रमजान का रोजा रूहानी ताकत प्रदान करता हैं

म माहे रमजान के रोजे रखते हैं, पर यह रोजे पहले इस तरह न थें। हिजरी सन 2 में रोजे का हुक्म आया। उस वक्त रोजे इस तरह रखे जाते थे कि अगर आप दिन भर रोजा रखते और शाम को जब इफ्तार करते, उसके बाद आपको नींद लग जाती और जब आप जागते उस समय से रोजा शुरू हो जाता।

इस्लामी इतिहास का मुताअला करेंगे तो मालूम होगा कि सहाबी हजरत सलाबा बिन कैस (रजि) एक मजदूर पेशा इन्सान थें, जो मेहनत और मजदूरी करते थे। उन्होंने रमजान में घर जाकर रोजा खोला।

इफ्तार के बाद थकान और मश्शकत की वजह से आपको नींद आयी औऱ आप सो गए। फजर से वक्त आपके बीवी ने खाना बनाकर आपको नींद से बेदार किया, तब सहाबी ने कहा कि मैं खाना नहीं खा सकता हूं। इसलिए कि शरीयत मुझ पर लागू हो चुकी है और अब से रोजा शुरू हो चुका है।

दूसरे दिन यह सहाबी बाजार में गए और हस्बे मामूल मेहनत, मजदूरी और मशक्कत की। दोपहर में भूख की शिद्दत की वजह से आप निढाल होकर बेहोश हो गए। रसूलल्लाह सल्लल्लाहों वले व सल्लम को जब इसकी खबर पहुंची तब, आप के आंखों में आंसू आ गए। तब अल्लाह ने सूरह बकराह के उस आयत को नाजिल किया और यह हुक्म फरमाया के सहेरी तक हम खा सकते हैं।

हमपर यही सहाबी का सदका और एहसान हैं, के हमको सहेरी तक खाने का मौका अल्लाह ने इनायत फरमाया। हदीस में आया है कि एक सहाबी आप रसूलल्लाह के पास हाजिर हुए, क्योंकि उस वक्त जो रोजा रखते थे उनको रात में अपने बीवियों के करीब जाने का हुक्म नहीं था। एक सहाबी ने आप के पास आकर अर्ज किया, मुझसे अमल ए जौजियत (शरीर संबंध) हुआ हैं।

तब दूसरे सहाबी फारूक ए आजम भी खडे हुये और अर्ज किया मुझसे भी यह हुआ है। तब अल्लाह ने सूरह बकराह में इस बात की इजाजत दी कि आप रात के वक्त में अपने बीवियों के करीब जा सकते हैं। यह सहाबा इकराम का बहुत बड़ा एहसान है, दीन ए इस्लाम के तालिमात में भी इसे शामिल किया गया।

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सखावत का महीना

हदीस शरीफ में है कि उम्मत की माँ हजरत आयशा (रजि) फरमाती है, के रसूल अल्लाह रमजान में रात भर इबादत करते, रोते और बहुत ज्यादा सखावत करते। यह मुबारक महिना जो हमको मिला है, इसका एक-एक लम्हा हमारे लिए कीमती है। इस महीने में हमें और उन तमाम को भी यह कोशिश करनी चाहिए कि हम शब बेदारी करें और जितना हो सके सखावत करें।

इस मुबारक महीने के सिलसिले में हदीस में आया है, रसूललल्लाह ने फरमाया है कि जो रमजान में किसी रोजेदार को पानी में पिलाएगा तो अल्लाह उसके गुनाहों को इस तरह माफ फरमा देगा के वह अभी अपने माँ के पेट से पैदा हुआ हो। तो सहाबा ने फरमाया या रसूलल्लाह यह जो खुशखबरी हमने आपसे सुनी है यह जो सफर में हैं उसके लिए भी है क्या!

क्या यह उनके लिए भी है जो किसी दूर मुकाम में हो! तब रसूल ने फरमाया यह खुले आम है। अगर कोई दरिया है फराह के किनारे भी बैठा है, अगर वहां किसी रोजेदार को सिर्फ पानी से कोई रोजा खुलवाता है तो अल्लाह उस पानी पिलाने वाले के गुनाहों को इस तरह से माफ करते हैं जैसा कि वह अपनी माँ के पेट से पैदा हुआ हो।

हदीसों में आता है के जब रमजान शुरू होता है अल्लाह शैतानों को जंजीरों से जकड़ देते है। जहन्नूम के दरवाजों को बंद कर दिया जाता है। जन्नत के दरवाजों को खोल दिया जाता है। हदीस में आता हैं कि जब यह मुबारक महिना शुरू होता है तो रात में – रमजान की शब में आसमान से एक आवाज पुकारती है, के अल्लाह से सवाल करने वालों, सवाल करो! तुम्हारा सवाल पूरा होंगा।

पुकारने वाला निदा लगाता है कि शरीरों शरारत से बाज आ जाओ, अल्लाह से मगफिरत (माफी कि गुजारिश) करो, अल्लाह तुम्हारी तौबा क़बूल करेंगे। आवाज लगाने वाला सुबह तक आवाज लगाता है कि अल्लाह से भीख मांगने वालों, अल्लाह से भीख मांगो, अल्लाह तुम्हारी इस आवाज को, तुम्हारी इस तकलीफ को दूर फरमा देगा।

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गुनाहों कि माफी

मेरे दोस्तों, इस महीने का एक-एक लम्हा हमारे लिए बड़ा कीमती है। हदीस शरीफ में आया है कि अल्लाह के रसूल ने इरशाद फरमाया हैं कि जब माहे मुबारक का आगाज होता है, जब हम रोजा इफ्तारी करते हैं, उस वक्त अल्लाह 10 लाख ऐसे गुनाहगारों को माफ फरमाता है, जो अपने आमाल के वजह से जहन्नम में हैं।

हदीस में यह भी आया है जब रमजान का शबे जुमा शुरु होता है तब से लेकर उसके खत्म होने तक हर घड़ी अल्लाह 10 लाख गुनाहगारों के गुनाहों को माफ करता है, जिनपर उनके गुनाहों के वजह से उन पर जहन्नम बाज हो चुकी होती है। जब यह महीना खत्म होता है पहली रमजान से लेकर उस खत्म होने के घड़ी तक जितनों को अल्लाह ने माफ किया उतनो को एक रात में अल्लाह अपने फजलों करम से उनको बख्श देता है।

मेरे दोस्तों, हदीस शरीफ में यह भी आया है कि जब रमजान में किसी शख्स को जहन्नम में डाला जाएगा, तो जहन्नम की आग उसे नहीं छुयेगी, दारोगाह ए जहन्नम उस आग से पूछेगा कि क्यों तू इस शख्स को अपनी लपेट में नहीं लेती तब आग पुकार कर कहेंगी मैं कैसे इसे छू सकती हूं इसके मुंह से तो रोजे की बूँ आती है।

अब अंदाजा लगाइए सोंचीये से कितना बड़ा मुबारक महीना हमको मिला है; के हालत में रोजा में एक शख्स की मौत हो जाती है और वह अपने आमाल के वजह से जहन्नम डाला जाता हैं, तब जहन्नम कि आग हालत में रोजा की वजह से उसे नहीं छू सकती।

जो शराब पीते हैं, जो ड्रग्स लेते हैं, वह लोग थोड़ी देर के लिए सोचों, अगर हालते शराब में, या ड्रेस के नशे में तुम्हारी मौत हो जाती है, तब तुम्हारा क्या अंजाम होगा। इसलिए जरूरी है कि हम इस माहे मुबारक की कदर करें, तौबा करें और शुक्र करे कि अल्लाह की रहमत हमारे पास आ रही है।

किसी ने सही फरमाया है कि जब हम काबा शरीफ में जाते हैं तो अल्लाह की रहमत हमको वहां मिलती है। मगर यह माहे मुबारक ऐसा है हम तक चलकर अल्लाह की रहमत आ रही है। इसीलिए आप से गुजारिश है कि इस महीने की कदर करें।

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रोजा रूहानी ताकत

अल्लाह के रसूल मैं यह भी इरशाद फरमाया के रोजा शहवत को कंट्रोल करता है। मेरे गय्यूर नौजवान और साथियों को शहवानी जिन्दगी एक हैवानी जिन्दगी है। अगर आप के पास इस्तेतात है तो शादी करो, अगर नहीं है तो कसरत से रोजा रखो। इसलिए के रोजा तुमको उस शैतानी रास्ते पर जाने से रोकता है। अल्लाह के रसूल के हदीसों को याद करिये। रोजा रखने से अल्लाह हमारी रूहानी ताकतों को अता करता है। हम दिन भर रोजा रखते हैं और उसमें हमको एक ताकत मिलती है।

हम यह भी देखते हैं कि आज नाजुक रिश्तो को पामाल कर दिया जा रहा है। इन्सान दो टांगों का जानवर बनकर ऐसी-ऐसी गिरी हुई हरकतें करता है, समाज में इतनी बुराइयां होती है कि हमारा सर शर्म से झुक जाता है। कैसे इन्सान नाजुक रिश्ते को भी पामाल कर देता है? मेरी आपसे गुजारिश है कि आप अल्लाह के रसूल के हदीसों पर गौर करें।

रसूल अल्लाह ने अपने हदीस में यह भी इरशाद फ़रमाया है कि रोजा और क़ुरआन अल्लाह की बारगाह में शिफाअत (कृपा) करेगा। जब हिसाब किताब का (कयामत) दिन होंगा तर रोजा अल्लाह से अर्ज करेगा, या अल्लाह मैंने दिन भर इसको खाने से दूर रखा, यह भूखा था और इसने अपने आप को गुनाहों से दूर रखा। तू उसके हक में मेरी शिफाअत को कबूल फरमा।

कुरआने करीम अल्लाह की बारगाह में अर्ज करेगा कि या अल्लाह मैंने इसको रात भर राहत से और अपने बिस्तर से दूर रखा, इसे नींद से दूर रखा, तू  इसके हक में मेरी शिफाअत को कबूल फरमा। तो अल्लाह रोजा और क़ुरआन के हक में उसे कुबूल फरमायेगा।

हदीस में आया है कि सहरी एक मुबारक नाश्ता है। सहरी को हमारे नामे ए आमाल में तौला जायेंगा। हर खाने का हिसाब किताब होगा मगर याद रखिये सहरी एक ऐसी चीज है जिसको हमारे नामे आमाल में तौला जायेंगा। इसलिए सहरी जरूर करें। इसको अपनी हिमाकत और अपना बड़प्पन मत समझिए कि मैं सहेरी नहीं करके भी रोजा रखूंगा। आपको सहरी करना जरूरी है क्योंकि हम अल्लाह के रहमत से मेहरूम नहीं कह सकते।

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लॉक डाउन का अमल करे

रमजान में पूरे रोजे रखे, फर्ज नमाजों को अदा करें। क़ुरआने करीम की तिलावत करें। लॉक डाउन में मुफ्तीयों ने यह फैसला लिया है और हम तमाम से गुजारिश की है कि हम अपने घरों में ही तरावीह की नमाज को अदा करेंगे।

आप जानते हैं कि पूरे वतन में मस्जिदों में जमात से नमाज नहीं हो रही है। जुमे की नमाज भी सिर्फ 5 लोग अदा कर रहे हैं। इसलिए हमको और आपको हमारे जिम्मेदारान के इस बात की इज्जत करनी चाहिए और उसको कबूल करना चाहिए कि हम इस माहे मुबारक में तरावीह की नमाज़, या फिर फर्ज नमाज़ हो, या जुमे की नमाज हो – वह हम अपने घर में अदा करेंगे।

मेरी गुजारिश है कि तरावीह नमाज के लिए मोहल्ले के 10-15 लोग किसी एक बड़े घर में जमा होकर ग्रुप की शक्ल के नमाज अदा मत करे। यह सरासर सोशल डिस्टेंसिंग के खिलाफ होगा। यह हमारे उलेमाओं के फैसले के खिलाफ होंगा।

अगर आपको घर में नमाज भी पढ़ना है और अगर आपके पास हाफिज ए क़ुरआन भी है तो दूर-दूर रहकर नमाज ए तरावीह अदा करें। मगर एक जगह पर इकट्ठा होकर नमाज को अदा ना करें। इससे यह कोरोना वायरस फैल सकता है। अब तक हमारे मुल्क में कई हजार लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं। अफसोस बात है के कई (700) लोगों की मौत हो चुकी है। इसलिए मेरी गुजारिश है कि इन तमाम चीजों पर अमल करें।

कसरत से दुआ करें इस माहे मुबारक से एक-एक अहमियत को समझें।

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