बाबर के निधन के बाद हुमायूं ने मुगल राजवंश कि गद्दी संभाली। पर उसका यह सफर आसान नही था। उसे शेरशाह सुरी का मुकाबला करना पडा। इस पराक्रमी राजा ने हुमायूं को देश निकाला कर दिया। पंधरा साल इधर-उधर भटकने के बाद हुमायूं भारत लौटा। जिसके बाद उसने अपनी मानवीय सहिष्णुता कि एक अलग छवी बनाई।
कहते हैं, हुमायूं एक संवेदनशील और नर्मदिल राजा था, जिसने बहुसंख्य रैयत के धर्मभावना का खयाल रखते हुए अपना शासन चलाया। हुमायूं के इसी छवी का विस्तार के. विक्रम राव ने किया है। दैनिक ट्रिब्यून के सौजन्य हम इसे आपके लिए दे रहे हैं।
नवम्बर 2011 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा भारत दौरे पर थे। उनका होटल ताज में रहना और ताजमहल न देखना लाक्षणिक था। उनके अभिप्रेत इसके मायने भी अलग थे। बस अर्थनिर्वाचन की कोशिश संभव है।
मुंबई का अरब सागरतटीय होटल, जो 26/11 को भीषण आतंकी हमले का शिकार था, में टिक कर, वहीं से ओबामा ने विश्वमंच पर ऐलान कर दिया कि दहशतगर्दी के दमन के लिए वे कृतसंकल्प हैं। मुंबई पर आक्रमण करने वाले दण्डित होंगे।
आगरा न जाकर उन्होंने यह भी जता दिया था कि वे पर्यटक नहीं हैं, हालांकि हर राज्य अतिथि द्वारा मुमताज महल का मकबरा देखना एक मनोरंजक रिवायत बन गई है। उस लीक से हटकर बराक ओबामा ने शाहजहां की इमारत के बजाय उनके परदादा की समाधि देखकर खण्डित उपमहाद्वीप के समाज को नये संकेत दिए हैं।
ओबामा लालकिला के प्राचीर पर जा सकते थे। कुतुब मीनार की ऊंची, पुरानी चोटी को देख सकते थे। तो हुमायूं का मकबरा ही क्यों? कई दशक तक जीर्णशीर्ण पड़े और विश्व धरोहर (1993) बनने के बाद से संवारे गये इस मकबरे को अपनी यात्रासूची में शामिल कर ओबामा ने परोक्ष पैगाम दिए हैं।
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दूरदृष्टा राजनेता
जहीरुद्दीन बाबर (जो काबुल में दफन हैं) से बहादुर शाह जफर तक (जो बर्मा में दफन हैं) समस्त मुगल बादशाहों में नसीरुद्दीन मुहंमद हुमायूं ही हैं जो उदार इस्लाम के प्रतिनिधि माने जाते हैं। बराक ओबामा ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कालेज के छात्रों द्वारा (नवम्बर 7) पूछे जाने पर कहा भी था कि जिहाद के मायने तशद्दुद (प्रतिशोध) नहीं है।
बेशक इस्लाम के कुछ भ्रमित उग्रवादियों ने हिंसा को जनविरोधी माध्यम बना डाला है। इसी सोच की झलक हुमायूं के मकबरे में दिखती है। भले ही वे तैमूर और चंगेज खान की नृशंस वंशावलि में जन्में, मगर हुमायूं के जीवन के अड़तालीस वर्ष का अधिकांश समय मुस्लिम पठानों से लड़ते बीता है।
इसी मकबरे में उनके दुश्मन शेरशाह सूरी का अफगानी सरदार ईसा खान नियाजी हुमायूं के इन्तकाल से दशक पूर्व से ही दफन है।
बादशाह ने उसकी कब्र हिफाजत से रखकर अपनी सहिष्णुता का परिचय दिया था। इस मकबरे में जड़े लाल पत्थर और स्थापत्य कला के बारे में मिशेल ओबामा ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक से जानना चाहा। तब उनकी टिप्पणी थी कि यह स्थापत्य कला हैरतअंगेज है, लाजवाब है।
उन्हें अचम्भा भी हुआ होगा कि आज के अतिवादी ईरान से ही मलिकाए-हिन्द हमीदा बानू बेगम आईं थीं जिन्होंने अपने शौहर हुमायूं के शव को सरहिन्द से लाकर अपने पुत्र जलालुद्दीन अकबर के सामने ही दिल्ली में दफन कराया था।
बराक ओबामा को बताया गया कि मध्यकालीन शासकों की मौत अधिकतर समरभूमि में अथवा बीमारी से होती रही। मगर हुमायूं का असामयिक निधन पुस्तकालय भवन की सीढ़ी पर से उनके फिसलने के कारण हुआ था। हुमायूं संस्कृति के संरक्षक थे, इल्म में रुचि रखते थे।
मजहब के आधार पर विभाजित और उसी के कारण तनावग्रस्त भारत और पाकिस्तान के लिए हुमायूं के एक ऐतिहासिक उल्लेख से भी अमेरिकी राष्ट्रपति को अवगत कराया गया था। गुजरात के सुलतान बहादुर शाह द्वारा मेवाड़ की महारानी कर्मवती पर हमला हुआ था तो उस राजपूतानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी।
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गौवध को प्रतिबंधित
गुजरात के मुस्लिम हमलावर को तो हुमायूं ने पराजित कर दिया था मगर तब तक महारानी दिवंगत हो गई थीं। हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द का नमूना बादशाह हुमायूं ने पेश किया था।
हुमायूं के राज में गौवध प्रतिबंधित था। जजिया जो ढाई सदी बाद आलमगीर औरंगजेब ने हिन्दुओं पर थोपा था, हुमायूं के समय था ही नहीं। श्वेत-बहुल अमेरिका के प्रथम अल्पसंख्यक राष्ट्रपति बराक ओबामा को इन्हीं कारणों से ऐसा उदारवादी मुगल बादशाह भाया होगा।
मकबरे में अतिथि रजिस्टर पर ओबामा ने लिखा भी कि, “साम्राज्यों के पतन-अभ्युदय के दौर में भारत विश्व में नई ऊंचाइयां छूता रहा।” बराक और मिशेल ओबामा ने हुमायूं की मजार के निकट एक और कब्र देखी उनके प्रपौत्र दारा शिकोह की जो इतिहास का एक अत्यन्त त्रासद, कारुणिक पुरुष रहा।
पुरातत्व अधिकारी ने राष्ट्रपति दम्पति को बताया कि युवराज दारा का सिर कटा धड़ यहां दफन है। दारा को पिता शाहजहां अपना उत्तराधिकारी नामित कर चुके थे, पर कथित रूप से कट्टरवाद के सूरमां औरंगजेब ने बाप को कैद कर लिया और बड़े भाई दारा को काफिर करार देकर हाथी से कुचलवा दिया था।
दारा की कब्र देखकर और उनकी गाथा सुनकर बराक ओबामा के जेहन में वही विचार कौंधा होगा जो आम भारतीय आज भी तीन सदियों से सोचता है। यदि भारत का बादशाह बजाय कट्टररवादी औरंगजेब के समरसतावादी दारा शिकोह हो जाता तो शायद चरमपंथ की त्रासदी से हमारा उपनिवेश बच जाता।
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मानवीय सहिष्णुता
नामित बादशाह होने से कहीं ज्यादा दारा शिकोह एक सूफी फकीर थे। संस्कृत के ज्ञाता थे, इस्लाम और वैदिक धर्म के बीच सेतु थे। वे जड़ दृष्टि के खिलाफ थे जो उनके छोटे भाई औरंगजेब की खासियत थी। उसे वे सिर्फ नमाजी मानते थे जो इस्लाम के केवल बाह्य रूप को ही जानता था।
एक मायने में दारा शिकोह भी मुगल काल के बराक ओबामा जैसे ही थे। ‘श्वेत अमेरिका के उदारवादियों ने ओबामा को अपना लिया, मगर मध्ययुगीन कट्टरवादियों ने दारा को मौत दी।’
बराक और मिशेल ओबामा जब हुमायूं के मकबरे के तहखाने में उतरे थे तो उन्हें भारत की गुलामी की त्रासदी वाली घटना का भी पता चला होगा।
ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासकों, जिन्होंने बराक की पितृभूमि केनिया तथा मिशेल के पूर्वजों की अफ्रीकी भूमि पर कब्जा किया था, शोषण किया था, ने ही इसी मकबरे से अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को सपरिवार कैद किया था। उनकी सल्तनत खत्म कर दी थी।
आज़ाद भारत में इस मकबरे का पुनर्निर्माण देखकर बराक ओबामा को अपने भाषणों की पंक्तियां सारगर्भित और सार्थक लगी होंगी कि हुमायूं का यह रौजा मानवीय सहिष्णुता की किरण प्रस्फुटित करता है। सहअस्तित्व की आस बंधाता है। ओबामा की भारत यात्रा भी इसी अर्थ की खोज है।
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