एक जुट का नेता हुआ मजदूर तैय्यार!
बदलने दुनिया सारी गरज रही ललकार!
सदा लडे, मरने से उसे ना मिले शांति
मर मर के दुनिया सजा के जीने की भ्रांति
उठा क्रोध से लडाई लडने
तूफान बाँध कर बाँध तोडने
निश्चय हुआ पैर उठे, चलने लगा करने नया प्रहार!!
साहित्यकार और लोकशाहिर कॉमरेड अन्नाभाऊ साठे का दुनिया बदलने कि अपील करनेवाला ये गीत लगभग सात-आठ दशकों से मजदूर वर्ग के आंदोलन में शामिल है। 1 अगस्त, 1920 कॉंमरेड अन्नाभाऊ का जन्मदिन है। उनका जन्म पिछडी समझी जाने वाली मातंग जाति में हुआ था। यह उनका जन्मशताब्दी वर्ष है।
अन्नाभाऊ को साहित्य रत्न, लोकशाहिर के नाम से सारी दुनिया जानती हैं। लेकिन यह महान कलाकार, साहित्यिक, लोकशाहिर मजदूर आंदोलन के माध्यम से कैसे उभरा, उनकी क्रांतिकारी कविता, साहित्य का वैचारिक नींव जिस मजदूर कम्युनिस्ट आंदोलन ने डाली, उसका सच्चा इतिहास और उनका प्रत्यक्ष कार्य इस जन्म शताब्दी के अवसर पर जानना महत्वपूर्ण है।
कॉमरेड अन्नाभाऊ 1930 के दशक में तत्कालीन सतारा जिले में अपने मूल जन्मस्थली वाटेगांव को छोड़ कर माँ-बाप के साथ बचपन में ही मुंबई आ गये। यहां आने के बाद सर पर बोझा ढ़ोना, फेरीवाले काम से लेकर कपड़ा मिल में हेल्पर (पोऱ्या) का काम किया। लाल बावटा मिल वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में मुंबई में 1934 की ऐतिहासिक हड़ताल हुई। अन्नाभाऊ उस आंदोलन में एक मजदूर के रुप में प्रत्यक्ष भागीदार थे।
हड़ताल को दौरान शिवड़ी क्षेत्र में कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़पे हुई, उसके भी वे साक्षीदार रहे। ये हड़ताल मिल मजदूरों के संघर्ष में शहीदों तथा दलित समुदाय के परशुराम जाधव की याद में 23 अप्रैल, 1934 को शुरू हुई थी। सभी मिलों के गेट पर परशुराम जाधव के पोस्टर लगाए गए थे। इसी से अन्नाभाऊ श्रमिक आंदोलन के तरफ आकर्षित हुये।
लेकिन कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ उनका सीधा संबंध तब हुआ जब वे 1935-36 में मुंबई के धारावी के पास ‘माटुंगा लेबर कैंप’ के पास एक गंदी झुग्गी में रहने चले गए। उस समय बड़ी संख्या में दिहाडी बांधकाम श्रमिक, महानगरपालिका, रेलवे, गोदी कर्मचारी वहाँ झोपड़ियों में रहते थे।
इन श्रमिकों को एकजुट करना और उनका संघठन बनाने का काम तत्कालीन कम्युनिस्ट नेता और डॉ. भीमराव अम्बेडकर के ऐतिहासिक ‘महाड सत्याग्रह’ के प्रमुख आर. बी. मोरे कर रहे थे। उनके साथ कॉमरेड के. एम. सालवी थे, जो अम्बेडकर के नेतृत्व मे हुये ‘कालाराम मंदिर सत्याग्रह’ में अग्रणी कार्यकर्ताओं में से एक थे।
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कैडर कैम्प से मिली विचारधारा
अन्नाभाऊ उन नेताओं और कार्यकर्ताओं के संपर्क में आने वाले पहले व्यक्ति थे, जो इस तरह के सामाजिक आंदोलन के माध्यम से आत्म-जागरूक हुये थे। उनसे, अन्नाभाऊ को सामाजिक असमानता और अन्याय के खिलाफ संघर्ष के बारे में पता चला। इसी तरह उन्हें दुनिया भर के कामकाजी लोगों के शोषण, उत्पीडन के खिलाफ वे कैसे लडे, कैसे संघर्ष किया, रूसी क्रांति, वहां के श्रमिकों के समाजवादी राज्य के स्थिति के बारे में पता चला।
उस समय, कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा मजदूर आंदोलन में श्रमिकों की वैचारिक जागरूकता बढ़ाने के लिए कॉ. आर. बी. मोरे, कॉ. बी. टी. रणदिवे, कॉ. एस. वी. देशपांडे आदी नेता मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा पर श्रमिकों का एक स्टडी सर्कल चलाते थे। इस अध्ययन वर्ग से कामगारों का पहला कैडर निकाला। जिसमें कॉ. सालवी, कॉ. शंकर नारायण पगारे, कॉ. किसन खवले, कॉ. सरकापे आदी थे।
बाद में, उनके साथ, कॉमरेड अन्नाभाऊ ने भी भाग लेना शुरू कर दिया। इसी लेबर कैम्प में कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर अन्नाभाऊ को अक्षरों का ज्ञान हुआ। वहीं पर उन्होंने मराठी भाषा में शाब्दिक रूप से क, ख, ग सीखा। (क्योंकि अस्पृश्यता के कारण उन्हें एक बचपन मे ही स्कूल छोड़ना पड़ा था)। वर्णमाला कि पहचान के बाद, उन्होंने शुरू में दुकानों के नामफलक, फिल्म के पोस्टर पढ़ना शुरू किया।
बाद में, वे लेनिन का चरित्र, रूसी क्रांति के प्रसिद्ध लेखक मैक्सिम गोर्की का उपन्यास ‘माँ’, रूसी क्रांति का इतिहास, श्रमिक साहित्य मंडल द्वारा मराठी मे प्रकाशित मार्क्स-एंगेल्स का ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’, श्रमिक आंदोलन से निकलने वाली ‘मुंबई कामगार’ साप्ताहिक पत्रिका आदी पढ़ना शुरू किया। इसी तरह वे कार्यकर्ताओं से मूल मामले को समझने लगे। इससे अन्नाभाऊ की राजनीतिक, सामाजिक तथा वैचारिक समझ बढ़ने लगी।
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दलित युवक संघ कि स्थापना
इसी दरमियान कॉ. आर. बी. मोरे के मार्गदर्शन में, कॉमरेड सालवी के सहयोग से अन्नाभाऊ ने माटुंगा लेबर कैंप में ‘दलित युवक संघ’ नामक एक युवा संगठन की स्थापना की और बेरोजगार युवाओं को संघठित करने और उन्हें राजनीतिक और सामाजिक आंदोलन में शामिल करने की कोशिश की। इस तरह अन्नाभाऊ ने कम्युनिस्ट पार्टी, मजदूर आंदोलन में सक्रिय भाग लेना शुरू कर दिया।
1936-37 की इसी अवधि के दौरान, अन्नाभाऊ कम्युनिस्ट पार्टी के एक आधिकारिक सदस्य बन गए और पार्टी के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करना शुरू कर दिया। पार्टी कार्यकर्ताओं के अनुरोध पर, उन्होंने तत्कालीन लेबर कॅम्प में मच्छरों के बारे में पहला गीत लिखा।
उस समय, श्रमिक शिविरों में रहने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता, कॉ. शंकर नारायण पगारे को पहले से ‘अंबेडकरी जलसे’ का अनुभव था। उनकी पहल से, अन्नाभाऊ ने श्रम शिविर में कम्युनिस्टों के प्रभाव में ‘दलित युवक संघ’ की पहली कला मंडली का गठन किया।
इस तरह अन्नाभाऊ मजदूर, कास्तकारों के आंदोलन पर गीत लिखने लगे। उसी समय, कम्युनिस्टों की पहल मुंबई में श्रमिकों के जो आंदोलन और लडाईयाँ शुरू थी जैसे कपडा मिलों के गेट पर तथा मजदूरों की सभाओं में अन्नाभाऊ और उनके सहयोगीयों नें गाना शुरू किया।
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प्रगतिशील लेखक संघ के सदस्य
इसी समय, 1936 में राष्ट्रीय स्तर पर, कम्युनिस्टों की पहल पर प्रगतिशील विचारकों की एक संस्था ‘प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन’ का गठन हुआ था। इनमें से अधिकांश लेखक रूस में समाजवादी क्रांति से प्रभावित थे।
जिसमें प्रेमचंद, सज्जाद जहीर, फ़ैज अहमद फ़ैज, कृष्णचंदर इस्मत चुगताई, ख्वाजा अहमद अब्बास, मंटो, मखदूम मोहिउद्दीन, राजेंद्र सिंह बेदी, राहुल सांकृत्यायन, मुल्कराज आनंद, कैफ़ी आज़मी, सरदार अली जाफरी, मजरुह सुल्तानपुरी आदि कई लोग शामिल थे।
इनमें से कुछ लोगों का साहित्य, साथ ही गोर्की, चेखव, तुर्गनेव, टॉलस्टॉय, मायकोव्स्की आदि मराठी में प्रकाशित हो रहे थे। उसे अन्नाभाऊ भी पढ़ते थे। उस साहित्य का वैचारिक प्रभाव अन्नाभाऊ पर भी पड़ने लगा। उसी से, उनको कहानी, नाटक, उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिली।
कम्युनिस्ट आंदोलन एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन था। उसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति का परिचय भी था। दुनिया में जिस जिस देश मे साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, फासीवाद और मेहनतकश जनता के शोषण के खिलाफ मुक्ति संघर्ष चल रहा था, उसकी परिछाया यहां के आंदोलनों मे दिखाई देती रही ओर उसका प्रतिरोध समय समय पर कम्युनिस्टों द्वारा किया जा रहा था।
इन सबका असर अन्नाभाऊ की विचारधारा पर होने लगा और इससे उन्हें वैश्विक दृष्टिकोण का एहसास होने लगा। 1936 में स्पेन में फासीवाद उभरना शुरू हुआ और इसके खिलाफ संघर्ष शुरू हुआ। उसे रिपोर्ट कम्युनिस्ट पत्रिकाओं मे छपने लगे, उसे अन्नाभाऊ नियमित पढ़ते।
इसे पढ़ने और कामरेडों के साथ चर्चा करने के बाद 1939 में, उन्होंने स्पेन के फासीवाद के खिलाफ पहला ‘स्पैनिश पोवाडा’ लिखा। जिसे लेकर मुंबई के मिल वर्कर्स यूनियन कि ओर मजदूर वर्ग में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। लोगों ने पहली बार अन्नाभाऊ को शाहीर के रूप में पहचाना और सराहा।
(क्रमश:)
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जाते जाते :
- कम्युनिज्म को उर्दू में लाने की कोशिश में लगे थे जोय अंसारी
- कमलेश्वर मानते थे कि ‘साहित्य से क्रांति नहीं होती’
लेखक मुंबई स्थित प्रसिद्ध वामपंथी कार्यकर्ता हैं।