क्यूं देर कर रहा है उस दर की हाज़री में
जन्नत के दर खुले हैं उस घर की हाज़री में
पवित्र कुरआन में अल्लाह कहता है कि मैंने उस शख्स पर हज को फर्ज़ कर दिया जो वहां (मक्का) तक पहुंचने की ताकत रखता हो, जिसके पास इतनी धन-दौलत हो कि वह हज के सारे खर्च बरदाश्त कर सकता हो और आकिल, बालिग हो और उसमें वहां जाने के लायक सेहत व ताकत हो।
ऐसे हर शख्स पर हज फर्ज है। हज इस्लाम की बुनियादों में एक अहम बुनियाद है। हज को फर्ज़ करने में उस मौला ने तमाम इन्सानों के लिए बड़ा ज़बरदस्त पैगाम रखा है।
हज के मुबारक मौके पर अल्लाह एक ही जगह पर पूरी दुनिया, हर मुल्क, हर स्टेट, हर इलाके के लोगों को वहां जमा करके तमाम इन्सानों को एक ही लिबास पहनाकर, एक ही सफ (लाइन) में खड़ा करके इन्सानों के बीच की तमाम दूरियों, भेद भाव और ऊंच नीच, काले और गोरे के फर्क को मिटा देता है।
हर इन्सान को दुनिया के हर शख्स के खयालात, हालात का पता चलता है जिससे इंटरनेशनल भाईचारे को बढ़ावा मिलता है। इंग्लैंड हो या हालैंड, अमेरिका हो या अफ्रीका, पाकिस्तान हो या तुर्किस्तान, इंडोनेशिया हो या मलेशिया-जापान हो ईरान।
चीन हो या फलस्तीन- दुनिया के किसी मुल्क का रहने वाला हो सबके बदन पर एक ही कलर का एक जैसा लिबास, एक घर के ईद गिर्द सब एक ही इमाम के पीछे, एक साथ, एक ही आवाज़ और एक ही अंदाज़ में अल्लाहुम्मा लब्बेक (ऐ अल्लाह, मैं हाज़िर हूं, तू ही अकेला सब कुछ है, तेरी बादशाहत, तेरी हुकूमत में कोई तेरा शरीफ नहीं, सब तारीफ, सब नेमते तेरीही है।)
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तंदुरुस्त होना भी ज़रुरी
हज़रत मुहंमद (स) ने फरमाया कि फर्ज़ हो। जाने के बाद भी अगर इन्सान हज न करे तो उसका – इस्लाम और ईमान मुकम्मल नहीं। हज़रत मुहंमद (स) ने इससे भी ज्यादा खतरनाक बात ये कही कि अगर कोई माल व दौलत और ताकत के होते हुए भी हज ना करे या देर करे तो फिर उस शख्स की हमको कोई परवाह नहीं।
यानी उसका अंजाम कितना ही बुरा हो, नबी पाक को उसकी कोई फिक्र नहीं, उसके लिए नबी की कोई सिफारिश नहीं।
अगर कोई शख्स पाबंदी के साथ नमाज़ पढ़ता है, हर रमज़ान में रोजे रखता है, लेकिन माल होने के बावजूद हज नहीं करता तो उसका इस्लाम व ईमान अधूरा व नामुकम्मल है और इसी तरह मौत आ गई तो बस खुदा खैर करे।
यही वजह है कि दुनिया के हर मुसलमान को एक ही फिक्र होती है, एक ही तमन्ना होती है कि मौत से पहले मुझे हज नसीब हो, उस घर की हाजिरी नसीब हो, और जल्दी हो, हाथ पैर की ताकत के साथ, बदन की कुव्वत के साथ हो क्योंकि हज में ताकत का होना, जिस्म का तंदुरुस्त होना भी ज़रुरी है।
बड़े खुशनसीब है वे लोग जो बदन की ताकत और सलामती के साथ उस फरीज़े (हज) को अंजाम दें। ये बात बड़ी अच्छी लगती है कि दुनिया के सिर्फ दो, चार मुल्क (भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश, नेपाल) छोड़ कर हर मुल्क में खास तौर से इंडोनेशिया, मलेशिया और तमाम इस्लामी मुल्कों में हज को एक अहैम फरीजा (नमाज, रोज़े और ज़कात की तरह) समझा जाता है और उसको जल्दी अदा करने की फिक्र की जाती है।
इसी वजह से उन मुल्कों में 99 फिसदी जवान हाजी मिलेंगे और सब से बड़ा कमाल जवान बच्चों के हाजी बनाने में उनके मां बाप का होता है।
बालिग होते ही मां-बाप अपने बच्चों को नमाज़ी बनाने के साथ साथ हाजी बनाने की फिक्र करते हैं और हमारे मुल्क में मां-बाप उसकी नौकरी, शादी फिर पोता पोती की सेटिंग में लगकर बूढ़े हो जाते हैं और फिर तमन्ना यह होती है कि औलाद हम को हज कराएगी।
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हक और और फर्ज
आज की औलाद का हाल सबको मालूम है। वह मां-बाप को रखने और खिलाने-पिलाने के बारे में ही सोच रही है तो फिर हज तो बहुत दूर की बात दूसरे मुल्कों में जवानी में ही हज करने का रिवाज व रस्म है, बल्कि कोई जवानी में हज न करे तो बड़ी ऐब की बात समझी जाती है।
कुछ जगहों पर तो शादी का रिश्ता तय करते वक्त यह सवाल किया जाता है कि अल्लाह का फर्ज (हज) अदा किया या नहीं, हाजी है या नहीं। क्योंकि अगर अल्लाह का फर्ज अदा कर दिया है तो यह समझा जाता है कि वह उसके बंदों का भी ख्याल रखेगा।
हाजी होने के बाद उसके दिल में खुदा का डर होगा। जल्द हज न करे तो बड़ा बुरा माना जाता है क्योंकि जिस खुदा दिया, जान दी, ताकत व कुव्वत दी उस खुदा का फर्ज अदा करने में, उसके घर की हाजिरी और दीदार में देरी कर रहा है तो यह शख्स खुदा के बन्दों का हक और और फर्ज कैसे अदा करेगा ?
इसके दिल में उस रब की मोहब्बत नहीं है तो उसके बन्दों की मोहब्बत कैसे होगी? हमें बड़ा अफसोस होता है जब मक्का और क मदीना की गलियों में कोई परेशान बूढ़ा या बूढ़ी थक कर हांपते-कांपते सांस लेते हुए बैठ जाते हैं, चला नहीं जाता, गुम हो जाते हैं, भीड़ भाड़ में तवाफ, जियारत, नमाज और तिलावत की ताकत व हिम्मत नहीं होती।
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हज में जल्दी करो
जब पता करो तो मालूम होता है कि ये सब भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी या नेपाली हैं, उनमें बड़ी तादाद हमारी (भारतीयों की) होती है। याद रखिए… हज में देरी करना बड़ी बुरी बात है। अगर जवानी ही में इतने रुपए आ गए कि हज को जा सकते हैं तो बस फिर हज फर्ज़ हो जाता है, लेकिन कुछ जिहालत कहिए या – फिर माल की मोहब्बत जो हज में जाने से रुकावट बनती है।
अजीब अजीब सोच और गलत मसले दिमाग में बैठ गए हैं। कोई समझता है कि जब तक मेरे बेटों और बेटियों की शादी ब्याह की जिम्मेदारी से फारिग ना हो जाऊ, हज कैसे कर सकता हूं बस इसी चक्कर में और शादी ब्याह के इंतजार में उसकी मौत आ जाती है और वह हज का फर्ज पूरा न करते हुए अधूरे इस्लाम के साथ दुनिया से चला जाता है। या फिर इन जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए वह इतना बूढ़ा हो जाता है कि जाने की ताकत नहीं होती।
यह गलत मसला लोगों ने जहेन में बैठा लिया है कि पहले बच्चों की शादियां – नौकरी और उनके घर बार सेट हो जाए तो हज होगा।
मेरे भाईयों… हज पर इतना बड़ा इनाम अल्लाह ने तय किया है कि हज़रत मुहंमद (स) फरमाते हैं कि हाजी ने अगर हज में कोई गुनाह का काम ना किया तो वह ऐसा पाक व साफ (गुनाहों से) हो जाता है कि जैसा मां के पेट से बच्चा हर गुनाह से पाक आता है, इसी तरह हाजी भी तमाम गुनाहों से पाक हो जाता है।
इसलिए मेरे भाईयों… हज में जल्दी करो, कहीं मौत का परवाना न आ जाए, हमारी दुआ है कि अल्लाह सबको हज नसीब करे – जवानी का हज अदा करें (आमीन)।
जाते जाते :
लेखक जलगांव स्थित इस्लामिक विद्वान हैं।