महिला सम्मान एवं अधिकार के पैरोकार पैग़म्बर!

द उल मिलाद उन नबी त्योहार, खुदा के प्यारे रसूल हजरत पैग़म्बर मुहंमद सल्ललाहोवलैहिसल्लम की पैदाइश की याद में मनाया जाता है। यह त्योहार ईदों की ईद है। यदि ईद मिलादुन्नबी ना होती, तो ईद और ईदुल अज्हा की खुशी न मिलती। इस्लाम के आखिरी पैग़म्बर मुहमंद साहब का जन्म सऊदी अरब के मक्का शहर में इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रबी उल-अव्वल महीने की 12 तारीख (22 अप्रेल, 571 ईसवीं) को हुआ था।

अरबी कैलेंडर की इसी तारीख को पैग़म्बर की वफात यानी देहावसान भी हुआ था। लिहाजा इस दिन को बारावफात भी कहते हैं। इस्लाम के अनुयायियों के लिए इस दिन की अहमियत अलग ही है।

मुहंमद साहब के जन्मदिन की वजह से यह दिन उनके लिए खुशियों का भी है, तो इसी रोज इंतेकाल होने की वजह से गम का भी। लेकिन सारी दुनिया के मुसलमान ईद मिलाद के दिन को खुशी से मनाते हैं।

एक दिन पहले मस्जिदों में रात भर पैग़म्बर की तालीम पर बात होती है, तो दूसरे दिन हर जगह रैलियां और जुलूस निकाले जाते हैं। बड़े-बड़े समारोह कर, पैग़म्बर साहब की तालीम को लोगों तक पहुंचाया जाता है। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता है।

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महिलाओं अधिकारों के समर्थक 

पैग़म्बर साहब जन्म उस दौर में हुआ, जब अरब जगत में आडंबर, कर्मकांड, सामाजिक बुराइयां और अनेक कुरीतियां, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और नवजात बच्चियों की हत्याएं आम थीं। उस जहालत भरे दौर में लड़कियों की पैदाइश को एक समाजी शर्म और तौहीन माना जाता था।

लोग बच्चियों की पैदा होते ही हत्या कर देते थे। अरब सरजमीं पर मौजूद इन बुराइयों के खिलाफ पैग़म्बर मुहंमद ने सबसे पहले अपनी आवाज उठाई। जब वे इस राह पर निकले, तो उनकी राह में तरह-तरह की मुश्किलें पैदा की गईं, लेकिन फिर भी वे बिना किसी परवाह के आगे बढ़ते चले गए।

इन्सानियत और एकेश्वरका पैगाम देने वाले पैग़म्बर मुहंमद, समाज में महिलाओं को सम्मान एवं अधिकार दिए जाने की हमेशा पैरोकारी करते रहे। उन्होंने बच्चियों की पैदाइश और उनकी परवरिश को जन्नत में दाखिल होने का जरिया करार दिया।

मुहंमद साहब, औरतों के प्रति भेदभाव के खिलाफ थे। उन्होंने इनके लिए समानता की वकालत की। आज से सदियों पहले ही उन्होंने लड़कियों को जायदाद में मिल्कियत का अधिकार दे दिया था।

पैग़म्बर साहब ने हमेशा अपने किरदार और बर्ताव से इन्सान को तालीम दी कि सभी इन्सान एक समान हैं। एक ईश्वर की संतान हैं। लिहाजा सभी से समानता का बर्ताव करो। किसी के साथ भेदभाव न करो। सभी मिल-जुलकर, भाईचारे के साथ रहो।

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दुश्मन भी सच्चा मानते थे

पैग़म्बर वह शख्स थे, जिन्होने हमेशा सच बोला और सच का साथ दिया। यहां तक कि उनके दुश्मन भी इनको सच्चा मानते थे। अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों के साथ पैग़म्बर साहब का बर्ताव हमेशा अच्छा होता था।

जिन्दगी का ऐसा कोई भी पहलू नहीं जिसे बेहतर बनाने, अच्छाई को स्वीकार करने के लिए मुहंमद साहब ने कोई पैगाम न दिया हो। उनकी सभी बातें इन्सानों को सच की राह दिखाती हैं।

उनके दुश्मनों और दोस्तों दोनों ने पैग़म्बर साहब को अल-अमीनऔर अस-सादिकयानी विश्वसनीय और सत्यवादी स्वीकार किया है। जिन्दगी के सभी मामलों व क्षेत्रों में पैग़म्बर ने अपने उत्कृष्ट गुणों, बेदाग ईमानदारी, महान नैतिक सद्गुणों तथा अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त विश्वसनीयता को साबित किया।

हजरत साहब का पैगाम है कि कोई इन्सान उस वक्त तक मोमिन (सच्चा मुसलमान) नहीं हो सकता, जब तक कि वह अपने भाई-बन्दों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है।

उन्होंने झूठी प्रशंसा, गरीबों को हीन भावना से देखने, समाज के कमजोर तबकों पर जुल्म करने का हमेशा विरोध किया। अल्लाह की इबादत पर जोर दिया। पैग़म्बर का कथन है, अगर कोई शख्स अपनी कामना और ख्वाहिश को पूरा करता है, तो उसका भी उसे सवाब (पुण्य) मिलेगा। शर्त यह है कि वह इसके लिए वही तरीका अपनाए जो जायज हो।

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बतलाया जीने का बेहतर तरीका 

पैग़म्बर साहब ने हर इन्सान को तालीम दी कि दूसरे की जान, माल, इज्जत को ऐहतराम की नजर से देखो। उन्होंने जिस इस्लाम मजहब की नींव डाली, वह उस दौर में काफी प्रगतिशील और उदार था।

एकाधिकार (इजारादारी), सूदखोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर कब्जा कर लेने, जमाखोरी, बाजार का सारा सामान खरीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना इन सब कामों को इस्लाम ने गैरकानूनी माना है।

इस्लाम में जुआ और शराब को भी गलत माना गया है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, अनाथालय स्थापित करने को अच्छा काम माना है। पैग़म्बर-ए-इस्लाम ने फरमाया है कि तुम जमीन वालों पर रहम करो, तो अल्लाह तआला तुम पर भी रहम बरसाएगा।

खुदा के इस रसूल ने सारी दुनिया को इन्सानियत, समानता और भाईचारे का पैगाम दिया। उन्होंने इन्सानों को जिन्दगी जीने का एक नया तरीका और बेहतर सलीका बताया। लोगों को सही रास्तें पर चलने की तालीम दी।

पैग़म्बर ने समूची इन्सानियत को मुक्ति और मुहब्बत का पैगाम दिया। अगर उनकी तालीमों पर विचार किया जाए, तो दो बातें उनमें सबसे अहम हैं। पहली, मुहंमद साहब की शिक्षाएं किसी एक मुल्क या मजहब के लिए नहीं हैं, वे सबके लिए हैं। सारी दुनिया और पीड़ित मानवता के लिए हैं।

दूसरी, उनकी शिक्षाएं आज से सदियों साल पहले जितनी प्रासंगिक थीं, वे आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। जरूरत उन शिक्षाओं को सही तरह से समझने और उन पर ईमानदारी से अनुसरण करने की है।

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