर्ण शहर माना जाता है।
यह शहर किले के आसपास बसा हुआ है। परंडा किले का उल्लेख पुराने फारसी ग्रंथों में ‘परिंडा’ नामसे किया गया है। इस किले की लगभग सभी दिवारें और, बुर्ज आज भी अच्छी स्थिती में हैं। यह किला किस समय में बनाया गया इस संदर्भ मे कई दावे किए जाते है, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, यह किला मुस्लिम अधिसत्ता के पूर्व शासन काल बनाया गया है, तो कई शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका निर्माण महमूद गवान के दौर में हुआ होंगा।
किलें को एक मजबूत दिवार के जरिए संरक्षित किया गया है। इसी विशालकाय दिवार को लगकर छोटे–बडे कुल 26 बुर्ज हैं। इसे सटकर ही बडी चौडी और लंबी खंदक है, जिसमें पानी छोडने के लिए दो बडी नहरें हैं।
खंदक के बीचो बीच दो बडी बावलींयां भी हैं, इनमें से एक बावली दक्षिण दिशा की तरफ है, जिसका नाम चमार बावली है। इस बावली से स्वतंत्रतापूर्व काल में पिछडी जाती-समुदाय के लोगों को पानी लेने की व्यवस्था की गयी थी। दूसरी बावली किले के पश्चीम में है, इस बावली का पानी खेत-खलिहान के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
किलें में कई पुरानी और मजबूत तोपें हैं, जो अलग–अलग बुर्जों पर रखी हुई हैं। किले के अंदर तकरीबन 16 बुर्ज हैं, जिनमें से चार बुर्ज काफी मशहूर हैं, बाकी बुर्ज मामुली से हैं। इनमें प्रमुख तोप इस प्रकार हैं –
पढ़े : सालों तक इतिहास के गुमनामी में कैद रहा नलदुर्ग किला
पढ़े : उदगीर – बरिदीया इतिहास का अहम शहर
पढ़े : बदले की भावना में हुई थी अहमदनगर शहर की स्थापना
मुल्क मैदान तौप
किले के उत्तर दिशा में बने बुर्ज पर रखी हुई है, इसी के करीब बारादरी (बारुद लगाकर छुपने की जगह) है, जो अब भी अच्छे स्थिती में है। यह तोप गनमेटल में ढली हुई है, तोपके बिच में कडीयों की बजाए दो शेर बने हुए हैं। युद्ध के समय गोला लगने से तोप में एक छेद पडा हुआ है। इस तोप के दाहनी तरफ निहायत खुबसुरत शब्दों में यह शेर लिखा हुआ है,
ता सुराई खुंदा, तालीम अज लब दिलबर गिरफ्त
आतिश ए जस्त अज जहान दाव ब मजलिस ए दर गिरफ्त
जब अस के अखगर गम प्रबोध दरों तनम
चो कोजा मी जन्द आतिश रुबाना अज दहनम’
इसके साथही तोपपर अन्य मजकूर भी है, जिसमें यह शब्द हैं –
मोहंमद
अबु जफरुद्दीन मुही
औरंगजेब बहादुर आलमगीर
पादशाह गाजी
खमसा व सबईं मा
सन जुलुस ७
मुल्क मैदान
तोप अमल अरब मोहम्मद हुसैन
गोला यक मन विदारे व सिज्दा आसार व यक पाव बोजन शाहजहानी’’
पढ़े : औरंगाबाद के इतिहास को कितना जानते हैं आप?
पढ़े : वो शासक जिन्होंने ‘अहमदनगर’ को दी ऐतिहासिक पहचान!
पढ़े : चाँद बीबी : दो सल्तनतों की मल्लिका जो छल से मारी गई
अजदाहा पिकर तोप
मलिक मैदान तोप की उत्तर कि तरफ एक बुर्ज पर रखी हुई है, जो कुल 17 फिट और 6 इंच की है। इस बुर्ज को नौ सय्यदों का बुर्ज कहा जाता है, क्योंकी इस बुर्ज पर नौ सय्यदों की मजारें मौजूद हैं। यह तोप शायद मुल्क मैदान तोप के साथ ही बनायी गयी है। इसपर लिखा हुआ शेर मुल्क मैदान तोप की तरह ही है –
1072 हिजरी, तोप अजदाहा पिकर
आलमगीर बादशाह गाजी
औरंगजेब बहादूर
जुलुस मिन्नत मानूस
हुसैन मोहम्मद
अमल अरब
गोला बस्त आसार व वार शिस आसार रुसी दाम बोजन शाहजहानी
पढ़े : शिक्षा की विरासत लिए खडी हैं आदिलशाही लायब्ररियाँ
पढ़े : दकन की शिक्षा नीति का नायक था महेमूद गवान
पढ़े : पैगंबर के स्मृतिओ को संजोए खडा हैं बिजापूर का आसार महल
चंचल बुर्ज की तोप
किले के पश्चिमी दिशा मे चंचल नामी एक विशाल बुर्ज है, उसपर एक बडी तोप है। यह तोप डच लोगों की होने का दावा किया जाता है। यह तोप भी ढाली हुई है, यह 10 फिट आठ इंच की है। इसपर अंग्रेजी में कुछ अक्षर खुदाए नजर आते हैं, जो डच भाषा में है।
लांटे कसाब की तोप
पश्चिम दिशा में चंचल बुर्ज के करीब ही एक और बुर्ज है, जिसपर यह तोप रखी हुई है। यह तोप ढाली हुई नहीं है, बल्की कई टुकडे जोडकर बनाई हुई है। इसपर कोई लिखावट नहीं है, तोप 18 फिट 2 इंच की है।
इसके अलावा किले में एक पुरानी मस्जिद भी मौजूद है, जिसके दो दरवाजे हैं। इनमें से पुराना दरवाजा पूर्व दिशा में है।
इसका दुसरा दरवाजा 1314 हिजरी मौलवी मुहंमद वजीरुद्दीन साहब कुरैशी के जमाने तैयार किया गया है। मस्जिद के सिहन में एक हौज है, जिसमें एक चश्मा मौजूद है। मस्जिद के निचे एक तहखाना है, जिसमें तोपों के गोले रखे हुए हैं। मस्जिद के सामने पिर फौलाद और बालेपीर की कबरे हैं।
जाते जाते :
* दकनी सभ्यता में बसी हैं कुतुबशाही सुलतानों कि शायरी
* दकनी को बड़ा ओहदा दिलाने वाले तीन कुतुबशाही कवि
.