आज से नब्बे साल पहले याने 8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में दो बम फेंके। उसी समय एक पर्चे की कुछ प्रतियां हाल में फेंकी गई। ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिसप्यूट बिल’ के विरोध मे यह कृति की गई थी।
पहले बिल से मज़दूरों द्वारा की जाने वाली कोई भी हड़ताल पर पाबंदी लगा दी गई थी, जबकि दूसरे बिल से सरकार को संदिग्धों को बिना मुक़दमा चलाए हिरासत में रखने का अधिकार मिलना था। इस बिल का देशभर में विरोध किया जा रहा था।
दिसंबर 1928 को लाहोर में हुई जे. पी. सँडर्स के हत्या के बाद देश का राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ था। पुलिस खूनी कि तलाश में दर-दर भटक रही थी। प्रशासन में डर का माहौल था। कुछ अधिकारीयों ने अपनी पत्नीयों को ब्रिटेन रवाना कर दिया था। दूसरी ओऱ भगत सिंह और उनके साथी चुपके से बंगाल निकल चुके थे। बंगाली क्रांतिकारीयों के साथ उन्होंने कई दिन बिताए।
बंगाली क्रांतिकारीयों द्वारा बम बनाने कि ट्रेनिंग देने के वादे पर भगत सिंह और उनके साथीयों ने कलकत्ता छोड दिया। उन्होंने आगरा शहर के ‘दिंग की मंडिया’ परिसर में दो मकान किराये पर लिये। यह खबर पाते ही पंजाब के क्रांतिकारी जो सँडर्स के हत्या के बाद छिपते फिर रहे थें, वे भी इसी मकान में रहने आ गए।
बंगाल से बम बनाने के ट्रेनिंग के लिए जतींद्रनाथ दास और ललित मुखर्जी भी आ गए। कमरे बहुत छोटे थें। सोने के लिए कोई जगह भी पर्याप्त नही थी। उसी तरह इस्तेमाल के लिए बरतन भी ज्यादा नही थें।
इस छोटेसे मकान मे चंद्रशेखर आजाद, राजगुरू, सुखदेव तथा भूमिगत रहे सभी क्रांतिकारी एक साथ रहते थे। पुलिस कि नजर से बचने के लिए सभी लोग मकान से बाहर नही निकलते। खाने-पिने कि वस्तुएं लाने के लिए पर्याप्त पैसे भी नही रहते। पैसो कि सारी व्यवस्था चंद्रशेखर आजाद देखते थे।
पढ़े : भगत सिंह कहते थे, ‘क्रांति के लिए खूनी संघर्ष जरुरी नहीं’
पढ़े : राम मुहंमद आज़ाद उर्फ उधम सिंह के क्रांतिकारी कारनामे
मोतीलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे नेता इन क्रांतिकारीयों को पैसे भेजा करते। पर कभी कभार पैसे न मिलने कि सुरत में फाकाकशी भी करनी पडती। ऐसे में हफ्ते में दो बार ही खाना खाया जाता। पर खाली पेट सामाजिक और राजनैतिक क्रांतियों कि चर्चाएं निरंतर चलते रहती। सब राजनीति और सामाजिक विषयों पर गरमागरम बहस करते। कभी कभार तिखा विवाद भी होता।
कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘विदाउट फ़ियर – द लाइफ़ एंड ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह’ में लिखते हैं, “विवाद को हलका करने के लिए राजगुरू ने दीवार पर किसी पत्रिका से एक लडकी का चित्र निकालकर दीवार पर लगा दिया।
आजाद ने उसे देखा तब वह झल्ला गए। उन्होंने फौरन उस चित्र को वहां से निकाल दिया। किसी न कुछ बोलने पहले आजाद ने कहां, मैंने ही उसे निकाल दिया। हमें कोई भी सुंदर चिज इसी तरह नष्ट करनी होंगी फिर वह ताजमहल भी क्यों न हो।”
इस हरकत से वहां मौजूद क्रांतिकारी नाराज हुए। राजगुरू आजाद से पुछ बैठे, “हम तो सारी दुनिया खुबसुरत बनाने निकले हैं, फिर आजाद इस तरह कि बात कैसे कर सकते हैं?” नैय्यर लिखते हैं, बीते कुछ दिनो से क्रांतिकारियों का काम सुस्त चल रहा था, जिससे आजाद नाराज चल रहे थे।
गुस्सा शांत होने के बाद आजाद ने कहा, “हम सौंदर्य के खिलाफ या निरुत्साही नही हैं; परंतु इस वजह से हमारे उद्देश का लक्ष्य कही भटक ना जाए।”
बम बनाने का काम जारी था। करीब ही ‘झाँसी फॉरेस्ट’ नामक जंगल में उसका परिक्षण शुरू किया गया था। सँडर्स हत्या के नौं महिने बाद भी पुलिस को कोई सुराग नही मिल रहा था। इस मामले में कोई सफ़लता नही मिल रही हैं, इस आशय का एक खत व्हाईसरॉय ने भारतमंत्री को भेज दिया था। इसके जवाब में तिखी प्रतिक्रिया भारतमंत्री नें व्हाईसरॉय को लिखी थी।
पढ़े : अशफाखउल्लाह के दोस्ती से हुआ था रामप्रसाद बिस्मिल का शुद्धिकरण
पढ़े : चंपारन नील आंदोलन के नायक पीर मुहंमद मूनिस
क्रांतिकारी आंदोलन खत्म करने कि साजिश
इसी बीच ब्रिटिश सरकार ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ (Public safety bill) और ‘ट्रेड डिसप्यूट बिल’ (Trade dispute bill) लेकर आ रही थी। पब्लिक सेफ्टी बिल मे प्रावधान किया गया था कि, मज़दूर कोई सामूहिक हड़ताल नही कर सकते थे।
मुंबई मे नित्य हो रही मजदूरों के हडताल को इस बिल से खत्म करने का सरकार का इरादा था। जबकि ट्रेड डिसप्यूट बिल से सरकार बिना मुक़दमा चलाए संदिग्धों को हिरासत में रख सकती थी। साफ तौर पर कहा जाए तो क्रांतिकारी आंदोलन को खत्म करने के लिए यह बिल लाया जा रहा था।
इन दोनो बिल के विरोध में हिंसक कार्रवाई को अमली जामा पहनाने की क्रातिकारीयों ने ठान ली। बिल का विरोध असेम्बली हॉल में बम फोडकर किया जाना था।
कार्रवाई को अंजाम देने के पहले सब बिल और उसके असर पर दिनरात चर्चा कर रहे थें। जब सारा मामला तय हो गया तो, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दो दिन पहले असेम्बली हॉल का दौरा किया। विस्फोट किए जाने वाले बम से किसी के जान माल का कोई नुकसान न हो इसका खयाल रखा जा रहा था।
सदन के कार्रवाई के दौरान बम फेंककर सरकार के खिलाफ कडा संदेश देने का इरादा कर लिया गया। घटना के परिणाम पर भी चर्चा की गई। सभी ने यह सुनिश्चित किया था कि जेल या उससे ज्यादा हो सकती हैं।
8 अप्रेल 1929 का दिन बम फोडने के लिए तय किया गया। उस दिन ट्रेड डिसप्यूट बिल पर चर्चा होनी थी। उस दिन दिल्ली के असेम्बली हॉल में मुहंमद अली जिना, एन. सी. केलकर, मोतीलाल नेहरू और एम. आर. जयकर मौजूद थे। स्पीकर के रुप में विठ्ठलभाई पटेल मौजूद थें। प्रेक्षा गैलरी में खचाखच लोग भरे थें जिसमें महिलाएं भी थी।
कुलदीप नैयर लिखते हैं, सुबह ठीक 11 बजे सदन कि कार्रवाई शुरू होते ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने कार्रवाई को दौरान खुली जगह मेंं एक के बाद एक दो बम फेके। धमाके के साथ विस्फोट हुआ। पूरा असेंबली हॉल धुएं से भर गया।
लाइटें जाने से अंधेरा हो गया। असेम्बली हॉल में अफरा-तफरी मच गई। लोग यह कहां भागने लगे। कुछ लोग तो लकड़ी के डेक्स के नीचे छुप गए। बी. के. दत्त ने धुएं में इन्कलाब जिन्दाबाद और क्रांति अमर रहे के नारों के साथ कुछ पर्चे फेंके। यह पर्चे हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना के लेटर हेड पर छापे गए थें।
पढ़े : अपनों की गद्दारी के चलते शहीद हुए तात्या टोपे
पढ़े : जब अपने दोस्त जगन्नाथ के हाथों काटे गये क्रांति योद्धा अहमदुल्लाह
उस पर्चे का आशय कुछ इस प्रकार था-
हिन्दुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना
सूचना
“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है,” प्रसिद्ध फ्रान्सिसी अराजकतावादी शहीद (ऑगस्ट) व्हेलाँ के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं।
पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की जरुरत नहीं और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जानेवाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है।
आज फिर जब लोग ‘साइमन कमीशन’ से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए हैं और इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं,विदेशी सरकार ‘सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ और ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आनेवाले अधिवेशन में ‘अखबारों द्धारा राजद्रोह रोकने का कानून’ (Press sedition Act) जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करनेवाले मजदूर नेताओं की अंदाधुंद गिरफ्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैये पर चल रही है।
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता को महसूस कर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रयोजन है कि कानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परंतु उसकी वैधनिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखण्ड को छोड़ कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरूद्ध क्रांति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिसप्यूट’ के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।
हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शांति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके। हम इन्सान का खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परंतु क्रांति द्वारा सबको समान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात अनिवार्य है।
इन्कलाब जिन्दाबाद!
‘ह. बलराज,
कमांडर इन चीफ’
ज्ञात रहे कि इस नोटिस के अन्त लिखा बलराज नाम, चंद्रशेखर आजाद का दूसरा नाम था। नोटिस में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि संबंधित विधेयक के विरोध में असेम्बली हॉल में बम फोड़ने की कृति की गई हैं।
पढ़े : जलियांवाला बाग वो हत्याकांड जो आज़ादी के लिए मील का पत्थर बना
पढ़े : आज़ादी में अहम योगदान बना ‘लाल किला ट्रायल’ क्या था?
और खुद को किया गिरफ्तार
डी.एन. गुप्ता अपनी संपादित किताब भगत सिंह सिलेक्टेड स्पीचेस राइटिंग्स में लिखते हैं, बम फोडने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त भागे नही बल्कि वहीं खडे रहे। जबकि पुलिस तो उनके पास भी नही आ रही थी।
उन्हें लग रहा था कि क्रांतिकारीयों के पास कोई और बम ना हो। खैर दोनो को गिरफ्तार किया गया। क्रांतिकारियों को पर भारतीय दंड संहिता कि अलग-अलग धारा लगाई गई। भगत सिंह पर धारा 307 के अंतर्गत हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज किया गया।
मई 1929 के पहले हफ्ते में सुनवाई शुरु हुई। राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी के सदस्य असफ़ अली ने भगत सिंह का मुक़दमा लड़ा। सरकारी वकील राय बहादुर सूर्यनारायण थे तथा न्यायमूर्ती पी. बी. पूल सुनवाई करनेवाले थे।
मुकदमे के दौरान उन्होंने अदालत में अपनी बात रखी। जिसमें भगत सिंह ने कहा, “इंग्लैंड को अपने ख्वाबों से जगाने के लिए बम की जरूरत थी। भारतीय जनता के दिलों कि दुखभरी दास्तां बयान करने के लिए हमारे पास दूसरा कोई और साधन नहीं था। उन सबके ओर से निषेध व्यक्त करने के लिए हमने असेंबली चेंबर में बॉम्ब फेंका।”
बहरहाल मुकदमा चला और असेम्बली मे बम फेकने के मामले में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनो क्रांतिकारीयों को 14 साल आजीवन कारवास कि सजा सुनाई गई।
जाते जाते :
* स्वदेशी आग्रह के लिए गांधी से उलझने वाले हसरत मोहानी
* महात्मा गांधी ने विनोबा को चुना था ‘पहला सत्याग्रही’
हिन्दी, उर्दू और मराठी भाषा में लिखते हैं। कई मेनस्ट्रीम वेबसाईट और पत्रिका मेंं राजनीति, राष्ट्रवाद, मुस्लिम समस्या और साहित्य पर नियमित लेखन। पत्र-पत्रिकाओ मेें मुस्लिम विषयों पर चिंतन प्रकाशित होते हैं।