मौलाना वहीदुद्दीन खान : भारत के मकबूल इस्लामिक स्कॉलर

शहूर इस्लामिक विद्वान और गांधीवादी मौलाना के नाम से प्रसिद्ध वहिदुद्दीन ख़ान अब हमारे बीच नही हैं। खबरों के मुताबिक 21 अप्रेल की देर रात दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हुआ।

बता दे की 96 वर्षीय मौलाना कोविड से संक्रमित थे, इलाज के लिए उन्हे 12 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिवारिक सूत्रों ने बताया कि उन्होंने रात करीब साढ़े नौ बजे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली। गुरुवार को उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।

मौलाना वहीदुद्दीन की पहचान उदारवादी इस्लामिक चिंतक के रुप मे होती हैं। हर विवादित मसले पर वे बेबाक टिप्पणी किया करते थे। फिर बाबरी की जमीन का मसला हो, सलमान रश्दी या फिर पैगम्बर के कथित विवादित कार्टून को लेकर चल रही बहसबाजी हो। उसी तरह इस्लामिक मूल्यों पर भी उनका नज़रिया आम लोगो से काफी अलग था।

Inna lillahi wa inna ilayhi rajioon. It is with deep sorrow that we announce the passing away of Maulana Wahiduddin…

Posted by Maulana Wahiduddin Khan on Wednesday, 21 April 2021

देश के कई अखबार और पत्रिकाओं में उनके मजमून छपते थे, जिसमें वे स्पष्टवक्ता की तरह अपनी बात रखते। उनके लेख और वीडियो स्पीचेस को सुनेगे तो पता चलता हैं की, कुरआन और हदीस के हवालों से उन्होंने कई संवेदनशील मसलो का प्रावधान बताया हैं। यहीं वजह रही कि परंपरावादी मुसलमानों का एक तबका उनसे काफी नाराज भी रहता था।

वहीदुद्दीन ख़ान ने किसी भी पेचिदे मसले पर खुलकर कहा हैं। उन्हें कुरआन के अंग्रेजी और देवनागरी में आसान अनुवाद के लिए भी जाना जाता हैं। इस्लाम और सामाजिक चिंतन पर उन्होंने कई किताबे लिखी हैं। अंग्रेजी, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी भाषा वे धाराप्रवाही बोलते थे। उनकी लिखी 200 से ज्यादा किताबे देश के कई प्रादेशिक भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।

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आसान जुबान में इस्लाम

दिल्ली में रहने वाले मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान का जन्म 1 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के बधारिया गांव में हुआ था। कम उम्र में अपने पिता फ़रीदुद्दीन ख़ान को खोने के बाद, उनकी माता ज़ैबुन्निसा खातून और उनके चाचा सूफ़ी अब्दुल हमीद ख़ान ने उनकी तालिम का प्रबंध किया।

भारत के आज़ादी के आंदोलन में उनका परिवार शुरू से ही शामिल रहा था। यहीं वजह रही की बहुत ही कम उम्र में वे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े। मौलाना गांधीवादी मूल्यों में विश्वास रखते थे। अपने बात शांति और संयतता के साथ रखते थे।

कहते हैं, उनके भाई और उनके परिवार के अन्य सदस्यों को पश्चिमी शैली के आधुनिक स्कूलों में भेजा गया था, वहीं वहीदुद्दीन को आजमगढ़ में एक इस्लामी मदरसा में दाखिला दिया गया था। मौलाना की शुरुआती तालिम मदरसे में हुई थी।

दिनी तालिम हासिल करने के लिए 1938 में आजमगढ़ शहर आ गए। यहां उन्होंने छह साल बिताए और 1944 में स्नातक किया। अपने शुरुआती दिनों से ही आधुनिक शिक्षा और ज्ञान में उनका रूझान रहा हैं। शुरू से ही वह इस्लामी शिक्षा और आधुनिक विषयों दोनों में मसरुफ रहें। उनका मानना था की बदलते शैली में इस्लामी पेश करना समय की आवश्यकता है।

मौलाना कहते कि कम उम्र में अनाथ होने से उन्होंने सीखा है कि, जीवन में सफल होने के लिए, आपको ऐसी परिस्थितियों को चुनौती के रूप में लेना होगा और समस्या के रूप में नहीं।

धार्मिक शिक्षा के बाद उन्होंने आधुनिक, अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा हासिल की। शुरू से ही इस्लाम उनके गहरे अध्ययन का खास विषय रहा। इसी विषय में शोध कार्य में लिप्त रहने लगे। परिणामत: वे इस्लामी दर्शन और आधुनिक विज्ञान दोनों में माहिर हो गए।

1955 में उनकी पहली किताब, ‘ऑन द थ्रेशोल्ड ऑफ़ ए न्यू एरा प्रकाशित हुई। यह किताब, उनके संपूर्ण अध्ययन का नतीजा है। आगे चलकर उन्हेंन कई किताबे लिखी, जिसमें दि सर्च ऑफ गॉड, कुरआन अँड ह्युमॅनिटी, खुदा और इन्सान’, ‘तज्किरुल कुरआन’, ‘दि पॉलिटिकल इंटरप्रिटिशन ऑफ इस्लामआदी प्रमुख हैं।

इसके अलावा वहीदुद्दीन ख़ान ने कई टेलीविजन चैनलों पर व्याख्यान देते थे। साथ ही नियमित रूप से फेसबुक लाईव्ह करते थे। उन्होंने अब तक 50 मिलियन से भी ज्यादा वीडियो बनाए हैं। अपने तकरीर और मजमुनों मे इस बात पर खास जोर देते हैं कि समाज में आपसी मेल-मिलाप हो, भाईचारा, तथा सहिष्णुता बनी रहे, धार्मिक मसलों को भूलाकर लोग आपस में जुड़े रहे।

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शांतिदूत

1992 के बाबरी विध्वंस के बाद समाज में शांति और अमन बनाए रखने के लिए मौलाना ने देश में दौरे किए। इस दौरे में उनके साथ विविध धर्मसमुदाय के विशेष व्यक्ति खास तौर पर शामिल रहते। जिसमें आचार्य मुनि सुशील कुमार और स्वामी चिदानंद भी थे।

दुनिया भर में मानव जाति को आध्यात्मिक ज्ञान फैलाने के लिए मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने 2001 में ‘CPS International’ यानि शांति और आध्यात्मिकता केंद्र की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य मन के माध्यम से शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना और सुदृढ़ करना है।

मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान के लेख, किताबे और वीडियो से हमे आध्यात्मिक ज्ञान को केंद्र मे रखते हुए शांति प्रयासों और अंतर-धार्मिक संवाद प्रस्थापित करने के लिए मदद मिलती हैं। मौलाना इस्लाम कि व्याख्या करते हुए पारंपरिक सोच और हटवादी नजरिया से हटकर करते हैं। उन्होंने अपने इस्लामी ज्ञान प्रसार से विविध धर्म समुदाय तथा सामाजिक स्तर पर मानवीय मूल्यों को करीब लाने की कोशिशों हैं।

मुसलमानों के साथ गैर-मुसलमानों मे भी मौलाना को मकबूलियत हासिल है। उन्हें दुनिया के 500 सबसे ज्यादा प्रभावी मुस्लिमों की सूची में भी शामिल किया जा चुका है। उन्हें कई सारे प्रतिष्ठित अवार्डों से सम्मानित किए जा चुका हैं।

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मिले कई सम्मान

मौलाना को हाल ही में जनवरी 2021 में पद्मविभूषण से नवाजा जा चुका हैं। इससे पहले साल 2000 में पद्म भूषण सम्मान से गौरवान्वित किया गया था। 2009 में मदर टेरेसा और राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार’, 2015 में अबूज़हबी में सैयदियाना इमाम अल हसन इब्न अली शांति अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें सोवियत संघ के दौर में राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने डेमिर्गुस पीस इंटरनेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया था।

मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान के बेटे जफरूल इस्लाम ख़ान दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं, साथ ही उनकी पहचान एक जाने माने लेखक और स्तंभकार के तौर पर भी जाने जाते हैं। उन्होंने शोक जताते हुए ट्वीट के जरिए निधन की जानकारी दी हैं।

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मौलाना के निधन पर शोक जताया हैं। ट्वीट कर उन्हेंने कहा, “मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान के निधन से दुख हुआ। धर्मशास्त्र और अध्यात्म के मामलों में गहरी जानकारी रखने के लिए उन्हें याद किया जाएगा। वह सामुदायिक सेवा और सामाजिक सशक्तीकरण को लेकर भी बेहद गंभीर थे। परिजनों और उनके असंख्य शुभचिंतकों के प्रति मैं संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।’’

इस्लामिक स्कॉलर मौलाना वहिदुद्दीन ख़ान को डेक्कन क्वेस्ट परिवार खिराजे अकिदत पेश करता हैं।

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