औरंगजेब ने लिखी थीं ब्रह्मा-विष्णू-महेश पर कविताएं

रंगजेब के प्रति भारतीय इतिहास लेखन में आम धारणा जालीम, हिन्दुकुश, बुतशकीन बादशाह कि है। औरंगजेब कि कई नीतियों और सांस्कृतिक पुनरुज्जीवनवाद के प्रयासों से उसकी धार्मिक कट्टरता वाली छवी बनी हुई है। जिझिया को दुबारा लागू करना तथा सिखों और मराठों से हुए संघर्ष की वजह से प्रादेशिक इतिहास में उसके प्रति काफी नफरत पायी जाती है।

दुसरी तरफ एक हकिकत यह भी है की, औरंगजेब ने कई मंदिरों के रखरखाव के लिए पैसा और जमीनें दी थी। शहाजहाँ के बिमार होने के बाद छिडे उत्तराधिकार युद्ध में सबसे ज्यादा हिन्दू सरदारों का समर्थन औरंगजेब को हासील था।

इसके बावजूद दरबार में संगीत पर और राज्य में शराब पर पाबंदी लगाने जैसी नीतियों के चलते औरंगजेब के कर्मठता कि चर्चा अधिक होती है। इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता कि, औरंगजेब की कुछ नीतिओं कि वजह से हिन्दू आहत हुए थे।

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राज्य हित की नीतियां

जिस समय औरंगजेब कर्मठता और रुक्ष व्यक्तीत्व के लिए जाना जा रहा है, उसी वक्त यह कहना काफी आश्चर्यजनक होगा कि, उसने ब्रह्माविष्णूमहेश पर कविताएँ लिखी थी। जिस औरंगजेब को दरबार में संगीत सुनना पसंद नहीं था। जो औरंगजेब आम तौर पर कम बोलता था, सादगी और इस्लामी तौर तरीके से रहता था, क्या वह ऐसी कविताएं लिख सकता है?

हां ऐसे सवाल उठ सकते हैं, मगर इन सवालों से हकिकत नहीं बदलती। चंद्रबली पाण्डे कहते हैं, ‘औरंगजेब धार्मिक कट्टर होते हुए भी धर्मान्ध था।’ 

उसकी नीतियां उसके राज्य के हित को तलाशती थी, और राज्य के हित के लिए समयसमय पर बदलती थी। इसी वजह से कभी वह धर्म का नारा लगाता है तो कभी भाईचारगी की सोच को प्रस्तुत करता है।

औरंगजेब भले ही राजनैतिक तौर पर काफी कठोर और परिवर्तनशील रहा होगा मगर अपनी निजी जिन्दगी में वह काफी भावुकता और सद्भाव के साथ जिता था।

फारसी से बेहद मोहब्बत के बावजूद औरंगजेब को हिन्दी भाषा से काफी लगाव रहा। डॉ. अजय तिवारी लिखते हैं, ‘वह हिन्दी का महत्व समझता था। धर्म के प्रचार के लिए भी फारसी की अपेक्षा हिन्दी की उपयोगिता उसे पता थी।’ 

यही वजह थी की उसने हिन्दी में कविताएं लिखी। ब्रजभाषा में रची हुई कविताओं के जरिए औरंगजेबने अपनी छवी को बदलने कि कोशीश भी कि।

तिवारी का मानना हैऔरंगजेब का व्यक्तित्व काफी जटील था। कविता और संगीत से उसका प्रेम धार्मिक आग्रह से परे एक शासक और मनुष्य का परिचायक है, जिसकी अनदेखी करना उचित नहीं। उसने फारसी कविता को भी संरक्षण दिया, किन्तु खुद अपनी कविताएँ उसने हिन्दीब्रजभाषा में लिखीं। उसकी कविताएँ श्रृंगार से अछूत नहीं हैं।’ 

औरंगजेब की कई कविताएँ इश्क, माशुका और आशिकी पर आधारित हैं। अपनी पत्नी उदैपुरी बेगम के सुंदरता कि तारीफ करते हुए उसने ब्रजभाषा में एक कविता लिखी है। जिसमें वह सरस्वती देवी का भी जिक्र करता है। औरंगजेब कहता है –

‘‘तुव गुण  रवि उदै कीनो याहीं तें कहत तुमकों

बाई उदैपुरी।

अनगिन गुण गायन के अलाप विस्तार सुर जोत

दीपक जो तोलों सों विद्या है दुरी।।

जब जब गावत तब तब रससमुद्र लहरे उपजावत

ऐसी सरस्वती कौन कों फुरी

जानन मन जान शाह औरंगजेब रीझ रहे याही तें

कहत तुमकों विद्यारुप चातुरी।

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प्रेम कविताएं

अन्य एक कविता में औरंगजेब ने एक प्रेमिका की व्यथा को अपने शब्दों में पेश किया है। उसकी कविता की नायिका को अपने प्रेम को खोने का डर है। आशिक के आने की खबर मिलते ही वह स्नान और श्रृंगार कर उसकी राह देखने लगती है –

‘‘तोहि अति भावेरी शाह औरंगजेब उजारो

दरस देखते रोमरोम सुख होतहै डर होत हेरी दुख अधियारो

एक रसना अस्तुति कैसे करों कही जाय प्रानहूँ चे प्यारो।

रखोंगी हिय में दुरायकर नेक न करहों न्यारो…’’

फारसी भाषा में सवाली और जवाबी कविता कि शैली है। इसी शैली में औरंजेब ने यह कविता लिखी है। इस कविता के जवाबी कविता में प्रियकर अपनी प्रेयसीसे संवाद करता है, और वह औरंगजेब कि कविता का नायक है।

जब प्रियकर अपने प्रेयसी से मिलता है, तो वह उसे गले लगाता है। अपने प्रेम को प्रकट करता हुए कहता है 

घरी आवत है लाल माईरी अवधको दिन आज।

वेग प्रफुलित भयो सुगंध मंजन कर कर आभूषण

वसन बनाये पहरे प्यारी तबही अगरजा भेटत

लगाए जब होवे मन भावतो काज

यह देखो वे गए मनमोहन बलमा अंतरयामी

खामी करवन वरण कारण विरहन कारण तेरे

अनगन मानो पतितन को दिनो सुखसमाज।

शाह औरंगजेब जीनी गलेहो लगाय कीनी निहाल

 तोहे वाल दोनों ढिग विव सुहाग भाग आनन्द राज..’

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जैसे कि पहले स्पष्ट किया गया है की, औरंगजेब कि राजनैतिक धारणाओं और धार्मिक नीतियों में कई परिवर्तन हुए है। इस परिवर्तन की झलक उसकी कविंताओं में भी देखी जा सकती है।

एक कविता औरंगजेब ने अपने तख्तनशीनी के समारोह पर लिखी है। जिसमें औरंगजेब की तख्तनशिनी का जश्न ब्रह्मा विष्णू महेश भी मना रहे हैं। औरंगजेब लिखता है 

उत्तम लगन शोभा सगुन गिन गिन ब्रह्मा विष्णू

महेश व्यास किनो शाह औरंगजेब जसनन तखत बैठो आनंन्दन।

नग खेंच दाम विशात वर गायन मोहनप्रत

बह्मा रचौ तिन मध गायन गुनी जन गाबत तिनके

हरत दुखदन्दन।।

एक निर्तत निर्तत लास ताण्डव रंग भावन एक वन

बावत वन्दिक पंण्डि कवि सरस पूरण चन्दन।

शाह औरंगजेब जगतपीरहरण लोक तारे

निस्तारे फन्देही रहत दुख दरिद्रके गंजन।।

औरंगजेब कि कई कविताओं को भारतीय संगीत के ग्रंथरागकल्पमद्रुममें स्थान दिया गया है।

औरंगजेब कि नीतियां भलेही कुछ भी रही हों, हर मनुष्य कि तरह उसमें एक इन्सान छुपा हुआ था। जो हमेशा अपनी इच्छा, आकांक्षाओं और प्रेम कि प्राप्ती के लिए कोशिश करता रहता था। उसका काव्यलेखन इसी का एक प्रयास है

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