चंपारण किसान आंदोलन 1905 में शेख गुलाब द्वारा आरंभ करने के बाद उसमें नया जोश भरने में पत्रकार पीर मुहंमद मूनिस (1882-1949) का योगदान काफी महत्वपूर्ण था। उनका जन्म बिहार के बेतिया गाँव में 1882 में हुआ।
उनके पिता का नाम फतिंगन मियाँ था। उन्होंने किसानों के समस्याओं को संसार के समक्ष रखने का प्रयास किया। इस कारण से पीर मूनिस एक ओर नील बागान, एवं नीला रंग कारखानों के मालिक, दुसरी ओर अंग्रेज अधिकारियो के गुस्से का शिकार हुए।
ब्रिटिश सत्ता विरोधी भावनाओं के व्यक्त करने के लिए पीर मुहंमद मूनिस (Pir Muhmmad Munis) ने अपने कलम को अस्त्र के रूप में चुन लिया। उन्होंने गुरु प्रशिक्षण पाठशाला (Guru Training School) में अध्यापक के रूप में काम करते हुए साप्ताहिक पत्रिकाओं को लेख, निबन्ध लिखना आरंभ कर दिया।
इस क्रम में सहायता करनेवाला, सहचर, कॉम्रेड, जैसा भावार्थ देनेवाला ‘मूनिस’ नामक कलम के नाम को अपने नाम से जोडकर पीर मुहंमद मूनिस के रुप में मशहूर हुए। प्रमुख क्रांतिकारी विख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी (1890-1937) के द्वारा कानपूर केंद्र से 1913 में उदघाटित ‘प्रताप’ साप्ताहिक में पीर मुहंमद मूनिस ने चंपारण प्रांत के पत्रकार के रुप मे जिम्मेदारी लेली।
प्रताप ने बाद में दैनिक समाचार पत्र का रूप लिया। मूनिस ने चंपारण लोगों के खासकर किसान समस्याओं के बारे में अंग्रेज अधिकारीगण, नीलबागान कारखानों के मालिकों के द्वारा किये जाने वले अकृत्यों शोषण, लूट आदि पर समय समय पर धज्जयाँ उडाते हुए लेख, समाचारों को प्रकाशित किया।
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एक खतनाक पत्रकार
पीर मूनिस मात्र ‘प्रताप’ पत्रिका में ही नही बल्कि इतर हिन्दी पत्रिकाओं में भी चंपारण किसान समस्याओं पर जनता के कष्टों को प्रस्तुत करते हुए खासकर उन्होंने किसानों के समस्याओं को संसार के समक्ष रखने का प्रयास किया। इस कारण से पीर मूनिस एक ओर नील बागान, एवं नीला रंग कारखानों के मालिक, दुसरी ओर अंग्रेज अधिकारियो के गुस्से का शिकार हुए।
अंग्रेज सरकार के अभिलेखों में उनको ‘बदमाश पत्रकार’, ‘खतरनाक’, ‘बदनामी व्यक्ति’, ‘गुण्डावादी पत्रकार’, ‘कटुवादी’ कहकर उनके प्रति नफरत का जहर उगाल दिया गया। मूनिस के सृजन को संदेहात्मक साहित्य के रुप में घोषणा की गई।
अंग्रेज, अंग्रेज सरकार के अभिलेख जो भी कहे वे तो मात्र निरंतर क्रांतिकारी गणेश विद्यार्थी के मार्गदर्शन में किसान आंदोलन कार्यक्रमों की योजना बनाते हुए निर्भय होकर चंपारण किसानों के साथ ठहरे।
उन्होंने अंग्रेजों के शोषण, अंग्रेज सरकार की चुनौतियों को, चंपारण किसान समस्याओं को लेख, समाचारों के द्वारा प्रांतीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक ज्ञात करवाया।
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नील आंदोलन के नायक
1905 में शेख गुलाब के द्वारा आरंभ किया गया किसान आंदोलन के लिए आरंभ से ही पीर मूनिस ने समर्थन की घोषणा मात्र न कर उनके आंदोलन कार्यक्रमों का मार्गदर्शन भी किया है। उनका आवास किसान नेताओं के विचार विमर्श के लिए रहस्य केंद्र रहा।
चंपारण किसान आंदालन के बारे में बताते हुए नील विभ्रात आंदोलन (Neel vibhrat andolan) के नाम पर नील प्रतिरोधक आंदोलन (Indigo Resistance Movement) शीर्षक पर हिन्दी केसरी पत्रिका में उनके द्वारा लिखे गये लेख से अंग्रेज अधिकारियों की पीर मुहंमद मूनिस (1882-1943) नींद हराम हो गई।
किसानों के इस प्रतिरोध आंदोलन के सुर्खियों को समय समय पर स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हुए ‘प्रताप’ पत्रिका के अलावा इतर पत्रिकाओं में पीर मुहंमद मूनिस के द्वारा लिखे गये लेख प्रकाशित हुए। आंदोलन समाचार न केवल अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेताओं की दृष्टि को ही नहीं, बल्कि अंग्रेज सरकार की दृष्टि को भी आकर्षित करने लगे।
नील प्रतिरोध आंदोलन के नेता शेख गुलाब और उनके अनुचरों पर अंग्रेज सरकार टूट पड़ने के बाद आंदोलन की तीव्रता घटने पर भी चंपारण किसान की ओर से आंदोलन में भाग लेना पीर मूनिस ने नहीं छोड़ दिया।
प्रताप पत्रिका में प्रार्थना (06 सितंबर 1915) चंपारण में अत्याचार (17 फरवरी 1916) चंपारण में अंधेरा (13 मार्च 1916) बिहार सरकार का एक अनुचित कार्य (03 अप्रेल 1916) जैसे लेखों द्वारा किसानों के कष्टों को व्यक्त किया गया।
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महात्मा गांधी के सहयोगी
आखिर शेख गुलाब के सूचना के अनुसार चंपारण किसानों की स्थिति को महात्मा गांधी की दृष्टि को लाने को लेकर पीर मूनिस, राजीवकुमार शुक्ला ने विचार किया। इस निर्णय के अनुसार “आप अपने अनुचर सत्याग्रही भाई बहिनों पर आफ्रिका में किये गये अत्याचार से भी हमारी वेदना भरी गाथाएँ किसी भी रूप में कम नही है” कहते हुए अपने कष्टों को बताते हुए फरवरी 1917 मार्च तक पीर मूनिस ने गांधी जी को तीन पत्र लिखें।
1916 लखनऊ नगर में आयोजित अखिल भारतीय काँग्रेस अधिवेशन में उपस्थित होकर राजकुमार शुक्ला, पीर मूनिस गांधी जी से मिले। राजकुमार शुक्ला अनपढ किसान (आत्मकथा- महात्मा गांधी पृष्ठ-406) होने के कारण पीर मूनिस के द्वारा लिखित निवेदन पत्र को शुक्ला ने गांधी को दे दिया।
नकी रचनाओं से बहुत प्रभावित गांधी जी ने मोतिहारी पहुँचकर 23 अप्रेल को स्वयं पीर मूनिस के घर जाकर उनकी माता को परामर्शित किया। यह विषय प्रताप पत्रिका (3 अप्रेल 1917) संचिका में प्रकाशित हुआ।
इन प्रयासों के फलस्वरूप महात्मा चंपारण आने के लिए सहमत हुए। गांधी जी के चंपारण आने के विषय को भी मूनिस ने अपने सहचरों द्वारा प्रचार करवाया। प्रताप पत्रिका मे प्रार्थना शीर्षक से महात्मा के चंपारण दौरे का प्रचार किया गया। इस शीर्षक से प्रकाशित करपत्रों को एक साधू बाँटते हुए पकड़े जाना अंग्रेज अधिकारियों के लिए हैरान की बात थी। महात्मा के चंपारण आने से लेकर चंपारण छोड जाने तक पीर मूनिस उनके साथ रहे।
चंपारण में महात्मा को पूर्ण रूप से सहयोग देनेवाले व्यक्तियो की सूची अंग्रेज अधिकारी द्वारा बनाई गई। उस सूची में पीर मूनिस का नाम प्रमुख था। चंपारण में सत्याग्रह आदोलन को महात्मा गांधी चलाने के दौर मे पीर मूनिस ने अंग्रेजों के धमकियों से न डरकर आंदोलन के सुर्खियों को प्रताप पत्रिका के द्वारा जग जाहिर करवाया।
उन्होंने चंपारण की दुर्दशा (16 अप्रेल 1917) चंपारण में कर्मवीर गांधी जी का आगमन (30 अप्रेल 1917) चंपारण में महात्मा गांधी (7 8, 9 मई 1917) चंपारण में ‘तीन कठिया प्रथा’ (21 मई 4, 11, 18 जून 1917) जैसे लेख लिखे।
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अंग्रजो ने किया तबाह
‘चंपारण का उद्धार’ नामक पुस्तक प्रताप के द्वारा प्रकाश में लायी गयी। इन कारणो से अंग्रेज उनपर आग बबूला हो उठे। गोरे मालिकों ने उन्हें नौकरी से वंचित करवाया। उनकी संपत्ति जब्त करवाई गयी। आखिर उनपर विविध अपराध आरोपण से अक्रम केस दर्ज किसे गये। उनको छः महीने जेल की सजा भी हुई। अपील करने पर सजा में तीन महीने कम किया गया।
जेल अनुभवों की दुस्थिति के बारे में उन्होंने 30 सितंबर 1918 प्रताप पत्रिका ‘सनसनी फैलानेवाला मुकद्दमा’ शीर्षक से संपादकीय प्रकाशित करवाया। भारत स्वतंत्र आंदोलन को सत्याग्रह आंदोलन के रूप में चलाया गया। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह आंदोलन स्वरूप-स्वभावों के बारे में निर्देश दिया।
गांधी के चंपारण आने में जिन व्यक्तियों का योगदान था उसका विवरण अंग्रेज सरकार पुलिस अभिलेखों के उल्लेखों में, “पीर मुहंमद वास्तव में खतरनाक क्रांतिकारी पत्रकार थें। जिन्होंने अपनी प्रतिघटनात्मक साहित्य के द्वारा चंपारण की पिछडे पन की व्यथाओं को प्रकाश में लाया। गांधी चंपारण आने में उनका प्रभाव था” कहकर उल्लेख किया गया।
चंपारण से गांधी के निष्क्रमण के बाद भी अविराम योद्धा के रूप मे पीडितों का पक्ष लेकर आंदोलन करते रहे। उन्होंने प्रताप पत्रिका मे चंपारण मे फिर अत्याचार (4 अगस्त 1918) चंपारण मे फिर नादिरशाही (30 अगस्त 1920) जैसे लेख प्रकाशित करवाकर गोरे मालिकों को की, अधिकारियों की, नींद हराम कर दी।
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बरतानिया हुकुमत से बगावत
प्रताप, बालक, जनशक्ति जैसी पत्रिकाओं में ‘दुखी आत्मा’, ‘एक दूखी आत्मा’, ‘दुखित हृदय’, ‘सहानुभूति हृदय’ जैसे शीर्षकों से लेख लिखकर उन्होंने किसानों की दुर्दशा के प्रति भारत राष्ट्रीय काँग्रेस नेताओं की दष्टि आकृष्ट की। पीडित किसान पक्षधर पीर मूनिस ने किसानों को संघटित करते हुए 1918 मे स्वयं किसान सभा का आयोजन किया।
इस सभा की ओर से चंपारण ईख (गन्ना) किसानों की ओर से किसान समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने संघर्ष किया। नीलबागान का स्थान ईख फसल लेने के बारे में अंग्रेजों के आधिपत्य के विरोधी मूनिस ईख किसान आंदोलन का मार्गदर्शन भी उन्होंने किया।
चंपारण के इतिहास के संबन्ध में भारत स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में हिन्दू मुसलमान एकता का, प्रबोधन करते हुए हिन्दी, उर्दू भाषा विकास की कामना करते हुए उनके द्वारा रची गयी पुस्तके प्रकाशित नहीं हो पाई।
उन्होंने चंपारण का इतिहास भी लिखा है। उनकी अमुद्रित रचनाएँ, लेख इतर मुख्य अभिलेख 1934 के भूकंप में ध्वंस हो गये। पीर मूनिस ने केवल किसान पक्ष ही नहीं लिये बल्कि मानव अधिकारों की रक्षा के लिए भी परिश्रम किया। हरिजन, पाकी, सफाई कर्मचारियों को संघटित करते हुए उनके न्यायपरक अधिकारों के लिए उन्होंने संघर्ष किया।
उन्होंने बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन व्यवस्थापक सदस्य के रूप में हिन्दुस्तानी विकास के लिए, प्रचार के लिए विशेष प्रयास किया। मातृभूमि के विमोचन के लिए हिन्दू मुसलमान एकता को आवश्यक मानकर इस दिशा में उन्होंने बहुत प्रयास किया।
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काँग्रेस के चंपारण शाखा की स्थापना
भारत देश में सामाजिक जन-समुदायो में भिन्नता मे एकता, एकता में भिन्नता अनिवार्य मानकर उन्होने उद्बोधन किया। अंग्रेजों की दमन नीति को न सहन करने वाले पीर मूनिस ने स्वाधिनता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। 1921 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस चंपारण जिला शाखा की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वे चंपारण जिला परिषद लोक प्रतिनिधि के रूप में चुने गये। बेतिया लोक प्रांतीय बोर्ड अध्यक्ष के रूप में कर्तव्य निर्वाहन करते हुए 1937 में गांधी जी के बुलावे के अनुसार व्यक्तिगत सत्याग्रह मे भाग लेने के लिए उन्होंने अध्यक्ष पद को त्याग पत्र दिया। नमक सत्याग्रह मे भाग लेने पर उन्हे अंग्रेज सरकार तीन महीने पटना क्यांप जेलखाने में कैद किया गया।
अंग्रेज सरकार नीलबागान और नीला रंग कारखानों के मालिक अंग्रेज अधिकारी चाल चलाने पर भी, दमन का रास्ता अपनाने पर भी कुछ भी विचलित न होकर एक ओर मातृ भूमि के विमोचन के आंदोलन में, दूसरी ओर लोगों का खासकर पीडित किसान समाज कल्याण के लिए संघर्षशील रहे। कलम के योद्धा पीर मुहंमद मूनिस का निधन 24 दिसंबर 1949 में हुआ।
जाते जाते :
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लेखक आंध्र प्रदेश स्थित गुंटूर जिले के ताडेपल्ली निवासी हैं। वे आधुनिक भारत के इतिहास के शोधकर्ता हैं। स्वाधिनता संग्राम के मुसलमानों पर उन्होंने काफी अध्ययन कर 15 से अधिक किताबे प्रकाशित कि हैं। तेलुगु, अंग्रेजी, उर्दू तथा हिन्दी भाषा में कई पत्र-पत्रिकाओं मे वह लिखते हैं।