डॉ. इकबाल कि कविताओं में भारतीय इतिहास, संस्कृति, समाज और परिवर्तन कि बहस की गई है। भारत के इतिहास कि चर्चा करते हुए इकबाल गौतम बुद्ध, महावीर जैन, चार्वाक और नानक जिक्र करते हैं। इकबाल को विशेषतः गौतम बुद्ध के फलसफे पर काफी नाज था। उन्होंने कई जगह गौतम बुद्ध कि तारीफ की है। इकबाल का नजरिया ए गौतम बुद्ध इस्लामी फलसफे से प्रेरित था।
कुरआन के अनुसार दुनिया के अलग–अलग हिस्सों में इन्सानी समुदाय के मार्गदर्शन हेतु अल्लाह कि ओर से कई नबी (संदेश वाहक) आये हैं। इस्लामी फलसफे ने पैगम्बर मुहंमद (स) से पहले आये हुए नबीयों के संदर्भ में बहोत अहम विवेचन किया है। कुरआन ने हजरत इसा मसिह, हजरत मुसा (मोझेस), हजरत दाउद (डेविड), हजरत इब्राहिम (अब्राहम), हजरत याकूब (जेकब), हजरत यूसुफ (जोसेफ) के साथ कई नबीयों का जिक्र किया है।
इनमें से कुछ के नाम कुरआन ने बताए हैं, इन्हीं नबीयों के नामों में एक नाम ‘जुलकिफ्ल’ का है, जिनके संदर्भ में इस्लामी फलसफे के कई माहिरीन (विद्वानों) का मानना है कि, यह उल्लेख गौतम बुद्ध का है और वे इस्लाम के पैगम्बर हो सकते हैं।
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जुलकिफ्ल कौन हैं?
पाकिस्तानी विद्वान डॉ. इसरार अहमद ने भी अपनी एक तकरीर में कहा था “गौतम बुद्ध अपने वक्त के बहोत बडे विद्वान थे। उनके फलसफे का मुख्य केंद्रबिंदू है ‘सर्वम दुःखम’ है। याने सब लोग गम के शिकार हैं। एशिया के एक विख्यात इस्लामी विद्वान मौलाना मनाजीर हसन गिलानी, जो बिहार के गिलान कस्बे से थे, मगर इनकी ज्यादातर ज़िन्दगी हैदराबाद दकन में गुजरी, वे उस्मानिया युनिव्हर्सिटी में प्रोफेसर भी थे, उनका यह तर्क है की, गौतम बुद्ध अल्लाह के नबी हो सकते हैं।”
डॉ. अहमद आगे कहते हैं, “कुरआन मजिद में एक रसुल का जिक्र आता है जिनका का नाम जुलकिफ्ल है, मगर इन के बारे में कुरआन में अल्लाह ने कोई विश्लेषण नहीं किया। और न पैगम्बर साहब को किसीने इस बारे में कुछ पुछा है और न किसी हदिस में जुलकिफ्ल के बारे में कोई विश्लेषण मिलता है।”
“अब यह जुलकिफ्ल हैं कौन? तौरात में जिन नबीयों का नाम आता है, उनमें किसी का नाम जुलकिफ्ल के बराबर नहीं आता, जिससे यह समझा जाए कि यह उस नाम कि बिगडी हुई या बदली हुई सुरत है।
मौ. मनाजिर हसन गिलानी ने जो कहा है, वह बात इस वजह से वजनी मालूम होती है कि, कपिलवस्तू को अरबी में लिखा जाए तो वह ‘कफिलवस्तू’ या ‘किफ्लवस्तू’ होगा। यहा ‘प’ कि जगह ‘फ’ आ जाएगा, क्योंकि अरबी में ‘प’ नहीं है।”
वह आगे कहते हैं, “अब जिस नबी का जिक्र जुलकिफ्ल के नाम से हुआ है, हो सकता है इसका मतलब कपिल वाला होता हो। जिसे कपिल का शहजादा भी कह सकते हैं। इस वजह से यह अंदाजा है की, गौतम बुद्ध अल्लाह के नबी होंगे। मगर इस बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता।”
यही वजह रही होगी की इस्लामी दर्शन के प्रख्यात विद्वान डॉ. मुहंमद इकबाल ने भी बुद्ध कि तारीफ की हो। जावेदनामा में इकबाल कि एक नजम बुद्ध पर लिखी हुई है। इकबाल कि विख्यात फारसी मसनवी ‘जावेदनामा’ जो दांते के डिवाईन कॉमेडी से प्रेरित है। इसमें मौलाना रुमी की आत्मा इकबाल कि मार्गदर्शक है।
इकबाल कि यह मसनवी पैगम्बरे इस्लाम के मेराज कि अनुभूति से भी प्रभावित है। इस में, जो पात्र हैं उनमें मौलाना रुमी, विश्वमित्र, जरतुश्त, गौतम बुद्ध, टॉलस्टॉय, गालिब, ताहिरा, हल्लाज, अब्दाली, नादिरशाह, टिपू सुलतान, जमालुद्दीन अफगानी, सईद हलीम पाशा और संस्कृत कवी भतृहरी हैं।
इकबाली फलसफे के माहिर डॉ. मुहंमद शीस खान कहते हैं, “जावेदनामा इकबाल कि महान काव्यकृति है। सम्पूर्ण फारसी साहित्य में यह अपने किस्म कि अनूठी पुस्तक है। इसकी रचना 1927 में प्रारंभ हुई और 1932 में प्रकाशित होते ही यह क्लासिक बन गई।
इसकी गणना फिरदौसी के ‘शाहनामा’, रुमी के ‘मसनवी’, सादी की ‘गुलिस्ताँ’, हाफिज के ‘दिवान’, दान्ते के ‘डिवाईन कॉमेडी’ और गोएटे की ‘फाऊस्ट’ की कोटी में होने लगी। जावेदनामा कि परिकल्पना एक वृत्तात्मक काव्य के रुप में की गई है जो एक काव्यात्मक नाटक भी है जिसमें पात्रों के संवादो के माध्यम से औपदेशिक विमर्श है।”
बताते चले कि जावेदनामा का बेहतरीन हिन्दी अनुवाद डॉ. शीस खान ने ही किया हैं। बहरहाल जावेदनामा के उपर दिए गए पात्रों में गौतम बुद्ध एक अहम पात्र हैं।
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तासीन ए गौतम
जावेदनामा में गौतम बुद्ध पर इकबाल ने ‘तासीन ए गौतम’ कविता लिखी है। यह कविता गौतम बुद्ध के आष्टांग मार्ग के सिद्धान्तों कि चर्चा करती है। मानव कि नैतिक पुनर्स्थापना इकबाल का लक्ष्य था। जिसके लिए वह इतिहास से प्रेरणा हासिल करते हैं।
भारतीय इतिहास के कई महापुरुष है, जिन्हें इकबाल ने अपने काव्य का विषय बनाया है, इनमें बुद्ध के अलावा गुरु नानक, चार्वाक, बलीराजा, महावीर जैन का समावेश होता है। जावेदनामा में बुद्ध पर लिखी नजम ‘तासीन ए गौतम’ में इकबाल लिखते हैं –
मये देरिना व माशुक जवां चिजें निस्त
पेश ए साहब नजरां हुर ए जनां चिजें निस्त
(पुरानी मदिरा और युवा प्रियतम कोई चीज नहीं
ज्ञानियों के समक्ष स्वर्ग कि अप्सरा कोई चीज नहीं)
हुस्न ए रुक्सार दमे हस्त व दमे दिगर निस्त
हुस्न ए किरदार व खयालात ए खुशां चिजें अस्त
(कपोल कि सुन्दरता एक पल है, नहीं है दूसरे पल
चरित्र की सुन्दरता और विचारों की उदात्तता अवश्य चीज है कोई।)
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असरारे ए खुदी
इकबाल का फलसफा खुदी केंद्रबिंदू पर आधारित है। इसी के जरिए इकबाल इन्सानी ज़िन्दगी को समझने की कोशिश करते हैं। उनका मानना है की, इन्सानी ज़िन्दगी को समझने का सबसे बेहतर प्रयास भारत के इतिहास में गौतम बुद्ध ने किया था। इसीलिए इकबाल बुद्ध से प्रेरित हैं। अपनी गुरु नानक पर लिखी ‘नानक’ कविता में इकबाल गौतम बुद्ध के संदर्भ में कहते हैं –
क़ौम ने पैग़ाम ए गौतम की ज़रा परवा न की
कदर पहचानी न अपने गौहर ए यक-दाना की
इकबाल कहते हैं – गौतम बुद्ध भारत के इतिहास का एक अहम किरदार हैं। मगर भारतीय समाज ने गौतम बुद्ध की थोडीसी कद्र नहीं की
आह बद-क़िस्मत रहे आवाज़-ए-हक़ से बे-ख़बर
ग़ाफ़िल अपने फल की शीरीनी से होता है शजर
गौतम बुद्ध की आवाज हक की थी, मगर इससे भारतीय अवाम गाफिल रही।
आश्कार उस ने किया जो ज़िन्दगी का राज़ था
हिन्द को लेकिन ख़याली फ़ल्सफ़ा पर नाज़ था
गौतम बुद्ध ने ज़िन्दगी के असल फलसफे कि रचना की मगर हिन्द के लोग खयाली फलसफे पर नाज करते रहे।
शम-ए-हक़ से जो मुनव्वर हो ये वो महफ़िल न थी
बारिश-ए-रहमत हुई लेकिन ज़मीं क़ाबिल न थी।
भारतीय समाज में गौतम बुद्ध नामी सत्यप्रकाश कि ज्योत जली मगर इस ज्योत की कदर करने कि काबिलीयत इस समाज में नहीं थी। रहमत कि बारीश तो यहां हुई मगर यह जमीं उस बारिश के काबील नहीं थी।
आह शूदर के लिए हिन्दोस्ताँ ग़म-ख़ाना है
दर्द-ए-इन्सानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है
इसी नजम में इकबाल शुद्र और अतिशुद्रों के दुःखों कि भी चर्चा करते हैं, भारत शुद्रों का गमखाना कहते हुए इकबाल इस बस्ती (भारतीय समाज) को इन्सानी गम से कोई सरोकार न होने कि बात कहते हैं। और शुद्रों के गम के लिए ब्राम्हणों कि आलोचना करते हुए इकबाल लिखते हैं –
बरहमन सरशार है अब तक मय-ए-पिंदार में
शम-ए-गौतम जल रही है महफ़िल-ए-अग़्यार में
जाते जाते :
* डॉ. मुहंमद इकबाल एक विवादित राष्ट्रवादी
* डॉ. इकबाल के युरोप की जिन्दगी का असल दस्तावेज
सोलापूर निवासी वाएज दकनी इतिहास के संशोधक माने जाते हैं। उर्दू और फारसी ऐतिहासिक ग्रंथो के अभ्यासक हैं। दकन के मध्यकाल के इतिहास के अध्ययन में वे रूची रखते हैं। उन्होंने हैदराबाद के निजाम संस्थान और महाराष्ट्र के मराठा राजवंश पर शोधकार्य किया हैं। कई विश्वविद्यालयों में उनके शोधनिबंध पढे गए हैं। वे गाजीउद्दीन रिसर्च सेंटर के सदस्य हैं।