मीर जुमला (Mir Jumla) महज एक साधारण जनरल था। उसका पूरा नाम ‘मीर जुमला मीर मुहंमद सईद’ था। इतिहासकार जदूनाथ सरकार के अनुसार, “वह एक ईरानी व्यापारी था, जो शुरुआत में गोलकुण्डा में हीरे का कारोबार करता था।”
वह सुल्तान अब्दुल्ला कुतुबशाह (1626-1672) की सेवा में जाकर उसका वज़ीर बन गया। वह राजनेता के साथ-साथ एक महान् सिपहसलार भी था। सरकार कहते हैं, वह फारस देश के आर्दिस्तान (Ardistan) प्रांत का रहनेवाला सैयद था। वह इस्फहान (Ispahan) में रहनेवाले तेल के कारोबारी का लडका था।”
इसवीं 1630 में युवावस्था में वह अपनी जन्मभूमि छोड़कर वह दकन भारत के सुलतानो के दरबार मे किस्मत आजमाने चला आया। हीरे-जवाहरातों का कारबोरी बनकर वह हद से ज्यादा अमीर हो गया। उसके आश्चर्यजनक गुणो से खुश होकर सुलतान अब्दुल्ला कुतुबशाह ने उसे अपना प्रधानमंत्री बना लिया।
अपनी उद्योगशीलता, कोरबारी हुनर, शासन-क्षमता, युद्ध कुशलता और जन्मजात नेतृत्व आदी खासियतों के वजह से मीर जुमला को अपने प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती रही।
जदूनाथ सरकार अपनी किताब ‘औरंगजेब’ में लिखते है, “सरकार राज्य-शासन और युद्धक्षेत्र, दोनों में ही अपूर्व योग्यता के कारण वह जल्द ही गोलकुण्डा का वास्तविक शासक बन गया। अपने आका की आज्ञानुसार कर्णाटक पहुँचकर मीर जुमला ने बहुत से यूरोपियन गोलदांजो तथा तोपे ढालनेवालो को अपनी सेना मे भरती कर लिया।
इस तरह उसने अपनी सेना अधिक शक्तिशाली, रणदक्ष और सुनियंत्रित बना ली। जल्द ही उसने कडप्पा जिले पर अपना अधिकार जमा लिया। इसी तरह अब तक दुर्गम समझे जानेवाले गंडीकोटा के पहाडी किले को जीत लिया।”
इस अभियान में, कडप्पा के पूर्व में स्थित सिधौत (शहर) को जीतते हुए उसके सेनापति अर्काट जिले के उत्तर में स्थित तिरुपति और चंद्रगिरी तक बढते चले गए। गडे हुए खजाने की खोज कर-कर के उसने उन्हें लूटा। इससे मीर जुमला को बहुत दौलत हाथ लगी।
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बना कर्नाटक का सुलतान
इन सारी जीत करने के बाद उसने अपनी कर्णाटक की अलग-अलग जागीरो को एक राज्य बनाया। इस तरह वह अपने सुलतान ते पुरी तरह अलग होकर कर्नाटक का वास्तविक सुलतान बन बैठा। बादशाह बनने के बाद दौलत और प्रदेश के बारे में उसकी लालच बढती गयी।
इधर गोलकुण्डा दरबार में मीर जुमला के हरकतो से सुलतान बहुत नाराज था। ये सिधे तौर पर राष्ट्रद्रोह था। जिसे शाही दरबार में कोई माफी नही थी। माना जाता हैं की, उसके थाट-बाट तथा शान शौकी को गोलकुण्डा का सुल्तान पसंद नहीं करता था।
सरकार लिखते हैं, “अपने ईर्ष्यालु दरबारियों के उकसाने पर सुलतान अब्दुल्ला कुतुबशाह ने आज्ञापालन न करनेवाले अपने इस प्रधान को दबाने का खुल्लम खुल्ला बीडा उठाया।”
ऐसे हालात में मीर जुमला अपने लिए एक संरक्षक को खोजने लगा। उसने बीजापुर सल्तनत आदिलशाही के अधीन रहकर उस राज्य की खिदमत करने का प्रस्ताव कबुल कर लिया। महज उसकी कहानी यहीं खतम नही होती।
वह बड़ा ही शातिर और चलाक था। आदिलशाही के अधीन रहते हुये उसने मुग़लों सांठ-गाठ बढाने की कोशिश शुरू कर दी।
सरकार लिखते हैं, औरगजेब मीर जुमला के समान सुयोग्य सहायक और सलाहकार कों मुगल साम्राज्य का प्रधानमंत्री बनाने के लिए बड़ा ही उत्सुक था। गोलकुण्डा में स्थित मुगल दूत के द्वारा औरंगजेब ने मीर जुमला सें गुप्त पत्र-व्यवहार शुरू कर दिया। मुग़लों की नौकरी कबुल करने पर बादशाह से कई तोहफे दिलाने का उसे वादा किया।
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मिला मुग़लो का सहयोग
जगदीश नारायण अपनी किताब ‘दि लाइफ ऑफ मीर जुमला’ में लिखते है, शातिर मीर जुमला को औरंगजेब के प्रस्ताव को कबुल करने की कोई जल्दी न थी। उसने एक साल के बाद जवाब देने की तमन्ना जाहिर कर दी। इधर गोलकुण्डा दरबार में उसे लेकर अनबन चल रही थी। इसलिए उसने फौरन कोई कदम उठाने से परहेज किया।
इसी दौरान मीर जुमला के लडके मुहंमद अमीन ने कुतुबशाह के प्रति अपने बर्ताव से गोलकुण्डा में एक संकटपूर्ण परिस्थिति उत्पन्न कर दी थी। वह कई सालों से गोलकुण्डा दरबार में मीर जुमला का प्रतिनिधि बनकर वह राज्य-शासन का काम कर रहा था। वह खुले आम दरबार में भी सुलतान का बहुत ही कम अदब करता था।
नवम्बर 1655 कि घटना होगी। एक दिन वह नशे में लड़खडाता हुआ दरबार में आया। सुलतान गद्दी खाली पाकर उसपर जा लेटा। नशे के हालात मे धूत उसने गद्दी पर उल्टी करके उसे खराब कर दिया। उसके व्यवहारों से तंग हुये सुलतान अब्दुल्ला से रहा न गया, उसने मुहंमद अमीन को अपने परिवार के कैदखाने में बंद कर दिया। इतना ही नही उसकी जायदाद जब्त कर ली।
इधर मुगल का दकन सेनापति औरंगजेब इसी मौके के तलाश में था। उसने यह हाल एक खत के माध्यम से बादशाह शाहजहाँ को बयान किया। जवाब में बादशाह ने 18 दिसम्बर 1655 को औरगंजेब को एक खत मिला मिला। जिनमें मीर जुमला और उसके लड़के मुहंमद अमीर को मुग़लों की शाही सेवा मे नियुक्तिया दी गयी थी।
इसी खत में गोलकुण्डा के सुलतान कुतुबशाह के लिए एक आदेश भी था। खत के मुताबिक मीर जुमला और उसके लड़के इन दोनों को शाही दरबार में आने के लिए रोके नही। साथ उनकी जायदाद पर कोई जब्ती या फिर रोक-टोक न लगाये।
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शाहजहाँ कि शरण में
औरगजेब ने यह आदेश खत फौरन ही कुतुबशाह के पास भेज दिया। इतना ही नही उसके न मानने या उसके पालन करने में देरी होने पर जंग की धमकी दे दी। इसके साथ उसने अपनी फौज को गोलकुण्डा के सीमा की ओर बढ़ाया। इधर कुतुबशाह को मुग़लों के इन शाही फ़रमानो की कोई परवाह नही थी।
मौका पाकर औरंगजेब अपने बेटे मुहंमद सुलतान के साथ हैदराबाद मे दाखिल हुआ। आखिरकार लूट-खसोट और साधारण से हौ हल्ले के बाद अब्दुल्ला कुतुबशाह शाहजहाँ के फैसले पर राजी हुआ। एक संधि के साथ उसने मुहंमद अमीन और उसके परिवार को छोड़ दिया। दुसरी ओर बादशाह के आदेश के बाद औरगजेब को गोलकुण्डा परिसर छोड़ना पडा।
मीर जुमला 6 हजार गुडसवार, 15 हजार पैदल सेना और 150 हाथी के साथ कयी तोपे लेकर मुग़ल दरबार में हाजीर हुआ। उसने दिल्ली जाकर बादशाह को 15 लाख के कई कीमती तोहफे दिये, जिनमे 216 रत्ती वजनवाला एक बड़ा सा हिरा भी था। शाहजहाँ ने मीर जुमला के कारनामों से खुश होकर उसे फौरन 6 हजारी मनसब दिया।
आगे मीर जुमला के नेतृत्व में दकन में कई सैनिक अभियान हुये, जिनमें जीत हासिल कर उसने मुग़ल साम्राज्य की कीर्ति को नई ऊँचाईयाँ प्रदान कीं।
इसवीं 1660 में औरंगज़ेब ने मीर जुमला को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया, जहाँ पहुँच कर उसने शाह शुजा (Shah Shuja) को प्रांत से बाहर खदेड़ दिया। बाद में उसने आसाम पर चढ़ाई की, अहोम राजा को अपनी राजधानी छोड़कर भागना पड़ा। मीर जुमला ने अहोम राज से ईसवीं 1662 में संधि करने के लिए मजबूर कर दिया।
इस संधि के द्वारा अहोम राजा हर्जाने के रूप में एक बड़ी रकम देने तथा दक्षिणी आसाम का बहुत-सा भाग मुग़लों को सौंप देने के लिए राजी हो गया। मीर जुमला कि मुगडलो के लिए यह बहुत बड़ी जीत थी। अपने कई विजयी पराक्रमों से उसने मुग़लों को खुश कर दिया।
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प्लूरिसी बिमारी से पीड़ित
मीर जुमला ने कम समय में बहुत ज्यादा सफलताएं हासिल की। उसे प्रधानंत्री बनाया गया। वह औरंगजेब का हिमायती बना। जब दिल्ली में सत्तासंघर्ष हुआ और उत्तराधिकारी के लिए दारा या औरंगजेब का चुनाव करना था, तो मीर जुमला ने औरंगजेब का साथ दिया।
अपने विजयी अभियान को लिए वह बंगाल की और बढ़ रहा था। इसी बीच आसाम के जंगलों से गुजरते समय खराब हवामान कि वजह से मुग़ल सेना को बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। खराब हवामान कि वजह से मीर जुमला बीमार पड़ गया।
वह ‘प्लूरिसी’ बिमारी से पीड़ित हो गया था। उसके फेफड़ों में सूजन और छाती में असहनीय दर्द था। इसी बिमारी मीर जुमला ने ईसवीं 30 मार्च 1663 में उसकी जान ले ली। उसका मकबरा असम में गारो हिल्स में मनकाचर (Mankachar) में रंगपानी में स्थित है। यह मकबरा एक छोटी सी पहाड़ी पर है।
कहते हैं, इस मकबरे में इसकी बहुत लंबी कब्र है। जो इस बात की गवाही देती है कि मीर जुमला एक बहुत लंबे कद काठी का आदमी था। बहरहाल मीर जुमला वह इन्सान था, जिसने मुगलों को दकन का प्रवेशद्वार खोलकर दे दिया, जिसके बाद मुगलों यहां आकर काफी तबाही मचाई जिसकी गवाही आज भी दकन कि दरों-दिवारे देती हैं।
जाते जाते :
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