सांसद पेंशन सम्मान लेने से मना करने वाले मधु लिमये

गोवा मुक्ति संग्राम का अंतिम चरण आज से लगभग 75 साल पहले समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर  लोहिया द्वारा 18 जून 1946 को शुरू किया गया था। इसके लगभग पन्द्रह साल बाद 18-19 दिसंबर 1961 को गोवा, भारत सरकार द्वारा एक सैन्य ऑपरेशन विजयके ज़रिये आज़ाद कराया गया।

इस तरह यह साल गोवा मुक्ति संग्राम के शुरुआत की 75 वीं सालगिरह और गोवा मुक्ति की 60 वीं वर्षगांठ का साल है। गोवा को पुर्तगालियों की ग़ुलामी से निजात दिलाने के लिए 1946 से लेकर 1961 के बीच अनगिनत भारतीयों ने अपनी जान की क़ुर्बानियां दीं।

बहुत सारे लोग बरसों पुर्तगाली जेलों में रहे और उनकी यातनायें सहीं उनमें से एक वीर सपूत का नाम मधु रामचंद्र लिमये है जिनका यह जन्मशताब्दी साल है।

मधु लिमये आधुनिक भारत के उन विशिष्टतम व्यक्तित्वों में से एक थे जिन्होंने पहले राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जेल गए और बाद में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्त कराकर भारत में शामिल कराने में अहम रोल अदा किया। गोवा आज भारत का हिस्सा है तो इसका एक बड़ा श्रेय डा. लोहिया और उनके प्रिय शिष्य मधु लिमये को जाता है।

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भूमिगत सेनानी

लिमये का जन्म 1 मई, 1922 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। कम उम्र में ही उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने ने 1937 में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया और तभी से उन्होंने छात्र आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया।

इसके  बाद, लिमये एस. एम. जोशी, एन. जी. गोरे वगैरह के  संपर्क में आए और अपने समकालीनों के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन और समाजवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित हुए।

1939 में, जब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा, तो उन्होंने सोचा कि यह देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करने का एक अवसर है। लिहाज़ा अक्टूबर 1940 में, लिमये ने विश्व युद्ध के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया और अपने युद्ध विरोधी भाषणों के लिए गिरफ्तार कर लिए गए।

उन्हें लगभग एक वर्ष के लिए धुलिया जेल में डाल दिया गया। सितंबर, 1941 में उनको रिहा किया गया। अगस्त 1942 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी ने जब बंबई में अपना सम्मेलन आयोजित किया, जहाँ महात्मा गांधी ने समाजवादी नेता यूसुफ मेहरअली ने दिया भारत छोड़ोका नारा देकर अंग्रेजो को आह्वान दिया तो लिमये वहां मौजूद थे। यह पहला मौका था जब लिमये ने गांधीजी को करीब से देखा।

उसी समय गांधीजी सहित कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। मधु अपने कुछ सहयोगियों के साथ भूमिगत हो गए और अच्युत पटवर्धन, उषा मेहता और अरुणा आसफ अली के साथ भूमिगत प्रतिरोध आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सितंबर, 1943 में लिमये को एस एम जोशी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्सके तहत गिरफ्तार किया गया था और जुलाई 1945 तक वर्ली, येरवड़ा और विसापुर की जेलों में बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखा गया।

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गोवा मुक्ति आंदोलन

मधु लिमये ने 1950 के दशक में, गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लिया, जिसे उनके नेता डॉ. लोहिया ने 1946 में शुरू किया था। उपनिवेशवाद के कट्टर आलोचक लिमये ने जुलाई 1955 में एक बड़े सत्याग्रह का नेतृत्व किया और गोवा में प्रवेश किया।

पेड़ने में पुर्तगाली पुलिस ने हिंसक रूप से सत्याग्रहियों पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर सत्याग्रहियों को चोटें आईं। पुलिस ने लिमये की बेरहमी से पिटाई की। उन्हें पांच महीने तक पुलिस हिरासत में रखा गया था। दिसंबर 1955 में, पुर्तगाली सैन्य न्यायाधिकरण ने उन्हें 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

लेकिन लिमये ने न तो कोई बचाव पेश किया और न ही भारी सजा के खिलाफ अपील की। जब  वह गोवा की जेल में थे तो उन्होंने लिखा था कि मैंने महसूस किया है कि गांधीजी ने मेरे जीवन को कितनी गहराई से बदल दिया है, उन्होंने मेरे व्यक्तित्व और इच्छा शक्ति को कितनी गहराई से आकार दिया है।

1957 में पुर्तगाली हिरासत से छूटने के बाद भी लिमये ने गोवा की मुक्ति के लिए जनता को जुटाना जारी रखा और विभिन्न वर्गों से समर्थन मांगा तथा भारत सरकार से इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए आग्रह किया।

जन सत्याग्रह के बाद, भारत सरकार गोवा में सैन्य कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई और गोवा पुर्तगाली शासन से मुक्त हुआ। दिसंबर 1961 में गोवा आजाद हो कर  भारत का अभिन्न अंग बना।

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लिखी जेल डायरी

गोवा मुक्ति आंदोलन के दौरान मधु लिमये  ने पुर्तगाली कैद में 19 महीने से अधिक का समय बिताया। अपनी इस कैद के दौरान उन्होंने एक जेल डायरी लिखी जिसे उनकी पत्नी श्रीमती चंपा लिमये ने एक पुस्तक गोवा लिबरेशन मूवमेंट एंड  मधु लिमयेके रूप में 1996 में गोवा आंदोलन की स्वर्ण जयंती के अवसर पर प्रकाशित किया।

अब आई टी एम यूनिवर्सिटी ग्वालियर द्वारा उसका दोबारा प्रकाशन किया गया है।इस किताब में स्व. मधु लिमये द्वारा पुर्तगाली क़ैद में बिताये गए दिनों का रोज़नामचा तो है ही साथ ही अपनी पत्नी और एक साल के बेटे अनिरुद्ध उर्फ़ पोपटको लिखये गए कुछ मार्मिक और दिल को छू लेने वाले पत्र भी शामिल हैं।

साथ ही अस्सी के दशक में उनके द्वारा गोवा पर लिखे गए दो लंबे लेख और पचास के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा संसद में गोवा पर दिए गए भाषण और बयां भी शामिल किये गए हैं। दिलचस्प बात तो यह है अपने इन बयानों में नेहरू जी गोवा में की जाने वाली किसी भी संभावित सैनिक कार्यवाई का विरोध करते हैं और कहते हैं कि ऐसी कार्यवाई अहिंसा और शांति के भारत के सिद्धांत के ख़िलाफ़ होगी।

भारतीय संविधान और संसदीय मामलों के ज्ञाता मधु लिमये, 1964 से 1979 तक चार बार लोकसभा के लिए चुने गए।उन्हें संसदीय नियमों की प्रक्रिया और उनके उपयोग तथा विभिन्न विषयों की गहरी समझ थी। स्वस्थ लोकतांत्रिक लोकाचार से प्रतिबद्ध होने के कारण, वह हमेशा अपने सिद्धांतों के साथ खड़े रहे और असामान्य राजनीतिक परिस्थितियों के दौरान भी अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया।

मधु लिमये ने जेपी आंदोलन 1974-75 के दौरान और बाद में एकजुट विपक्षी पार्टी (जनता पार्टी) बनाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनता पार्टी के गठन के  बाद 1 मई, 1977 को उनके 55 वें जन्मदिन पर उन्हें पार्टी का महासचिव चुना गया।

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पेंशन को नकारा

स्वतंत्रता आंदोलन में उनके सराहनीय योगदान और गोवा मुक्ति आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए भारत सरकार ने मधु लिमये को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान पेंशन की पेशकश की लेकिन उन्होंने विनम्रता के साथ इसे अस्वीकार कर दिया।

उन्होंने संसद के पूर्व सदस्यों को दी जाने वाली पेंशन को भी स्वीकार नहीं किया। लिमये एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ साथ प्रतिबद्ध समाजवादी के रूप में भी हमेशा याद किये जायेंगे जिन्होंने निस्वार्थ और बलिदान की भावना के साथ देश देश की सेवा की।

संक्षिप्त बीमारी के बाद 72 वर्ष की आयु में 8 जनवरी, 1995 को मधु लिमये का नई दिल्ली में निधन हो गया। उनके निधन से देश ने एक सच्चे देशभक्त, राष्ट्रवादी, प्रसिद्ध विचारक, समाजवादी नेता और एक प्रतिष्ठित सांसद को खो दिया।

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