नेहरु की लेखमाला :
पण्डित नेहरू का ‘Glimpses of world history’ ग्रंथ भारत का प्राचीन और विश्व के इतिहास को देखने कि उनकी दृष्टी एक संपन्न और सर्वकालिक दृष्टिकोण प्रदान करता हैं। इस नजरिए में और दृढता प्रदान करने के लिए हम पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा महामानवों पर लिखे गए कुछ लेखों कि श्रृखंला यहां दे रहे हैं। यह किताब 1934 में लिखी गई थी। जिसके कुछ लेख इस लेखमाला के माध्यम से एक सूत्र में बांधकर आपको पेश कर रहे हैं। – संपादक
पुष्यमित्र के जमाने में भी उत्तर-पश्चिम हिन्दोस्ताँ पर एक हमला हुआ था। यह हमला करनेवाला बैक्ट्रिया का मेनाण्डर था। हिन्दोस्ताँ की सरहद के उस पार बैक्ट्रिया प्रदेश था। यह प्रान्त सेल्यूकस के साम्राज्य का एक हिस्सा था, लेकिन बाद को वह स्वतंत्र हो गया था। मेनाण्डर का हमला नाकामयाब कर दिया गया। लेकिन काबुल और सिंध पर उसने कब्जा कर ही लिया। मेनाण्डर भी एक धर्मपरायण बौद्ध था।
इसके बाद शक लोगों का हमला हुआ, जो इस देश में बहुत बड़ी तादाद में आये और उत्तर और पश्चिम हिन्दोस्ताँ में फैल गये। यह तुर्की खानाबदोशों का एक बड़ा कबीला था। कुशन नाम की एक दूसरी बड़ी जाति के लोगों ने उन्हें अपनी निर्वाह-भूमि से मार भगाया था।
वहां से वे लोग बैक्ट्रिया और पार्थिया को रौंदते हए धीरे-धीरे उत्तरी भारत में, खासकर पंजाब, राजपूताना और काठियावाड़ में जम गये। हिन्दोस्ताँ ने उन्हें तहजीब सिखाई, सभ्य बनाया और उन लोगों ने अपनी जंगली आदते छोड दीं।
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एक सुशासित समूह
यह एक दिलचस्प बात है कि इन बैक्ट्रियन और तुर्की शासकों का भारतीय आर्य वर्ग के जीवन पर कुछ खास असर नहीं हुआ। खुद बौद्ध होने के कारण उन शासकों ने बौद्ध धर्म संस्थाओं का अनुकरण किया जो पुराने आर्यग्राम संघ की तरह लोकतंत्रात्मक थी।
इस तरह इन शासकों की हुकूमत में भी हिंदुस्तान केन्द्रीय-शासन के मातहत ग्रामीण लोकतंत्रों का एक सुशासित समूह बना रहा। इस जमाने में भी तक्षशिला और मथुरा, बौद्ध विद्या के केन्द्र रहे, जहाँ चीन और पश्चिम एशिया से विद्यार्थी आते रहते थे।
लेकिन उत्तर-पश्चिम से लगातार आक्रमण होते रहने और मौर्य राज्य का संगठन धीरे-धीरे टूट जाने का एक असर जरूर हुआ। दक्षिण भारतीय राज्य पुरानी भारतीय आर्य प्रणाली के ज्यादा सच्चे नमूने बन गये। इस प्रकार भारतीय आर्य शक्ति का केंद्र हटक दक्षिण पहुँच गया। इन हमलों के कारण बहुत से विद्वान लोग दक्षिण में जा बसे।
आगे चलकर एक हजार बरस बाद जब मुसलमानों ने हिन्दोस्ताँ पर हमला किया उस समय फिर यही बात दोहराई गई। आज भी दक्षिण भारत पर विदेशी हमले और संपर्क का उत्तर भारत के मुकाबिले कम असर पड़ा है।
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संस्कृति का मेल
हम लोगों में जो कि उत्तर में ज्यादातर एक मिश्र संस्कृति में पले हैं, यह हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति का मेल है। और इसमे पश्चिम की भी इसकी हवा लग गई है। हमारी भाषा भी, हिन्दी, उर्दू या हिन्दोस्ताँी चाहे जो हो, एक मिली हुई भाषा है। लेकिन दक्षिण आज भी ज्यादातर कट्टर हिन्दू है।
सैकडों बरसों से वह प्राचीन आर्य-संस्कृति को बचाने और कायम रखने की कोशिश करता रहा है। इस कोशिश में उसने अपने समाज को इतना कट्टर बना दिया है कि उसकी असहिष्णुता आज भी आश्चर्यजनक है।
दीवारें बडी खतरनाक साथी होती है। कभी-कभी वे बाहरी बुराइयों से भले ही बचालें और बाहर के उत्पाती लोगों को आने से रोक हैं लेकिन उनकी वजह से आदमी कैदी और गुलाम बन जाता है और नाममात्र की जो पवित्रता और निर्भयता तुमको मिलती है, यह आजादी खो कर मिलती है।
सबसे भयंकर दीवार वह है जो आदमी के दिमाग में पैदा हो जाती है, जिसकी वजह से किसी बुरे रस्म-रिवाज को छोड़ने में से हम इसलिए झिझकते रहते हैं कि वह पुराना रिवाज है; और किसी नये खयाल को कबूल नहीं करते, क्योंकि वह नया है।
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दक्षिणी परंपरा कि मिसाल
लेकिन दक्षिणी हिन्दोस्ताँ ने एक खास सेवा यह की कि सिर्फ धर्म के मामले में ही नहीं, बल्कि राजनीति और कला में भी उसने एक हजार वर्ष और उससे ज्यादा समय तक भारतीय आर्य-परंपरा को जिन्दा रखा।
अगर तुम्हें पुरानी भारतीय कला का नमूना देखना है, तो इसके लिए तुम्हें दक्षिण भारत में जाना होगा। यूनानी लेखक मेगस्थनीज़ से हमें मालूम होता है कि राजनीति में, दक्षिण में, राजाओं पर लोक-संथों का अंकुश रहता था।
जब मगध का पतन हुआ, तो सिर्फ विधान लोग ही नहीं बल्कि कलाकार, कारीगर और शिल्पी लोग भी दक्षिण को चले गये। यूरोप और दक्षिण हिन्दोस्ताँ के बीच काफी व्यापार चलता था। मोती, हाथीदांत, सोना, चावल, मिर्च, मोर और बंदर तक बैंबलिन, मिस्र और यूनान और वाद को रोम को भेजे जाते थे।
इसके भी बहुत पहले सागवान की लकडी मलाबार के किनारे से कैल्डिया और बैबिलोनिया को जाती थी। और यह सब व्यापार, या उसका ज्यादातर हिस्सा, हिन्दोस्ताँी जहाजों के जरिये, जिन्हें द्रविड़ लोग चलाते थे, हुआ करता था। इससे पता चल सकता है कि पुरानी दुनिया में दक्षिण भारत कितनी ऊँची स्थिति पर पहुंचा हुआ था।
दक्षिण में रोगन सिक्कों की काफी तादाद मिली है। मलाबार के समुद्री किनारे पर सिकन्दरिया निवासियों की बस्तियां थीं, और सिकन्दरिया में हिन्दोस्ताँियों की।
अशोक के मरने के बाद ही दक्षिण का आंध्र देश स्वतंत्र हो गया। आंध्र आज कल काँग्रेस का एक प्रान्त है, जो भारत के पूर्वी समुद्र तट पर मद्रास के उत्तर में है। तेलुगू आंध्र देश की भाषा है। आंध्र की ताकत अशोक के बाद तेजी से बढ़ गई और दकन में एक समुह तट से दूसरे समुद्र तट तक फैल गई। दक्षिण में उपनिवेश बनाने के बहुत बडे-बडे प्रयत्न हुए।
शक और सीरियन और दूसरी जातियाँ, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया और वे उत्तर में बस गये। ये लोग हिन्दोस्ताँ के एक अंग हो गये, और हम लोग, जो उत्तरी हिन्दोस्ताँ में रहते है, उनके उतने ही वंशज है, जितने आर्यों के, खासकर बहादुर और गठीले बदनवाले राजपूत और काठियावाड के मेहनती लोग तो उन्हीं के वंशज हैं।
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