जाने माने विधिवेत्ता फाली एस नरीमन ने हाल में एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही। वर्तमान राजनैतिक स्थिति के संदर्भ में उन्होंने कहा कि ‘‘हिंदू धर्म, पारंपरिक रूप से, अन्य सभी भारतीय धर्मों से तुलनात्मक रूप में सबसे अधिक सहिष्णू रहा है परंतु हाल में कट्टरवादियों द्वारा फैलाये जा रहे धार्मिक तनाव और घृणा फैलाने वाले भाषणों से ऐसा लगता है कि, हिंदू धर्म अपना सौम्य चेहरा बदल रहा है।’’
इन दिनों आरएसएस की विचारधारा, अर्थात हिंदुत्व विचारधारा, से जुड़े संगठन लगातार ऐसी बातें कह रहे हैं जिनसे यह ध्वनित होता है कि भारत हमेशा से हिंदू राष्ट्र है और रहेगा। उनमे से कुछ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी प्रकट कर रहे हैं। हिंदू एक धर्म है।
हिंदुत्व एक राजनैतिक विचारधारा है। हिंदुत्ववादी संगठन तरह-तरह की बेहूदा बातें कर रहे हैं। वे दूसरे समुदायों के प्रति घृणा का वातावरण पैदा करने के लिए जहां एक ओर कथित लव जिहाद जैसे मुद्दे उठा रहे हैं तो दूसरी ओर यह भी कह रहे हैं कि ‘‘हम सब हिंदू हैं।’’
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इसके साथ ही, उदारवादी हिंदू धर्म पर हमले भी हो रहे हैं जिन लोगों ने एक मुस्लिम परिवार में जन्में सुफी संत शिरडी के सांई बाबा को अपना भगवान मान लिया है, उनसे यह कहा जा रहा है कि उन्होंने ठीक नहीं किया।
हिंदुत्ववादी कई अलग-अलग बातें कह रहे हैं और उनके दावों में परस्पर विरोधाभास भी है। परंतु सबका लक्ष्य एक ही है-किसी न किसी तरीके, किसी न किसी बहाने से धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना।
जो मूल प्रश्न पूछा जाना चाहिए वह यह है कि क्या संघ परिवार से उठ रही आवाजें, हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करती हैं या वे हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति करने का प्रयास है। यह प्रश्न अधिक जटिल इसलिए बन जाता है क्योंकि इन दिनों अलकायदा और आईएस जैसे कई संगठन, इस्लाम के नाम पर अपनी कुत्सित गतिविधियां चला रहे हैं।
स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गांधी और मौलाना आजाद जैसे नेता शामिल थे जो अपने-अपने धर्मों में गहरी आस्था रखते थें। परंतु जहां तक उनकी राजनीति का प्रश्न है, वह पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष थी। उसी दौर में सावरकर और बॅ. मुहंमद अली जिना जैसे लोग भी थे जो ‘धार्मिक’ तो नहीं थे परंतु हिंदू धर्म और इस्लाम के नाम पर अपनी राजनीति करते थे।
संघ परिवार, हिंदू धर्म को इस धर्म की एक संकीर्ण धारा ब्राह्मणवाद से जोड़ रहा है। हिंदू धर्म किसी एक पुस्तक, पैगम्बर या पुरोहित वर्ग पर आधारित नहीं है। हिंदू धर्म में ढे़र सारे देवता हैं, ईश्वर की कई तरह की मीमांसाएं हैं और सैंकड़ों पवित्र ग्रंथ हैं।
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स्वाधीनता आंदोलन के दौरान गांधीजी ने यह दिखाया कि किस प्रकार हिंदू धर्म की उदारवादी परंपराओं का इस्तेमाल कर, धर्म को राजनीति से पृथक रखा जा सकता है। गांधीजी ने भारतीय राष्ट्रवाद की नींव रखी। उनका भारतीय राष्ट्रवाद, उस हिंदू राष्ट्रवाद से एकदम अलग था, जिसके प्रतिपादक हिंदू महासभा और आरएसएस थे। इन संगठनों का हिंदू धर्म संकीर्ण और असहिष्णू था।
चूंकि अधिकांश हिंदू, गांधीजी के अनुयायी थे, इसलिए हिंदू महासभा-आरएसएस का असहिष्णू हिंदू धर्म हाशिए पर पड़ा रहा। परंतु पिछले तीन दशकों में राममंदिर आंदोलन से शुरू होकर, राजनीति में ‘दूसरों’ के बारे में असहिष्णू दुष्प्रचार का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है।
इस समय देश पर भाजपा का शासन है। स्वाभाविक तौर पर भाजपा और उससे जुड़े संगठनों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है और इसीलिए वे और खुलकर धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा फैला रहे हैं।
वे उन लोगों को आतंकित करना चाहते हैं जो राजनीति और धर्म के उनके संस्करण से सहमत नहीं हैं। आरएसएस की राजनीति केवल ‘दूसरों’ को आतंकित करने तक सीमित नहीं है। वह उन हिंदुओं पर भी निशाना साध रही है जो संघ से भिन्न राय रखते हैं। मुझ जैसे लोगों को रोजाना अपमानित करने वाले और अश्लील भाषा में लगभग गालियां देने वाले संदेश बड़ी संख्या में मिलते हैं।
जैसे-जैसे धर्म के नाम पर राजनीति परवान चढ़ती जायेगी, समाज में असहिष्णुता भी बढ़ेगी। हमारे सामने चुनौती यह है कि हम लोगों को कैसे यह समझायें कि धर्म और धर्म के नाम पर राजनीति एकदम अलग-अलग चीजें हैं।
इस संदर्भ में श्री नरीमन का वक्तव्य, उस प्रजातांत्रिक उदारवादी वर्ग की आह है, जो संघ परिवार के नेतृत्व में चल रही हिंदुत्ववादी राजनीति के तेजी से आगे बढ़ते कदमों से अचंभित और परेशान है।
जाते जाते :
* बच्चे पैदा करना मुसलमान और हिन्दू दोनों के लिए देशद्रोह!
* सरकारी फ़ेलियर का जिन्दा दस्तावेज थी, गंगा में तैरती लाशें !
लेखक आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे मानवी अधिकारों के विषयो पर लगातार लिखते आ रहे हैं। इतिहास, राजनीति तथा समसामाईक घटनाओंं पर वे अंग्रेजी, हिंदी, मराठी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा में लिखते हैं। सन् 2007 के उन्हे नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित किया जा चुका हैं।