मुघल सम्राट बाबर नें खोजी थी भारत की विशेषताएं 

बाबर कि जिंदगीयों की कुछ घटनाएं और उसने आत्मचरित्र में लिखे हुए कई तथ्यों कि गलत साबित नही किया जा सकता। वैसेही किसी एक घटना को लेकर बाबर को एक सहिष्णु उदार राज्यकर्ता के रुप में चित्रित करना भी उचित नहीं होगा। परंतु उसके इस जिंदगी को भी नकार नही सकते।

24 फरवरी 1482 को फरगना, वर्तमान तुर्की में जन्मा बाबर मुलतः एक अभ्यासक और शोधकर्ता था। वह जहां भी गया उसने वहां की संस्कृति, लोकभाषा, लोकजीवन, भौगोलिक रचना का अध्ययन किया। अपने निरिक्षण शक्तीसे उसने जो कुछ समझा उसे अपनी जीवनी ‘तुज्क ए बाबरी’ में लिखता रहा। जन्मदिन विषेश पर शोधकर्ता बाबर को खोजते हैं।

मुहंमद जियाउद्दीन बाबर मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक था। वह मध्यकालीन भारत का एक ऐसा सेनापती था जिसने अपने जीवन में कई बार ध्वस्त होने के बावजूद एक इतिहास कि नींव रखी। बाबर अपनी मां की ओर से चंगेज खान और पिता कि तरफ से तैमूर का वंशज था। इस तरह बाबर में एशिया के दो महान सेनापतीयों का विरसा मौजूद था।

अपने पिता शेख उमर मिर्जा कि मौत के बाद बाबर ने 8 जून 1494 को 11 साल कि उम्र में सत्ता की बागडौर हाथ में ली। बाबर को सत्ता तो मिली, लेकीन अपने चचा और भाईयों कि साजिशों की वजह से वह टिक न सकी।

कुछ ही दिन में बाबर सत्ता से दूर हो गया, जो बाबर कुछ दिन पहले राजपरिवार का हिस्सा था, सत्ता प्रमुख रहा, वह अब दर-दर कि ठोकरें खा रहा था।

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पुर्वजों का महान विरसा

बाबर जंगलो में अपने साथीयों के साथ अपने भविष्य कि जंग लड रहा था। सन 1497 से लेकर बाबर 1504 तक भटकता रहा। ईसवी 1504 में बाबर के पास सिर्फ दो सिपाही बचे थे, बाबर का बल पुरी तरह से खत्म हो चुका था।

मगर बाबर में अपने पुर्वजों का महान विरसा मौजूद था, जो उसे एक इतिहास कि रचना करने के लिए उसे उद्युक्त कर रहा था। बाबर अपनी एक कविता में लिखता है –

हाय, मैने अपनी जिंदगी में

कौन से दुख और दर्द के पहाड नहीं झेले

कौन सा नुकसान न सहन किया।

इस हृदय ने सारे कष्ट उठाए।

हाय मैंने क्या कुछ न सहा?

इस दयनीय स्थिती से बाबर फिर उठ खडा हुआ, उसने काबूल पर जीत हासील की। लेनपुल जो बाबर का चरित्रकार है, लिखता है, ‘‘बाबर एक बाग में मृत्यु की प्रतिक्षा में पडा था, मगर उसकी किस्मत दुबारा जाग उठी।’’

काबूल जितने के पश्चात बाबर वहां 1524 तक राज करता रहा। काबूल का प्रदेश काफी छोटा था, कम आय में गुजारा करना मुश्कील बन रहा था, जिसके बाद उसने साम्राज्य विस्तार का फैसला किया।

उसके सामने पिता का राज्य दुबारा प्राप्त करने का पर्याय भी उपलब्ध था, मगर राणा संगा और दौलतखान लोदी के निमंत्रण पर वह भारत की तरफ चल पडा। ईसवीं 1519 से 1524 तक बाबर ने भारत पर हमला करने के चार असफल प्रयत्न किए और आखिरकार 21 अप्रैल 1526 को उसने इब्राहिम लोदी को पराजित कर दिल्ली में मुगल साम्राज्य कि नींव रखी।

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दि ग्रेट मॅन ऑफ इंडिय़ा

बाबर कि पानिपत की जीत ऐतिहासिक थी, दुनिया के महान विजेताओं की पंक्ती में इस जीत ने बाबर को खडा किया। रशब्रुक विल्यम (Rushbrook Willams) अपनी किताब ‘दि ग्रेट मॅन ऑफ इंडिय़ा’ में लिखते हैं, “बाबर ने जब पानिपत कि जंग के लिए मैदान में कदम रखा तो उसके साथ मात्र 8 हजार सैनिक थे।’’

मगर अन्य इतिहासकारोंने यह कहते हुए इस तथ्य को मानने से इनकार किया है की, “यह संख्या शुरुआती दौर की है, जब बाबर ने काबूल जिता था, पंजाब कि जीत के बाद इसमें काफी बढोतरी हुई और बाबर का सैन्यबल 25 हजार के करीब जा पहुंचा।”

यह मान भी लिया जाए की, बाबर के पास 25 हजार सैन्य थें, तब भी बाबर की जीत का महत्व कम नहीं होता। उसका एक मात्र प्रमुख कारण, प्रतिस्पर्धी इब्राहिम लोदी का सैन्यबल और उसकी राजनितिक स्थिती है।

माणिकलाल गुप्ता अपनी ‘मध्यकालीन भारत’ किताब में कहते हैं, “इब्राहिम लोदी के पास तकरीबन 1000 हाथी और 1 लाख सैनिकों का उल्लेख है परंतु उसके युद्धरत सैनिक योद्धाओं की संख्या 40 हजार के लगभग रही होगी।

यह युद्ध 21 अप्रैल को शुरु हुआ और मध्यान्ह तक उसका निर्णय हो गया। जंग में बाबर कि विजय हुई, सुल्तान इब्राहिम लोदी वीरगती को प्राप्त हुआ, अफगान बुरी तरह पराजित हुए।”

बाबरने इस जंग में ‘तुलगमा’ युद्ध नीति का प्रयोग किया था। जिसमें शबखुन मारना, (छिपकर हमले) अंधेरे और पहाडीयों का सहारा लेकर  हमले करने जैसे तंत्र शामिल थें।

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बाबर और भारत

इस विजय के बाद बाबर का ईसवी 1526 को भारत में आगमन हुआ। बाबर मुलतः एक अभ्यासक था। वह जहां भी गया वहां की संस्कृति, लोकभाषा, लोकजीवन, भौगोलिक रचना का उसने अध्ययन किया। अपने निरिक्षण शक्तीसे जो कुछ समझा उसे अपनी जीवनी ‘तुज्क ए बाबरी’ में लिखता रहा।

डॉ. एस.एल. नागोरी और कांता नागौरी जो बाबर के इतिहास के अभ्यासक हैं, वे लिखते हैं, “बाबर ने हिंदुस्तान के हाथी गेंडे, जंगली भैंसे, नीलगाय, मुर्गी आदि पशुओं का वर्णन करते हुए उनके स्वभाव के बारे में लिखा हैं। उसने बंदर, नेवला एवं गिलहरी की भी चर्चा की है। मोर, तोते, शहामुर्ग, सारस, नीलकंठ कोयल, चमगादड आदि पक्षियों का भी वर्णन किया हैं।

जल जंतुओ में मेंढक, घडियाल और मछलियों के बारे में लिखा हैं। बाबर ने फलो में आम की काफी प्रशंसा की है। उसने आम के साथ केले, इमली, जामुन, बेर, खुरमे, नारियल, ताड, चिरौंजी आदि के बारे में विस्तृत रुप से लिखा है। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष की ऋतुओं, सप्ताह के दिन, समय विभाजन, तौल का भी उसने विवरण दिया है।”

बाबर हमेशा से खुबसुरत चिजों का आशिक रहा। नए विषय का ज्ञान लेना, नए प्रदेशों को भेंट देना, नई वस्तुओं, फलों, जानवरों की जानकारी लेना उसकी खुबी रही। उसके सभी जीवनीकारों एवं अभ्यासकों ने इस बात की पुष्टी की है की, उसने कभी एक जगह दो से अधिक ईद नहीं मनायी।

बाबर ने भारत के बारे में अपना मत विस्तारपुर्वक ‘तुज्क इ बाबरी’ में लिखा है, वह जब भारत में आया तबसे लेकर आखिर तक उसने भारत की विशेषताएं खोजने का प्रयास किया।

बाबर ने भारत की खुबसुरती और उसका वर्णन करने के लिए कविताएं लिखी हैं। कई बार उसने दुसरों की कविताओं का उल्लेख किया है। उसने आम कि तारीफ करते हुए अमीर खुसरो का एक शेर दिया है, जिसमें खुसरो कहते हैं –

नगज के मा नगज कुने बुस्तां

नगज के तरीन मेवए हिन्दोस्ताँ

भावार्थ – मेरी माशुका आम, बाग कि खुबसुरती बढाने वाला फल, हिन्दोस्तां का सबसे अच्छा फल

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बाबरनामा

मध्यकालीन भारत के इतिहास में चचनामा, अदाबुल हर्ब वल शुजाअत, तारिख ए फेरोजशाही, आईन ए अकबरी जैसे महान ग्रंथो का जो स्थान हैं, वही स्थान बाबर के आत्मचरित्र को दिया जाता हैं।

इसकी रचनाशैली, भाषा, शब्दों का चयन तथा लेखन कि सरलता ने इसकी महानता को अधोरेखित किया हैं। एनेट ब्रेवरिज (Annette Bevridge) जिन्होंने बाबर के इतिहास अध्ययन को नए आयाम दिए है।

उनका कहना है की, “बाबर के आत्मचरित्र कि तुलना विश्व के महान महाकाव्यों से भी की जा सकती है, जैसे की ‘ख्रिस्तोमयी टरके’ का उदाहरण लिया जा सकता है।”

बाबरनामा में व्याकरणशास्त्र से लेकर काव्य समिक्षा तक सेंकडो अलग विषयों पर चर्चा कि गई हैं। बाबर अपनी गलतीयों को तक छुपाता नहीं, अपने कमीयों पर स्वयं टिप्पणी करते हुए बाबर ने अपनी आत्मा से कविताओं के माध्यम से कई सवाल किए हैं।

बाबर ने जिन कवियों, तत्ववेत्ताओं का उल्लेख किया हैं, उसके आधार से यह कहा जा सकता हैं की, बाबर ने सेंकडो ग्रंथो का अध्ययन किया था। तर्कशास्त्र, राजनितीशास्त्र, धर्म, लोकजीवन, भाषा आदि का उसका ज्ञान न केवल सराहनीय है, बल्की उस वक्त कि उपलब्धीयों के आधार पर उसकी समिक्षा की जाए तो आश्चर्यरकारक भी हैं।

निसंदेह इतिहास के शोधकर्ताओं के लिए बाबर का यह ग्रंथ मध्यकालीन फारसी, तुर्की साहित्य को समझने के लिए मददगार हैं।

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उदारता

वर्तमान में बाबर को सातत्यपुर्ण प्रयासों के चलते एक धर्मांध शासक के रुप में प्रस्तुत किया जाता है। मुद्दों का संक्षिप्तीकरण करने कि प्रक्रिया इतिहासलेखन शास्त्र के मुलाधार पर हमेशा से आघात करत आई हैं।

जैसे बाबर कि जिंदगीयों की कुछ घटनाएं और उसने आत्मचरित्र में लिखे हुए कई तथ्यों कि गलत व्याख्या कर उसे धर्मांध नहीं कहा जा सकता वैसेही किसी एक घटना को लेकर बाबर को एक सहिष्णू उदार राज्यकर्ता के रुप में चित्रित करना भी उचीत नहीं होगा।

बाबर मध्यकालीन राज्यसंस्था का प्रतिनिधी था, उसने जो कुछ उस संस्था के हित में समझा किया। मगर फिर भी बाबर अपनी सत्ता के हित में कभी अंधा नहीं था। उसने हुमायून को दिया हुआ ‘वसिहतनामा’ जिसमें उसने अपने पुत्र को उदारता के पाठ पढाए हैं, जिसपर इतिहासकारों में मतभिन्नता है, उदार विचारों का प्रतिक है।

यह वसिहतनामा इतिहासकारों में विवाद का केंद्र रहा हो, मगर अपने दुसरे बेटे कामरान को लिखे खत को सभी इतिहासकारों ने न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि, बाबर कि प्रशंसा भी कि हैं। जिसमें बाबर ने अपने बेटे को सहिष्णूता, इन्सानी अहसासात का पाठ पढाया हैं।

बाबर कामरान को लिखता है, “देखो तुम अच्छे मार्ग से कभी न भटकना, और तुम्हारे दिमाग में सदैव ख्वाजा हाफिज के यह शब्द बने रहें, ‘वृद्ध पुरुष अपने अनुभव कि बात बताते हैं।

हाँ यही मैं तुमसे, अपने बच्चे से कह रहा हूं कि तुम इस वृद्ध की हिदायतों को सुनो- तुम कभी युवा अवस्था के लोगों की बातों में आसानी से न आना और न ही उनके हाथों राज कार्य देना।

तुम सदैव बुजुर्ग, अनुभवी, उदार एवं निष्ठावान तथा सत्यवादी बेगों जो कि परामर्श बहुत अच्छी तरह से देते हैं, उनकी इच्छाओं तथा सुझावों के अनुसार कार्य करना। तुम उन लोगों की मनोवृत्ती का भी उल्लंघन न करना जो कि कार्य करने में होशियार हैं, मृदभाषी हैं, तथा तर्क करने में कुशल हैं। कभी भी चापलुसों तथा कपटी लोगों की बातों न आना।’’

‘तुज्क ए बाबरी’ में बाबर के लिखे ऐसे कई विचार है, जिससे बाबर की उदार दृष्टी, जनसहाय्यकता एवं दुरदृष्टी कि झलक मिलती है। बाबर मुगल राजनिती का संस्थापक जरुर है, मगर अन्य मुगल बादशाहों से उसके राजनिती कि प्रवृत्ती भिन्न है।

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