वैश्विक स्तर पर जिस प्रकार से औरंगाबाद शहर ऐतिहासिक तथा औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है उसी प्रकार मध्ययुग में इसी शहर में स्थित ‘ख्वानकाह’ पनचक्की को अंतरराष्ट्रीय स्तर का आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र माना जाता था।
जीवन मार्ग की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस केंद्र में अफगान, तुर्किस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब, रूस तथा पश्चिम एशिया से अनेक व्यक्ति यहां प्रवेश पाते थे। शहर के मध्य में स्थित यह जगह आज भी अपनी विशाल विरासत को संजोए खडी हैं। सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से पैदल दुरी पर यह जगह हैं।
मध्ययुग में पनचक्की को एक ख्वानकाह (आश्रमशाला, मठ तथा गुरुकुल) का दर्जा प्राप्त हुआ था, इसमें करीब 400 व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करते थे। उनके खान-पान तथा निवास का इंतजाम ख्वानकाह में ही मुफ्त में किया जाता था। आज भी पनचक्की में इसके अंश उपलब्ध है।
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बाबा मुसाफिर शाह ने किया निर्माण
यह आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र बाबा शाह मुसाफिर के नियंत्रण में 17वीं शताब्दी के उत्तर काल में शुरू किया गया। बाबा शाह मुसाफिर का असली नाम मुहंमद आशूर था। उनके माता-पिता ने यह नाम उनके लिए रखा था।
लेकिन बाबा ‘मुसाफिर शाह रहमतुल्लाह’ के नाम से परिचित रहे। बाबा तुर्किस्तान स्थित बुखारा क्षेत्र के ‘गझदवान’ के रहवासी थे। मानवी जीवन का रहस्य पाने के लिए वे अपना मूल निवास स्थान छोड़कर कश्मीर चले आए। यहां पर वह हजरत बाबा शाह सईद पलंग पोश नक्शबंदी के संपर्क में आए तथा उनके चरित्र तथा आचरण से प्रभावित हुए। इसलिए भविष्य में उनका मुरीद बनकर उन्होंने अपना कार्य प्रारंभ किया।
बाबा मुसाफिर शाह को एक टोपा और एक वस्त्र हजरत पलंग पोश ने भेट किया और उन्हें मुसाफिर नाम से संबोधित किया। तब से मुहंमद आशूर ‘बाबा मुसाफिर शाह’ के नाम से पहचाने जाने लगे। बाबा मुसाफिर शाह ने हजरत पलंग पोश के साथ दो बार पवित्र हज यात्रा की। इस यात्रा से वापस आते समय बाबा मुसाफिर शाह भारत में बंगाल, उड़ीसा, हैदराबाद से औरंगाबाद पहुंचे तथा यहां पर ही उन्होंने अपना स्थाई निवास स्थान बनाया।
औरंगाबाद की प्रसिद्ध पनचक्की उनकी ही देन है। यहां पर उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र शुरू किया। दुनियाभर के अनेक मुल्कों में आध्यात्मिक शिक्षा पाने के लिए अनेक व्यक्ति बाबा के पास ख्वानकाह में आते थे। शिक्षा पूरी होने के बाद बाबा मुसाफिर शाह ने बताए हुए राह के राहगिर बनते थे।
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पनचक्की का निर्माण
शिक्षा केंद्र में मुरीदों (शिष्य) के सुविधा के लिए बाबा मुसाफिर ने अनेक योजनाए बनायी थी। जिसमें मदरसा, कचहरी, मस्जिद, ख्वानकाह तथा अनाज पीसने के लिए पनचक्की का समावेश था।
बाबा मुसाफिर का औरंगाबाद में आगमन हुआ तब यहां पर मुगल सम्राट औरंगजेब तथा निजाम उल मुल्क की हुकूमत का प्रभाव था। बाबा यहां पर आने के बाद अनेक उच्च पदस्थ, प्रसिद्ध व्यक्ति उनका आशीर्वाद पाने के लिए ख्वानकाह में आते थे। इसमें मुगल सम्राट औरंगजेब, निजाम उल मुल्क, सरदार तुर्कताज खान, जमील बेग खान आदि का समावेश था। मुगल सम्राट औरंगजेब की बाबा पर बहुत श्रद्धा थी।
इस आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र में प्रशिक्षणार्थी छात्रों के लिए तथा आसपास के निवासियों के लिए बाबा ने अनेक सुविधाएं उपलब्ध की। सम्राट औरंगजेब, शहजादा आजमशाह, दीवान जमील बेग खान, तुर्कताज खान आदि ने उन्हें सहयोग दिया।
बाबा मुसाफिर शाह ने पनचक्की के निर्माण के लिए जटवाड़ा के पहाड़ों में स्थित हरसूल तालाब क्षेत्र से लेकर पनचक्की तक 4 मील की जमीन के नीचे मिट्टी से बने खपरैल नालिका द्वारा पानी उपलब्ध कराया।
पनचक्की स्थित एक दीवार पर उसे प्रवाहित कर के नीचे एक हौज में उतारा। यह पानी एक सुगम संगीत की तरह हौज में नीचे गिरता है।
इस पानी के तेज बहाव पर यहां की आटे की चक्की चलाई जाती थी। जिससे अनाज पीसकर शिष्यों और फकिरों को खाना खिलाया जाता था। इसी तरह आसपास के निवासियों को अनाज पीस कर दिया जाता। बाबा की यह एक अनोखी देन है। आज के अभियांत्रिकी के कुशलता भी इस आश्चर्यजनक पाइपलाइन की खोज करने से नाकाम रही है।
पनचक्की की पश्चिम दिशा में एक खूबसूरत मस्जिद बनाई गई है। इस पर किया गया प्लास्टर हैरतअंगेज करने वाला है।
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विशाल हौज का निर्माण
मस्जिद के सामने 162 फीट लंबा और 31 फीट चौड़ा तथा 4 फीट गहरा एक पानी का खूबसूरत हौज निर्माण किया गया है। इस हौज के मध्य में पानी की कारंजे की योजना भी है। कुल 1,28,500 गैलन पानी की हौज में क्षमता है। अतिरिक्त पानी हौज के ऊपर से पास के ‘खाम नदी’ में एक झरना के समान गिरता है। यह एक विलोभनीय दृश्य नजर आता है।
इस हौज की एक विशेषता रही है कि उसका निचला स्तर एक कमरे की छत के समान है। उसके नीचे एक कमरा है। उसका क्षेत्र 165 फीट लंबा, 4 फीट चौड़ा है। इस हौज की एक और जाने के लिए पश्चिम दिशा की ओर से एक पथ मार्ग है।
इस पनचक्की के क्षेत्र में मध्य में छोटा सा खूबसूरत बगीचा है। बगीचे के दोनों दिशा में दो बड़े कमरे हैं। इसे ख्वानकाह कहते हैं। दक्षिण दिशा में बाबा का एक छोटासा वास्तु संग्रहालय और पुस्तक संग्रहालय भी है। पश्चिम दिशा का कमरा बाबा के मुरीदों के लिए तथा यहां पर आने जाने वाले व्यक्तियों के भोजन व्यवस्था के लिए है।
मस्जिद में के पीछे बाबा मुसाफिर शाह, हजरत शाह सईद तथा उनके शिष्यों की कबरें है।
बाबा का देहांत
बाबा मुसाफिर शाह का 1714 ईसवीं में देहांत हुआ तथा बाबा शाह सईद का भी 1699 में देहांत हुआ था। उनकी मृत्यु के बाद उनके मुरीद बाबा शाह अहमद ने इनका कार्य आगे 50 सालों तक जारी रखा।
बाबा शाह अहमद के काल में पनचक्की का जो अधूरा काम था वह पूरा हुआ। 1761 में उनका देहांत हुआ। बाबा मुसाफिर शाह के परंपरा के अंतिम मुरीद बाबा शाह गुलाम महमूद थे। इनका 1930 में ईसवी में निधन हुआ।
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पनचक्की की जहांजिरी
पनचक्की स्थित आध्यात्मिक शिक्षा केंद्र को सहायता के लिए अलग-अलग बादशाहों ने 10 गांव जहांगिरी स्वरूप इनाम दिए थे। इनमें से प्रमुख गांव कसाबखेड़ा (मोअज्जमजाह), मलकापुर, (अब्दुल फतह नसीरुद्दीन), वानेगांव (अमीरुद्दौला हैदर खान), केसापुरी (निजामुद्दौला), शिवना (निजाम उल मुल्क), आनंद (अहमदशाह बहादुर शाह गाजी)।
आज की स्थिति में यह जहांगिरी पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इस जहांगिरी के बदले सरकार की ओर से 2,075 रुपये तीन माह में एक बार दिए जाते हैं।
पेशवा का योगदान
मराठाकलीन पेशवा बादशाहों ने पनचक्की स्थित यह शिक्षा केंद्र के आर्थिक मदद के लिए नासिक जिले में स्थित 2000 एकड़ जमीन इनाम स्वरूप दी थी। आज इसमें से 1000 एकड़ जमीन सरकार के सामाजिक वनीकरण लिए कब्जे में है। तथा बाकी 1000 एकड़ जमीन स्थानीय आदिवासी तथा अन्य लोगों ने कब्जा किया है। इस संबंध में यह मामला न्यायालय में जारी है।
इस तरह औरंगाबाद के ऐतिहासिक पनचक्की मध्ययुग में निर्माण किए गए लाल किला, ताजमहल, बीबी का मकबरा आदि की तरह महत्वपूर्ण धरोहर है।
जाते जाते :
- ज्योतिष शास्त्र के विद्वान थें सूफी संत मुंतोजी खलजी
- ख्वाजा शम्सुद्दीन गाजी – दकन के चिश्ती सूफी संत
लेखक औरंगाबाद स्थित इतिहासकार हैं। खुलदाबाद स्थित चिश्तिया कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रमुख रहे हैं। दकन के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर पर उन्होंने काफी शोधकार्य किया हैं।