सन 1962 को अलग महाराष्ट्र राज्य का पहला विधानसभा चुनाव घोषित हुआ था। तब उस चुनाव में भाग लेने प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू नें डॉ. रफिक ज़कारिया (Dr. Rafiq Zakaria) को महाराष्ट्र भेजा। उस समय वे दिल्ली की सियासत में अपनी अच्छा पकड बना चुके थें।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के निकटवर्ती और उनके निजी सेक्रेटरी रहे हुमायून कबीर के वे सहयोगी थें। तब काँग्रेस के दिग्ग्ज समझे जानेवाले यशवंतराव चव्हाण राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री थें।
श्री. चव्हाण के देखरेख में चुनाव होनेवाले थें। उन्होंने ‘कोंकणी मराठी मानूष’ ऱहे रफिक ज़कारिया को औरंगाबाद से चुनाव लडने भेजा। डॉ. जकारिया उस समय शहर के लिए नये थें, फिर भी वे औरंगाबाद पहुँचे। काँग्रेस पार्टी से वे चुनाव में भारी मतो से निर्वाचित हुए। नये होने के बावजूद उन्होंने औरंगाबादवासीयों का दिल जितने में सफलता हासील की।
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गोविंददास श्रॉफ को पछाडा
औरंगाबाद में उस समय रफिक ज़कारिया के विरुद्ध हैदराबाद मुक्ती संग्राम के सेनानी श्री. गोविंददास (भाई) श्रॉफ खडे थें। वे काफी जानेमाने शख्स थे। एक प्रखर स्वाधीनता सेनानी थे, उन्हें गांधीवादी कहा जाता था। हैदराबाद मुक्ती आंदोलन में उनकी महत्तवपूरण भूमिका रही थी। श्रॉफ स्वामी रामानंद तीर्थ से मतभेदो के कारण (स्टेट) काँग्रेस गूट से अलग होकर निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे थें।
श्रॉफ मराठवाड़ा-औरंगाबाद में काफी लोकप्रिय भी थें। वह सरदार पटेल के निकटवर्ती माने जाते थें। पर शहर के लिए नया चेहरा बने ज़कारिया भारी मतो से विजयी हुए।
गोविंददास श्रॉफ बड़े अंतर से पराजित हुए। उस चुनाव में रफिक ज़कारिया को करीबन 18 हजार 767 वोट मिले, जबकि श्रॉफ को सिर्फ 14 हजार 813 वोट पड़े। चार हजार के भारी अंतर से डॉ. ज़कारिया चुनाव जित गए।
औरंगाबाद जिले में विधानसभा के कुल 10 सिटें थी, और काँग्रेस ने नौं सिटो पर विजय हासिल की। राज्य में काँग्रेस गठबंधन को सम्पूर्ण याने 264 सिटों पर विजय हासिल हुई।
उसी साल केंद्र में भी चुनाव हुआ। यशवंतराव को केंद्र में संरक्षणमंत्री बनाया गया। और राज्य में मारोतराव कन्नमवार मुख्यमंत्री बने। राज्य के मंत्रिमंडल में डॉ. रफिक ज़कारिया नगरविकास विभाग के मंत्री बने, जिसके बाद ज़कारिया ने औरंगाबाद शहर का पुनर्मिाण कर उन्होने इस शहर को दुनिया के नक्शे पर ला दिया।
उनके जमाने में औरंगाबाद शहर मे कई विकासकार्य हुए। जिसमें, शहर में पैठण कि महत्वांकाक्षी नाथसागर सिंचाई जलपरियोजना, एमआईडीसी उद्योग कि स्थापना, महामार्ग परियोजना जैसे कई काम डॉ. ज़कारिया ने किए।
आगे चलकर औरंगाबाद एअरपोर्ट के निर्माण के साथ उसके नवीनीकरण तक डॉ. ज़कारिया का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता हैं। कुछ साल पहले तक महाराष्ट्र का औरंगाबाद शहर एशियाई मुल्कों में सबसे तेज गती से डेव्हलप होने वाला शहर माना जाता था। इसकी एकमात्र वजह सिर्फ डॉ. रफिक ज़कारिया हैं। क्योंकि उन्होने जिस दिशा में विकास शुरु किया था, आज उसकी गती तेज हो गई हैं।
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सरकार के विशेष दूत
पाच अप्रैल 1920 में मुंबई के करीब नालासोपारा में जन्मे रफिक ज़कारिया एक राजनेता के रुप में अच्छी समझ रखने वाले व्यक्ति थें। डॉ. ज़कारिया कि प्रारंभिक शिक्षा भिवंडी में हुई।
जोगेश्वरी के इस्माईल यूसुफ कॉलेज में उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की। स्त्रातकोत्तर परीक्षा में मुंबई विश्वविद्यालय से स्वर्णपदक प्राप्त किया। उसके बाद आगे की पढाई के लिए वे लंदन गए। वहाँ पीएच. डी. के बाद उन्होंने बॅरिस्टरी कि पढाई पूरी की।
शुरुआती दौर में ‘इलेस्ट्रेड विकली’ और उसके बाद ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे प्रतिष्ठित अखबारों मे काम किया। एक अच्छे पत्रकार और वकील के रूप में ख्याति प्राप्त करने के बाद डॉ. ज़कारिया राजनीति से जुडकर महाराष्ट्र विधानसभा में आए और 15 करीबन वर्षों तक राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे।
‘इलेस्ट्रेड विकली’ में सहयोगी रहे मशहूर लेखक खुशवंत सिंह उनके बारे में लिखते हैं, “उनकी राजनीतिक सक्रियता भी थी और कई चुनाव भी जीते। कालांतर वे सालों महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी बने रहे। बाद में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अमलीजामा पहनाते हुए सांसद भी बने।”
1970 के दशक में उन्होंने औरंगाबाद शहर के लिए सिडको अथॉरिटी को मंजुरी देकर शहर का विस्तारीकरण किया। राज्य के मंत्रिमंडल मे रहते हुए उन्होंने औरंगाबाद शहर के लिए अनगिणत विकास कार्य किए हैं।
अपने कैबिनेट मंत्री के कार्यकाल में उन्होने औरंगाबाद शहर कि रूपरेखा ही बदल दी। 1978 के बाद वे केंद्र में काँग्रेस के उपमंत्री के रूप में चुने गए। लोकसभा के सांसद के रुप में कई महत्वपूर्ण कार्यों में उन्होंने भाग लिया।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विशेष दूत के रूप में उन्होंने 1984 में इस्लामी देशों का काफी महत्त्वपूर्ण दौरा किया। 1965, 1990 और 1996 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया हैं।
खुशवंत लिखते है, “उनकी तीव्र इच्छा थी कि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में जगह बनाएं। उनके व्यक्तित्व में यदि कोई खामी थी तो वह थी उनका जल्दी गुस्सा होना।… श्रीमती गांधी उनकी इस खामी को अच्छी तरह जानती थीं इसलिए कभी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। इस तरह अपनी इस कमजोरी की वजह से उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी।”
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नागरी प्रश्नों के समझ
डॉ. रफिक ज़कारिया एक राजनेता के रुप में अच्छी समझ रखने वाले व्यक्ति थें। राज्य के विधानमंडल में नागरी (सिविक) समस्याओं के लेकर उनका कार्य अभूतपूर्ण रहा हैं। राज्य में महामार्ग प्राधिकरण हो या सामान्य समस्याओं पर उनका गहरा अध्ययन था।
सिविक इश्शू को लेकर उनका कहना था, “चालीस प्रतिशत नागरी समाज को नजरअंदाज कर के हम राज्य का विकास नही कर सकते।”
उनकी विकास कि परिभाषा छोटे नगरों और कस्बों में बुनियादी सुविधा में छिपी थी। वे मानते थे कि छोटे शहरों मे विकास के साधन मुहैय्या कराना बेहद जरूरी हैं, नही तो लोग अपने कस्बों को छोडकर महानगरों कि तरफ कूच करेंगे, जिससे कस्बे तबाह होंगे।
महात्मा गांधी न भी कहां था, जब तक हम गाँव और कस्बो का विकास नही करेंगे, तब तक हम बुनियादी विकास तक नही पहुँच सकते। महात्मा गांधी का ‘गाँवो कि और चले’ यह नारा डॉ. रफिक ज़कारिया ने वास्तविक रूप से अमल में लाया था। पब्लिक पॉलिसी और सिविक समस्याओं पर उन्होंने बुनियादी काम को आगे लेकर जाने का काम किया था।
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शैक्षणिक कार्य
खुशवंत सिंह लिखते हैं, “उनके बारे में यूं तो बहुत कुछ कहा जा सकता है। मसलन, वे प्रखर बुद्धि के धनी रहे हैं, अच्छा लिखते हैं। उन्होंने कुछ अच्छी पुस्तकें भी लिखी जो प्रकाशित हुई। वे सांस्कृतिक दृष्टिï से समृद्ध थे। …उन्होंने अपने समाज के उत्थान के लिए जो कुछ किया वो उनके समकालीन मुस्लिम नेताओं के योगदान से कहीं अधिक था। मुंबई तथा औरंगाबाद के अनेक स्कूल व कालेज उनके योगदान से ही अस्तित्व में आये।”
मुंबई के अंजूमन इस्लाम के धरती पर उन्होंने सन 1963 में ‘मौलाना आजाद एज्युकेशन सोसायटी’ का निर्माण किया। इसकी नींव उन्होने खुद रखी। 144 छात्रों के साथ शुरु हुए इस कॉलेज का विस्तार मुंबई तक हैं और हजारों छात्र यहां शिक्षा ग्रहण करते हैं। आधुनिक शिक्षा का यह विशाल वृक्ष आज भी शान से खडा हैं। औरंगाबाद शहर में आजाद कैम्पस आधुनिक शिक्षा प्रणाली का गढ माना जाता हैं।
इंजिनिअरिंग, मीडिया, हॉटेल मॅनेजमेंट, हॉस्पिलिटी, सॉफ्टवेअर और तकनिकी शिक्षा में उच्चतम शिक्षा एक ही जगह पर मौजूद हैं। कक्षा बारहवी से लेकर पी. एचडी तक कि शिक्षा एक ही छत के निचे होती हैं। प्रतिष्ठितो लोगों से लेकर सामान्य वर्ग के छात्र यहां पढने आते हैं।
शहर के पश्चिम में स्थित यह कैम्पस शहर के सौंदर्य और इतिहास कि एक मिसाल हैं। कैम्पस में कई ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने का काम किया गया हैं। यादव काल से लेकर मुघल राजवंश और निजाम राजवंश कि कई इमारते यहां सहेजी गई हैं। नवखंडा का महिला कॉलेज तो निजाम राजवंश के पैलेस (महल) में स्थित हैं।
डॉ. ज़कारिया विभिन्न सामाजिक और शैक्षिक संस्था से जुडे रहे। वे एक दूरदृष्टी वाले राजनेता थे, उसी तरह के वे उच्च प्रतिभा के विद्वान भी थे, जिनके शोध और संशोधनपूरक लेखनकार्य क विश्वभर में मान्यता मिली हैं। इस विषय पर स्वतंत्र लेख अगले कडी में हम पढेंगे।
डॉ. रफिक ज़कारिया महाराष्ट्र के विकास पुरुष समझे जाते हैं। औरंगाबाद शहर को उन्होंने अंतिम समय तक नही छोडा। शहर ने उन्हे बहुत प्यार और सम्मान दिया। आज उसी प्यार को सहेजने का काम उनकी पत्नी श्रीमती फातेमा ज़कारिया कर रही हैं। ऐसे दूरदूष्टी राजनेता का हमारा सलाम…
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हिन्दी, उर्दू और मराठी भाषा में लिखते हैं। कई मेनस्ट्रीम वेबसाईट और पत्रिका मेंं राजनीति, राष्ट्रवाद, मुस्लिम समस्या और साहित्य पर नियमित लेखन। पत्र-पत्रिकाओ मेें मुस्लिम विषयों पर चिंतन प्रकाशित होते हैं।