नेहरु कि लेखमाला :
पण्डित नेहरू कि ‘Glimpses of world history’ किताब मध्यकालीन भारत के इतिहास का एक संपन्न और सर्वकालिक दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। यह ग्रंथ 1934 में लिखा गया था।
आज जब मध्यकाल के इतिहास को तोड-मरोडकर पेश किया जा रहा हैं, तब नेहरू कि यह किताब हम सब के लिए जरुरी हो जाती हैं। हम डेक्कन क्वेस्ट के माध्यम से पाठको को इस किताब का रिविजन करा रहे हैं। आज इस लेखमाला में मुघल का महान सम्राट अकबर के व्यक्तित्व के बारे में पढेंगे।
सम्राट अकबर शारीरिक दृष्टि से अपूर्व ताकतवाला और फुर्तीला था। वह जंगली और खुँखार जानवरों के शिकार से ज्यादा किसी चीज से प्रेम नहीं करता था।
एक सिपाही की हैसियत से तो वह इतना बहादुर था कि उसे अपनी जान तक की बिलकूल परवाह न थी। उसकी आश्चर्यभरी ताकत का अंदाजा आगरे से अहमदाबाद तक के उस मशहूर सफर से लगाया जा सकता है जो उसने केवल 9 दिन में पूरा किया था।
उस समय गुजरात में बलवा हो गया था और अकबर एक छोटी सी फ़ौज के साथ राजपूताने के रेगिस्तान को पार करके साढ़े 400 मील की दूरी तय करके वहां जा धमका। यह एक गैर मामूली काम था। यह बतलाने की जरूरत नहीं है कि उस जमाने में न तो रेल थीं और न मोटरें।
लेकिन इन गुणों के अलावा महान पुरुषों में कुछ और भी होता है। उनमें एक तरह की आकर्षण शक्ति होती है जो लोगों को उनकी तरफ खींचती है।
अकबर में यह व्यक्तिगत आकर्षण शक्ति और जादू बहुत ज्यादा था; जेसुइट (सोसाइटी ऑफ जीसस के सदस्य) लोगों के अदभूत बयान के मुताबिक उसकी आकर्षक आंखें ‘इस तरह झिलमिलाती थीं जिस तरह सूरज की रोशनी में समुद्र।’
इसमें ताज्जूब की क्या बात है, यदि यह पुरुष हमको आज तक आकर्षित करता हो और उसका बहादुराना और शाही व्यक्तित्व उन लोगों के बहुत ऊपर दिखलाई पड़ता हो जो सिर्फ बादशाह हुए है?
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साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा
विजेता की दृष्टि से अकबर ने सारे उत्तर भारत और दक्षिण को भी जीत लिया था। उसने गुजरात, बंगाल, उडीसा, काश्मीर, और सिंध अपने साम्राज्य में मिला लिए।
मध्य भारत और दक्षिण भारत में भी उसकी विजय हुई और उसने कर वसूल किया। लेकिन मध्य प्रांत की रानी दुर्गावती को हराकर उसने अच्छा नहीं किया। यह रानी एक बहादुर और न्यायप्रिय रानी थी और उसने अकबर को कुछ नुकसान नहीं पहुँचाया था।
लेकिन महत्वाकांक्षा और साम्राज्य को बढ़ाने की ख्वाहिश इन छोटी-मोटी बातों को बिलकुल परवाह नहीं करती है। दक्षिण में भी उसकी फौजों में अहमदनगर की रानी (दरअसल वह रानी न थी बल्कि राज की देखरेख करने के लिए ‘रीजेंट’ थी) मशहूर चांदबीबी से लड़ाई लडी।
इस औरत में दिलेरी और काबलियत थी और उसने युद्ध में जो लोहा लिया उसका असर मुघल फ़ौज पर इतना पडा कि उन्होंने अच्छी शर्तों पर उसके साथ सुलह मंजूर कर ली। बदकिस्मती से कुछ दिन बाद उसके ही कुछ असंतुष्ट सिपाहियों ने उसे मार डाला।
अकबर की फौजों ने चित्तौड़ पर भी घेरा डाला। यह राणा प्रताप से पहले की बात है। जयमल ने बड़ी बहादुरी से चित्तौड़ की रक्षा की। उसके मारे जाने पर भयंकर ‘जौहर व्रत’ फिर हुआ और चित्तौड़ जीत लिया गया।
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वफादारों का जमावडा
अकबर ने अपने चारों तरफ बहुत से काबिल सहायक इकठ्ठा कर लिये जो उसके प्रति बड़े वफादार थे। इनमें मुख्य फैजी और अबुल फजल वो भाई थे, और एक था बीरबल जिसके बारे में अनगिनती कहानियाँ कही जाती है। तोडरमल अकबर का अर्थमंत्री था। इसी ने लगान के सारे तरीके को बदल दिया था।
यह जानकर आश्चर्य होगा कि उन दिनों जमींदारी प्रथा न थी और न जमीदार थे, न ताल्लुकेदार। रियासत खुद किसानों या रैयत से लगान वसूल करती थी। यही प्रणाली आजकल रैयतवारी प्रणाली कहलाती है। आज कल (1934) के जमींदार अंग्रेजों के बनाये हुए हैं।
जयपुर का राजा मानसिंह अकबर के सबसे काबिल सिपहसालारों में से था। अकबर के दरबार में एक और मशहूर आदमी था – गवैयों का सिरताज तानसेन, जिसे आज हिन्दुस्तान के सारे गये अपना गुरू मानते हैं।
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बसाये आलीशान शहर
शुरू में अकबर की राजधानी आगरा थी, जहां उसने किला बनवाया। इसके बाद उसने आगरे से 15 मील दूर फतहपुर- सीकरी में एक नया शहर बसाया। उसने यह जगह इसलिए पसंद की कि यहाँ शेख सलीम चिश्ती नाम के एक मुस्लिम संत रहते थे। यहाँ उसने एक आलीशान शहर बनवाया जो उस वक्त के एक अंग्रेज मुसाफ़िर के लफ्जों में ‘लंदन से ज्यादा आलीशान’ था।
यही शहर 15 साल से ज्यादा उसके साम्राज्य की राजधानी रहा। बाद में उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया। अकबर का दोस्त और मंत्री अबुल फजल लिखता है, “बादशाह सलामत आलीशान इमारतों के नक्शे सोचते हैं और दिल और दिमाग के सुझ से उसे मिट्टी और पत्थर का जामा पहना देते हैं।”
फतहपुर सीकरी और उसकी खूबसूरत मस्जिद, उसका जबरदस्त बुलंद दरवाजा और बहुत सी दूसरी आलीशान इमारतें आज भी मौजूद है। यह शहर उजड़ गया है और उसमें किसी तरह की हलचल अब नहीं है। लेकिन उसकी गलियों में और उसके चौडे सहनों में एक मिटे हुए साम्राज्य के भूत चलते हुए मालूम पड़ते है।
मौजूदा इलाहाबाद शहर भी अकबर का ही बसाया हुआ है। लेकिन यह जगह बहुत पुरानी है और प्रयाग नगर तो रामायण के युग से चला आ रहा है। इलाहाबाद का किला अकबर का बनवाया हुआ है।
जाते जाते :
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