इस्लाम के कुछ अनुयायी थें जिन्होने तत्वज्ञान कि मूल प्रेरणाओं को विकसित कर, इस्लाम को दुनिया के शोषितों का धर्म बनाने में कामयाबी हासिल की। इन विचारकों को आज सुफीवाद के विचारक, जिसे इस्लामी अध्यात्मी विचार कहा जाता है, के तौर पर प्रचारित किया जाता है। जो वास्तविकता कि अधुरी तस्वीर मात्र हैं।
यह सूफी वही थें जिन्होंने इस्लाम के पैगम्बर के आदेश को अपने जीवन का ध्येय मानते हुए, जिंदगीयां कुर्बान की और इस्लाम को अऱब प्रादेशिक सीमाओं से बाहर लाकर खडा किया। अलग प्रदेशों मे जाकर वहां के प्रादेशिक संस्कृति और उसके मुल्यों की पुनर्व्याख्या करते हुए उन्हे अदिम इस्लामी प्रेरणाओं के साथ जोड दिया।
इस्लाम के उदय पश्चात इस्लामी दर्शनशास्त्र के आधार पर जीवन कि पुनर्व्याख्या करने के प्रयास शुरु हुए। मानवी समाज, संस्कृति और उसमें छिपे शोषण के तत्व को इस्लाम ने चुनौती दी।
भौतिक परिस्थितीयों कि कारणमिमांसा करते हुए इस्लामी फिलोसॉफी के अनुयायों ने मानव समाज के इतिहास को पुनर्व्याख्यायित किया। इस्लामी राजनैतिक विद्रोह कि सामाजिक पार्श्वभूमी विकसित करने में इन नव-मुस्लिम तत्वचिंतको ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
इस्लाम दुनिया को जिस शोषणविरहीत मानव संस्कृति का ख्वाब दिखा रहा था, वह विश्व में अलग-अलग रुप में चली आ रही सामंतशाही के वैचारिक विरोधी गूट को जन्म दे रहा था।
इस्लाम का यह विद्रोह विश्व समाज कि ऐतिहासिक धारणाओं, निष्ठाओं और श्रद्धाओं को ध्वस्त करने कि क्षमता रखता था। इस्लामी आंदोलन के प्रथम अध्याय में यह विद्रोह इसीलिए मुमकीन था क्योंकि इस्लाम ने शोषित समाज में उसके शोषण का निर्वाहन करनेवाले समतावादी विचारकों को नई प्रेरणा के साथ खडा किया।
पढ़े : आर्थिक न्याय के बारे में इस्लाम क्या कहता है?
पढ़े : क्या इस्लाम सज़ा ए मौत को सहमती प्रदान करता हैं?
इस्लाम के शुरुआती दौर के तत्वचिंतक अल्लाफ, नज्जाम, जहीज, मुअम्मर, अबू हाशिम बस्त्री का उल्लेख महत्वपूर्ण होगा। जैसे-जैसे इस्लाम का विकास होता रहा वैसे इस्लामी तत्वज्ञान के नए सिद्धान्तों ने जन्म लिया।
इस्लाम जो कि अरबी समाजक्रांति से जन्मा था, श्रमिकों के अध्यात्मिक आधार के तौर पर भी पहचाना जाने लगा। विश्व कि उत्पादन व्यवस्था में व्यापारी और सामंतो कि गुलामी में फसे श्रमिकों कि मुक्ती के लिए इस्लाम ने मेहनतकश मजदूरों कि श्रम अभिव्यक्ती को सम्मान प्राप्त करवाने वाले श्रद्धातत्वों को अधोरेखित किया।
इस्लाम से पूर्व अनेक दर्शन मौजूद थें जिन्होंने पतन के आखरी सीमा पर पहुंची विश्व मानवी समाज की संस्कृती को आधार देने कि कोशिशे की थी। जिसमें इसाई, यहुदी और युनानी दर्शन जिसका इस्लाम से सिधा रिश्ता रहा है, अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन तीनों दर्शनों में यहुदी और इसाई दर्शन समाजक्रांति के उन पैगम्बरो कि विचारधारा पर आधारीत थें, जिनमें इब्राहिम, इस्माईल, याकूब, मुसा, इसा (अ) आदी का समावेश हैं।
युनानी दर्शन तर्क पर आधारित था, जिसने मानव बुद्धी की स्वतंत्रता को महत्व देकर प्रचलित उत्पादक संस्था में बदलाव कि कोशिशें करते हुए, समाज कि नई अर्थव्यवस्था को जन्म देने के प्रयास किए। इस्लाम ने जन्म के पश्चात तर्कबुद्धी कि प्रेरणा माने गए युनानी तत्वज्ञान के इन्ही विचारकों के तथ्यों को चुनौती दी। उन्होंने युनानी दर्शन की मूल सामाजिक प्रेरणाओं को अध्यात्मिक तत्वों कि सहाय्यता से आगे बढाने के प्रयास शुरु किए।
पढ़े : हजार साल पहले अल् बेरुनी ने किया था जातिरचना का विरोध
पढ़े : वेदों और उपनिषदों का अभ्यासक था अल बेरुनी
अखवानुस्सुफा के पैगम्बर और दार्शनिक
इस्लामी तत्वज्ञान का उदय और विकास का इतिहास पैगम्बर मुहंमद (स) को प्राप्त प्रथम इशवाणी से लिखा जाता है, जिसे उचित नहीं कहा जा सकता। पैगम्बर मुहंमद नें जिन सामाजिक तत्वों कि प्रेरणाएं इस्लामी दर्शन के माध्यम से मानवी समाज के सामने प्रस्तुत की, उन्ही प्रेरणाओं के द्वारा उन्होंने गिरते अरब समाज को संभालने कि कोशिश उस समय की थी, जब इस्लाम का जन्म नहीं हुआ था। इसका सबसे बडा उदाहरण ‘हिल्फुल फुदुल’ संगठन का कहा जा सकता है।
यह संगठन इस्लामपूर्व नई अर्थव्यवस्था की संकल्पनाओं को लेकर, अरब व्यापारीयों को मजदुरों और छोटे व्यापारीयों के हक में चुनौती दे रहा था। जिसकी स्थापना खुद पैगम्बर मुहंमद ने की थीं। मगर इस्लाम का एकतर्फा अध्यात्मिक विकास, उसे समाजक्रांति की इस मूल प्रेरणाओं से काफी दूर खिंचने में सफल रहा।
जो इस्लामी अध्यात्म सामाजिक बदलाव कि प्रेरणा के साथ शुरु हुआ था, उसे परलौकिक जीवन की व्यक्तिगत सफलताओं के स्वार्थ तक सिमित किया गया। यह इस्लाम के नाम पर फैल रहे नवपौरोहितवाद का परिणाम था।
मुस्लिम समाज का यह दुर्भाग्य ही हो सकता है, की जिसकी स्थापना करनेवाले इस्लाम का जन्म जिस पुरोहितवर्ग का विरोध करते हुए हुआ था, अब वही पुरोहितवाद इस्लाम की किस्मत बन चुका था हैं।
इस्लामी पुरोहितवाद का विकास उस वक्त चरम पर पहुंचा जब चार आदर्श खलिफाओं के शासन की समाप्ती हुई और इमाम हुसैन ने खिलाफत के नाम पर शुरु हुए ‘फ्युडलिज्म’ के खिलाफ जंग छेडी। इमाम हुसैन कि हत्या ने फ्युडलिज्म को इस्लाम कि किस्मत बना दिया, जो ‘इस्लाम सामंतवाद’ की सोच को नकारता आ रहा था।
इसके बावजूद इस्लाम के कुछ अनुयायी ऐसे थे जिन्होंने तत्वज्ञान की मूल प्रेरणाओं को विकसित कर, इस्लाम को दुनिया के शोषितों का धर्म बनाने में कामयाबी हासिल की। इन विचारकों को आज सुफीवाद के विचारक, जिसे इस्लामी अध्यात्मी विचार कहा जाता है, के तौर पर प्रचारित किया जाता है।
जो वास्तविकता कि अधुरी तस्वीर मात्र है। यह सुफी वही थे जिन्होंने इस्लाम के पैगम्बर के आदेश को अपने जीवन का ध्येय मानते हुए, जिंदगीयां कुर्बान की और इस्लाम को अऱब प्रादेशिक सीमाओं से बाहर लाकर खडा किया।
उन्होंने अलग प्रदेशों मे जाकर वहां के प्रादेशिक संस्कृति और उसके मुल्यों की पुनर्व्याख्या करते हुए उन्हे अदिम इस्लामी प्रेरणाओं के साथ जोड दिया। पूर्व पैगंबरो के इतिहास का बडी खुबी से उपयोग करते हुए सुफीयों और इब्न खलदून जैसे विचारकों ने इस्लाम को समाजवाद के उद्गाता के रुप में प्रस्तुत किया। जिसकी वजह से दुनिया के मजदूरों, शोषितों और सांस्कृतिक पीडितों को संघर्ष नई प्रेरणा मिली।
पढ़े : विश्व के राजनीतिशास्त्र का आद्य पुरुष था अल फराबी
पढ़े : इब्न बतूता : 75 हजार मील सफर करनेवाला अरब प्रवासी
यही वजह थी की इस्लाम भारत में वर्णव्यवस्था कि विषमता को समतावादी अध्यात्म और नई आर्थिक संरचना का पर्याय देने में कामयाब रहा।
इन सूफीयों के समाजक्रांति का मार्ग प्रशस्त किया, उनमें अजिजुद्दीन राजी और उनका पवित्र संघठन अखवानुस्सफा तथा उसके अनुयायी मुकद्दसी (अबू सुलैमान मुहंमद इब्न मुशीर अल्बस्ती), जजानी (अबुल हसन अली इब्न हारुन अल्जजानी), नहाजूरी (मुहंमद इब्न अहमद अल्नहाजूरी), अल्औफी, जैद इब्न रिफाअ का समावेश होता हैं।
अखवानुस्सफा सिर्फ इब्राहिम, इसा, मुसा, जुलकरनैन, जुलकिफ्ल (अ) को ही पूर्व नबीयों में शामिल नहीं करता था, बल्की सुकरात (सॉक्रेटीस), अफलातुन (प्लुटो) को भी पैगम्बर कि श्रेणी में शामील कर उन्हे सम्मान देता था।
यह इस्लाम के प्रगतीशील विचारधारा कि ही देन थी कि, उसके अनुयायी इस्लामी तत्वों कि प्रेरणाओं को सुकरात के बलिदानों से जोड रहे थें। जो कार्य उसने नई आर्थिक संरंचना के निर्मिती और नागरी जीवन कि नई संहिता को खडे करने के लिए किया था। और इसी वजह से इस्लामी तत्वचिंतको के दुसरे अध्याय में इब्न रश्द, इमाम गजाली, इब्न मैमून, इब्न याह्या, इब्न खलदून, इब्न तिमिय्या जैसे विचारक पैदा हुए।
इस्लाम नें सामान्यों की जिदंगीयों पर होनेवाले आर्थिक परिणामों को ध्वस्त करने का जो आंदोलन खडा किया था। वह आंदोलन आज पुनः नवसाम्राज्यावादी औपनिवेशिक शक्तियों से झुंज रहा हैं।
इस्लाम कि जन्मभूमी आज इन्ही साम्राज्यवादी औपनिवेशियों के गुलामी में गिरफ्तार हो चुकी है। इस्लामी पुनर्जागरण के लिए उसकी समाजक्रांति कि प्रेरणाओं को पुनः उजागर करने के लिए इस्लाम के अनुयायों को एक बार फिर स्वर्ण अवसर मिला है।
जाते जाते:
*इस्लाम लोगों के नज़रों में समस्या क्यों बना हैं?
लेखक युवा इतिहासकार तथा अभ्यासक हैं। मराठी, हिंदी तथा उर्दू में वे लिखते हैं। मध्यकाल के इतिहास में उनकी काफी रुची हैं। दक्षिण के इतिहास के अधिकारिक अभ्यासक माने जाते हैं। वे गाजियोद्दीन रिसर्स सेंटर से जुडे हैं। उनकी मध्ययुगीन मुस्लिम विद्वान, सल्तनत ए खुदादाद, असा होता टिपू सुलतान, आसिफजाही इत्यादी कुल 8 किताबे प्रकाशित हैं।