देश के बेलगाम टीवी चैनलों पर कानूनी अंकुश लगाने की पहल जमीअत उलेमा ए हिन्द (Jamiat e Ulema Hind) ने कर दी है। 6 अप्रेल 2020 के जमीअत की कानूनी इम्दाद कमेटी द्वारा इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में एक याचिका (PIL) दायर की गई है। जिसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
जमीअत द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि मीडिया मुसलमानों और तबलीगी मरकज़ को लेकर बेहद गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग कर रहा है, उसकी भड़काऊ रिपोटिंग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई (legal action) होनी चाहिए। याचिका में इसकी कवरेज पर रोक लगाने की मांग भी की गई है, इसके अलावा सोशल मीडिया पर फर्जी सूचना (Information) फैलाने पर कार्रवाई के लिए आदेश देने की भी मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मीडिया संस्थानों द्वारा मुसलमानों और तबलीगी जमाअत (Tablig Jamat) को लेकर हो रही रिपोर्टिंग से में सांप्रदायिकता (Communalism) फैल रही हैं। अपनी याचिका में जमीअत ने मीडिया के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
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तबलीगी जमाअत के खिलाफ हो रहे मीडिया ट्रायल (Media Trail) पर एडवोकेट एजाज़ मकबूल (Ad. Azaz Maqbul) ने याचिका दायर की है।जिस में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज़ को मीडिया सांप्रदायिक रुख दे रहा है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि तबलीगी जमाअत से संबंधित प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग ने पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जिसमें मुसलमानों का अपमान और उनकी दिल दुखाया गया।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया द्वारा जो व्यवहार किया गया उससे मुसलमानों की आजादी और उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है जो संविधान में दिए गए ‘राइट टू लाइफ’ (Right to life) के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया है कि अधिकांश सूचनाओं में ‘कोरोना जिहाद’, ‘कोरोना आतंकवाद’ या ‘इस्लामी कट्टरवाद’ जैसे वाक्यों का उपयोग करते हुए झठ फैलाया गया है। इस याचिका में कई सोशल मीडिया पोस्ट को भी दर्ज किया गया है।
जिसमें गलत तरीके से Covid–19 को फैलाना के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है। इसके साथ ही झुठी (False) और जाली (Fake) वीडियो का भी ज़िक्र किया गया है। याचिका में कहा गया है कि निजामुद्दीन घटना की के कवरेज करते हुए एक विशेष वर्ग को। निशाना बनाया गया है जिसमें मुसलमानों के मामले में भारतीय संविधान की धारा के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया गया है।
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याचिका में यह भी कहा गया है कि मीडिया रिपोर्टिंग में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 31 मार्च के आदेश का उल्लंघन किया गया है। जिसमें मीडिया को आदेश दिया गया था कि मीडिया ज़िम्मेदारी के साथ रिपोर्टिंग करे और अप्रमाणिक समाचार प्रकाशित या प्रसारण न करे।
जमीअत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौ. सय्यद अरशद मदनी ने हाल के दिनों में मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ हो रही लगातार नकारात्मक रिपोर्टिंग पर अपना गहरा दुख प्रकट किया हैं।
उन्होंने कहा, “हमारे सारे अनुरोधों और मांगों के बावजूद टीवी चैनलों ने मुसलमानों के खिलाफ झूठ और भ्रामक प्रचार का सिलसिला बंद नहीं किया। इसको लेकर हम सरकार से यह मांग करते रहे हैं कि नफरत बोने वाले और मुसलमानों की छवि को दागदार करने वाले टीवी चैनलों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए।
मगर अफसोस हमारी मांगों को कोई महत्व नहीं दिया गया। हम इससे पहले भी यह कहते रहे हैं कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग अपनी रिपोर्टिंग द्वारा समाज में जो ज़हर बो रहा है वह कोरोना वायरस से भी अधिक घातक है।”
उन्होंने यह भी कहा कि “हाल ही में तबलीगी जमाअत को लेकर मीडिया ने नैतिकता (Media Ethics) और संविधान की सभी सीमाएं तोड़ दी हैं, अब इसके कारण बहुसंख्यकों के दिमाग में यह गांठ मजबूत हो गई है कि कोरोना वायरस मुसलमानों द्वारा फैलाई गई कोई बीमारी है।”
मौ. मदनी ने सवाल किया कि “अगर पल भर के लिए भी यह मान लिया जाए कि यह वायरस देश में जमाअत के लोगों से फैला तो क्या चीन, अमेरिका, इटली और ब्रिटेन सहित अन्य देशों में भी इस महामारी को मुसलमानों ने ही फैलाया है?”
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उन्होंने कहा कि “यह बहुत हास्यास्पद आरोप है, लेकिन इससे भी अधिक हास्यास्पद बात यह है कि लोग इस तरह की चीजों को सच समझ लेते हैं। वास्तव में उसकी क्रोनोलोजी अर्थात क्रम को समझने की जरूरत है, यह टीवी चैनल स्वयं ऐसा नहीं कर रहे हैं बल्कि इसके पीछे कुछ विशेष लोगों की मानसिकता काम कर रही है और उनके निर्देश पर ही यह सब कुछ हो रहा है।”
उन्होंने कहा, “पिछले 6 साल से मीडिया में मुस्लिम अल्पसंख्यक के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग का सिलसिला जारी है लेकिन सरकार ने कभी इसका संज्ञान नहीं लिया और न ही झूठी खबरों और फेक वीडियो द्वारा मुसलमानों की छवि खराब करने वालों को चेतावनी ही दी गई, तबलीगी जमाअत के मामले में भी यही हुआ।
झूठी खबरें चलाई गई, फेक वीडियो दिखाए गए जिनका खण्डन भी अब कुछ चैनल कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी कोई उनके टीवी चैनलों से यह पूछने वाला नहीं है कि आप ऐसा क्यों किया?”
मदनी कहते हैं, “सरकार और सूचना एवं प्रसारण मंत्री को जिम्मेदारों से यह कहना चाहिए था कि इस तरह के मामले को धार्मिक रंग न दिया जाए और जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे गलत कर रहे हैं लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ। इससे स्पष्ट है कि सब कुछ सरकारी संरक्षण में हो रहा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि असंगठित लॉकडाउन से सरकार की खामियां और असफलताएं सामने आने लगी थीं जिन पर पर्दा डालने के लिए शायद इस महामारी को धार्मिक रंग दिया जाना जरूरी हो गया था। इस रणनीति सफल रही है और मुसलमान इस पूरे मामले में खलनायक बन गया है।
दुख की बात यह है कि कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध के दौरान मानवता का जो माहौल देश में पैदा हुआ था और जिस तरह लोग धर्म से ऊपर उठकर मजबूर और जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। ऐसे प्रचार से उसे गंभीर झटका लगा।”
“मुसलमानों के खिलाफ नफरत और भेदभाव की घटनाओं में अचानक तेज़ी आ गई है यहां तक कि एक मुस्लिम गर्भवती महिला को अस्पताल में भर्ती करने से ही मना कर दिया गया। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में मुसलमानों के खिलाफ कानून की आड़ में भेदभाव का सिलसिला तो बहुत पहले से जारी है लेकिन अब इसमें अधिक तीव्रता आ गई है।”
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“मुसलमानों को तबलीगी जमाअत से जोड़कर उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्यवाई हो रही है, ऐसे में इन ज़हर उगलने वाले बेलगाम टीवी चैनलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हमारे लिए अति आवश्यक हो गई थी।”
कानूनी कार्रवाई की यह पहल जमीअत उलमा–ए-हिन्द की कानूनी इम्दाद कमेटी के प्रमुख गुलज़ार अहमद आज़मी के प्रयासों से हुई। इसपर मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “हमें विश्वास है कि इस याचिका में उठाए गए महत्वपूर्ण सवाल और बिंदुओं पर अदालत बारीकी से विचार करके इन चैनलों के खिलाफ दिशानिर्देश जारी करेगी।”
याचिका दाखिल करने के बाद गुलज़ार अहमद आजमी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन जिसमें मीडिया हाउस को सचेत किया गया था कि वह समाचार दिखाने से पहले उसकी सच्चाई जानने की कोशिश करे और ऐसा कोई भी समाचार न दिखाएं जिससे एक समुदाय की बदनामी होती हो और दो समुदायों के बीच नफरत पैदा हो लेकिन अफसोस मुसलमानों के खिलाफ झूठा प्रचार नहीं रुक रहा।”
(यह फिड जमीअत द्वारा प्राप्त हुआ हैं, जिसे DQने सिर्फ संपादित किया हैं।)
* मीडिया, समाज को बांटकर बना रहा है हिंसक
* मीडिया जो परोस रहा है, क्या उस दायरे में सच भी है?
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