हैदरअली के बाद टिपू सुलतान ने मैसूर के विकास को चरम पर पहुंचाया। किसानों, बुनकरों, व्यापारियों के लिए कई कानून बनाए गए। किसानों का उत्पाद विश्व के बाजार में पहुंचाने के लिए टिपू ने विशेष प्रयत्न किए।
राज्य में 1797 में दो शक्कर (चिनी) कारखाने खोले गए। किसानों कि सहाय्यता के लिए बँकों की स्थापना भी कि गई। सरफराज अहमद ने उस्मानिया विश्वविद्यालय में दिए भाषण का यह तिसरा और अंतिम भाग –
हैदरअली (Hyder Ali) कि मौत ने रणस्थल से एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ती को अलग कर दिया। अब रंगमंच पर नवीन नायकों का पदार्पण हुआ। शीघ्र ही हितों और राजनीतिक संबंधो का परिवर्तन आरंभ हो गया।
मराठे मैसूर में अपने प्रदेश की पुनर्प्राप्ती के लिए व्यग्र हो उठे। पिता कि मृत्यू के बाद सत्ता में आये टिपू सुलतान (Tipu Sultan) को तख्त के साथ राजनीतिक चुनौतीयाँ विरासत मिली थी। हैदरअली कि महत्त्वकांक्षा ने खडे किए शत्रुओं से झुंझना उसकी अपरिहार्यता थी। मगर इसके बावजूद अपनी प्रजा के हितों के प्रति वह दक्ष था।
पहले दो भाग
- अंग्रेजों के विरुद्ध हैदरअली और टिपू सुलतान का संघर्ष
- हैदरअली ने बनाया था भारत का पहला जातिप्रथाविरोधी कानून
राजा का घोषणापत्र
टिपू ने सत्ता में आते ही एक ‘इकरार नामा’ (Manifesto) प्रकाशित किया। जिसमें उसने जनता के अधिकारों का उदघोष किया। इस इकरारनामे ने प्रजा के हित में परिवर्तन की भूमिका रखी। इसमें टिपू सुलतान ने कहा हैं –
1) मैं टिपू सुलतान मैसूर रियासत कि ‘सल्तनत ए खुदादाद के हाकिम की हैसियत से इस बात को अपने पद का फर्ज समझता हूँ कि धर्म और जाति में फर्ख किए बगैर अपनी जनता कि इख्लाकी इस्लाह (व्यावहारिक सुधार) करू।
2) उनकी खुशहाली और आर्थिक व सियासी तरक्की के लिए हमेशा कोशिश करू।
3) आखिरी दम तक सल्तनत ए खुदादाद कि एक-एक इंच जमीन की रक्षा करुंगा।
4) मुसलमानों में धार्मिक व स्वाभाविक बुनियादों पर सुधार के लिए विशेष कदम उठाऊंगा।
5) अंग्रेजों को इस मुल्क से बाहर करने के लिए जो हमारे सबसे बडे दुश्मन हैं, समुचे हिन्दुस्तान के लोगों को एकजुट करुंगा।
6) मजलूम और बेबस जनता को जागिरदारों और जमींदारों के जुल्म से छुटकारा दिलाउंगा और इन्साफ कि बुनियाद पर हर किसी के साथ एक जैसा बर्ताव करुंगा।
7) देश के नागरिक के बीच धर्म, जुबान, और वर्ग का जो फर्क और नफरत है उसे दूर कर देश की रक्षा के लिए उन सबको एकजूट करुंगा।
8) जरुरत के वक्त देश की रक्षा के लिए गैर हिन्दुस्तानियों से सहयोग लेने के लिए प्रयास किए जायेंगे। मैसूर रियासत में गैर हिंन्दुस्तानियों के कारोबार और उनके पदार्थ पर पाबंदी लगारकर खुद यहां के व्यावसायिकों की तरक्की और खुशहाली की फिक्र करुंगा
पढ़े : हैदरअली ने बनाया था पहला ब्रिटिशविरोधी महासंघ
पढ़े : दक्षिण में तीन दशक तक औरंगजेब मराठो सें लोहा लेता रहा
शुद्ध चरित्र का राजा
सत्ता कि बागडोर हाथ लेते ही टिपू सुलतान ने प्रकाशित किए इस इकरार नामे से पहले एक अन्य में उसने अपने पिता के निर्देशानुसार लिखा था। इस इकरार नामा कि तिथी ज्ञात नहीं हो सकी।
मगर इसमें लिखी बातों से यह कहना गलत न होगा कि यह इकरार नामा उसने अपने राजनैतिक सफर कि शुरुआत करने से पहले लिखा होगा। जिसमें उसके राजनैतिक ध्येय, कार्यप्रणाली और विचारों का प्रतिबिंब है। इस इकरार नामे की एक प्रतियां लन्दन के इंडिया ऑफीस लायब्ररी में उपलब्ध है, जिसमें टिपू सुलतान ने लिखता है –
1) अल्लाह पाक की मर्जी के बगैर कोई काम नहीं करुंगा वरना जो सजा उचित हो दी जाए।
2) अगर सरकारी खजाने में चोरी या गबन करुं तो फांसी कि सजा दी जाए।
3) झुठ और धोकेबाजी पर फांसी की सजा दी जाए।
4) पिता की इजाजत के बगैर किसी से कोई तोहफा कबूल नहीं करुंगा वरना नाक काटकर शहर बदर कर दिया जाए।
5) हुकूमत के कामों के अलावा किसी और मामलों में किसी से उलझू या किसी को धोखा दूं तो फांसी का हकदार रहुंगा।
6) अगर हुकूमत कि तरफ से मेरे जिम्मे कोई काम सौंपा जाए या मेरी कमान में फौज दी जाए तो उन संबंधित लोगों कि सलाह से ही अपनी जिम्मेदारी को पूरा करुंगा जिन्हे सरकार की तरफ से इसके लिए तैनात किया गया है, ऐसा न होने कि सूरत में फांसी का हकदार रहूंगा।
7) किसी से खत व खिताबत या लेन देन आपकी तरफ से तैनात सलाहकारों की राय से करुंगा।
8) यह कुछ वाक्य अपनी मर्जी से लिख कर इसको याद कर रहा हूं। साथ-साथ इसका भी इकरार करता हूँ कि सभी काम उसी के अनुसार करुंगा वरना जो सजा उचित समझें दी जाए।
पढ़े : मुघल शासक बाबर नें खोजी थी भारत की विशेषताएं
पढ़े : हसन गंगू कैसे बना नौकर से बहामनी का सुलतान?
एक अच्छा कुटनितिज्ञ
हैदरअली के राज्य को मिला नया वारीस न सिर्फ राजनीतिक दृष्टी से पात्र था बल्की उसका नैतिक चरित्र भी उतना ही सशक्त था। इसी के चलते टिपू सुलतान ने अपने पिता के राज्य को प्रगती कि नई उंचाइयों तक पहुंचाया। अपने पिता के मौत के बाद उसने पिता द्वारा शुरु किए हुये दुसरे मैसूर युद्ध के परिणाम अपने पक्ष में कर लिए। मंगलोर संधी के साथ वह अंग्रेजों को अपनी शर्ते मनवाने में कामयाब रहा।
11 मार्च 1784 को हुई इस संधी में तीन महत्त्वपूर्ण शर्ते थी –
1) दूसरी जंग से पहले जो इलाके जिनके कब्जे में थे वह उन्हे वह दोबारा मिल जाएं।
2) दोनो पक्षों के कैदियों को फौरन रिहा कर दिया जाए।
3) हस्ताक्षर करने वाले एक दूसरे के दुश्मनों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी तरह मदद नहीं करेंगे और न एक दूसरे के दोस्तों और समर्थकों के खिलाफ जंग में शामिल होंगे, या मदद करेंगे।
इस संधी के बाद भी टिपू को राहत न मिली। इसके तुरंत बाद वह मराठा और निजाम विरोधी युद्ध कि चपेट में आ गया। यह युद्ध सन 1787 तक चला। एक दूसरे के इलाके वापस करने, टिपू को पेशवा हमेशा बादशाह कहकर संबोधित करेंगे, तथा पेशवाओं को 30 लाख खिराज देने जैसी शर्तों को मान्य करवाने के बाद संधी पर हस्ताक्षर किए गए।
इस युद्ध के बाद टिपू को थोडी सी राहत नसीब हुई तो उसने राज्य में सुधार और नवनिर्माण कार्यक्रम हाथ में लिए। जिसके तहत ‘मसजिद ए आला’, ‘जामिया अल उमुर विश्वविद्यालय’ और कई कारखानों कि स्थापना कि गई। जिसके बाद टिपू ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान दिया। उसने अपनी राजनीति और कुटनीति का रुख मोड लिया।
इसी दौरान ‘उस्मानिया खिलाफत’ (Ottoman Empire) से चर्चा करने हेतू टिपू ने अपना एक प्रतिनिधी मंडल भेजा। अंग्रेजविरोधी महासंघ के गठन के लिए भी उसने प्रयास किए, मगर नाकाम रहा। टिपू के राहत का यह दौर सन 1790 में उस वक्त खत्म हुआ जब अंग्रेजों कि और से तिसरी मैसूर जंग कि पहल कि गई। यह जंग तकरीबन दो वर्ष तक चली। 23 फरवरी 1792 को श्रीरंगपट्टणम के समझौते के साथ यह जंग खत्म हो गई।
पढ़े : शहेनशाह हुमायूं ने लगाया था गोहत्या पर प्रतिबंध
पढ़े : ‘हिन्दोस्ताँनी राष्ट्रीयता’ का सम्राट अकबर था जन्मदाता
गद्दारों से मिली शहादत
जंग के परिणाम टिपू के विरोध में निकले। परिणामतः टिपू को अपना आधा राज्य और 3 करोड रुपये अंग्रेजो को देने पडे। साथ ही शर्तों के पूरा होने तक जमानत के तौर पर उसके दो बेटों को अंग्रेजो के पास रखना पडा। सन 1794 तक उसके दोनो बेटे अंग्रजों के पास ही रहे।
टिपू सुलतान पर इस जंग का बहोत बुरा असर पडा। इस युद्ध से जो क्षती हुई उसकी पुर्ती करवाने हेतू टिपू सुलतान ने कारोबार कि तरफ ध्यान दिया। उसने राज्य और अन्य देशों में कई व्यापारी कोठियां खोली, कारखानों की स्थापना कि और सिंचाई को प्रोत्साहन देने हेतू बांध डालने कि योजना का भी उदघाटन किया।
एक ओर टिपू अपने राज्य में कई बदलाव कर रहा था तो दूसरी ओर इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पिट भारत कि राजनीति से काफी अस्वस्थ था। उसने कर्नल वेल्जली को गवर्नर जनरल बना कर भारत भेज दिया। वेल्जली ने टिपू से सिधे जंग करने कि बजाए गद्दारों कि खोज की।
जब उसे मीर सादिक और पंडित पुर्णय्या जैसे गद्दारों का पूरा समर्थन मिला तो उसने मैसूर के खिलाफ चौथी जंग का ऐलान किया। गद्दारों कि वजह से जंग में अंग्रेजो को हर कदम पर कामयाबी मिलती गई। और इसी जंग में टिपू सुलतान को 4 मई 1799 के दिन शहादत नसीब हुई। उस समय उसकी उम्र केवल 48 साल थी।
पढ़े : क्या हैदरअली ने वडियार राजवंश से गद्दारी की थी?
पढ़े : टिपू सुलतान रोज नाश्ते पहले मंदिर क्यों जाता था?
एक राज्यकर्ता के रुप में
टिपू सुलतान ने हैदरअली के बाद ‘सल्तनत ए खुदादाद’ में कई नये-नये प्रयोग किए। प्रजा कि प्रगती को ध्यान में रखते हुए उसने अनेक योजनाओं पर काम किया। जैसे की पहले बताया जा चुका है, श्रीरंगपट्टणम के करीब उसने कावेरी नदी पर बांध डालने के काम का उदघाटन किया और ऐलान किया कि जो इस बांध के पानी से खेती करेगा उसे आधा लगान माफ कर दिया जाएगा।
सिंचाई के विकास और कृषि उत्पादनों के वृद्धी के लिए उसने अनेक प्रयास किये। बँको कि स्थापना कर किसानों को अर्थसहाय्यता उपलब्ध कराई। लालबाग कृषि प्रयोगशाला की स्थापना कर उसने अनाज के उपज बढाने पर संशोधन करने का प्रयास किया। उसने मालगुजारी में काफी बदलाव किये, इस परिवर्तन ने जनता को काफी राहत पहुंचाई।
टिपू ने नकद लगान वसुलने कि व्यवस्था शुरु की। लगान जहां फसल के आधार पर तय की जाती वहाँ हर साल जमीनों की पैमाईश की जाती थी। जहां सोने चाँदी, ताम्बे के सिक्के दिए जाते थे वहाँ बाजार में प्रचलित दरों पर कबूल किए जाते थे। यह गलाये नहीं बल्की जमा करके रखे जाते थे।
जमीन लगान पर देने की प्रथा खत्म कर दी गई और हुकूमत ने किसानों से सीधे लगान वसूलने की व्यवस्था शुरु की सरकारी हाकिमों को सख्त ताकीद थी कि रैयत को परेशान न करें, जिस वजह से अफसरों को करों की वसुली के समय उन्हें शान्तिपूर्ण उपाय अपनाने पडते थे। बाकी समय में उन्हें किसानों की रोजमर्रा की जिन्दगी में दखल देने की इजाजत नहीं थी।
पढ़े : मुघल शासक बाबर नें खोजी थी भारत की विशेषताएं
पढ़े : औरंगजेब दक्षिण में तीन दशक तक मराठो सें लोहा लेता रहा
औद्योगिककरण कि शुरुआत
हुकूमत का तय किया हुआ लगान मुनासिब और हल्का होता था। आम लोगों कि जिन्दगी से वाकिफ होने के लिए टिपू सुलतान ने राज्य में जनगणना करवाई। काझी को दिए गए हुक्मनामा में उसने उन्हे जनगणना कि जिम्मेवारी सौंपी और जनसंख्या के साथ रोजगार कि जानकारी लेकर लिखित रुपसे सरकार को सौंपने का आदेश दिया।
राज्य (Kingdom of Mysore) में चिनी उद्योग के दो कारखाने ‘चिन्नपट्टण’ और ‘श्रीरंगपट्टणम’ के करीब खोले गये। टिपू सुलतान ने राज्य और राज्य के बाहर पट्टण, सलामाबाद, वेफीमंगल, बेंगलौर, कोलार, मुखगल, नागपूर, मस्कत वगैरा प्रमुख शहरों समेत तकरीबन 30 शहरों में कारखाने शुरु किए थे। जिसमें चिनी मिट्टी के बर्तन, कांच के सामान, रेशमी कपडा, मसाले और चन्दन कि लकडी पर प्रक्रिया, घडीयां, कागज, हाथी दांत से वस्तुओं कि निर्मिती कि जाती रही।
जहाज बनाने के कारखाने खोले गए। अनेक आधुनिक जहाज कि निर्मिती आखरी दौर तक होती रही। टिपू का समृद्ध नौसेना एक ख्वाब था जिसकी वजह से उसने ‘सल्तनत ए खुदादाद’ के सेकडों जहाज समंदर में उतारे। उसके पास 20 विशाल युद्धनौका और निरिक्षण हेतू बनाए गए 20 जहाज थे। उसमें से तीन जहाज पर 72 तोपें और अन्य तीन जहाज पर कूल 62 तोपें थी। अपनी सेना में संवाद हेतू उसने ‘फौजी अखबार’ नामक उर्दू अखबार निकाला, जिससे एक नया बदलाव देखने को मिला।
पढ़े : मुस्लिम शासकों ने महामारी से प्रजा को कैसे बचाया?
पढ़े : जब महात्मा गांधी अफ्रिका में हुए ‘क्वारंटाईन’
मिसाईल मैन
टिपू सुलतान के दौर में कई नये-नये यंत्रों कि खोज की गई। जलशक्ती पर आधारित यंत्र के जरिए हथियार निर्मिती के कारखाने में बंदूक कि नली में छेद किया जाता था। भारत में उस समय इस तरह का यह पहला अविष्कार था। नये तरिके की बंदुके बनाने के लिए टिपू के प्रयास हमेशा जारी रहे। जिसके परिणामस्वरुप ‘अग्नेय अस्त्र’ जिसे देश का पहला रॉकेट मिसाईल कहा गया, वजूद में आया।
तारामंडाईपेठ में उसने रॉकेट निर्मिती का एक कारखाना भी स्थापित किया था। इस रॉकेट के प्रयोग के लिए उसने कुशन ब्रिगेड कि स्थापना की, जिसमे 200 प्रशिक्षित रॉकेट लाँचिंग का ज्ञान रखनेवाले सैनिक थे। सेना में भी टिपू अपने पिता कि तरह नये-नये प्रयोग करता रहा।
हिन्दू धर्म का संरक्षक
अपने पिता कि तरह टिपू सुलतान ने हिन्दू प्रजा से दोस्ताना संबंध बनाये रखे। मैसूर गैझेटियर के 1920 के संस्करण में टिपू ने अनुदान दिए हुए 156 मंदिरों कि सूचि दी गई है। इसके अलावा टिपू के कई पत्र मौजूद हैं, जिसमें उसने हिन्दुओ से भाईचारे कि बात कही है।
हिन्दू पुजारी और संत हमेशा से टिपू कि जीत की कामना करते रहे। टिपू ने भी उनसे वही अपेक्षा कि, जैसा कि उसने 1791 में शृंगेरी स्वामी को पत्र में लिखा है –
“हम उन सेनाओं को दंड दे रहे हैं जिन्होंने हमारे मुल्क के खिलाफ कूच किया है और हमारी प्रजा को परेशान कर रहे हैं। आप एक धर्मप्राण और संसारत्यागी व्यक्ती हैं, चूंकी आपका कर्तव्य बहुजन कल्याण की कामना करना है, मेरी आपसे विनती है कि आप मठ के दूसरे ब्रह्मणों के साथ ईश्वर से प्रार्थना करें ताकि सभी शत्रुओं कि पराजय हो, वे भागें और हमारे मुल्क के सभी लोग प्रसन्नतापूर्वक रहें और आप मुझे अपना आशिर्वाद दें।”
अंत में यह स्पष्ट है कि सल्तनत ए खुदादाद उपनिवेशवाद विरोधी एक विचार के रुप में दक्षिण भारत में कार्यरत रहा। उस के इस विरोध कि प्रवृत्ती में कई बदलाव आये मगर किसी धार्मिक आंदोलन का रुप उसने कतई धारण नहीं किया।
जैसे कि बी. शेख अली ने इसका गौरव करते हुए लिखा है “इन दोनों के शासनकाल का आरंभ और अंत कंपनी के विरुद्ध युद्ध के साथ हुआ। 1760 से जब वेल्जली ने टिपू का विनाश न कर दिया, तब तक मैसूर लीडनहाल स्ट्रीट का आतंक स्थल बन गया था।” यही वजह है की, हैदरअली और टिपू सुलतान समुचे विश्व में उपनिवेशवाद के खिलाफ जंग के महनायक के रुप याद किए जाते रहेंगे।
(समाप्त)
जाते जाते :
* कुतूबशाही और आदिलशाही में मर्सिए का चलन
* दकन की शिक्षा नीति का नायक था महेमूद गवान
लेखक युवा इतिहासकार तथा अभ्यासक हैं। मराठी, हिंदी तथा उर्दू में वे लिखते हैं। मध्यकाल के इतिहास में उनकी काफी रुची हैं। दक्षिण के इतिहास के अधिकारिक अभ्यासक माने जाते हैं। वे गाजियोद्दीन रिसर्स सेंटर से जुडे हैं। उनकी मध्ययुगीन मुस्लिम विद्वान, सल्तनत ए खुदादाद, असा होता टिपू सुलतान, आसिफजाही इत्यादी कुल 8 किताबे प्रकाशित हैं।