अन्नाभाऊ ने आम लोगों को संस्कृति से जोडा था

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, फासीवादी हिटलर ने सोवियत रूस पर आक्रमण किया। लाल सेना ने हिटलर के फासिवाद के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया। इस सबका बख़ान करनेवाला एक पोवाडा अन्नाभाऊ नें 1942 में लिखा। जिसे काफी लोकप्रियता मिली। मुंबई में मज़दूर आंदोलनों में इसका जोरदार स्वागत हुआ और अन्नाभाऊ की लोकप्रियता भी बहुत बढ़ गई।

कम्युनिस्ट पार्टीयों के महकमों मे भी स्टॅलिनग्राद का पोवाडाके विशेष कार्यक्रम हुये, जिसे कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन नेताओं ने देखा था और अन्नाभाऊ की प्रशंसा भी की थी। केवल इतना ही नहीं, बल्कि पार्टी ने स्टेलिनग्राद का पोवाडा नामक एक पुस्तिका भी प्रकाशित की, जिसे लोगों में वितरित किया गया।

1938 से 1943-44 तक, अन्नाभाऊ और उनके साथियों ने मुंबई के गिरणगांव में चल रहे हड़तालों, आंदोलन, संघर्षों के समर्थन में कला मंडली द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके कार्यकर्ताओं में जागरूकता पैदा करने का बड़ा काम किया। इस कला मंडली के माध्यम से होने वाले सांस्कृतिक जागरण का फायदा कम्युनिस्ट आंदोलन को पहुंचाने के लिए पार्टी नें सांस्कृतिक मोर्चे पर विशेष ध्यान देने का निर्णय लिया।

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संयुक्त कला मंडली स्थापित

इस बीच, 1943 में मुंबई में कम्युनिस्ट पार्टी का पहला संमेलन आयोजित किया गया था, जिसमें कॉमरेड पी. सी. जोशी को अखिल भारतीय सचिव चुना गया। उनके लेखकों और कलाकारों के साथ घनिष्ठ संबंध थे। चूंकि कम्युनिस्ट पार्टी का केंद्रीय मुख्यालय मुंबई में था, इसलिए महाराष्ट्र के प्रमुख शाहीर कलाकारों को एक साथ लाने के लिए मुंबई में एक संयुक्त कला मंडली स्थापित करने का निर्णय लिया गया।

मध्ययुग की जीर्ण हड्डियाँ है निरंकुश राज्य

स्वदेशी धनिकों ने फैलाए विदेशी सापरा साम्राज्य

फाड़के बुरका खोले दुनिया को दिखलाओ

जगाकर रंगमंच समरभूमि में जाओ

अब हमारायह आखिरी उठाया वार नहीं चूकनेवाला !!

किसान और दलित जनों को लेकर पीठ पर

जनतंत्र क्रांति के अपने एक नारा के लिए

कोटि कर हाथोने झंडा लाल फहराया….

इसके लिए पार्टी नें बार्शी-सोलापूर से शाहीर कॉ. अमर शेख और कोल्हापूर से कॉ. दत्तात्रय गव्हाणकर को मुंबई बुलाया था। 1944 में, माटुंगा लेबर कैंप में इन तीन प्रमुख शहीर और अन्य कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं और कलाकारों की भागीदारी के साथ लाल बावटा कला पथकनामक एक ऐतिहासिक कला मंडली का गठन किया गया था। जिसके प्रमुख कॉ. अन्नाभाऊ साठे, कॉ. अमर शेख और कॉ. दत्ता गव्हाणकर थे। तो प्रबंधक के रूप में वा. वि. भट थे।

अन्नाभाऊ के जाति-वर्ग चेतना के गीत, पोवाडे, लावणियाँ, लोक नाटकों के साथ कॉ. अमर शेख के गीत और उनकी पहाड़ी आवाज, साथ में कॉ. दत्ता गव्हाणकर के गीत, लोक नाटक और उनकी लोकप्रिय तरस, संगीत की साथ और निर्देशन तमाम के एक साथ आने कि वजह से लाल बावटा कलापथक मुंबई में मज़दूरों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया।

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दर्द को बया करते गीत

इस बीच, कम्युनिस्ट पार्टी ने जनवरी 1945 में मुंबई के करीब ठाणे जिले के टिटवाला में महाराष्ट्र किसान सभा का पहला स्थापना संमेलन आयोजित करने का फैसला लिया, जिसे कॉमरेड शामराव परुलेकर और कॉ. गोदावरी परुलेकर और कॉ. बुवा नवले का नेतृत्व मिला। मुंबई और आसपास के ठाणे तथा कोलाबा जिलों में इस ऐतिहासिक संमेलन के बारे में जागरूकता फैलाने में लाल बावटा कलापथकका बड़ा योगदान था।

संमेलन के लिये कॉ. अमर शेख द्वारा लिखा गया एक खास गीत किसान सभा शेतकऱ्याची माऊली’ (किसान सभा कृषकों कि माता)। नारायण सूर्वे इनकी डोंगरी शेत माझ गाव, मी बेनू किती…’ (मेरी खेती पहाडी हैं, उस कितना जोतू…) ग्रामीण किसान महिला के दुःख, कठिनाई और दर्द को बया करते ये गीत काफी चर्चा में आये।

इस संमेलन में ही कॉ. अन्नाभाऊ, कॉ. अमर शेख और कॉ. गव्हाणकर इस तीन प्रमुख शाहीरों को महाराष्ट्र से आये तमाम किसान, मजदूर, कास्तकार, कार्यकर्ता, प्रतिनिधी, आदिवासी और श्रमिकों नें जाना। इन तीन प्रमुख शाहीरी गीतों और लोक नाटकों को लोगों ने काफी सराहा।

इस संमेलन में अन्नाभाऊ ने किसानों कि समस्याओं और शिकायतों को व्यक्त करने के लिए अकलेची गोष्टनामक एक विशेष लोक नाटक लिखा था। जिसके बाद में पूरे महाराष्ट्र में कार्यक्रम हुये और बहुत लोकप्रिय भी हुये।

1943 से 1946 तक बंगाल में भीषण सुख़ा पड़ा और लोग भूख से मर रहे थे। इस दुखद घटना के बारे में बताने के लिए और लोगों को अपनी नाराजगी व्यक्त करने और मानवीयता को आह्वान करने के लिए अन्नाभाऊ नें 1944 में बंगालची हाक’ (बंगाल कि पुकार) नामक पोवाडा लिखा था।

 

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नाटकों में आम लोगों के जगह

कॉ. अन्नाभाऊ, कॉ. अमर शेख और कॉ. गव्हाणकर अपने साथियों के साथ लाल बावटा कलापथक को लेकर बंगाल गये। वहां उन्होंने उस पोवाडे और गीतों के कई कार्यक्रम करके लाखों रुपये इकठ्ठा किये।

यह पोवाड़ा इतना लोकप्रिय हो गया कि बंगाल में इप्टाके कलाकारों ने इसका बंगाली में अनुवाद किया और इसके कई कार्यक्रम किये और बाद में यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। इस पोवाड़ा का बंगाली में एल पी रिकॉर्ड भी आया। इतना ही नही इप्टा के कलाकारों ने, उसे लंदन के प्रसिद्ध रॉयल थिएटर में बैलेडांस नाटक भी प्रस्तुत किया गया।

कॉमरेड अन्नाभाऊ की खासियत यह थी कि मुंबई का मजदूर आंदोलन हो या चाहे चीन कि माओ के नेतृत्व मे हुई सामाजिक क्रांती, इन सबकी दखल उन्होंने ली। जैसे 1946 में मुंबई में नाविकों का ऐतिहासिक विद्रोह, किसान आंदोलन, तेलंगाना के किसानों, निजामशाही और जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष, विभाजन को लेकर पंजाब और दिल्ली में हुये दंगों, अंमलनेर में पुलिस की गोलीबारी में शहीद होने वाले किसानों का सवाल, हर एक अत्याचार को उन्होंने अपने गीतों, पोवाडे और जन नाटकों में लिखा है।

1946 में अन्नाभाऊ अपनी कला मंडली के साथ अंमलनेर गये और सरकार की अंधाधुंध गोलीबारी का विरोध किया। मुंबईचा गिरणी कामगार’ (मुंबई के मिल वर्कर्स), ‘माझी मुंबई’ (मेरी मुंबई), ‘बोनसचा लढा’ (बोनस के लिए संघर्ष), ‘लवादाचा ऐका परकार’, शेटजीचे इलेक्शन (सेठ का चुनाव), ‘बेकायदेशीर’ (गैरकानूनी) इत्यादी नाटकों में हाशिये पर धकेले गये समाज का चित्रण किया।

वे अपने गीतों, पोवाडे, लोक नाटकों से मालिक-श्रमिक संबंध, पूंजीवादी लोकतंत्र, मजदूर और किसानों के शोषण, धोखाधड़ी आदी पर प्रहार करते। अपने बहुचर्चित मुंबई लावणीमें, उन्होंने पूंजीपती, अमीर और गरीब के जीवन में अत्यधिक असमानता को दर्शाया है।

(क्रमश:)

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