राज्यसभा से :
यह कोई भाषण की शक्ल में नहीं है, एक शोक संतप्त गणतंत्र का एक अदना नागरिक समझिये या एक जन प्रतिनिधि समझिये, उसकी ओर से कुछ बातें कही जा रही हैं। सबसे पहले माफीनामा उन तमाम लोगों को, जिनकी मौत को भी हम कबूल नहीं कर रहे हैं, जबकि हमें पता है कि वे मारे गये। यह माफीनामा मेरा नहीं है।
मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि मई (2021) के महीने में मैंने 6 आर्टिकल्स लिखे, संसद चल नहीं रही थी, कहां अपनी शिकायत ले जाते, किससे कहते।
मुझे भाजपा के मित्रों ने, कई साथियों ने कॉल किया, बधाई दी। मैं उनका भी ऐहतराम करता हूं और कहता हूं कि यह भरोसा इस सदन का है कि हम सबको एक साझा माफीनामा उन लोगों के नाम भेजना चाहिए, जिनकी लाशें गंगा में तैर रही थीं। लेकिन किसी ने यह कह दिया, किसी ने वह कह दिया।
दूसरी चीज यह है कि मैंने कल सेक्रेटरी जनरल साहब से भी बाकी जगह बात करने की कोशिश की कि किन्हीं दो सत्र के बीच में पचास लोगों की ऑब्युचेरी (शोक संदेश) आज तक संसदीय इतिहास में कभी नहीं हुई। क्या राजीव सातव जी की उम्र इस दुनिया से जाने की थी ? रघुनाथ महापात्र, जब मिलते थे, गले लगाते थे और बोलते थे – जय जगन्नाथा; अचानक वे चले गये।
पढ़े : दंभ और गुरूर का नाम ‘लोकतंत्र’ नही होता!
पढ़े : देश के चार बड़े किसान आंदोलन जब झुकीं सरकारे
पढ़े : अफ़ग़ान-अमेरिका निरर्थक जंग के अनसुलझे सवाल
यह पीड़ा व्यक्तिगत है, मैं आंकड़े नहीं कहना चाहता हूं। मेरा आंकड़ा, तुम्हारा आंकड़ा। अपनी पीड़ा में आंकड़ा ढूंढ़िये। एक भी व्यक्ति इस देश, इस सदन में और सदन के बाहर उस सदन में नहीं है, जो यह कहे कि उसने किसी जानने वाले को नहीं खोया हो।
सबकी पीड़ा मैं समझ सकता हूं। ऑक्सीजन के लिए लोग फोन करते थे, हम अरेन्ज नहीं कर पाते थे। लोग समझते हैं कि सांसद है, ऑक्सीजन दिलवा देगा। सौ फोन में पूरे दिन में शाम को बैठकर देखते थे, सक्सेस रेट दो, सक्सेस रेट तीन – हमें कौन सा आंकड़ा कोई बतायेगा, हमें किसी आंकड़े की बात नहीं करनी है।
हमें देखना है कि जो लोग मर गये, वे हमारे (सरकार) फेल्योर का जिन्दा दस्तावेज छोड़कर गये हैं। मैं आपकी बात नहीं कर रहा हूं, आप कहेंगे कि 70 सालों में कुछ नहीं हुआ, मैं उसमें जाना ही नहीं चाहता हूं। यह 1947 से लेकर अब तक की सारी सरकारों का सामूहिक विफलता (collective failure) है। हमने (इस देश को) क्या बना दिया?
मुझे पता नहीं था कि अस्पताल और ऑक्सीजन का क्या रिश्ता होता है, ईमानदारी से कहता हूं। मैं मेडिकल बैकग्राउंड से नहीं आता हूं। सुबह से लोगों को देखता था – ऑक्सीजन, ऑक्सीजन, रेमडेसिविर। मैंने दवाइयों के नाम का शुरू में प्रोनाउंसिएशन चैक किया कि कैसे उच्चारण करूंगा।
यह हालत है और तब हम आंकड़ों की बात कर रहे हैं। और हम यह बात कर रहे हैं कि थँक्यू यू फलानां साहब! (सत्तापक्ष के अधिकतर सदस्यों ने महामारी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री को शुक्रिया कहा था।) जब मैं यहाँ से निकलता हूँ तो बाहर बहुत बड़ा विज्ञापन लगा हुआ है, ‘मुफ्त वैक्सीन’, ‘मुफ्त राशन’, ‘मुफ्त इलाज।’ (व्यवधान) मैंने किसी का नाम नही लिया।
मैं आज किसी दल की ओर से नहीं बोल रहा हूँ। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि मैं लाखों लोगों की ओर से बोल रहा हूँ, जो यहाँ बोलना चाहते हैं।
हमने आज यह बात क्यों की? मैं आपसे शिकायत नहीं कर रहा हूँ। यह लोक हितकारी राज्य है न? अगर कोई गरीब गाँव में साबुन की एक टिकिया खरीद रहा है, तो वह अडाणी, अम्बानी के बराबर का करदाता है।
पढ़े : कोरोना संकट, सरकार और सांप्रदायिकता इतिहास में सब दर्ज
पढ़े : क्यों बढ़ रहे हैं भारत में ईसाई अल्पसंख्यकों पर हमले?
पढ़े : राजनीतिक फैसलों से बारूद के ढेर पर खड़ा ‘शांतिप्रिय लक्षद्वीप’
आप उसको कह रहे हैं, ‘मुफ्त वैक्सीन’, ‘मुफ्त इलाज’, ‘मुफ्त राशन!’ नहीं साहब, कुछ मुफ्त नहीं है। वह उसका हिस्सा है। इस लोक हितकारी राज्य की प्रतिबद्धता है। उसको आप बदनाम मत करिए, चरित्र भ्रष्ट मत करिए, उसे बौना मत बनाइए, मेरा यह आग्रह है।
यह कोरोना, मैं भी मानता हूँ। मेरे पूर्व के वक्ता कुछ कह रहे थे, हमारे लिए चैलेंज है। बहुत बड़ी-बड़ी बातें नये-नये कानून की हो रही हैं। हम लोग स्वास्थ के अधिकार की बात क्यों नहीं करते? स्वास्थ्य का अधिकार उसमें कोई किन्तु, परंतु, लेकिन, परंतु नहीं (होना चाहिए)।
सीधे तौर पर स्वास्थ्य का अधिकार, संवैधानिक रूप से गारंटीकृत, जीवन के अधिकार के साथ जोड़ दीजिए फिर किसी अस्पताल की मजाल नहीं होगी कि वह उसके जिन्दगी के अधिकार के साथ खिलवाड़ कर पाये। (पर यह हम) करना नहीं चाहते हैं। काम का अधिकार, उस पर (भी तो) काम करिए।
पॉपुलेशन को लेकर बहुत बातें हो रही हैं। जनसांख्यिकी को विशेषज्ञ पर छोड़ दीजिए। यह बड़ा संश्लिष्ट विज्ञान है, लेकिन यह हम इस सदन (राज्यसभा) और उस सदन (लोकसभा) में कर सकते हैं।
जिने का अधिकार और काम का अधिकार पर कानून लाइए, ताकि कोई आपदा आये तो लोगों का भला हो सके। अभी हमारे सदन के नेता नहीं हैं। वे नये-नये बने हैं। मैं उनसे कहता कि जब वे रेल मंत्री थे। इसी कोरोना काल में सेवा सेक्टर के लोगों को निकाल दिया गया।
मैंने लगातार आवाज़ उठायी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। क्या कोई नहीं सुन रहा है ? अगर आप सांसद की नहीं सुन रहे हैं, तो जो छोटे अदना संविदा वाले नौकरी से निकाले गये, उनकी कौन सुनेगा ?
इसी कोरोना के दौरान एक और अद्भुत चीज़ हुई। जब हॉस्पिटल के लिए, आइसीयू बेड्स के लिए, दवाइयों के लिए हाहाकार मचा हुआ था, उस दौर में कई चीजें हुई, जिनमें से मैं जिस एक महत्वपूर्ण चीज़ का जिक्र करूँगा, उस हाहाकार में सरकारें मैं सिर्फ केन्द्र को नहीं कह रहा हूँ, कई राज्य सरकारें भी नदारद थीं।
पढ़े : ‘सेंट्रल विस्टा’ संसदीय इतिहास को मिटाने का प्रयास
पढ़े : बात ‘आत्मनिर्भर भारत’ या चुनिंदा ‘पूंजीपति निर्भर’ भारत की?
पढ़े : राजनीतिक पार्टीयों के लिए ‘धर्मनिरपेक्षता’ चुनावी गणित तो नही!
इस मुल्क ने वह डेढ़ महीना कैसे बिताया है ? हमारे सदन के कई लोग बड़ी मुश्किल से बच कर आये हैं, मैं (किसी का) नाम नहीं लूँगा। पूरे देश ने वह वक्त कैसे बिताया है, वह बुरे सपने की तरह लगता है, डरावना लगता है।
मेरा पढ़ाया हुआ 37 साल का एक स्टूडेंट था, जब तक मैंने हॉस्पिटल का बेड अरेंज किया, वह दुनिया छोड़ कर जा चुका था।
मैं इसलिए बार-बार यह कह रहा हूँ कि इसमें व्यक्तिगत पीड़ा को ढूंढ़िए, तब हम इसका निदान ढूंढ़ पायेंगे। मेरी नाव, तुम्हारी नाव, मेरा काल, तुम्हारा काल, यह तो बहुत कुछ हुआ, आपको इस भौकाल से कुछ हासिल नहीं होगा।
मैंने मृतात्माओं के नाम एक ख़त लिखा था। मैं कुछ कर नहीं पा रहा था, तो बेबसी में एक ख़त लिखा, जो लोग इस दुनिया से चले गये। उसमें मैंने सरकार को कुछ सलाह दी थी। उस बीच में यह जो कहा गया कि सरकारें फेल नहीं की, सिस्टम फेल कर गया।
अरे साहब, यह सिस्टम क्या है ? बचपन से सुनता था कि सिस्टम के पीछे व्यक्ति होता है, सिस्टम के पीछे एक संरचना होती है। अगर वह सिस्टम फेल किया है, चाहे दिल्ली में या किसी गाँव की गलियों में, तो वहाँ की सरकारें फेल हुई हैं, इसे सिस्टम का नाम मत दीजिए, क्योंकि यही वह सिस्टम बनाते हैं।
संसद में @manojkjhadu द्वारा बहुत भावनात्मक भाषण सुनने को मिला ।
एक बार ज़रूर सुने – pic.twitter.com/oW17YpTbkh
— Yogya Empowering (@YogyaEmpowering) July 20, 2021
आज ‘जय हिन्द’ बोलने में भी वह खुलूस नहीं आ रहा है, जो आम दिनों में हुआ करता है।
मैं आपके माध्यम से सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैंने किसी से भी एक शिकायत नहीं की हम किससे शिकायत करेंगे ? मैं आहत हूँ, जगाना चाहता हूँ, स्वयं को भी और आपको भी, क्योंकि हमने गंगा में तैरती लाशें देखी हैं। जिन्दगी में लाशों के लिए भी सम्मान चाहिए, मौत में उससे बड़ा आदर चाहिए।
हमने असम्मानजनक मौतें को साक्षी किया है। अगर हमने इसको दुरुस्त नहीं किया, तो आने वाली सदियाँ हमें माफ नहीं करेंगी। आप बड़े-बड़े इश्तिहार छपवाएँ, अखबारों के चार पन्ने रंग दें, फलां थैंक यू कहें – इतिहास को थैंक यू कहने का मौका मिलना चाहिए।
अगर मेरी बात से फिर भी किसी को कष्ट पहुँचा हो, मैं उन्हीं लाखों लोगों की मृतकों के पक्ष में आपसे माफी माँगता हूँ, जय हिन्द।
(सौजन्य : RSTV)
जाते जाते :
- ‘धर्मनिरपेक्षता’ की व्याख्या करती हैं हमीद अंसारी की किताब
- मुसलमानों कि स्मृतियां मिटाने कि वजह क्या हैं?
- बाबरी के बाद ‘राम के नाम’ इस रेकॉर्ड का क्या होंगा?
लेखक राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं।