अरबी उर्दू इतिहासलेखन पर इब्ने खल्दून का सर्वाधिक प्रभाव है। वे सिर्फ इतिहासकार नहीं बल्की एक अर्थशास्त्री भी रहे हैं। इस्लाम के अर्थशास्त्र का सामाजिक परिणाम और उसके स्वरुप कि चर्चा सबसे पहले खल्दून ने ही सफल रुप से की है। खल्दून के इतिहास, राजनीति और समाजशास्त्र पर काफी बहस हो चुकी है। मगर खल्दून का व्यक्तिगत इतिहास चर्चा से दूर है। सय्यद अतहर अब्बास रिजवी ने उनके संदर्भ लिखा यह लेख उस दिशा में काफी महत्वपूर्ण है।
इब्ने खल्दून के संदर्भ में वर्तमान संशोधन उनकी किताब ‘तारिख ए इब्ने खल्दून’ और उसकी ऐतिहासिक प्रस्तावना (मुकद्दिमा) तक सिमित है।
खल्दून कि जीवनी के संदर्भ अधिक जानकारी उपलब्ध न होने की वजह से इस बारे में बहोत कम लिखा गया है। खल्दून कि जीवनी के संदर्भ में मुहंमद बिन तावेत का संशोधन काफी अहम है। उन्होंने इब्ने खल्दून कि हस्तलिखित प्रतियों को संग्रहित किया है।
इन्ही प्रतियों के माध्यम से उन्होंने खल्दून कि आपबिती प्रकाशित कि थी, जिसकी भूमिका में मुहंमद बिन तावेत लिखते हैं,
“इब्ने खल्दून ने अमीर तैमूर कि मुलाकात से बहोत पहले इसके बारे में जो कुछ लिखा और जिस तहकीक से लिखा इसके बारे में काझी इब्ने शयबा का बयान देखिए ‘और जब (इब्न खल्दून) ने (तैमूर) के आगे जब अजमी जुबान (गैर अरबी भाषा) इस्तेमाल कि तो उसे सक्त तआज्जुब हुआ।”
“इब्ने खल्दून ने तैमूर से कहा कि, ‘— मैंने आपके भी हालात तहरीर किए हैं और चाहता हूं वह पढकर आपको सुनाऊं और अगर वह दुरुस्त हो तो इन्हें इसी तरह से रहने दिजीए, गलत हो तो इसमें इस्लाह (सुधार) किजीए।’ आखीर इससे इजाजत मांगकर इसका नसबनामा (वंशनामा) पढा तो तैमूर ने कहा-
‘तुम्हे यह कहां से पता चला।’ इब्न खल्दून ने कहा मैंने काबील ए एतमाद ताजीरों से (भरोसेमंद व्यापारीयोंसे) सुनकर लिखा है। फिर इसने तैमूर कि फतुहात और इसके हालात का जिक्र सुनाया और उसके पिता के बारे में बताया। यह सब सुनकर तैमूर सख्त हैरान रह गया।”
इब्ने खल्दून के पास उसके खानदान के बारे में जो जानकारी थी, उसमें से कई बातें खुद उसे भी पता नहीं थी। खल्दून कि खोज और उसके पास मौजूद जानकारी का माध्यम उसका अपना परिवार था, जो शुरुआती दिनों से राजनैतिक और इतिहासलेखन की गतिविधीयों में लिप्त था।
खल्दून के परिवार में कई इतिहासकार हुए जिनसे विरासत में इब्ने खल्दून ने इतिहास के प्रति अपने समझ को विकसित किया था।
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परिवार का इतिहास
इब्ने खल्दून याने अब्दुर्रहमान इब्ने मुहंमद हजरमी का जन्म ट्युनिस (ट्युनिशिया का शहर) में 1 रमजान 732 हिजरी (27 मई 1332) को हुआ।
अरबों में पुत्रों के नाम के संबंध से भी पिता का नाम प्रसिद्ध हो जाता है। इस प्रकार वह अबू जैद अथवा जैद का पिता भी कहलाता है। उसकी उपाधी वलिउद्दीन थी पर वह इब्ने खल्दून के नाम से प्रसिद्ध है।
उसके पूर्वज अपने आपको यमन के एक कबीले का बताते थे जो हजरमौत में निवास करता था। इस कारण वह हजरमी कहलाता था।
आठवीं शती ईसवीं में जब बनी उम्मय्या के स्थान पर अब्बास सिंहासनारुढ हुए तो उनके समर्थक स्पेन कि ओर भाग गये। खलदून, जिसके नाम पर यह वंश चला, बनी उमय्या अमीरों का राज्य दृढ होने के बाद वहां पहुंचा।
यद्यपी इब्न खल्दून के वंश को समकालीन राज्यों में समय-समय पर बडी प्रतिष्ठा प्राप्त होती रही, किन्तु उनके विषय में स्वयं उसे भी ज्यादा मालूमात नहीं थी।
उसने उनके विषय में जो कुछ लिखा है वह स्पेन के इतिहासों पर आधारित है। 9 वीं शती ईसवीं के आखीर में उसके पूर्वजों में एक व्यक्ति का आगमन (करुयब) हुआ है, जिसने उमय्या वंश के विरुद्ध विद्रोह करके सेविल में एक स्वतंत्र जैसा राज्य स्थापित कर लिया। वह राज्य लगभग 10 साल तक चलता रहा। 899 ईसवीं में उसकी हत्या कर दी गयी।
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मिली प्रसिद्धी
11 वी शती ईसवीं के शुरुआत में जब स्पेन का केंद्रीय राज्य छिन्न-भिन्न हो रहा था तो इब्न खल्दून के वंश को सेविल के क्रांतिकारीयों के नेतृत्व के कारण बडा महत्व प्राप्त हो गया। उसका एक पूर्वज अबू मुस्लिम उमर बिन अहमद इब्न खल्दून (मृत्यू 1057-58 ईसवी) दर्शनशास्त्र एवं वैज्ञानिक रुची के कारण बडा प्रसिद्ध हुआ।
वह अपने समय के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक मसलमा अल मजरिती का शिष्य था। जब ट्युनिस के हफस वंश के संस्थापक सेविल में हाकिम थे तब इब्न खल्दून उनके विश्वासपात्र बन गये। वहां कि राजनीति पर उनका गहरा प्रभाव था।
13 वीं ईसवीं के लगभग जब ईसाई लोग सेविल पर प्रबल आक्रमण करने लगे तो इब्ने खल्दून के पूर्वजों का वंश सेविल की पराजय (1248 ईसवी) के पूर्व ही उत्तर-पश्चिमी अफ्रिका चला गया, जहां के दरबार की ओर से उसका भली भांती स्वागत हुआ।
सर्वप्रथम जो व्यक्ती उत्तर-पश्चिमी अफ्रिका पहुंचा, वह उसके परदादा का परदादा अलहसन बिन मुहंमद था। वह सर्वप्रथम क्योटा पहुंचा और वहां से हज करने चला गया। हज से लौटकर वह बनी हफस के सुल्तान अबू ज़करिया के पास बोन पहूंचा। वहां उसे जागीर प्रदान कि गयी। उसके कुछ अन्य वंशवालों को भी बनी हफस द्वारा उच्च पद प्राप्त हुए।
उन्होंने वहाँ के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन में बडा महत्त्वपूर्ण भाग लिया। ‘मुकद्दमे’ (इब्न खल्दून का महाग्रंथ) में कई स्थानों पर इस बात की चर्चा हुई है कि किस प्रकार स्पेन के शरणार्थीयों ने उत्तर पश्चिमी अफ्रिका के सांस्कृतिक जीवन को उन्नती पर पहुंचाया।
अपने पूर्वजों के इस कारनामे पर इब्ने खल्दून को हमेशा फ़ख्र होता हुआ नजर आता है और स्पेन की सभ्यता एवं संस्कृति की छाप उसके मस्तिष्क से कभी मिट न सकी।
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खल्दून कि शिक्षा
हसन बिन मुहंमद के पुत्र अबू बक्र मुहंमद को ‘साहिबुल अशगाल’ का उच्च पद प्राप्त हो गया था, किन्तु 1283 ईसवीं में इब्ने अबी उमरा की, बनी हफस के विरुद्ध विद्रोह कर देने के कारण हत्या कर दी गयी।
उसने राजनीति संबंधी एक छोटे-से ग्रंथ कि रचना भी की थी जिससे संभवतः इब्ने खल्दून ने पर्याप्त प्रेरणा प्राप्त की।
खल्दून के दादा मुहंमद को बनी हफस के राज्य में नायब हाजिब का पद प्राप्त था। किन्तु समकालीन की अनिश्चित दशा एवं बनी हफस के राज्य के पतन के कारण उसनें अपने अंतिम जीवन काल में एकांतवास ग्रहण करके धार्मिक जीवन बिताना शुरू कर दिया और यही सलाह उसने अपने लडके को भी दी।
दोनों अबू अब्दुल्लाह जुनैदी नामक एक प्रसिद्ध सूफी के शिष्य हो गये। मुहंमद की 1336–37 में मौत हो गयी। उसके लडके अर्थात इब्न खल्दून के अनुसार उसके पिता को सर्वदा उसकी शिक्षा की चिंता रहा करती थी। इब्ने खल्दून के वंश में उच्च कोटी की शिक्षा एवं राजनीति दोनों की ही परंपराएं वर्तमान थी।
इब्ने खल्दून अपने पिता एवं अनेक समकालीन आलीमों से शिक्षा ग्रहण की थी। उसके अधिकांश गुरुओं का वतन स्पेन था। ‘नकली एवं अकली’ ज्ञान के सभी क्षेत्रों में उसे अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई थी। धार्मिक विषयों के अतिरिक्त उसे तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, चिक्तिसाशास्त्र इत्यादी की भी शिक्षा मिली थी।
इब्ने खल्दून ने अपने जीवन में तकरीबन दस से अधिक देशों में निवास किया और कई बादशाहों, सुलतानों से उसके घनिष्ठ रिश्ते रहे। मगर राजनैतिक संबंधो ने उसे अपने कार्य से विचलित नहीं किया।
उसके इतिहास लेखन को हमेशा सत्ता के प्रभाव से दूर रखने की कोशिश कि जिसकी वजह से इतिहासलेखनशास्त्र के उद्गाताओं के साथ उसका नाम जोडा जाता है।
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लेखक मध्यकालीन भारत के आधिकारिक इतिहासकार है। इलियट और डाऊसन के बाद रिजवी ने ही मध्यकालीन फारसी दस्तावेजों का अनुवाद किया हैं। उन्होंने ‘खल्दून का मुकद्दिमा’ भी हिन्दी अनुदित किया है।