मुंबई के गोखले स्मारक के आर्थिक सहायता के लिए हैदराबाद के निज़ाम के पास एक लिए खत लिखा गया। जिसके बाद संस्थान में यह यह चर्चा शुरू हुई कि किसी बाहरी संस्था को निधी देने के बजाय राज्य में इस नाम से क्यों न स्कॉलरशिप शुरु कि जाए! जिससे यहां के छात्रों को फायदा हो। सोंच विचार के बाद राज्य ने गोखले स्कॉलरशिप की शुरुआत की। जिसके बाद राज्य ने सुझाव दिया की अब बाहर निधी देने कि जरुरत नही हैं। पर निजाम नही माने, उन्होंने मुंबई में होनेवाले स्मारक के लिए उस समय 5 हजार रुपये आर्थिक सहायता प्रदान की। आज गोखले के जन्मदिन के अवसर पर इस सारी कार्रवाई पर रोशनी डालता यह विशेष आलेख –
उन्नीसवीं सदी के आखीर और बीसवीं सदी के शुरु में, गोपालकृष्ण गोखले ने भारत के राष्ट्रीय नेताओं के बीच अपना स्वतंत्र स्थान बनाए रखा हैं। हमारे राष्ट्रीय इतिहास में बहुत ही कम उम्र में एक प्रमुखता से उभरने वाले, गोखले जैसे लोग शायद ही कभी देखे जा सकते हैं। 1889 में गोखले काँग्रेस में शामिल हो गए। 1905 में जब वे अखिल भारतीय काँग्रेस के अध्यक्ष बने, काँग्रेस के सबसे कम उम्र के और पहले युवा अध्यक्ष बनने का बहुमान उन्हें मिला।
गोखले उस समय देश के जाने-माने राजनेताओं मे से एक थे। वे एक प्रख्यात संसदपटू थे और साथ ही एक शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने महसूस किया कि देश में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिए। वे मानते थे कि ज्ञान के प्रकाश में, भारतीय समाज में सामाजिक और राजनीतिक चेतना पैदा की जानी चाहिए। ऐसे व्यक्ति की मृत्यु केवल 50 साल की आयु में हुई।
जिसके बाद में मुंबई में उनके स्मृति में एक स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया। स्मारक के निर्माण के लिए हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान से वित्तीय सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया गया था।
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मदद के लिए अनुरोध
इस संबंध में की गई पूरी कार्रवाई के दस्तावेज आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के अभिलेखागार में मौजूद हैं। इन दस्तावेजों से रुबरू होने के बाद, कई बाते स्पष्ट हो जाती हैं। हैदराबाद के आसिफ़जाही राजवंश ने उदारता से बिना किसी सिफारिश के यह वित्तीय सहायता दी थी। यह पूरी घटना आसिफ़जाही शासकों और उनके प्रशासन में पारदर्शिता और सहिष्णुता का प्रतीक है। इस मामले के बारे में कुछ जानकारी इस तरह से है –
जहाँगीर बहमनजी ने गोखले मेमोरियल फंड के लिए डाक से एक खत भेजा। इसको प्राप्त करने के बाद, आसिफ़जाह (सातवें) ने 30 मई 1915 को इस संबंध में एक फरमान जारी किया। जिसमें उन्होंने हुक्म दिया कि “इस संबंध में फरीदजंग बहादुर से सलाह ली जानी चाहिए।” इस आदेश को लागू करने के लिए, फरीदजंग ने 1 जून 1915 को आसिफ़जाह की सेवा में एक अर्जी प्रस्तुत की।
जिसमें वह लिखते हैं, “जहाँगीर बहमनजी का खत और उसके साथ प्राप्त दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, श्री. गोखले के स्मारक के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान को वित्तीय सहायता प्रदान करने की सिफारिश की गई है। हालांकि, इस मामले में, ‘सदरूल मुहाम फाइनेन्स’ (वित्त विभाग प्रमुख) से परामर्श लेना उचित होगा। अगर आसिफ़जाह चाहते हैं, तो वह फाईनेन्स विभाग के प्रमुख की सलाह ले सकते हैं और इसके साथ अपने फैसले की घोषणा कर सकते हैं।”
इस आवेदन के माध्यम से फरीदजंग द्वारा दी गई सलाह के बाद, आसिफजाह ने उसी तारीख को एक आज्ञापत्र जारी किया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि, “इस बारे में मिस्टर ग्लैन्सी से सलाह ली जाए।”
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राज्य में स्कॉलरशिप शुरू करने का सुझाव
निज़ाम उस्मान अली के आदेशों के बाद, फ़रीदजंग बहादुर ने इस मामले पर मिस्टर ग्लैन्सी से सलाह ली। इसके बाद, निज़ाम की सेवा में 17 जून 1915 को एक और आवेदन प्रस्तुत किया गया। जिसमें, उन्होंने ग्लैन्सी के सलाह के साथ अपना निर्णय समीक्षा के लिए भेजा।
इस आवेदन में फरीदजंग लिखते हैं, “इस मामले में मिस्टर ग्लैन्सी कहते हैं, राज्य के बाहर एक संगठन को वित्तीय सहायता भेजने के बजाय, हैदराबाद में राज्य के लोगों के लिए स्थानीय ‘गोखले मेमोरियल छात्रवृत्ति’ स्थापित करना अधिक उपयुक्त होगा। इस छात्रवृत्ति की शर्तें स्कॉलरशिप कमेटी द्वारा निर्धारित की जायेगी। उसके बाद आसिफ़जाह की मंजूरी ली जा सकती हैं।”
फरीदजंग ने आवेदन में श्री. ग्लैन्सी की सलाह का जिक्र करते हुए कहा, “हम इससे सहमत हैं। ‘बेग करिश्मा दोकार’ याने श्री. गोखले की स्मृति को संरक्षित किया जायेगा और इससे हमारे राज्य के युवाओं को लाभ होगा। यदि आसिफ़जाह ने इस निर्णय को मंजूरी दे दी, तो स्कॉलरशिप के बारे आगे के कार्रवाई के लिए ‘सरिश्ता ए फाइनेन्स’ को आदेश दिया जा सकता है। और जहाँगीर बहमनजी को यह भी सूचित किया जायेगा कि बाहरी स्मारक के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान ने निधी देने बजाय विशेष रूप से हैदराबाद राज्य में एक ‘गोखले स्मारक स्कॉलरशिप’ स्थापित करना पसंद किया है। इसलिए हमें खेद है, हम आपको कोई धन नहीं भेज सकते।”
आसिफ़जाह ने तुरंत अपने आवेदन के माध्यम से फरीदजंग द्वारा दिए गए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। आवेदन जमा करने के बाद दूसरे दिन एक फरमान जारी किया गया। जो इस प्रकार हैं –
“सर फरीदजंग बहादुर और श्री ग्लैन्सी द्वारा दी गई एकमुखी सलाह को ध्यान में रखते हुए, एक बाहरी स्मारक के लिए निधी देने के बजाय विशेष रूप से हैदराबाद में, गोखले मेमोरियल स्कॉलरशिप के नाम पर एक शैक्षिक छात्रवृत्ति स्थापित करना उचित होगा। इस बारे में जहाँगीर बहमनजी को जानकारी देना होंगी। उन्हें लिखों कि उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए, आपके अनुरोध के अनुसार वित्तीय सहायता प्रदान करना संभव नहीं है।”
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छात्रवृत्ति की शुरुआत
निजाम मीर उस्मान अली के एक फरमान द्वारा स्कॉलरशिप की स्थापना को मंजुरी मिल गई थी। हालांकि, इस छात्रवृत्ति को शुरू करने के लिए आवश्यक शर्तों को पूरा करना जरुरी था। इसलिए, इस संबंध में एक स्कॉलरशिप कमेटी का गठन किया गया।
स्थापना के तुरंत बाद कमेटी की ओर से एक बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें स्कॉलरशिप शुरू करने के लिए कुछ योजनाओं का सुझाव दिया गया था। बैठक के बाद, समिति ने निज़ाम को अपनी योजना प्रस्तुत की। फिर उन्होंने योजना को मंजूरी के लिए वित्त मंत्रालय को भेज दिया।
वित्त विभाग ने इस योजना पर आगे की कार्रवाई करने के बाद 28 जुलाई 1915 को आसिफ़जाह की सेवा के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया। जिसमें, वित्त मंत्री ने कहा, एक फरमान द्वारा हैदराबाद में ‘गोखले मेमोरियल स्कॉलरशिप’ नाम से एक छात्रवृत्ति की स्थापना को मंजूरी दी है। स्कॉलरशिप कमेटी ने इस संबंध में कुछ योजनाएं प्रस्तुत की हैं। जो इस प्रकार हैं –
1) गोखले स्कॉलरशिप उन छात्रों को प्रदान की जायेंगी, जिन्होंने संतोषजनक तरीके से गुणवत्ता प्रमाणपत्र हासिल किया हो। छात्रवृत्ति ऐसे ही होशियार छात्रों को दी जायेगी।
2) हाईस्कूल लिविंग बोर्ड की रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही कमेटी छात्रवृत्ति देगी।
3) निज़ाम कॉलेज में शिक्षा के लिए हर साल छात्रवृत्ति दी जायेगी। इसका कार्यकाल 4 साल तक का होगा। जिसे कुछ मामलों में पांच साल तक बढ़ाया जा सकता हैं।
4) इस स्कॉलरशिप का स्वरूप 30 रुपये उस्मानिया सिक्के होगा।
5) प्रत्येक स्कॉलरशिप धारक को 100 रुपये के गोखले पुरस्कार (जिसे निज़ाम कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा चुना जायेगा) के नाम से दी जायेगी।
इन सभी शर्तों का जिक्र करने के बाद, आवेदन के अंत में, “यदि आसिफ़जाह ने प्रस्ताव को मंजुरी दी, तो हर साल एक स्कॉलरशिप शुरू की जायेगी।” यह उल्लेख किया गया है। वित्त विभाग का आवेदन प्राप्त करने के बाद, निज़ाम उस्मान अली ने प्रस्ताव को तुरंत मंजूरी दे दी। जिस दिन आवेदन दाखिल किया गया था, उसी तारीख को एक फरमान जारी किया गया था। जो इस प्रकार था –
“गोखले मेमोरियल स्कॉलरशिप की कमेटी ने सदरूल मुहाम फाइनेंस (वित्त प्रमुख) की सलाह के अनुसार अकादमिक छात्रवृत्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दी है और इस वर्ष भी एक अकादमिक छात्रवृत्ति दी जानी चाहिए।”
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निज़ाम द्वारा स्मारक को सहायता
गोखले के नाम पर एक अकादमिक स्कॉलरशिप शुरू की गई थी। हालांकि, मेमोरियल फंड कमेटी ने एक बार फिर से एक प्रस्ताव भेजकर गोखले स्मारक के लिए पैसो की मांग की। आवेदन प्राप्त होने पर, शिष्टाचार विभाग ने एक अर्जी 15 अगस्त 1915 को आसिफ़जाह के सेवा में पेश की। जिसमें लिखा था, “हैदराबाद राज्य के लिए छात्रवृत्ति की स्थापना के बाद भी, मुंबई में गोखले स्मारक के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना जरुरी नहीं है।”
निज़ाम उस्मान अली ने शिष्टाचार विभाग के सुझाव का विरोध नहीं किया। पर उन्होंने गोखले स्मारक के अनुरोध को नजरअंदाज भी नहीं किया। उन्होंने बिना देर किए 15 अगस्त 1915 को एक फरमान जारी किया। उस आदेश में निजाम कहते हैं –
“मिस्टर ग्लैन्सी और सर फरीदजंग बहादुर द्वारा दी गई सलाह सही है। लेकिन हिज हायनेस आगा खान और अन्य गणमान्य व्यक्ति स्मारक के लिए दान कर रहे हैं। इसलिए, मेरे लिए पाँच हजार रुपये दान करना बुरा नहीं होगा। हालांकि, स्मारक समिति को यह निधी देते समय जैसा कि श्री. ग्लैन्सी के सुझाव दिया था, मैं मुंबई क्षेत्र में रहने वाला कोई धनी व्यक्ति नहीं हूँ, पर समिति को मात्र यह लगता हैं। मेमोरियल कमेटी को यह बात याद दिलाना जरुरी होंगा।”
स्मारक राहत कोष के संदर्भ में जो स्थिति पैदा हुई है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हैदराबाद के आसिफ़जाही राजवंश ने उस समय शिक्षा के क्षेत्र में दिया योगदान महान हैं। क्योंकि उस समय राज्य में ‘उस्मानिया विश्वविद्यालय’ स्थापित नहीं हुआ था। और न ही राज्य में किसी व्यक्ति को या राजवंश मुस्लिम होने के वजह से किसी मुस्लिम को एक बड़ी स्कॉलरशिप नही दी गई थी।
आसिफ़जाह अपने नाम पर यह स्कॉलरशिप दे सकते थे। लेकिन गोखले ने बहुत कम उम्र में सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में सेवा और शिक्षा के क्षेत्र के विकास के लिए उनके प्रयास किया था। जिसके कारण उनके नाम पर विदेशों में उनके नाम पर स्कॉलरशिप शुरू की गई हैं। यह स्कॉलरशिप हैदराबाद राज्य में कई सालों तक जारी रही। गोपालकृष्ण गोखले को अभिवादन स्वरूप हैदराबाद राज्य द्वारा स्थापित स्कॉलरशिप ने एक शासक के रूप में निजाम मीर उस्मान कि छवि को निश्चित रूप से चमकाया है।
(यह आलेख सरफराज अहमद, कलीम अजीम, सय्यद शाह वाएज संपादित ‘आसिफजाही : निजाम राजवटीचा इतिहास खंड-1’ नामक मराठी किताब से लिया गया हैं।)
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पूर्व में आंध्र प्रदेश राज्य के अभिलेखागार प्रमुख के रूप में सेवारत थें। अब वह सेवानिवृत्त होकर हैदराबाद के निजाम संस्थान पर इतिहास में शोधकार्य करते है। वे पर्शियन भाषा के जानकार माने जाते हैं। निजाम मीर उस्मानअली खान पर उनका गहन संशोधन हैं। जिसमें उनकी अबतक 15 से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं। 15 हजार फारसी दस्तावेजों पर उन्होंने पीएच.डी की हैं।