राज्यसभा से:
माननीय उपसभापति जी, आज राज्य सभा में कृषि से संबंधित बहुत ही महत्वपूर्ण बिलों पर चर्चा हुई। सभी दल के ज्येष्ठ और श्रेष्ठ सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किए। जब ये बिल लोक सभा से पारित होकर राज्य सभा में आए थे, तब मुझे लगता था कि राज्य सभा में कुछ ऐसे सुझाव आएंगे, जिन पर विचार करना सरकार के लिए बाध्यता होगी।
मगर सरकार के लिए तो आसान है किसी भी राजनैतिक भाषण का जवाब देना। सामान्य तौर पर राजनैतिक दृष्टि से ही बहुत सारी बातें हमारे मित्रों ने कही हैं। मैं उन सब मित्रों के प्रति हृदय से बहुत-बहुत आभार प्रकट करता हूं और उनको धन्यवाद देना चाहता हूं।
साथ ही मैं इस अवसर पर यह कहना चाहता हूं कि आम तौर पर खेती का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। देश की बड़ी आबादी खेती के क्षेत्र में काम करती है और जीडीपी में भी खेती का योगदान बढ़ा था, बाद में बहुत सारे क्षेत्र खुल गए, इसलिए आज खेती का योगदान कम दिखाई देता है।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी और कोविड के संकट में भी हम देखेंगे कि दुनिया के सारे काम प्रभावित हुए, परंतु किसान ने खेती को जीवंत रखा। किसानों ने बम्पर पैदावार की, ग्रीष्म ऋतु की बुवाई बढ़कर की, खरीफ की बुवाई की और खेती का काम, खेती की जीडीपी इससे प्रभावित नहीं हुई। इसके लिए मैं देश भर के किसानों का अभिनंदन करना चाहता हूं और उन्हें बधाई देना चाहता हूं।
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सर, जब हम खेती के संदर्भ में विचार करते हैं, तो एकांगी विचार होगा, तो कभी भी न तो किसान का भला होगा और न खेती मुनाफे में आएगी। आप सबको ध्यान होगा कि प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2014 में कामकाज संभाला था।
उन्होंने उस समय कहा कि किसान की आमदनी दोगुनी करने के लिए उनकी सरकार प्रयत्न करेगी, राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगी और किसानों के हित के लिए काम करेगी। किसानों की आमदनी दोगुनी हो, उसके लिए सिर्फ यही बिल कारगर नहीं है।
किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए सिलसिलेवार बहुत सारे प्रयास पिछले छह सालों में किए गए हैं। यहाँ पर हमारे बहुत सारे मित्रों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात कही है। जब लोक सभा में न्यूनतम समर्थन मूल्य के मामले में चर्चा हो रही थी, तो वहाँ भी हमारे कुछ मित्रों ने इस प्रकार की शंका व्यक्त की थी।
मैंने उस समय भी कहा था और माननीय प्रधान मंत्री जी ने भी देश को आश्वस्त किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का इस विधेयक से कुछ लेना-देना नहीं है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कल भी खरीद हो रही थी और आने वाले कल में भी खरीद होती रहेगी, इस पर किसी को शंका करने की आवश्यकता नहीं है।
दूसरी बात यह है कि मैं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी की कृषि, किसान और एमएसपी के प्रति जो नीयत है, उसकी तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। स्वामीनाथन साहब ने काफी अध्ययन करने के बाद कृषि सुधार की दृष्टि से बहुत सारे सुझाव दिये थें। उसमें एक सुझाव यह भी था कि किसान की जो लागत है, उस पर 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर एमएसपी घोषित की जानी चाहिए।
यूपीए सरकार दस सालों तक सत्ता में रही, लेकिन उसने एमएसपी को पचास प्रतिशत मुनाफा जोड़कर स्वीकार नहीं किया। मैं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद देना चाहता कि उन्होंने यह निर्णय लिया। इस निर्णय के परिणामस्वरूप जो परिवर्तन हुआ है, वह मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं।
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महोदय, 2015-16 में धान का एमएसपी 1,410 रुपये प्रति क्विंटल था, यदि आप 2019-20 का मूल्य देखेंगे, तो यह 1,815 रुपये प्रति क्विंटल है। यदि आप गेहूं का मूल्य देखेंगे, तो यह 2015-16 में 1,525 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन आज 1,925 रुपये प्रति क्विंटल है।
2015-16 में मूंगफली 4,030 रुपये प्रति क्विंटल थी, आज 5,090 रुपये प्रति क्विंटल है। सोयाबीन का दाम 2015-16 में 2,600 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन आज 3,710 रुपये प्रति क्विंटल है। चना का दाम 2015-16 में 3,500 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन आज 4,875 रुपये प्रति क्विंटल है।
इस प्रकार आप पाएंगे कि इस दिशा में लगातार एमएसपी में बढ़ोतरी हो रही है। अभी खरीफ की एमएसपी घोषित हो गई है, इसकी खरीद शुरू होने वाली है और रबी की एमएसपी जल्द ही घोषित होगी।
महोदय, जहाँ तक एमएसपी पर उपार्जन का सवाल है, मैं आपके ध्यान में लाना चाहूंगा कि 2009 से 2014 के बीच धान 1,670 लाख मीट्रिक टन खरीदा गया था, जिस पर 2 लाख, 88 हजार, 777 करोड़ रुपये व्यय हुए थे। 2014 से 2019 के बीच के इन छह सालों में धान की खरीद 1,870 लाख मीट्रिक टन हुई है, जिस पर 4 लाख, 34 हजार, 788 करोड़ रुपये का व्यय हुआ है।
अगर आप गेहूं की दृष्टि से देखेंगे, तो आपके ध्यान में आएगा कि 2009-2014 के बीच में 1,395 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई थी और 1 लाख, 68 हजार करोड़ रुपये का व्यय हुआ था। 2014 से 2019 के बीच 1,457 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई थी और उस पर 2 लाख, 27 हजार करोड़ रुपये का व्यय हुआ था।
ऐसे ही अगर हम दलहन और तिलहन का देखें, तो मैं आपको 2004 से 2014 का आंकड़ा बताता हूं। इन दस वर्षों में तिलहन की खरीद 50.05 लाख मीट्रिक टन हुई और 10 हजार, 183 करोड़ रुपये व्यय हुए। अगर आप 2014 से 2020 के बीच का आंकड़ा देखेंगे, तो 56 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई और 25 हजार करोड़ रुपये का व्यय हुआ।
अगर हम दलहन का देखेंगे, तो हमारे ध्यान में आएगा कि 5.4 लाख मीट्रिक टन, जिस पर 1,180 करोड़ रुपए खर्च हुए विगत 6 वर्षों में, 2014-2020 में, 100 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई, जिस पर 49 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए।
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माननीय उपसभापति महोदय, मैं सभी माननीय सदस्यों से MSP के बारे में कह रहा था। जब MSP को 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़ कर घोषित किया गया और लगातार MSP पर खरीद हो रही है, MSP के बारे में किसी को कोई शंका नहीं होनी चाहिए।
2014 में मोदी जी की सरकार बनी। मैं कृषि के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को आपके सामने रखना चाहता हूँ। 2009-10 में कृषि मंत्रालय, जबकि उसमें Animal Husbandry भी शामिल था, तो ऐसी स्थिति में जो व्यय था, वह सिर्फ 12 हजार करोड़ रुपए का था और आज जब 2020-21 में देखेंगे, तो आज लगभग 1 लाख 24 हजार करोड़ रुपए agriculture के क्षेत्र में, यह अपने आप में निश्चित रूप से प्रधान मंत्री, नरेन्द्र मोदी जी की कृषि के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उपसभापति जी, हमारी सरकार प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में लगातार कृषि के क्षेत्र में सुधार कर रही है। लगातार इस दिशा में आगे बढ़ रही है। देश में खेती का आंकड़ा बढ़ रहा है, उत्पादन बढ़ रहा है, उत्पादकता बढ़ रही है। किसान फायदे की ओर धीरे-धीरे अग्रसर हो रहा है।
इसी दृष्टि से प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश भर में 10,000 एफपीओ बनाने की घोषणा की है और इस पर काम प्रारंभ हो चुका है। इससे निश्चित रूप से आने वाले कल में किसानों को फायदा मिलेगा। यह पहली बार हुआ है कि एक लाख करोड़ रुपये का इतना बड़ा पैकेज प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कृषि के क्षेत्र को दिया है।
मैं आपसे आग्रह करना चाहता हूं कि यह बिल भ्रष्टाचार को नियंत्रित करेगा और तीन दिन के अंदर किसान का भुगतान सुनिश्चित करेगा।यह जो ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020’ है, यह बिल किसानों के जीवन स्तर में बदलाव लाने वाला है, धन्यवाद।
सभार : राज्यसभा
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लेखक केंद्रीय कृषि मंत्री हैं।