रजिया सुलताना, शेरशाह और जायसी को डॉ. लोहिया बाप मानते थें

राम मनोहर लोहिया हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दू-मुसलमानों के सांप्रदायिकता पर उन्होंने 3 अक्तूबर 1963 को हैदराबाद में एक लंबा भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने इस मसले का हल बताया था। आज डॉ. लोहिया कि पुण्यतिथि के अवसर पर हम उस भाषण का संपादित भाग आपके लिए दे रहे हैं..

मतौर से जो भ्रम हिन्दू और मुसलमान, दोनों के मन में है, वह यह कि हिन्दू सोचता है पिछले 700-800 साल तो मुसलमानों का राज रहा, मुसलमानों ने जुल्म किया और अत्याचार किया, और मुसलमान सोचता है, चाहे वह गरीब से गरीब क्यों न हो कि 700-800 वर्ष तक हमारा राज था, अब हमको बुरे दिन देखने पड़ रहे हैं।

हिन्दू और मुसलमान दो​​नों के मन में यह गलतफहमी धंसी हुई है, यह सच्ची नहीं है। अगर सच्ची होती तो इस पर मैं कुछ नहीं कहता। असलियत यह है कि पिछले 700-800 साल में मुसलमान ने मुसलमानों को मारा है। कोई रुहानी अर्थ में नहीं, जिस्मानी अर्थ में मारा है। तैमूरलंग जब 4-5 लाख आदमियों को कत्ल करता है, तो उसमें से 3 लाख तो मुसलमान थे, पठान मुसलमान थे जिनका कत्ल किया। कत्ल करने वाला मुगल मुसलमान था।

यह चीज अगर मुसलमानों के घर-घर में पहुंच जाए कि कभी तो मुगल मुसलमानों ने पठान मुसलमानों का कत्ल किया और कभी अफ्रीकी मुसलमान ने मुगल मुसलमान का, तो पिछले 700 वर्ष का वाकया लोगों के सामने अच्छी तरह से आने लग जायेगा कि यह हिन्दू-मुसलमान का मामला नहीं है, यह तो देशी-परदेशी का है।

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सबसे पहले अरब के या और कहीं के मुसलमान आए, वे परदेशी थे। उन्होंने यहां के राज को खत्म किया। फिर वे धीरे-धीरे सौ-पचास वर्ष में देशी बने लेकिन जब वे देशी बन गए तो फिर एक दूसरी लहर परदेशियों की आई, जिसने इन देशी मुसलमानों को उसी तरह से कत्ल किया जिस तरह से हिन्दुओं को।

फिर वे परदेशी भी सौ-पचास वर्ष में देशी बन गए और फिर दूसरी लहर आई। हमारे मुल्क की तकदीर इतनी खराब रही है, पिछले 700-800 वर्ष में, कि देशी तो रहा है नपुंसक और परदेशी रहा है लुटेरा, या समझो जंगली और देशी रहा है नपुंसक। यह है हमारे 700 वर्ष के इतिहास का नतीजा।

इस बात को हिन्दू और मुसलमान दोनों समझ जाते हैं तो फिर नतीजा निकलता है कि हरेक बच्चे को सिखाया जाए, हरेक स्कूल में, घर-घर में, क्या हिन्दू क्या मुसलमान बच्ची-बच्चे को कि रजिया, शेरशाह, जायसी वगैरह हम सबके पुरखे हैं, हिन्दू और मुसलमान दोनों को मैं यह कहना चाहता हूँ कि रजिया, शेरशाह और जायसी को मैं अपने मां-बाप में गिनता हूँ।

यह कोई मामूली बात इस वक्त मैनें नहीं कही है। लेकिन, उसके साथ-साथ मैं चाहता हूँ कि हममें से हरेक आदमी, क्या हिन्दू क्या मुसलमान, यह कहना सीख जाए कि गजनी, घोरी और बाबर लुटेरे थे और हमलावर थे।

यह दोनों जुमले साथ-साथ हों, हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए कि गजनी, घोरी और बाबर हमलावर और लुटेरे थे, सारे देश के लिए परदेशी होते हुए देशी लोगों की स्वाधीनता को खत्म करने वाले लोग थे और रजिया, शेरशाह और जायसी वगैरह हमारे सबके पुरखे थे।

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अगर 700 सालों को देखने की यह नजर बन जाए तो फिर हिन्दू और मुसलमान दोनों पिछले 700 वर्ष को अलग-अलग निगाह से नहीं देखेंगे, लड़ाई करने वाली निगाह से नहीं देखेंगे, फिर वे देखने लग जाएंगे, जोड़ने वाली निगाह से कि हमारे इतिहास में यह तो मामला था देशी का, यह अपने, यह थे पराए और दोनों का नजरिया एक हो जाएगा। जब हम इतनी दूर पहुंच जाते हैं तो फिर मैं उससे आज के लिए कुछ नतीजा निकालना चाहता हूँ।

आज हिन्दू और मुसलमान दोनों को बदलना पड़ेगा। दोनों के मन बिगड़े हुए हैं। सबसे पहले तो जो बात मैंने आपके सामने रखी, उसी मामले में। कितने हिन्दू हैं जो कहेंगे कि शेरशाह उनके बाप-दादों में हैं, और कितने मुसलमान हैं जो कहेंगे कि गजनी, घोरी लुटेरे थे?

मैं बोल रहा हूँ, इसलिए वह बात अच्छी लग रही है, लेकिन अभी जब आप घर लौटोगे, तो कोई न कोई शैतान आपको सुना देगा, देखा, कैसी वाहियात बातें सुनकर आए हो, अगर गजनी-घोरी न आए होते तो मुसलमान होते ही कहां से?

देखा, शैतान किस बोली से बोलता है। तो इसका मतलब इस्लाम या मुहंमद, नहीं वह तो गजनी-घोरी से है। जरा इसके नतीजे सोच लेना कि क्या होते हैं। और, उसी तरह से, शैतान की बोली होगी, देखा, कैसा वह बोलने वाला था, वह तुम हिन्दूओं के बाप-दादे शेरशाह को बना गया।

अच्छी तरह से सोच-विचार करके, अपने मन को, खोपड़ी को एक तरह से तराश करके, उलट करके जो कुछ भी गंदगी उसमें पिछले 700 – 800 वर्ष की भरी हुई है, उसको साफ करके फिर उस जुमले पर आना और फिर सोचना कि हिन्दू और मुसलमान दोनों का मन बदलना बहुत जरूरी हो गया है।

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इस वक्त मन बहुत बिगड़ा हुआ है। मैं दो मिसाल देकर बताता हूँ। ऊपर से तो सब मामला ठीक है, ज्यादातर ठीक है। दंगे कहां होते हैं। कभी – कभी जरूर हो जाते हैं, पर ऊपर से मामला ठीक है। लेकिन अंदर क्या है यह सबको मालूम है। जो ईमानदार आदमी है, वह छिपा नहीं सकता इस बात को कि अंदर दोनों का मन एक-दूसरे से फटा हुआ है।

मुझे इस बात पर सबसे ज्यादा दुःख इसलिए होता है कि इससे हमारा देश बिगड़ता है। कोई भी देश तब तक सुखी नहीं हो सकता, जब तक उसके सभी अल्पसंख्यक सुखी नहीं हो जाते।

मेरा मतलब सिर्फ मुसलमानों से नहीं। वैसे तो सच पूछो तो मैं मुसलमानों को अलग से अहमियत नहीं देता। मुसलमानों के अंदर ज्यादातर पिछड़े लोग हैं जैसे जुलाहे, धुनिये।

5 करोड़ में ये चार, साढ़े चार करोड़ पिछड़े मुसलमान लोग हैं। मैं उनको अहमियत देता हूँ, पढ़ाई-लिखाई में, गरीबी में, हर मामले में। उसी तरह से और लोग भी हैं, हरिजन, आदिवासी वगैरह। जब तक ये सुखी नहीं होते, तब तक भारत सुखी नहीं हो सकता। यह पहला उसूल है। इसमें भी मन ठीक करना।

एक और बड़ी बात है और वह यह कि अगर हम किसी तरह से हिन्दू-मुसलमान के मन को जोड़ पाए तो शायद हम भारत-पाकिस्तान को जोड़ने का सिलसिला भी शुरू कर देंगे।

मैं यह मानकर नहीं चलता कि जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा एक बार हो चुका है, यह हमेशा के लिए हुआ है। किसी भी भले आदमी को यह बात माननी नहीं चाहिए। मन को जोड़ने का क्या तरीका है?

एक तरफ हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के लिए बहुत संदेह है, शक है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ वर्षों में पलटन में, और महकमे छोड़ भी दो, और इसी ढंग से जो दिल्ली के महकमे हैं उनमें बड़ी नौकरियों में मुसलमानों को जितना हिस्सा देना चाहिए, उतना नहीं दिया गया है। इसे बहुत कम आदमी कहते हैं, क्योंकि सच बोलने से आदमी जरा झिझका करते हैं, लेकिन यह बात सच है।

इसलिए हिन्दुओं को अपना मन अब साफ कर लेना चाहिए कि आखिर इस मुल्क के हम सब नागरिक हैं। अगर मान लो कि थोड़ा-बहुत मामला शक का है और कभी किसी टूट के मौके पर कुछ मुसलमानों का भरोसा नहीं किया जा सकता कि टूट के मौके पर वे यह या वह रूख अख्तियार करेंगे, तो एक बात अच्छी तरह समझ लेना है कि जितना ज्यादा हिन्दू मुसलमानों के लिए शक करेंगे।

मुसलमान उतना ही ज्यादा खतरनाक बनेगा और हिन्दू जितनी ज्यादा सद्भावना का या प्रेम के साथ मुसलमान के साथ बर्ताव करेंगे, जिस तरह मैंने हिन्दू मन के बदलाब की बात कही, उसी तरह मुसलमान मन के बदलाव की बात करता हूँ।

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