निज़ाम हुकूमत में कैसे मनाया जाता था रमज़ान?





दिल्ली, अलीगढ़, लखनऊ, आगरा के साथ दकन में हैदराबाद के रमज़ान को भी ऐतिहासिक महत्त्व है। कुतुबशाही के दौर से इस शहर में रमज़ान कि विशेष संस्कृति के प्रमाण मिलते हैं। औरंगजेब के निधन बाद निज़ाम मीर कमरुद्दीन खान ने औरंगाबाद मेंममलिकत ए आसिफीयाकि बुनियाद रखी। जिसके बाद हैदराबाद के रमज़ान में काफी परिवर्तन हुए, उसी इतिहास पर एक नजर…

हैदराबाद का रमज़ान और उसके विशेष ख़ानपान समुचे भारत में काफी मशहूर है। आसिफीया हुकूमत के दौर से ही यहां के रमज़ान कि अपनी अलग खासियत रही है। पहले निजाम मीर कमरुद्दीन अली खान के राज्यकाल से हैदराबाद में मनाए जाने वाले रमज़ान पर ईरानी संस्कृति प्रभाव नजर आता है। निज़ाम सत्ता जैसेजैसे उत्कर्ष को पहुंची रमजान कि शान और शौकत भी बढती रही।

हैदराबाद में रमज़ान के महिने में कई मिठाईयां बनाई जाती है, जिनपर ईरानी खाद्य संस्कृति का प्रभाव नजर आता है। रमज़ान में यहां के बाजारों में मिलने वाले कपडों, गहनों के साथ अन्य सामाजिक परंपराओं से भी ईरानी संस्कृति की झलक नजर आती है।

पहले निज़ाम के समय ईद का चांद नजर आते ही आतषबाजी के जरीए और तोपें चलाकर खुशीयां मनाई जाती थी। गली मोहल्लों में सरकार कि तरफ से ऐलान किया जाता था। सरकार कि तरफ से अवाम को कई सहुलते मिलती थी, जिसकी जानकारी इसी ऐलान के जरीए लोगों को होती।

कई बार सरकार कि और से शहर कि आम अवाम के लिए हैदराबाद के अलगअलग इलाके में दावत ए आमका आयोजन किया जाता। प्रथम निज़ाम मीर कमरुद्दीन, दूसरे निज़ाम अली, तृतीय सिकंदर जाह तक हुजुर ए निज़ाम खुद इस दावत में शिरकत करते और अवाम का हाल जानते थे।

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निज़ाम परिवार और रमज़ान

इसके बाद सुरक्षा के कारणों से इन दावतोंहुजुर ए निज़ामकि शिरकत बंद हो गई। मगर चौमाला पॅलेस(Chaumala Palace) में हैदराबाद शहर के विद्वानों, उलमाओं, दरगाह के मुलाजीमों तथा मशहूर लोगों के लिएदावत ए खासका आयोजन होता था। जिसमेंहुजुर ए निज़ामके परिजन भी शामील होते थे।

देर रात तक चलनेवाली इस दावत में तकरीरों का भी आयोजन किया जाता था, जिसके लिए कई बार विदेश से मेहमानों को आमंत्रित किया गया था। इसी दावत में निज़ाम परिवार अपने मित्रवर्ग को कीमती तोहफे देकर रमज़ान कि मुबारक बात पेश करता।

दूसरे शासक निज़ाम अली के अहद तक ईद के दिन निज़ाम परिवार के लोग ईदगाह कैसे पहुंचते थे, इस विषय में कुछ खास जानकारी नहीं मिलती। मगर तिसरे निज़ाम के वक्त के कुछ खत हमें इस बारे में काफी अहम जानकारी देते हैं।चौमाला पॅलेससे सुबह कि नमाज के कुछ देर बाद निजाम कि सवारी ईदगाह कि तरफ निकलती थी, जिसके सामने शाही शहनाईवाले सबसे आगे होते थे।

उसके बाद हथियारबंद सिपाहीयों कि एक टुकडी परेड करते हुए चलती थी। उनके पिछे निजाम हुकूमत के वजीर एक विशेष घोडे पर बैठे होते थे, जिनके सामने आसिफीया हुकूमत का परचम लेकर एक सिपाही पैदल चलता था। वजीर के पिछे उनके खास सिपाही तैनात रहते, जो उनकी सुरक्षा भी करते थे।

इसके बाद उलमा (विद्वजन), अमीर (विभागों के प्रमुख) और शहर के कुछ खास लोगों का एक जत्था रहता था। इसके पिछेहुजुर ए निजामएक खास हाथी पर बैठे होते थे। उनके हाथी के पिछे निज़ाम परिवार के अन्य सदस्यों के हाथी भी चलते थे। इन हाथीयों का जत्था जैसे ही खत्म होता, उसके पिछे 500 घुडसवार सैनिकों कि एक टुकडी रहती थी।हुजुर ए निज़ामकि यह सवारी ईदगाह पहुंचने के लिए तकरीबन डेढ से दो से घंटे लगते थे।     

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शहर का इंतजाम

लोगोंसहरी और इफ्तारके वक्त कि जानकारी देने के लिए हैदराबाद में छठे निज़ाम मीर महिबूब अली खान के दौर में तोपें दागी जाती थी। उनके बाद इसमें बदलाव हुआ और सायरन बजाया जाने लगा। इस महीने के लिए बाजारों मे खास इन्तजाम किये जाते। होटल और मिठाई की दुकानों पर परदे लगाए जाते। पत्थरगट्टी और लाड बाजार कि दुकानें रातभर खुली रहती थी। सहरी के वक्त फकिरसहरी करो उठो रमजान के रोजेदारोंजैसी कव्वालीयां गाते घुमते थे।

मशहूर इतिहासकार इकबाल जहां कदीर अपनी किताब हैदराबाद कि मुश्तरका तहज़ीबमें लिखती हैं, रोज़े खोलने के लिए खानेपिने कि चिजें बांटने के लिए कुंभारों के पास से मिट्टी के बर्तन खरीदे जाते थे। जिसमें खजूर, उबले हुए चने की दाल जिसपर काली मिरची और नमक छिडका हुआ रहता था। साथ कुछ मेवे और जाम भी दिए जाते थे। मोहकमा ए उमुर ए मजहबीकि तरफ से सारे ईदगाह में सारे इंतजाम किए जाते थे।

कदीर आगे लिखती हैं, ईद कि नमाज़ के मौके पर पढे जानेवाले खुतबे (प्रवचनों) में बादशाह का नाम लिया जाता था। खुतबा पढनेवाले खतीबको किमती शाल उडायी जाती थी और ईदगाह में बादशाह को 21 तोपों कि सलामी दी जाती। नमाज के बाद ईदगाह से बाहर निकलते ही आसिफीया हुकूमत (निज़ाम राजवंश) के परचम (झंडे) को पुलिस कि तरफसे सलामी दी जाती। ईद कि नमाज़ के बादअहकाम जुलुसनिकाला जाता, जिसमें शामील होकर लोग अपने घरों को लौटते थे।

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