अन्नाभाऊ ने आम लोगों को संस्कृति से जोडा था

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, फासीवादी हिटलर ने सोवियत रूस पर आक्रमण किया। लाल सेना ने हिटलर के फासिवाद के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया। इस सबका बख़ान करनेवाला एक पोवाडा अन्नाभाऊ नें 1942 में लिखा। जिसे काफी लोकप्रियता मिली। मुंबई में मज़दूर आंदोलनों

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अन्नाभाऊ साठे : कैडर कैम्प से निकला वैश्विक नेता

एक जुट का नेता हुआ मजदूर तैय्यार!

बदलने दुनिया सारी गरज रही ललकार!

सदा लडे, मरने से उसे ना मिले शांति

मर मर के दुनिया सजा के जीने की भ्रांति

उठा क्रोध से लडाई लडने

तूफान बाँध कर बाँध तोडने

निश्चय हुआ पैर उठे

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जिन्दगी के पाठशाला ने बनाया अन्नाभाऊ को ‘लोकशाहीर’

न्नाभाऊ साठे की पहचान पूरे देश में एक लोकशाहीर के तौर पर है। खास तौर पर दलित, वंचित, शोषितों के बीच उनकी छवि एक लोकप्रिय जनकवि की है।

उन्होंने अपने लेखन से हाशिये के समाज को आक्रामक जबान दी। उनमें जन चेतना फैलाई। उन्हें

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