अफ़ग़ान-अमेरिका निरर्थक जंग के अनसुलझे सवाल

गर अफ़ग़ानी सैनिक नहीं लड़ते तो मैं कितनी पीढ़ियों तक अमेरिकी बेटे-बेटियों को भेजता रहूं। मेरा जवाब साफ है। मैं वो गलतियां नहीं दोहराऊंगा जो हम पहले कर चुके हैं।  .. क्या हुआ है? अफगानिस्तान के राजनीतिक नेताओं ने हाथ खड़े कर

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बूढ़ापे में नहीं बल्कि जवानी में ही करें हज यात्रा

क्यूं देर कर रहा है उस दर की हाज़री में

जन्नत के दर खुले हैं उस घर की हाज़री में

पवित्र कुरआन में अल्लाह कहता है कि मैंने उस शख्स पर हज को फर्ज़ कर दिया जो वहां (मक्का) तक पहुंचने की ताकत रखता हो

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पांडुलिपियां राष्ट्रीय धरोहर, कैसे हो उनका वैज्ञानिक संरक्षण ?

राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के अवशेष हमारे गौरवमयी ऐतिहासिक चिन्ह स्वरूप, पांडुलिपियों में मौजूद हैं। यह अमूल्य धरोहर हमारी सभ्यता, संस्कृति तथा समाज के उत्थान और उन्नति की प्रतीक हैं।

आदिकाल से जब मनुष्य ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए लिखना

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इंकलाबी खातून रशीद जहाँ का तफ़्सीली ख़ाका

किताबीयत : हमारी आज़ादी तथा अन्य लेख

डॉ. रशीद जहाँ अपनी सैंतालिस साल की छोटी सी ज़िंदगानी में एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय रहीं। उनकी कई पहचान थीं मसलन अफसाना निगार, ड्रामा निगार, जर्नलिस्ट, एडीटर, डॉक्टर, सियासी-समाजी एक्टिविस्ट और

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अब्बास को फिल्मी दुनिया में मिलती थी ‘मुंह मांगी रकम !’

फिल्म निर्माता, निर्देशक, कलाकार, पत्रकार, उपन्यासकार, पब्लिसिस्ट और देश के सबसे लंबे समय यानी 52 साल तक चलने वाले अखबारी स्तंभ दि लास्ट पेजके स्तंभकार ख्वाजा अहमद अब्बास उन कुछ गिने चुने लेखकों में से एक

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महिला आरक्षण की बहस में समाज चुप क्यों रहता हैं ?

पिछले दिनों चार राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश में हुए विधान सभा चुनावों के कारण देश में चुनावों का वातावरण था, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को समानता का अधिकार तथा 33 फीसदी आरक्षण देने की बात नहीं की है। बेशक यह

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शमीम हनफ़ी के साथ ‘महफ़िल ए उर्दू’ की रौनक़ चली गई

प्रोफेसर शमीम हनफ़ी, उर्दू अदब की आबरू थे। उर्दू अदब के वे जैसे इनसाइक्लोपीडिया थे। उर्दू अदब की तारीख और अहम शख़्सियतों के बारे में उन्हें मुंह जबानी याद था। पूछने भर की देर होती और उनके अंदर से अनेक किस्से बाहर निकलकर

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क़ुरआन समझने की शर्त उसे खाली जेहन होकर पढ़े !

क़ुरआन अल्लाह की तरफ से उतारी गई एक दावती किताब है। अल्लाह तआला ने अपने एक बन्दे को सातवीं सदी ईसवीं की पहली तिहाई में एक ख़ास कौम के अंदर अपना नुमाइंदा बनाकर खड़ा किया और उसे अपने पैग़ाम की पैग़ाम्बरी (संदेशवाहन) पर मामूर

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शायर-ए-इंकलाब ‘जोश मलीहाबादी’ पाकिस्तान क्यों चले गए?

र्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहलाए। उनके तआरुफ और अज्मत को बतलाने के लिए उनके हजारों शेर काफी है। वरना उनके अदबी खजाने में ऐसे-ऐसे कीमती हीरे-मोती हैं, जिनकी चमक

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पूर्वी लद्दाख में चीन कि घुसपैठ पर सरकार क्या बोली?

लोकसभा से:

होदय, मैं भारत और चीन सीमा पर हाल फिलहाल जो डेवलपमेंट्स हुए हैं, उसकी जानकारी देने के लिए, उस पर वक्तव्य देने के लिए सदन के समक्ष खड़ा हुआ हूं अध्यक्ष जी, पिछले वर्ष सितम्बर में इस गरीमामय

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