होस्नी मुबारक वो तानाशाह जिसने मिस्र को विनाश कि ओर धकेला

मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के निधन से अरब जगत के तानाशाही का एक चैप्टर हमेशा के लिए इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया। 9 साल निर्वासित जिन्दगी बिताने के बाद मुबारक 25 फरवरी को एक कभी न लौटने वाली लंबी यात्रा पर निकल गए।

मुबारक मिस्र के इतिहास में सबसे अधिक समय तक सरकार में बने रहने वाले ऐसे अकेले व्यक्ति थें जिन्होंने 30 साल तक सत्ता कि पकड ढिली पडने नही दी। परंतु फरवरी 2011 के वे 18 दिन उनके अटल सत्ता का निर्णायक फैसला कर गए। 

वैसे एक गरीब परिवार से संबंध रखने वाले होस्नी मुबारक (Hosni Mubarak) का राष्ट्रपति का सफर बडा ही रोचक और प्रेरणादायी कहा जा सकता हैं। 4 मई 1928 को काहिरा के पास ‘अल् मेसेलहाया’ जैसे छोटेसे गांव में जन्मे मुबारक मध्य-एशिया के एक शक्तिशाली राष्ट्रप्रमुख बन गए। उनका पुरा नाम मुहंमद होस्नी सईद इब्राहिम मुबारक था। उनकी पत्नी सुजेन अर्धब्रिटिश नागरिक हैं। उनके दो बेटे जमाल और अला हैं।

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कम उम्र में बने सैन्य कमांडर

शराब और सिगारेट से दूर रहने वाले मुबारक का दिन सुबह छह बजे शुरू होता था। सुबह का ज्यादातर समय वे कसरत मे बिताते। वे अपने स्वास्थ के प्रति बहुत अधिक सजग थे। उनके निजी जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी पब्लिक डोमेन में नही हैं, क्योंकि वे अपने परिवार के बारें में ज्यादा कुछ बताते नही थे।

1949 में मिस्र की मिलिट्री एकैडमी में उन्होंने एअर सायन्स के प्रवेश लिया। ग्रैजुएशन के बाद वे 1950 में केवल 21 साल के उम्र में वायू सेना शामिल हो गए। 22 कि उम्र मे वह पायलट बन गए। 44 के उम्र में उन्हे वायू सेना का कमांडर बनाया गया। एक साधारण सैन्य अधिकारी से शुरू हुआ उनका सफर वायू सेना के उच्चतर कमांडर तक पहुँचा। 1972 आते आते वे कमांडर इन चीफ बने।

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रोचक घटनाओं ने बदला नसीब

दो घटनाए उनके जिंदगी में सफलता के कीर्तीमान स्थापित करने में मददगार साबित हुई। पहली घटना, 1973 का अरब-इजराईल युद्ध था, जिसमें वह मिस्र कि ओर से इजराईल के खिलाफ लड रहे थें। रक्षा विभाग के उप-मंत्री की हैसियत से वे वायू सेना का नेतृत्व कर रहे थें।

निर्णायक और चौंकाने वाले हमले कर उन्होंने इसराइल के कब्जे कि अपनी जमीन छुडवाई। अमरिका के मध्यस्थता के बाद इजराईल को यह जमीन का तुकडा मिस्र के हवाले कर देना पडा। मिस्र ने इस विजय के रूप मे देखा।

जिसके बाद होस्नी मुबारक मिस्र में पहचाने जाने लगे। प्रशासन पर जोर बढा कि उन्हे सरकार में शामील कर ले। जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात (Anwar Sadat) नें उन्हे उप-राष्ट्रपति बनाया (vice-president)

उनके यशस्विता कि दूसरी घटना बेहद नाटकीय और चौंकानेवाली हैं। 6 अक्तूबर 1981 में राजधानी काहिरा में विदेशी मेहमानो के लिए सैनिक परेड (Military paradeचल रही थी। जिसमें राष्ट्रपति अनवर सादात के साथ उप-राष्ट्रपति होस्नी मुबारक भी शामील थें।

परेड के दौरान अपने ही सैनिक द्वारा राष्ट्रपति पर अचानक गोलियों से हमला किया गया, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। इस हमले में होस्नी मुबारक बाल-बाल बचे। गोली उनके कनपटी से निकलती हुई आगे निकल गई।

इस घटना के आठ दिन बाद होस्नी मुबारक मिस्र के चौथे राष्ट्रपति बन गए। दरअसल अनवर सादात नें इजराईल (Israel) के साथ कुछ शर्तो के साथ शांति समझोता किया था। जिससे देश का रुढीवादी संघठन मुस्लिम ब्रदरहूड (Muslim Brotherhood) काफी नाराज था। इसी के चलते अनवर सादात कि हत्या की गई। हत्या कि जिम्मेदारी ब्रदरहूड ने ली।

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सैन्य तानाशाह

राष्ट्रपति बनते के साथ होस्नी मुबारक ने अपने तमाम विरोधीयो का बंदोबस्त किया। उन्होंने देश पर अर्धसैन्य शासन थोंप दिय़ा। मीडिया औऱ विपक्ष पर कडे प्रतिबंध लगाए। बुनियादी स्वतंत्रता को कुचलकर रख दिया। सरकार ने कहा क, चरमपंथ को काबू में रखने के लिए य़ह करना जरूरी था।

एक तरह से कहे तो आपातकाल कि स्थिति देश में लागू हो गई, जो पुरे 30 साल तक चली। मुबारक ने फिर एक बार इजराईल के साथ समझौता किया। जिस इजराईल के कब्जे वाली जमीन फिर से हासील करने पर उन्हे उप-राष्ट्रपति का पद मिला था। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इजराईल से दोस्ती कर ली। इसराइल के समझौते ने मुबारक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े राजनयिक की हैसियत से अपनी पहचान बनाई।

कुछ लोगो का मानना हैं कि मुबारक ने बडी गलती कि जिसका बदले उनपर छह बार जानलेवा हमले हुए। इन सभी हमलो में वे बाल-बाल बचे। कुछ विशेषक्षो का मानना है कि इस फैसले से उन्होंने मिस्र को इजराईल के पास गिरवी रखा। मध्य-पूर्व पर नजर रखने वाले बहुत लोग मानते हैं कि मुबारक ने गलत किया था। उन्हे इजराईल के सामने झुकना नही चाहीए था।

1981 के बाद मुबारक तीन बार निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। चौथी बार अमरीका के दबाव में उन्हे कुछ राजनायिक सुधार करने पडे। होस्नी मुबारक इजराईल और अमरीका के समर्थक थें। बहुत से लोग मानते हैं कि वे अमरीका के एजंट थें। जिसने आगे चलकर 2011 में उन्हे सत्ता छोडने पर मजबूर किया था।

दरअसल हुआ यूँ कि दिसंबर 2009 में पडोसी मुल्क ट्युनिशिया में भ्रष्टाचारी और निरंकुश सत्ता के खिलाफ आम लोगो ने जमकर प्रदर्शन किया। लोग नही चाहते थे कि सरकार अधिक समय तक सत्ता में बनी रहे। सोशल मीडिया के सहयोग से आंदोलन चला जिसे अरब स्प्रिंग (Arab spring) कहा गया। लोग घरों से निकलकर सडको पर जम गए। और केवल 15 दिन में ट्यूनिशिया के राष्ट्रपति जिनेल आबेदिन को इस्तीफा देना पडा।

लोकतंत्र बहाली के लिए जनाआंदोलन

सत्ता विरोधी यह लहर मिस्र में पहुँची। लोगो नें राजधानी के तहरीर चौक में तानाशाह सरकारविरोधी प्रदर्शन शुरू किए। सरकार नें लोगों पर लाठीया बरसाई। जिसमें बहुत से लोगों को गंभीर चोटे आई और एक व्यक्ति की मौत हो गई। दूसरे दिन लोगो ने फिर प्रदर्शन किया। जिसमें उमर नामक एक लडका अपने टुटे पैर के साथ पहुँचा।

उमर कि यह तस्वीर उस दिन दुनियाभर में पहुँची। कहा जाता है कि, रुपर्ट मर्डोक के सामंती मीडिया ने इस तस्वीर को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। अमरीका, रूस और फ्रान्स जैसे देशें मुबारक के खिलाफ मुहीम छेड दी। अमरीका ने यहां तक कहा की, “अब लोकतंत्र बहाल करने का समय आ गया हैं। अब लोगों को रोकना नामुमुकीन हैं।”

बात स्पष्ट थी। अब होस्नी मुबारक अमरीका को नही चाहीए थे। पश्चिमी देशो को दबाव बढा। और केवल 18 दिनों मे होस्नी मुबारक को इजिप्शियन लोग और मीडिया के सामने घुटने टेकने पडे। 30 साल कि सत्ता के साथ 11 फरवरी 2011 को मुबारक ने अपने परिवार के साथ काहिरा छोड दिया।

इस पुरे मामले में 239 लोगो कि जान गई। देश में आम चुनाव हुए। परंपरावादी मुस्लिम ब्रदरहूड नें चुनाव में हिस्सा लिया। लोगो के समर्थन ने उसे सत्ता तक पहुँचाया। ब्रदरहूड के मुहंमद मोर्सी राष्ट्रपति बने। होस्नी मुबारक के खिलाफ मामले चले। जिसमे उनपर 239 लोगों के कत्ल का मुकदमा चला। उन्हे उम्रकैद कि सजा हुई।

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फिर से सैन्य शासन

दो साल बाद मुबारक सरकार में खुफिया विभाग के मंत्री रहे अब्देल फतह सीसी नें मुहंमद मोर्सी पर पश्चिमी देशो के लिए जासूसी करने के आरोप लगाए और उन्हे सत्ता से बेदखल किया। जिसके बाद उन्होने फिर से मिस्र में सैन्य शासन लगाया।

सत्ता पर असीन होने के बाद सीसी ने प्रतिबंध और ज्यादा कडे कर दिए। सरकारी स्वीकृति के बिना 10 से अधिक लोगों के सार्वजनिक समारोहों शामील नही हो सकते। यह फैसला मुबारक ने अपने शासन काल में लिया था।

से सीसी से फिरसे लागू कर दिया। एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार इसका उल्लंघन करने वाले 60,000 लोगो अब तक हिरासत में लिए जा चुके हैं। हिरासत में लोगो को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, जिसमें मार-पीट और बिजली के झटके शामिल हैं।

सत्ता से बाहर रहकर भी मुबारक कि प्रशासन पर पकड थी। जिसके चलते छह साल बाद वे बेदाग रिहा हुए। न्यायालय ने उन्हे निर्दोष पाया। परंतु उनके बेटों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ती और भ्रष्टाचार का मामला चला।

इत्तेफाख की बात देखीए। पिछले हफ्ते याने मुबारक के निधन के तीन दिन पहले 23 फरवरी को उन दोनों को भी निर्दोष सिद्ध किया गया। मिस्र के सैन्य शासक ने मुबारक परिवार को बेदाग साबीत किया।

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इजिप्शियन फिर संकट में

आज मुबारक को मिस्र कि सत्ता छोडे नऊ साल बीत चुके हैं। जिसमे दो राष्ट्रपति हुए पर आज भी मिस्र कि जनता लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाली के लिए लड रही हैं। हाल ही मे सीसी ने संविधान में बदलाव कर 2030 तक राष्ट्रपति बने रहने का सुधार किया। उन्होने यह फैसला चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रशिया के व्लादिमीर पुतीन के आजीवन राष्ट्रपति बने रहने के घटनात्मक सुधार के बाद लिया।

जिसके विरोध में चार महिने पहले याने अक्तूबर 2019 को मिस्र के तहरीर चौक में सैनिक तानाशाही सत्ता के खिलाफ फिर से एक बडा जनआंदोलन उभरा। लोगो ने सीसी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। उन्हे बढती बेरोजगारी को जिम्मेदार ठहराया। अधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि मिस्र के 32।5 प्रतिशत लोग अब गरीबी में रह रहे हैं।

लोगो ने दो महिनों तक तहरीर स्केअर में प्रदर्शन किए। सैन्य सरकार ने इन प्रदर्शकारीयों के खिलाफ कडी कार्यवाही की। उन्हे जेलो में डाला गया। पिछले चार-पाच सांलों मे हजारो लोगो को जेल में डाला गया हैं। मीडिया रिपोर्ट के माने तो कई लोग अब भी लापता हैं। जिसकी कोई खबर सरकार उनके परिजनो को नही दे रही हैं।

फिलिस्तीन और इजराईल के संघर्ष को और चरमराता छोडकर मुबारक चले गए। आज फिलिस्तीन पर बडा मानवीय संकट आ गया हैं। जिसपर कोई अरब मुल्क या अफगाण में मानवी हितो के लिए नाटो सैन्य भेजने वाले देश खामोश हैं। शांती क पुरस्कर्ता इन देशो को फिलिस्तीनी लोंगो को आँसू और इजराईली सरकार का जुल्म दिखाई नही देता।

विशेषज्ञो का मानना हैं कि अनवर सादात और उनके बाद होस्नी मुबारक ने फिलिस्तीन को इस दशा तक पहुँचाया हैं। खौर कुछ भी हो आज मिस्र और फिलिस्तीन अपने अस्तित्व की लडाई लड रहा हैं। उनके साथ लेबनान, सीरिया, येमेन, अल्जेरिया, सुदान जैसे आफ्रिकन मुसलिम मुल्क भी अपने अस्तित्व के संकट से झुझ रहे हैं।   

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