नेहरू कि लेखमाला :
भारत के पहले जनता के सेवक याने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक दूरदृष्टी वाले नेता थे। उन्होंने स्वाधीनता के बाद लाल किले से दिए अपने पहले भाषण में समाज के बढती जरुरतो को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता बढाने कि बात कही थी।
आज देश में उत्पादन तथा जरुरतों कि स्थिति देखकर लगता हैं, क्या हम नेहरू के आदर्शों के साथ बेमानी कर रहे हैं? 75 साल बाद नेहरू बात बेहद जरूरी मालूम पडती हैं। पेश हैं, नेहरू का 15 अगस्त, 1947 को दिया भाषण, जो प्रकाशन विभाग के संकलन से लिया गया हैं।
मेरे देश भाइयो, भारत और भारत की स्वतंत्रता के हित में अपनी सेवा अपित करने का सौभाग्य मुझे बहुत सालों से रहा है।
आज मैं पहली बार भारतीय जनता के प्रथम सेवक के रूप में, उसकी सेवा और सुधार के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होकर, अपने पद से आप से बोल रहा हूँ। मैं यहां इसलिए हूँ कि आपकी ऐसी इच्छा थी, और मैं यहां तभी तक हूँ, जब तक कि आप अपना विश्वास देकर, मेरा सम्मान करते है।
हम आज स्वतंत्र और पूर्ण सत्ताधारी लोग है और हमने अपने को अतीत के बोझ से मुक्त कर लिया है। हम संसार की ओर स्पष्ट और मैत्रीपूर्ण आँखों से और भविष्य की ओर आस्था और विश्वास के साथ देखते हैं।
विदेशी आधिपत्य का बोझ दूर हो गया है, लेकिन स्वतंत्रता अपनी अलग जिम्मेदारियां और भार लाती है और उन्हें हम स्वतंत्र लोगों की भावना से ही, आत्म-संयम के साथ और उस स्वतंत्रता की रक्षा और विस्तार करने के निश्चय से वहन कर सकते है।
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हमने बहुत कुछ हासिल कर लिया है। पर हमें अभी इससे अधिक हासिल करना है। तो आइए हम अपने नए बंधों में, दृढ़ता से और उन ऊँचे सिद्धान्तो को ग्रहण करते हुए, जिन्हें कि हमारे महान नेता ने सिखाया है, उसमें लग जाए।
सौभाग्य से गांधी जी मार्ग-प्रदर्शन के लिए, हमें प्रेरणा देने के लिए और सदा आदर्श हिम्मत का पथ दिखाने के लिए हमारे साथ है।
बहुत दिनों से उन्होंने हमें सिखाया है कि आदर्श और उद्देश्य उन साधनों से अलग नहीं किए जा सकते जो कि उनकी पूर्णत: के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। अर्थात् अच्छे उद्देश्यों की परिपूर्णत: अच्छे साधनों द्वारा ही संभव है।
यदि हम जीवन की महान बातों की ओर लक्ष्य करते हैं, यदि हम भारत का स्वप्न बड़े राष्ट्र के रूप में देखते हैं, जो कि शांति और स्वाधीनता का अपना प्राचीन संदेश दूसरों को दे रहा है, तब हमें खुद बड़ा बनना है और भारत माता की योग्य संतान बनना है।
संसार की निगाहें हम पर है और वे पूर्व में इस स्वतंत्रता के जन्म को ध्यान से देख रही है और विचार कर रही है कि इसका अर्थ क्या है।
हमारा पहला ध्येय यह होना चाहिए कि हम सब प्रकार के आंतरिक झगड़ों और हिंसा का अन्त कर, जो कि हम कलुषित करके गिराते है और जो कि स्वतंत्रता के पक्ष को नुकसान पहुंचाते हैं। ये जनता की महान आर्थिक समस्याओं पर, जिन पर फौरन ध्यान देने की जरुरत है, विचार करने में बाधक होते है।
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अपनी दीर्घकालीन पराधीनता और विश्वव्यापी युद्ध और उसके परिणामों ने हमारे आगे बहुत सी अत्यावश्यक समस्याओं को एक साथ डाल दिया है। आज हमारी जनता के लिए खाना और कपडा और अन्य जरुरती वस्तुओं की कमी है, और हम मुद्रास्फीति और बढ़ती हुई कीमतों के बवंडर में पड़ गए हैं।
हम इन समस्याओं को तुरन्त हल नहीं कर सकते, साथ ही उनके हल करने में देर भी नहीं लगा सकते। इसलिए हमें बुद्धिमत्ता के साथ ऐसी योजनाएँ बनानी है जिनसे हमारी जनता का बोझ कम हो और उनके रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठे।
हम किसी का बुरा नहीं चाहते, लेकिन यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि अपनी चिर-पीड़ित जनता के हितों का ध्यान हमें सबसे पहले होना चाहिए और अन्य स्वार्थों को उनके आगे झुक जाना चहिए।
हमें अपनी दकियानूसी भूमि-व्यवस्था को जल्द ही बदलना है और हमें एक बड़े और संतुलित पैमाने पर उद्योग-व्यवसायों को उन्नत करना है, जिससे कि देश की संपत्ति बड़े और लाभ उचित रूप में वितरित हो सके।
उत्पादन आज की सर्वप्रथम आवश्यकता है और उत्पादन में रुकावट डालने या उसे कम करने का प्रत्येक प्रयत्न राष्ट्र को, और विशेष रूप से हमारे बहुसंख्यक श्रमिकों को, हानि पहुँचा रहा है।
लेकिन केवल उत्पादन पर्याप्त नहीं, क्योंकि इस का परिणाम यह हो सकता है कि संपत्ति सिंच कर कुछ थोड़े से हाथों में आ जाए। यह उन्नति के मार्ग में बाधक होगा और आज के प्रसंग में अस्थिरता और संघर्ष उत्पन्न करेगा। अतएव समस्या को हल करने के लिए उचित और न्याय्य वितरण बेहद जरूरी है।
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भारत सरकार के हाथ में इस समय जलप्रवाह के नियंत्रण द्वारा नदियों की घाटियों के विकास की, बांधों और जलागरों और सिंचाई के साधनों के निर्माण की, और पन-बिजली की शक्ति के विकास की कई बड़ी योजनाएं हैं।
इनसे खाने की वस्तुओं के उत्पादन में तथा सभी तरह के औद्योगिक विकास में सहायता मिलेगी। यह कार्य सभी योजनाओं के लिए बुनियादी है और हम इन्हें जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहते हैं, जिससे कि जनता को इनका फायदा मिल सके।
इन सब बातों लिए शांति की स्थिति और सभी संबंधित लोगों का सहयोग और कठिन और निरंतर मेहनत जरुरी है।
इसलिए हमें इन महान और करने योग्य कामों में लग जाना चाहिए और आपस के झगड़े-फसाद को भूल जाना चाहिए। झगड़ा करने का समय अलग होता है और मिल-जुलकर उद्योग करने का अलग।
काम करने का समय अलग होता है और खेल-कूद का अलग। आज न झगड़ा करने का समय है, न बहुत खेल कूद का। यदि हम अपने देश और अपनी जनता के साथ बात नहीं करना चाहते तो आज हमें एक दूसरे से सहयोग करना चाहिए और मिल-जुल कर काम करना चाहिए और यथार्थ सद्भावना से काम करना चाहिए।
मैं कुछ शब्द नागरिक तथा सैनिक राजसेवकों से कहना चाहूँगा। पुराने अन्तर और भेद मिट गए है और आज हम सभी भारत के स्वतंत्र बेटे और बेटियां है और अपने देश की स्वतंत्रता का तथा उसकी सेवा में लगने का हमें गर्व है।
हम समान रूप से भारत के प्रति निष्ठा रखते हैं। हमारे सामने जो कठिन समय है उसमें हमारे राज-सेवकों और विशेषज्ञों को बड़े महत्व का भाग लेना है और हम एक साथी की भाँति उन्हें भारत की सेवा में लगकर ऐसा करने का बुलावा देते हैं।
जय हिन्द !
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